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यूपी चुनाव 2022: फिर मुस्लिम वोटों और ओवैसी फैक्टर को लेकर बहस, फिर बीजेपी की ‘बी’ टीमों की चर्चा

जब से यह ख़बर सुर्ख़ियों में आई की ओवैसी की पार्टी उत्तर प्रदेश में चुनाव लड़ेगी, मीडिया के एक हिस्से ने ऐसा दिखाना शुरू कर दिया, जैसे 2022 में योगी बनाम ओवैसी होने जा रहा है। जबकि ओवैसी और उनकी पार्टी का प्रदेश की राजनीति में फ़िलहाल कोई आधार नहीं है।
यूपी चुनाव 2022

उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव 2022 से पहले एक बार फिर सबकी नज़र मुस्लिम वोटों पर है। प्रदेश के 19 प्रतिशत मुस्लिम आबादी ने समाजवादी पार्टी (एसपी) और बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) दोनों सत्ता के शीर्ष तक पहुँचाया है।

कहा जाता है कि यह मुस्लिम समाज की नाराज़गी ही है, जिसने कांग्रेस को प्रदेश में हाशिये पर लाकर खड़ा कर दिया है। मुस्लिम वोटों का बिखराव भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के लिए अनुकूल मौहल तैयार करता है।

विधानसभा चुनाव 2022 से पहले ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिममीन (एआईएमआईएम) के 100 सीटों चुनाव लड़ने के फ़ैसले ने मुस्लिम वोटों के बिखराव के अटकलबाज़ी को जन्म दिया है। हालाँकि हैदराबाद से उत्तर प्रदेश में  चुनाव लड़ने आ रही पार्टी का प्रदेश में कोई आधार नहीं है।

देखा गया है कि 403 सीटों वाली विधानसभा में क़रीब 140 सीटों पर मुस्लिम वोट निर्णायक भूमिका में होते है। यह सीटें अलीगढ़, श्रावस्ती, रामपुर, मुज़फ़्फ़रनगर, मुरादाबाद, मेरठ, बिजनौर, बरेली, बहराइच, ज्योतिबा फुले नगर (अमरोहा) और अम्बेडकरनगर आदि ज़िलों में हैं।

एआईएमआईएम का देश के सबसे महत्वपूर्ण प्रदेश में चुनाव लड़ना, धार्मिक आधार पर वोटों का, बड़ा ध्रुवीकरण कर सकता है। क्यूँकि एआईएमआईएम के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी भी भगवा पार्टी की तरह धार्मिक भावनाओं को आधार बनाकर राजनीति करते हैं।

ओवैसी धर्म विशेष के लिए राजनीति करते हैं, उनकी पार्टी के नाम से भी उनका मुस्लिम समुदाय की तरफ़ झुकाव साफ़ नज़र आता है। हालाँकि उन्होंने कभी भी संविधान के दायरे के बाहर जा कर राजनीतिक बयान या भाषण नहीं दिया है। वह “जय भीम-मीम” यानी दलित-मुस्लिम एकता का नारा देते हैं।

जब से यह ख़बर सुर्ख़ियों में आई की ओवैसी की पार्टी उत्तर प्रदेश में चुनाव लड़ेगी, मीडिया के एक हिस्से ने ऐसा दिखाना शुरू कर दिया, जैसे 2022 में योगी बनाम ओवैसी होने जा रहा है। जबकि ओवैसी और उनकी पार्टी का प्रदेश की राजनीति में फ़िलहाल कोई आधार नहीं है।

हालाँकि यह नैरटिव भगवा राजनीति करने वालों के बहुत अनुकूल है। क्योंकि 2017 में 403 में 325 सीटें जीत कर पूर्ण बहुमत से योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में सरकार बनाने वाली बीजेपी इस समय संकट के दौर से गुज़र रही है।

कोविड-19 की दूसरी लहर में अव्यवस्था, पार्टी के अंदर चल रहे आपसी मतभेद और किसान आंदोलन ने बीजेपी के परेशानियों को चुनाव से पहले बढ़ा दिया है। ऐसे में विपक्ष के लिए सत्ता हासिल करने की लड़ाई थोड़ी आसान हुई है। लेकिन सत्ता हासिल करने के लिए विपक्ष को मुस्लिम समाज को विश्वास में लेना होगा।

जानकार मानते हैं, योगी आदित्यनाथ सरकार में हो रहे कथित उत्पीड़न से अल्पसंख्यक मुस्लिम समाज एक सख़्त दौर से गुज़र रहा है। चाहे वह नगरिकता संशोधन क़ानून के विरुद्ध प्रदर्शन हों या प्रदेश में हुई तथाकथित फ़र्ज़ी मुठभेड़े, सभी मौक़ों पर मुस्लिम समाज अपने जान-माल का नुक़सान गिना रहा है।

बीएसपी ने 2007 में 403 में 206 सीटें हासिल कर पूर्ण बहुमत से सरकार बनाई थी। जिसके बाद 2012 के विधानसभा चुनावों में 224 सीटें जीत कर समाजवादी पार्टी ने पूर्ण बहुमत से सरकार का गठन किया। सियासी जानकार मानते हैं की मुस्लिम समाज ने 2007 में बीएसपी और 2012 में एसपी के लिए संगठित होकर वोट किया था।

लेकिन 2017 में मुस्लिम वोट का बिखराव हो गया। जिसके कई कारण थे। मुस्लिम समुदाय अखिलेश यादव से शामली-मुज़फ़्फ़रनगर में 2013 में दंगे की वजह से नाराज़ थे। जिसमें क़रीब 62 लोग मारे गये थे, जिसमें अधिकतर मुस्लिम बताये जाते हैं। चुनाव से पहले यादव परिवार (अखिलेश-शिवपाल) का झगड़े के तूल पकड़ने से पार्टी कमज़ोर भी हो गई थी।

आख़िर में अखिलेश ने कांग्रेस से समझौता किया ताकि मुस्लिम वोट का बिखराव न हो, लेकिन बीएसपी ने 100 से अधिक मुस्लिम उम्मीदवार चुनावी मैदान में उतार दिये। नतीजा यह हुआ कि मुस्लिम वोटों का ज़बर्दस्त बिखराव हुआ। जिसका सीधा फ़ायदा बीजेपी को मिला।

भगवा पार्टी जो बिना किसी मुख्यमंत्री के नाम के मैदान में उतरी, उसको 312 सीटों पर विजय हासिल हुई। जबकि एसपी ने 298 उम्मीदवार मैदान में उतारे, जिसमें सिर्फ़ 47 ही विधानसभा तक पहुँचे। कांग्रेस ने 105 सीटों पर उम्मीदवार उतारे और केवल सात पर विजय हसील की थी। यही हाल मायावती की बीएसपी का हुआ, उसके खाते में 403 में से सिर्फ़ 19 सीट आईं थी।

अब अगर ओवैसी चुनाव लड़ते हैं, तो एक बार फिर ऐसा ही बिखराव मुस्लिम वोटों का हो सकता है। माना जा रहा इसमें सबसे बड़ा नुक़सान समाजवादी पार्टी का होगा। क्योंकि राजनीति के जानकार मानते हैं कि मायावती ने विपक्ष में रहते हुए, बीजेपी को कभी गंभीर चुनौती नहीं दी। जिस कारण मुस्लिम उसको बीजेपी के विकल्प के रूप में नहीं देखते हैं।

प्रदेश में अब मायावती पर भी बीजेपी की टीम-बी होने के आरोप लग रहे हैं। कांग्रेस ज़मीन पर उतरती है, लेकिन सत्ता से 30 वर्ष से अधिक बेदख़ल रहने की वजह से उसके पास बड़ी तादाद में ज़मीन पर काम करने वाले कार्यकर्ता नहीं है। पार्टी के पास ज़मीनी नेताओं की भी कमी है।

एसपी अध्यक्ष अखिलेश यादव से भी मुस्लिम पूरी तरह ख़ुश नहीं है। क्योंकि वह भी किसी मुद्दे पर सड़क पर नहीं उतरे हैं। चुनाव हारने के बाद से वह सिर्फ़ सोशल मीडिया पर राजनीति कर रहे हैं। लेकिन उनका कार्यकर्ता सड़क पर दिखता है। सीएए विरोधी आंदोलन से लेकर कृषि क़ानून के विरोध तक में एसपी के कार्यकर्ता, बिना किसी क़द्दावर नेता के, सरकार से मोर्चा लेते दिखे।

इसलिए एआईएमआईएम के अचानक आने से सबसे बड़ी चुनौती भी एसपी को ही होगी। अखिलेश, दलित-मुस्लिम और पिछड़े समाज- (डी-एम-ओ) की समीकरण के साथ चुनाव में उतरना चाहते हैं। ओवैसी ने कहा है कि वह “भागीदारी संकल्प मोर्चा” के साथ समझौता कर के चुनाव लड़ेगे।

उल्लेखनीय है मोर्चा में करीब आठ छोटे दल शामिल हैं। इसमें सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी, जन अधिकार पार्टी,  अपना दल कमेरावादी, राष्ट्र उदय पार्टी, जनता क्रांति पार्टी, भारत माता पार्टी, भारतीय वंचित समाज पार्टी शामिल हैं।

बता दें कि इस मोर्चे में कई ऐसी पार्टियां भी हैं,जिन्होंने विधानसभा चुनाव के लिए ओवैसी के साथ हाथ मिलाया है। मोर्चा का गठन सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर ने किया। जिनकी पार्टी के चार विधायक मौजूदा विधानसभा में हैं।

विपक्षी पार्टियां ओवैसी की पार्टी पर भी बीजेपी की बी-टीम होने का आरोप लगाती हैं। जो मुस्लिम वोटों का बिखराव कर बीजेपी की मदद करती है। हालाँकि पार्टी हैदराबाद के बाहर निकाल कर भी चुनावी राजनीति में कामयाब हुई है। लोकसभा से लेकर कई राज्य विधानसभाओ में एआईएमआईएम की उपस्थिति है।

एआईएमआईएम के लोकसभा में दो सांसद हैं। तेलंगाना विधानसभा में सात, महाराष्ट्र विधानसभा में दो और बिहार विधानसभा पांच विधायक भी हैं। इसके अलावा तेलंगाना विधानपरिषद में दो सदस्य एआईएमआईएम के हैं। अभी हाल में उत्तर प्रदेश में हुए पंचायत चुनावों में पार्टी में समर्थित 22 उम्मीदवारी जीते हैं।

क़यास था कि बीएसपी और ओवैसी मिलकर उत्तर प्रदेश में चुनाव लड़ेगे, लेकिन मायावती ने ऐसी किसी भी समझौते से इंकार किया है। एआईएमआईएम के प्रदेश अध्यक्ष शौक़त अली ने न्यूज़क्लिक को बताया कि उनकी पार्टी 100 यानी 25 प्रतिशत सीटों पर भगदारी संकल्प मोर्चा के साथ मिलकर चुनाव मैदान में उतरेगी।

सेक्युलर वोटों के बिखराव के सवाल पर उन्होंने कहा कि यह आरोप आम आदमी पार्टी (आप) पर क्यों नहीं लगाया जा रहा है, वह भी तो प्रदेश में नई पार्टी में रूप में चुनाव में उतरने जा रही है।

राजनीति के जानकार मानते हैं कि एकदम से ओवैसी का चुनाव में उतरने की घोषणा, संकट से गुज़र रही बीजेपी लिए किसी वरदान से कम नहीं है। वरिष्ठ पत्रकार व लेखक अनुराग त्रिपाठी कहते हैं कि कृषि क़ानून के विरुद्ध आंदोलन और कोविड-19 दोनों का नकारात्मक असर बीजेपी पर पड़ेगा। ऐसे में ओवैसी मुस्लिम वोटों में बिखराव, बीजेपी के लिए किसी वरदान से कम नहीं होगा। क्योंकि ओवैसी बीजेपी के नहीं बल्कि उसके विपक्षी दलों के वोट काटेंगे। हालांकि त्रिपाठी आगे कहते हैं की इतने नाज़ुक हालात में मुस्लिम कोई नया प्रयोग नहीं करेंगे, उसका वोट एकजुट किसी मज़बूत विकल्प को ही जाता दिख रहा है।

राजनीतिक विश्लेक कहते हैं कि गाँव-क़स्बों से लेकर शहरों तक कोविड-19 के बाद से बीजेपी के विरुद्ध एक मौहल बन गया है। मुस्लिम मामलों पर नज़र रखने वाले हिसाम सिद्दीक़ी मानते हैं कि जहां एआईएमआईएम का जन्म हुआ (आंध्र प्रदेश) वहाँ तो कभी उसकी सरकार बनी नहीं, तो उत्तर प्रदेश में वह कैसे सत्ता हासिल कर लेंग़े। वह सिर्फ़ मुस्लिम वोटों को काट कर के कमज़ोर बीजेपी की मदद करेंगे।

लेखक और पत्रकार कुलसूम तलह भी मानती हैं कि ओवैसी के आने से सेक्युलर राजनीति को फ़ायदा कम नुक़सान ज़्यादा होगा। कुलसूम कहती हैं कि जिस संकट का सामना मुस्लिम इस समय कर रहे हैं, हो सकता है मुस्लिम उस से बाहर निकलने के लिए, एकजुट होकर किसी सेक्युलर दल का समर्थन करें, जिसका प्रदेश में पहले से मज़बूत आधार हो।

न्यूज़क्लिक ने ओवैसी के चुनावी मैदान में आने पर एसपी से भी बात की है। एसपी की नेता जूही सिंह के अनुसार उनकी पार्टी सारे समाज की साथ में लेकर चुनाव में जायेंगी। क्योंकि पिछले कुछ सालों में सभी का उत्पीड़न हुआ है। जूही कहती हैं जैसे जनता ने 2007, 2012 और 2019 में स्पष्ट बहुमत से सरकारें बनाई है, वैसी ही 2022 में भी पूर्ण बहुमत की सरकार बनेगी।

उन्होंने कहा जैसे आप और शिवसेना प्रदेश में चुनाव लड़ेंगे वैसी एआईएमआईएम भी चुनावी मैदान में होगी। उस से उनकी पार्टी पर कोई असर नहीं पड़ेगा, क्योंकि सपा जनता के मुद्दे लेकर जनता से समर्थन माँगेगी।

अब देखना यह है कि हैदराबाद से आकर एआईएमआईएम, उत्तर प्रदेश चुनावी मैदान में कितनी सफल होती है। फ़िलहाल विपक्षी दल उसको कोई महत्व नहीं देने की बात कर रहे हैं। लेकिन यह भी सच है कि मुस्लिम वोटों पर नज़र लगाए बैठे सभी दलों को वोटों के बिखराव की चिंता परेशान कर रही है।

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