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यक्ष प्रश्न: यूपी की 'एनकाउंटर स्पेशलिस्ट पुलिस' हत्यारों के सामने पिस्टल तक न निकाल सकी!

उमेश पाल और अतीक-अशरफ हत्याकांड से एक बार फिर साबित हुआ कि बुलडोज़र और एनकाउंटर से अपराध नहीं रुकते, क़ानून का राज स्थापित नहीं होता। और यहां तो यह सवाल भी उठता है कि ये कैसी यूपी की 'एनकाउंटर स्पेशलिस्ट पुलिस' है जो हत्यारों के सामने बेबस नज़र आई।
atiq ahmed

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मंगलवार 18 अप्रैल को अपने शासनकाल की उपलब्धियां गिनवाते हुए कहा कि अब कोई पेशेवर अपराधी और माफिया किसी को डरा-धमका नहीं सकता है। मुख्यमंत्री का बयान ऐसे समय में आया है जब प्रदेश में विपक्ष सरकार पर क़ानून और व्यवस्था सँभालने में विफ़ल होने का आरोप लग रहा है।

माफिया और पूर्व सांसद-विधायक अतीक अहमद और उसके भाई ख़ालिद अज़ीज उर्फ़ अशरफ की 15 अप्रैल को प्रयागराज में पुलिस हिरासत में मीडिया की मौजूदगी में हुई हत्या ने पूरे प्रदेश में सनसनी फैला दी है। क्योंकि 24 फ़रवरी से 15 अप्रैल के बीच प्रयागराज में यह दूसरी बड़ी अपराधिक घटना थी।

दिन-दिहाड़े हत्या

इससे पहले बहुजन समाज पार्टी के विधायक राजू पाल हत्या मामले (2005) में मुख्य गवाह उमेश पाल की 24 फ़रवरी को दिन-दिहाड़े हुए हत्या कर दी गई थी। इस घटना के समय उमेश पाल पुलिस सुरक्षा में थे। लेकिन न उनकी जान नहीं बच सकी और उनके सुरक्षाकर्मी भी मारे गये।

इस घटना में अहमदाबाद की जेल में बंद माफिया और पूर्व सांसद-विधायक अतीक अहमद, उसके परिवार और गुर्गों का नाम सामने आया। मृतक उमेश पाल की पत्नी की शिकायत पर अतीक, उसके भाई अशरफ, पत्नी शाइस्ता, बेटे असद, शूटर अरमान, गुलाम, गुड्डू मुस्लिम और साबिर समेत 9 लोगों पर मामला दर्ज किया गया।

सरकार असहज

इस घटना के बाद यह चर्चा शुरू हुई की क्या मुख्यमंत्री योगी की विवादास्पद “बुलडोज़र और एनकाउंटर” नीति अपराध पर लगाम लगाने में विफ़ल हैं? सवाल उठने लगे कि क्या उत्तर प्रदेश में एक बार फिर माफिया राज वापिस आ गया है ?

सरकार भी असहज स्थिति में थी, क्योंकि उमेश पाल की हत्या के बाद क़ानून और व्यवस्था पर बहस तीव्र हो गई थी।जिसकी गूँज विधानसभा के पटल पर भी सुनाई देने लगी। विपक्ष के नेता अखिलेश यादव ने योगी सरकार पर विधानसभा में क़ानून और व्यवस्था के मुद्दे पर हमला बोला और कहा कि उमेश पाल की हत्या से पता चलता है कि उत्तर प्रदेश में कानून व्यवस्था की स्थिति बदतर होती जा रही है। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री को शर्म आनी चाहिए कि इस तरह के जघन्य अपराध हो रहे हैं।

सपा प्रमुख के आरोपों पर योगी असहज और गुस्से में दिखाई दिए। उन्होंने सपा पर अतीक अहमद को संरक्षण देने का आरोप लगाते हुए कहा कि हम प्रयागराज की घटना के अपराधियों को “मिट्टी में मिला देंगे”।

बुलडोज़र और एनकाउंटर विफल

मुख्यमंत्री के इस बयान के बाद से अतीक के परिवार और उसके गिरोह के विरुद्ध कार्रवाई शुरू हो गई। अतीक और उस से सम्बंधित कई लोगों की संपत्ति योगी के बुलडोज़र ने ध्वस्त कर दी। इस के अलावा अतीक के बेटे असद समेत उसके गुर्गों अरबाज़,विजय चौधरी, और ग़ुलाम की एनकाउंटर में मौत हो गई।

इस बुलडोज़र करवाई और एनकाउंटर के लिए उत्तर प्रदेश सरकार श्रेय लेना चाहती है। लेकिन विपक्ष कहता है कि मुख्यमंत्री योगी की “ठोक दो” नीति से न पहले अपराध काबू में आया था और न अब आते दिख रहे हैं। इसके अलावा कानून के जानकर मानते हैं कि इस नीति से कभी क़ानून का राज स्थापित नहीं हो सकता है। जिसका उदाहरण यह है प्रशासन द्वारा तमाम बुलडोज़र कार्रवाई और एनकाउंटर किये गए, लेकिन इस सब के बावजूद दिनदहाड़े हत्याएं और लूट-झपटमारी हो रही है।

सरकार की सख्ती से बेख़ौफ युवकों ने पुलिस की मौजूदगी में अतीक और अशरफ पर ताबड़तोड़ गोलियों की बारिश कर दी। पुलिस घेरे में इस दोहरे हत्याकांड को अंजाम देने वाले अरुण मौर्या, सनी और लवलेश तिवारी कानून से इतना बेख़ौफ थे कि उन्होंने मीडिया के कैमरों के सामने करीब 18 राउंड गोलियां चलाईं। इतना ही नहीं उन्होंने पुलिस के सामने घटना को अंजाम देने के बाद हिंदू धार्मिक नारा “जय श्री राम लगाकर” प्रदेश के साम्प्रदायिक सौहार्द को ख़राब करने का प्रयास किया।

विपक्ष को लगता है सरकार के तमाम दावों के बावजूद अपराधी अब भी बेख़ौफ़ है। अतीक और अशरफ की हत्या के बाद पूरे प्रदेश में हाई अलर्ट है। इसके बावजूद 18 अप्रैल को प्रयागराज में ही कटरा गोबर गली में तीन देसी बम फेंके गए। बता दें इसी गली में माफिया अतीक अहमद के वकील दयाशंकर मिश्र भी रहते हैं। अधिवक्ता दयाशंकर मिश्र का कहना है कि उन्हें डराने के लिए ये ब्लास्ट किए गए। जबकि स्थानीय पुलिस इसे दो अन्य गुटों का झगड़ा बता रही है। पुलिस का कहना है कि अतीक के वकील का इन ब्लास्ट से कोई मतलब नहीं है।

छात्र की हत्या

प्रदेश हाईअलर्ट पर है और धारा 144 भी लगी हुई है। इसके बावजूद अपराध पर काबू नहीं हो पा रहा है। ज़िला जालौन में परीक्षा देकर लौट रही 22 साल की छात्रा की भरे बाज़ार में गोली मारकर हत्या कर दी गई है। बाइक पर सवार दो नकाबपोशों ने 17 अप्रैल को इस वारदात को अंजाम दिया।

बिकरू कांड

यही नहीं इस से पहले भी प्रदेश में अपराधी बेख़ौफ़ देखे गए हैं। कानपुर के चौबेपुर थाना क्षेत्र के बिकरू गांव में दो जुलाई, 2020 की रात कुख्यात अपराधी विकास दुबे को गिरफ्तार करने गई पुलिस टीम पर विकास ने अपने गुर्गों के साथ मिलकर फायरिंग की थी। इसमें आठ पुलिस कर्मियों की हत्या कर दी गई थी।

इस्तीफ़े की मांग

विपक्ष लगातार योगी सरकार पर कानून व्यवस्था को लेकर हमला कर रहा है। उत्तर प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष बृजलाल खाबरी, कानून व्यवस्था पर सवाल करते हुए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के इस्तीफे की मांग कर रहे हैं। खाबरी कहते हैं न गवाह (उमेश पाल) प्रदेश में सुरक्षित हैं और अपराधियों के खौफ़ से बेटियाँ पढने नहीं जा पा रही हैं। उन्होंने सवाल किया कि अगर पुलिस हिरासत में हत्या हो रही है और छात्र को सरेआम पुलिस थाने के पास गोली मारी जा रही है तो इसको जगल राज नहीं तो क्या कहेंगे ?

पुलिस का इक़बाल

पुलिस विभाग में सेवा दे चुके अधिकारी मानते हैं कि बुलडोज़र और एनकाउंटर से अपराध नहीं रोका जा सकता है। पूर्व आईपीएस विजय सिंह कहते हैं कि हर राजनीतिक दल का एक ऐजेंडा होता है। जब कोई दल सत्ता में आता है तो पुलिस पर अपना एजेंडा अमल में लाने के लिए दबाव बनता है। लेकिन पुलिस को अपना इक़बाल बना कर रखना चाहिए और किसी के एजेंडा पर नहीं बल्कि संविधान पर अमल करना चाहिए है। उन्होंने इस पर हैरत का इज़हार किया कि जब पुलिस पर हमला हुआ तो पुलिस ने हत्यारों पर गोली क्यूँ नहीं चलाई।

पूर्व आईपीएस कहते हैं कि पूरे घटनाक्रम में पुलिस की सबसे बड़ी गलती यह कि उसने मीडिया को अतीक तक जाने दिया।क्योंकि अतीक रिमांड पर था और ऐसे में उससे केवल पुलिस अधिकारी बात कर सकते थे। मीडिया को रिमांड कि जानकारी किसी पुलिस अधिकारी को देना चाहिए थी।

इसके अलावा विजय सिंह कहते है कि मेडिकल डॉक्टर को वहाँ बुला कर भी कराया जा सकता था, जहां अतीक को रखा गया था।

रिमांड के बारे में बात करते हुए उन्होंने आगे कहा कि पूर्व पुलिस महानिदेशक प्रकाश सिंह ने एक नियमावली बनाई थी। अगर कोई अपराधी पुलिस हिरासत में मरता है, तो रिमांड पर लेने वाले सभी पुलिसकर्मी निलंबित होंगे। इसके अलावा सब पर 302 यानी कत्ल का मुक़दमा चलेगा। हिरासत में हुई मौत की सीआईडी और मजिस्ट्रेट द्वारा जाँच भी की जाएगी।

लोकतंत्र कमज़ोर होगा

क़ानून के जानकर मानते हैं अगर ऐसे ही एनकाउंटर होते रहे तो क़ानून का राज ख़त्म हो जायेगा और लोकतंत्र भी कमज़ोर होगा। प्रसिद्ध अधिवक्ता ज़िया जिलानी मानते हैं कि अगर अपराधी को गोली ही मारना समस्या का समाधान है तो अदालत और न्यायिक प्रक्रिया की क्या भूमिका रह जाती है? ज़िया जिलानी कहते हैं, लोकतंत्र में अपराधी को सज़ा देना सरकार और पुलिस का नहीं बल्कि अदालत का काम है।

पुलिस हिरासत में मीडिया के कैमरों के सामने अतीक अहमद और अशरफ हत्या कांड पर रिहाई मंच महासचिव राजीव यादव ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि अतीक और अशरफ सुप्रीम कोर्ट समेत मीडिया से लगातार हत्या की आशंका जता रहे थे। उन्होंने कहा की जब एक अस्पताल के सामने मीडिया कर्मियों से बातचीत के दौरान उन पर गोली चली तो पुलिस ने बचाने की कोई कोशिश भी नहीं की। रिहाई मंच के महासचिव ने कहा कि अतीक और अशरफ की हत्या करने वाले जिस तरह से जय श्री राम के नारे लगाए गए यह एक गंभीर समस्या को जन्म देता है।

इसके अलावा राजीव यादव ने यह भी कहा कि जिस तरह से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मिट्टी में मिलाने वाला बयान दिया है ठीक इसी तरह 19-20 दिसंबर 2019 को नागरिकता संशोधन कानून के ख़िलाफ़ हो रहे आंदोलन के दौरान उन्होंने बदले की बात कही थी। आन्दोलन के दौरान प्रदेश में क़रीब 22 नौजवानों को गोली का शिकार बनाया गया था।

राजीव यादव सवाल करते हैं कि कि घटना अंजाम देने के बाद जिस तरीके से तीनों हमलावरों को पुलिस गाड़ी में तुरंत भर कर चली गई। यह क्या इसलिए था कि उनका मीडिया से कहीं सामना न हो जाए? उनका कहना है कि जय श्री राम का जिस तरह से नारे लगा रह थे उससे स्पष्ट है कि वो उस मामले को धर्म से जोड़ कर सांप्रदायिक दंगे करवाना चाहते थे।

अतीक हत्याकांड पर आगे बात करते हुए समाज सेवी राजीव प्रदेश में योगी शासनकाल में हुए एनकाउंटर पर भी बोलें और कहा कि यह घटना योगी की पुलिस जिसने 10933 एनकाउंटर किये, जिसमें 183 लोग मारे गये, और 5040 के घायल हुए, जिसमें ज्यादर लोगों के घुटने में गोली मारी गई की सच्चाई को भी उजागर करती है। जो पुलिस हत्यारों के सामने गोली चलाना तो दूर बंदूक पिस्टल निकालने की हिम्मत नहीं कर पाती उसने कैसे इतने मुठभेड़ों को अंजाम दिया?

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