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हाथरस मामले में आंदोलन से लेकर अधिकारियों के निलंबन तक, जानें अब तक क्या-क्या हुआ?

गांधी जंयती के अवसर पर हुए भारी विरोध प्रदर्शनों के बीच यूपी सरकार ने कुछ अधिकारियों के निलंबन की कार्रवाई की है, लेकिन अभी इस मामले में इंसाफ़ बहुत दूर दिखाई दे रहा है।
हाथरस मामले में आंदोलन

सड़क से लेकर सोशल मीडिया तक लोगों में आक्रोश है। नागरिक समाज और विपक्ष ने योगी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है। शुक्रवार, 2 अक्तूबर गांधी जयंती के दिन दिल्ली के जंतर-मंतर पर नागरिक समाज, छात्र, महिलावादी संगठन और कई राजनेताओं ने हाथरस की घटना के ख़िलाफ़ ज़बरदस्त प्रदर्शन किया। जिसके बाद शुक्रवार देर शाम प्रशासन की ओर से निलंबन के कार्रवाई की ख़बर आई।

मुख्य सचिव गृह अवनीश कुमार अवस्थी के अनुसार इस संबंध में एसपी, डीएसपी, इंस्पेक्टर और कुछ अन्य अधिकारियों को निलंबित कर दिया गया है। निलंबित होने वालों में एसपी विक्रांत वीर, सीओ रामशब्द, इंस्पेक्टर दिनेश कुमार वर्मा, एसआई जगवीर सिंह, हेड कॉन्सटेबल महेश पाल शामिल हैं।

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लेकिन ये कार्रवाई भी आधी-अधूरी की गई। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने इसे लेकर योगी सरकार पर निशाना साधा। उन्होंने कहा-

“योगी आदित्यनाथ जी, कुछ मोहरों को निलंबित करने से क्या होगा? हाथरस की पीड़िता, उसके परिवार को भीषण कष्ट किसके आदेश पर दिया गया? हाथरस के डीएम, एसपी के फोन रिकॉर्ड सार्वजनिक किए जाएं।”

उन्होंने कहा, “मुख्यमंत्री जी अपनी जिम्मेदारी से हटने की कोशिश न करें। देश देख रहा है। योगी आदित्यनाथ इस्तीफा दो।”

हाथरस मामले में अभी तक क्या-क्या हुआ?

14 सितंबर को 19 साल की एक दलित युवती के साथ सवर्ण जाति के चार युवकों के बर्बरतापूर्वक मारपीट करने और बलात्कार करने की खबर सामने आई। रीढ़ की हड्डी, गर्दन में गंभीर चोटें और जीभ काटने का भी आरोप लगा।

* बाद में पीड़िता के भाई की शिकायत पर पुलिस ने आरोपियों के खिलाफ गैंगरेप और हत्या के प्रयास के अलावा अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारक अधिनियम) के तहत मामला दर्ज किया गया। पुलिस पर देर से मामला दर्ज करने के आरोप लगे हैं।

* 29 सितंबर को पीड़िता ने दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में इलाज के दौरान दम तोड़ दिया। पीड़िता को मेडिकल सुविधाएं उपलब्ध करवाने में देरी का भी आरोप है।

* 29 सितंबर देर रात(बुधवार) करीब 2.45 पर पीड़िता का आननफानन में अंतिम संस्कार कर दिया। जिसके बाद मामले ने तूल पकड़ा और विपक्ष ने सरकार पर महिला सुरक्षा और कानून व्यवस्था को लेकर हमला बोला, प्रदर्शन हुए।

* परिजनों ने पुलिस पर बिना सहमति के शव का अंतिम संस्कार करने का आरोप लगाया। प्रशासन पर नज़रबंद करने और डराने-धमकाने के भी आरोप लगाए गए। हालांकि, पुलिस ने इन आरोपों से इनकार किया है।

* पीड़िता को न्याय दिलवाने के लिए नागरिक समाज और विपक्षी दलों ने 30 सितंबर को राष्ट्रीय प्रतिवाद दिवस (नेशनल प्रोटेस्ट डे) सितंबर मनाया। देश के कई इलाकों में जोरदार प्रदर्शन हुए।

* भारी विरोध के बीच 30 सितंबर को ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस घटना की जांच के लिए 3 सदस्यीय एसआईटी टीम गठित की, मुकदमे को फास्ट ट्रैक में चलाने के निर्देश दिए।

* इसी दिन राष्ट्रीय मानवधिकार आयोग ने योगी सरकार को नोटिस जारी करते हुए प्रदेश के डीजीपी से परिवार को सुरक्षा देने के लिए कहा। महिला आयोग ने भी उत्तर प्रदेश पुलिस से जल्दबाजी में अंतिम संस्कार किए जाने पर जवाब मांगा।

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*1 अक्टूबर को राहुल गांधी और प्रियंका गांधी पीड़िता के परिजनों से मिलने हाथरस के लिए निकले। लेकिन यमुना एक्सप्रेस वे पर पुलिस ने उन्हें हिरासत में ले लिया था। इस दौरान पुलिस पर धक्का-मुक्की के भी आरोप लगे। जिसके बाद हाथरस प्रशासन ने गांव में धारा 144 लागू कर दी। मीडिया और नेताओं के गांव में जाने पर पाबंदी लगा दी गई। आज, 3 अक्टूबर को भी एक बार फिर राहुल और प्रियंका हाथरस जाने की कोशिश कर रहे हैं। 

* इस बीच इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने स्वत: संज्ञान लेते हुए राज्य सरकार को नोटिस जारी किया है। कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के अपर मुख्य सचिव, पुलिस महानिदेशक और अपर पुलिस महानिदेशक को समन जारी कर सभी से 12 अक्टूबर को अदालत में पेश होने और मामले में स्पष्टीकरण देने को कहा है।

* 2 अक्टूबर गांधी जयंती के दिन दिल्ली के जंतर-मंतर से लेकर बीएचयू के लंका गेट तक जोरदार प्रदर्शन हुआ। तृणमूल कांग्रेस के नेता डेरेक ओ ब्रायन और उनके सहयोगियों को यूपी पुलिस ने पीड़िता के गाँव नहीं जाने दिया। इस दौरान हाथरस की सीमा पर भी प्रदर्शन देखने को मिला। जिसके बाद देर शाम को प्रशासनिक कार्रवाई की खबर सामने आई।

* शनिवार, 3 अक्तूबर को प्रशासन ने मीडिया की एंट्री पर लगी पाबंदी हटा दी। इससे पहले खुद बीजेपी नेता उमा भारती ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मीडिया को गांव में जाने देने की अपील की थी।

यूपी सरकार क्या कह रही है?

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी ने शुक्रवार को ट्वीट कर कहा, "उत्तर प्रदेश में माताओं-बहनों के सम्मान-स्वाभिमान को क्षति पहुँचाने का विचार मात्र रखने वालों का समूल नाश सुनिश्चित है। इन्हें ऐसा दंड मिलेगा जो भविष्य में उदाहरण प्रस्तुत करेगा। आपकी उत्तर प्रदेश सरकार प्रत्येक माता-बहन की सुरक्षा व विकास हेतु संकल्पबद्ध है।"

क्या पीड़िता के साथ दुष्कर्म नहीं हुआ था?

मालूम हो कि यूपी पुलिस के एडीजी (लॉ एंड ऑर्डर) प्रशांत कुमार ने एक अक्टूबर को प्रेस कॉन्फ़्रेंस में कहा था कि फ़ोरेंसिक साइंस लेबॉरेटरी रिपोर्ट के अनुसार, विसरा के सैंपल में कोई वीर्य/सीमन या उसका गिरना नहीं पाया गया है। मतलब गैंगरेप की बात को एक तरह से खारिज़ किया गया है।

एडीजी प्रशांत कुमार के अनुसार पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट कहती है कि हमले के बाद जो ट्रॉमा हुआ उसके कारण मौत हुई है। अधिकारियों के बयान के बावजूद कुछ ग़लत ख़बरें फैलाई जा रही हैं।

उन्होंने कहा, "इससे स्पष्ट होता है कि ग़लत तरीक़े से जातीय तनाव पैदा करने के लिए इस तरह की चीज़ें कराई गईं। पुलिस ने शुरू से इस मामले में त्वरित कार्रवाई की है और आगे की विधिक कार्रवाई की जाएगी।"

इस बयान के बाद यूपी पुलिस की आलोचना हो रही है। जानकारों का कहना है कि बलात्कार साबित करने के लिए महिला के शरीर पर सीमन या वीर्य का होना ज़रूरी नहीं है। 2012 में निर्भया गैंगरेप मामले के बाद जो क़ानून में बदलाव हुए उसके बाद रेप की परिभाषा बहुत व्यापक हो चुकी है। अब सिर्फ़ वेजाइनल पेनिट्रेशन (महिला-पुरुष के बीच प्राकृतिक संबंध) को ही रेप नहीं माना जाएगा बल्कि किसी भी तरह के पेनिट्रेशन को धारा 375 और 376 में शामिल कर दिया गया है। इसमें एक उंगली के ज़रिए किया गया पेनिट्रेशन भी शामिल है।

वकील आर्शी जैन के मुताबिक सीमन शरीर पर पाए जाने को लेकर हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के कई फ़ैसले भी हैं, जहां पर न्यायालय ने सीमन होने या न होने को ज़रूरी नहीं माना है। परमिंदर उर्फ़ लड़का पोला बनाम दिल्ली सरकार (2014) मामले में सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फ़ैसले को सही माना था जिसमें हाईकोर्ट ने कहा था कि सीमन का शरीर पर होना बलात्कार साबित करने के लिए आवश्यक नहीं है।

जंतर-मंतर से उठी आवाज़, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के इस्तीफ़े की मांग

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की जयंती पर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, माकपा नेता सीताराम येचुरी, बृंदा करात, अभिनेत्री स्वरा भास्कर, भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर आज़ाद, आप विधायक सौरभ भारद्वाज सहित कई नेता और सामाजिक संगठन के लोग हाथरस पीड़िता को न्याय दिलाने के लिए जंतर-मंतर पर एकजुट हुए।

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प्रदर्शनकारियों ने उत्तर प्रदेश प्रशासन के खिलाफ नारे लगाते हुए पीड़िता के लिए न्याय की मांग की और राज्य के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के इस्तीफे की मांग करते हुए आरोप लगाया कि वह आरोपियों को बचा रहे हैं।

बता दें कि ये प्रदर्शन शुरुआत में इंडिया गेट पर होना था, लेकिन राजपथ क्षेत्र में इन प्रदर्शनों को देखते हुए पहले ही निषेधाज्ञा लागू होने के कारण यह जंतर-मंतर पर किया गया।

उत्तर प्रदेश में जो कुछ हो रहा है, वह ‘गुंडाराज’ है!

अपने संबोधन में वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कहा, “उत्तर प्रदेश में जो कुछ हो रहा है, वह ‘गुंडाराज’ है। पुलिस ने गांव को घेर रखा है, वहां विपक्षी नेताओं और मीडियाकर्मियों को नहीं घुसने दिया जा रहा। उन्होंने (पुलिस-प्रशासन) ने पीड़िता के परिवार के सदस्यों के मोबाइल फोन ले लिए हैं।”

बॉलीवुड अभिनेत्री स्वरा भास्कर ने कहा कि विभिन्न तबके के लोग जंतर मंतर पर जुटे हैं, जो यह दिखाता है कि लोग कितने गुस्से में हैं।

उन्होंने कहा, “वक्त आ गया है कि हम बलात्कार महामारी के खिलाफ लड़ाई शुरू करें और आज हम यहां खड़े हैं तथा हमें जीतना है।”

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‘यूपी सरकार ये न भूले कि वो सेवक की भूमिका में है’

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने प्रदर्शनकारियों को संबोधित करते हुए कहा कि पूरा देश चाहता है कि आरोपियों को कठोरतम सजा मिले। कुछ लोगों को लग रहा है कि आरोपियों को बचाने की कोशिश की जा रही है। ऐसा नहीं होना चाहिए।

उन्होंने कहा, ''उत्तर प्रदेश सरकार का पीड़िता के परिवार के साथ जो रवैया है, उसे बिल्कुल भी जायज़ नहीं ठहराया जा सकता। लोकतांत्रिक व्यवस्था में ताक़त का इस तरह प्रयोग करना बेशर्मी है। यूपी सरकार ये न भूले कि वो सेवक की भूमिका में है।''

केंद्र सरकार की चुप्पी पर सवाल

माकपा महासचिव सीताराम येचुरी, पोलित ब्यूरो सदस्य बृंदा करात और भाकपा नेता डी राजा सहित वाम दलों के अन्य नेता भी प्रदर्शन स्थल पर मौजूद थे। सभी ने एक सुर में इस मुद्दे पर केंद्र सरकार की चुप्पी पर सवाल उठाया।

सीताराम येचुरी ने कहा, “इस तरह के एक जघन्य अपराध पर केंद्र सरकार और भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व की चुप्पी और उसके बाद उत्तर प्रदेश सरकार की प्रतिक्रिया सत्तारूढ़ दल (भाजपा) के तानाशाह और अलोकतांत्रिक चेहरे, चाल, चरित्र तथा चिंतन के बारे में काफी कुछ कहती है।”

उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश सरकार को सत्ता में बने रहे का कोई अधिकार नहीं है।

बृंदा करात ने कहा कि उत्तर प्रदेश में अराजकता एक जातीय संहिता के रूप में विद्यमान है।

पीएम मोदी को जवाब देना पड़ेगा!

भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर ने मामले की सुनवाई त्वरित अदालत में प्रतिदिन के आधार पर किए जाने की मांग की। उन्होंने परिवार की इच्छा के विरूद्ध पीड़िता के शव का दाह संस्कार किए जाने के तरीके की भी निंदा की।

उन्होंने कहा, "भारत के प्रधानमंत्री ख़ुद को दलितों का हितैषी बताते हैं। वो कहते हैं कि दलितों को मत मारो, मुझे मारो। जिस उत्तर प्रदेश से चुनकर वो संसद पहुँचे, उसी प्रदेश की बेटी से हैवानियत हुई है। उसके परिवार को बंधक बना लिया गया है। अब पीएम मोदी क्यों कुछ नहीं बोलते, कब तक चुप रहेंगे? जवाब देना पड़ेगा।”

यूपी सरकार के पास अब और बने रहने के लिए कोई आधार नहीं है!

स्वराज इंडिया के नेता योगेंद्र यादव ने कहा, “यह सिर्फ इतनी सी बात नहीं है कि बलात्कार की एक घटना हुई है या उसकी मौत हो गई। बल्कि शुरू से ही राजनीतिक संरक्षण दिया गया। उत्तर प्रदेश प्रशासन यह सुनिश्चित करने में जुटा हुआ था कि यह खबर बाहर नहीं निकल पाए। उत्तर प्रदेश सरकार के पास अब और बने रहने के लिए कोई आधार नहीं है।”

पीड़िता के परिवार को धमकाना बंद कीजिए!

इस दौरान प्रियंका गांधी वाल्मीकि मंदिर की एक प्रार्थना सभा में उपस्थित हुईं। उन्होंने ट्वीट कर कहा, “यूपी सरकार नैतिक रूप से भ्रष्ट है। पीड़िता को इलाज नहीं मिला, समय पर शिकायत नहीं लिखी, शव को जबरदस्ती जलाया, परिवार कैद में है, उन्हें दबाया जा रहा है। अब उन्हें धमकी दी जा रही कि नार्को टेस्ट होगा। ये व्यवहार देश को मंजूर नहीं। पीड़िता के परिवार को धमकाना बंद कीजिए।”

पीड़ित परिवार ने भी मीडिया में खुलकर कहा कि पुलिस-प्रशासन ने उनके साथ सही व्यवहार नहीं किया। लगातार धमकाने की कोशिश की जा रही है। उधर, गांव में आरोपियों के पक्ष में भी एक दूसरे तरह की गोलबंदी की कोशिश हो रही है। कुल मिलाकर अभी जो हालात हैं उन्हें देखकर तो यही कहा जा सकता है कि हाथरस की दलित बेटी के लिए न्याय की लड़ाई काफी लंबी और पेचीदा है। 

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