Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

यूपी चुनाव: बिगड़ते राजनीतिक मौसम को भाजपा पोस्टल बैलट से संभालने के जुगाड़ में

इस चुनाव में पोस्टल बैलट में बड़े पैमाने के हेर फेर को लेकर लोग आशंकित हैं। बताते हैं नजदीकी लड़ाई वाली बिहार की कई सीटों पर पोस्टल बैलट के बहाने फैसला बदल दिया गया था और अंततः NDA सरकार बनने में उसकी बड़ी भूमिका हो गयी।
postal ballot
प्रतीकात्मक तस्वीर

पहले चरण के चुनाव के ठीक पहले मोदी जी कोरोना काल की अपनी पहली फिजिकल रैली में 7 फरवरी को बिजनौर नहीं पहुंचे। बताया गया कि खराब मौसम के कारण उनका हेलीकॉप्टर नहीं उड़ सका। हालांकि योगी उसी मौसम में पहुंच गए। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि दो चरणों के चुनाव की पूर्वबेला में  प्रधानमंत्री की महत्वाकांक्षी रैली का रद्द होना प्राकृतिक मौसम से अधिक UP में भाजपा के राजनीतिक मौसम की कहानी बयां कर रहा है।

जयंत चौधरी ने तंज किया, " बिजनौर में तो धूप खिली है, पर भाजपा का मौसम खराब है।"  लोगों को वीडियो स्पीच द्वारा सम्बोधित करते हुए मोदीजी ने बिजनौर में जन्मे लोकप्रिय शायर दुष्यंत कुमार की लाइनों से शुरुआत की, " यहां तक आते आते सूख जाती हैं कई नदियाँ, मुझे मालूम है पानी कहाँ ठहरा हुआ होगा!"

जाहिर है उनका इशारा पिछली सरकार के कार्यकाल की ओर था, लेकिन वे लोगों को यह बताना भूल गए कि उनके और योगी जी की डबल इंजन सरकार के दौर में नदी का पानी कहाँ रुका हुआ है और किधर divert हो रहा है कि पूरा UP वीरान हो गया! सारे आर्थिक पैरामीटर्स पर UP क्यों देश का सबसे फिसड्डी राज्य बन गया ?

इसके एक दिन पहले 6 फरवरी को आगरा-मथुरा-बुलंदशहर के भाजपा कार्यकर्ताओं की वर्चुअल रैली को सम्बोधित करते हुए योगी-राज में उत्तरप्रदेश के विकास के बारे में इसी अंदाज में उन्होंने एकदम बेबुनियाद दावे किए, जो स्वयं सरकारी एजेंसियों-RBI, नीति आयोग आदि के आंकड़ों द्वारा भी खारिज किये जा चुके हैं।

जहां प्रधानमंत्री समेत भाजपा का शीर्ष नेतृत्व अपनी संवैधानिक मर्यादाओं को भी ताक पर रखकर ध्रुवीकरण की हर मुमकिन कोशिश में लगा हुआ है, मोदी जी ने बिल्कुल सफेद झूठ बोल दिया कि हमारे लिए "चुनाव में सबसे बड़ा मुद्दा विकास है-तेज विकास।" फिर उन्होंने लगे हाथों यह दावा कर दिया कि, " पिछले 5 साल में योगी जी ने सिद्ध कर दिया कि केवल और केवल BJP और उसकी डबल इंजन सरकार ही UP का विकास कर सकती है।"

इसी बिना पर उन्होंने नारा उछाल दिया " UP चाहे असरदार सरकार, फिर एक बार योगी सरकार "। उन्होंने जोर देकर कहा कि योगी जी बहुत कुछ करना चाहते थे, कोविड के कारण नहीं कर पाए, अगले 5 साल में उसको भी compensate करेंगे।

बहरहाल,  रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया( RBI )के आंकड़ों के अनुसार मोदी जी के दावे के विपरीत सच्चाई यह है कि जहां पिछली सरकार के कार्यकाल में उत्तर प्रदेश में प्रतिव्यक्ति इनकम ग्रोथ रेट 5% थी, वहीं यह योगी-राज में कोविड शुरू होने के पहले ही 2018-20 के बीच मात्र 3% रह गयी थी। कोविड के बाद तो यह 1.8% पर पहुंच गई। उत्तर प्रदेश में प्रति व्यक्ति आय मात्र रुये 41023 है जो राष्ट्रीय औसत रुपये 86659 के आधे से भी कम है।

इसी तरह का दावा लखनऊ में 3 फरवरी को एक प्रेसवार्ता में योगी जी ने कर दिया कि UP 1947 से 2017 तक अर्थव्यवस्था में 6ठें-7वें स्थान पर था। अब UP पूरे देश में दूसरे स्थान पर आ गया है। जो 70 साल में  नहीं हुआ था, वह हमने 5 साल में सफलतापूर्वक कर दिया।

योगी के इस दावे का सच से कोई लेना देना नहीं है। सच्चाई यह है कि UP लगातार top 5 में रहता आया है और जो UP पिछली सरकार के समय तीसरे स्थान पर( महाराष्ट्र, तमिलनाडु के बाद ) था, वह योगी-राज में 2017 से 20 के बीच चौथे स्थान पर खिसक गया ( महाराष्ट्र, तमिलनाडु, गुजरात के नीचे )। सरकारी आंकड़ों के हिसाब से GSDP की ग्रोथ रेट जो पिछली सरकार के समय 6.92% थी, वह डबल इंजन सरकार के समय गिरकर 1.95% रह गयी। सबसे भयावह गिरावट तो रोजगार सृजन की दृष्टि से महत्वपूर्ण मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में हुई, जहाँ विकास दर पिछली सरकार के समय 14.64% थी, , वह योगी शासन में गिरकर नकारात्मक (-3.34% ) हो गयी !

यह अब निर्विवाद है कि योगी सरकार के कार्यकाल में UP विकास के पैमाने पर फिसड्डी हो चुका है। नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार हेल्थ इंडेक्स में UP देश के बड़े राज्यों में सबसे निचले पायदान पर पहुंच गया है, जिसका खामियाजा कोरोना-काल में प्रदेश की लाखों जनता ने अपनी जान की कीमत देकर चुकाई।

सुरक्षा और सुशासन के लिए प्रधानमंत्री योगी सरकार की चाहे जितनी पीठ थपथपा लें, स्वयं NCRB के सरकारी आंकड़ों के हिसाब से अपराध के पहले से ज्यादा मामले दर्ज हुए हैं, समाज के सबसे कमजोर तबकों दलितों, महिलाओं के खिलाफ अपराध में UP आज शिखर पर है।

सच्चाई यह है कि विकास और सुरक्षा-सुशासन, दोनों पैमाने पर डबल इंजन सरकार की विफलताएं विराट और अभूतपूर्व हैं। इसीलिए योगी सरकार के खिलाफ जबरदस्त एन्टी-इनकंबेंसी है और जनता बदलाव के मूड में है। इन हालात में ध्रुवीकरण का कार्ड पुराने तरीके से चल ही नहीं पा रहा। इसमें किसान-आंदोलन और युवा-आक्रोश की भी बड़ी भूमिका है।

बावजूद इसके, विपक्ष के लिए comlacency की कोई जगह नहीं है। संघ-भाजपा की विशाल चुनावी मशीनरी तमाम ताल-तिकड़मों के साथ अपने विरुद्ध जा रहे जनादेश को पलट देने की हर मुमकिन कोशिश में लगी है।

इस चुनाव में पोस्टल बैलट में बड़े पैमाने के हेर फेर को लेकर लोग आशंकित हैं। बताते हैं नजदीकी लड़ाई वाली बिहार की कई सीटों पर पोस्टल बैलट के बहाने फैसला बदल दिया गया था और अंततः NDA सरकार बनने में उसकी बड़ी भूमिका हो गयी।

दरअसल, अखिलेश यादव द्वारा पुरानी पेंशन बहाल करने की घोषणा से कर्मचारियों-शिक्षकों में इस बार मतदान के लिए नए तरह का उत्साह है। पहले के चुनावों के विपरीत, ऐसी रिपोर्ट है कि पुरानी पेंशन बहाली के लिए इस बार कर्मचारी भारी संख्या में मतदान करेंगे जिनमें बड़ी तादाद में दूसरी जगह ड्यूटी पर लगे कर्मियों के पोस्टल बैलट होंगे।

इस सिलसिले में पुरानी पेंशन बहाली के लिए लड़ने वाले उनके संगठन अटेवा (All Teachers Employees Welfare Association ) ने चुनाव आयोग को लिखे पत्र में कई गम्भीर आशंकाएं व्यक्त की हैं। शिक्षक-कर्मचारी नेताओं का आरोप है कि कई जगहों पर उन्हें फॉर्म 12 नहीं दिया जा रहा है, जिससे वे पोस्टल बैलट पर मतदान नहीं कर पा रहे हैं।

कई जगहों से ऐसी शिकायतें आ रही हैं कि बड़े अधिकरियों द्वारा कर्मचारियों से उनके वोटर आईडी, आधार और हस्ताक्षर मांगे जा रहे हैं, वोटिंग में पारदर्शिता नहीं बरती जा रही है। कर्मचारियों का आरोप है कि वे मनमुताबिक वोट नहीं कर पा रहे हैं लिहाजा कैमरे के सामने पोस्टल बैलेट से वोटिंग हो।

ऐसी भी रिपोर्ट आ रही हैं कि कर्मचारी अगर अपने duty-hour के बाद भी विपक्ष की किसी सभा में चला गया तो दबाव बनाने के लिए कर्मचारी सेवा नियमावली के नाम पर उसके ख़िलाफ़ दंडात्मक कार्रवाई हो गयी। नौकरशाही, पुलिस बल आदि में subordinate कर्मचारी अपने बॉस के भारी दबाव में रहते हैं, इन हालात में उनका free and fair पोस्टल मतदान आशंकाओं के घेरे में है।

इसी तरह अबकी बार 80 वर्ष से ऊपर आयु के वृद्धों, दिव्यांग जनों तथा कोविड मरीजों के लिए भी घर-घर जाकर अधिकारी-कर्मचारी उनका पोस्टल बैलट से मतदान करवा रहे हैं। इसकी निष्पक्षता को लेकर भी लोगों में गहरी आशंकाएं हैं। कहा जा रहा है कि इसके लिए अधिकारियों को टारगेट कोटा दिया गया है। कई ऐसे वीडियो वायरल हो रहे हैं जिसमें दिव्यांग कह रहे हैं कि हम अमुक को वोट डालना चाहते थे, लेकिन हमसे फूल पर जबरदस्ती डलवा लिया।

सम्भवतः इन्हीं सब हालात के मद्देनजर किसान नेता राकेश टिकैत ने भी प्रशासनिक मशीनरी का इस्तेमाल कर गड़बड़ियों की आशंका व्यक्त की है। एक चैनल पर अपनी शैली में उन्होंने कहा कि जिले में अधिकारी दस से पंद्रह हजार वोट लेकर पहले से बैठेंगे। ( जाहिर है, उनका इशारा सत्तारूढ़ दल के पक्ष में इसी तरह के मतों की ओर है। )

चुनाव आयोग को यह सुनिश्चित करना होगा कि मतदान में interested सभी कर्मचारियों तथा नागरिकों का पोस्टल बैलट का स्वतन्त्र, निर्भय मतदान सुनिश्चित हो तथा मतगणना तक मतों की सुरक्षा की गारंटी हो।

एक अनुमान के अनुसार, घर घर जाकर जो पोस्टल बैलट होगा, वह हर विधान सभा मे 10 से 15  हजार तक हो सकता है। जाहिर है इतनी बड़ी तादाद में पोस्टल बैलट चुनाव नतीजों पर निर्णायक असर डाल सकता है।

जाहिर है विपक्ष तथा कर्मचारी-शिक्षक नागरिक संगठनों को इसको अत्यंत गम्भीरतापूर्वक लेना होगा और जरूरी निवारक कार्रवाई तथा तैयारी करनी होगी।

सरकार बनाने और सारी संस्थाओं पर कब्जा करने के लिए भाजपा कितनी desperate है, इसको इस बात से समझा जा सकता है कि प्रदेश के इतिहास में पहली बार विधानसभा चुनावों के ही दिन विधान परिषद के चुनाव घोषित कर दिए गए थे, जिसमें भाजपा का अभी बहुमत नहीं है।

इन चुनावों में विधायक भी मतदान करते हैं।

भाजपा अपनी सत्ता का इस्तेमाल कर जिला पंचायत, ब्लॉक अध्यक्षों के चुनाव की तरह इन सीटों पर कब्ज़ा करना चाहती थी।

बहरहाल इस पर विरोध के स्वर उठने लगे, सम्भव है भाजपा के विधानसभा चुनाव की संभावनाओं पर भी प्रतिकूल असर का आंकलन हुआ हो, चुनाव-आयोग ने अब ये चुनाव टाल दिए हैं।

उत्तर प्रदेश के इस चुनाव में दोनों ही पक्षों का बहुत कुछ दांव पर लगा है। 2024 का गेट-वे माना जा रहा यह चुनाव केवल भाजपा के लिए नहीं बल्कि वित्तीय पूँजी, कारपोरेट घरानों, गोदी मीडिया समेत समूचे  सत्ताप्रतिष्ठान के लिए बेहद अहम है, दूसरी ओर किसानों, युवाओं, मेहनतकशों, हाशिये के तबकों समेत आम जनता, संघर्षशील ताकतों, यहां तक कि संसदीय विपक्ष के लिए भी यह जीवन-मरण का चुनाव है, जिसमें न सिर्फ जनता का अस्तित्व बल्कि हमारे लोकतन्त्र का भविष्य भी दांव पर लगा हुआ है। जाहिर है, किसी भी मोर्चे पर शिथिलता आत्मघाती साबित हो सकती है।

(लेखक इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest