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यूपी: 69 हज़ार शिक्षक भर्ती मामले में युवाओं पर लाठीचार्ज, लेकिन घोटाले की जवाबदेही किसकी?

69 हज़ार शिक्षक भर्ती का मामला पिछले तीन सालों से अधर में लटका हुआ है। निराश अभ्यर्थियों ने जब लखनऊ में धांधली और घोटाले के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया, तो पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर लाठीचार्ज कर दिया।
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बेहतर शिक्षा, सुरक्षा और रोज़गार के वादे के साथ 2017 में उत्तर प्रदेश की सत्ता में आई बीजेपी की योगी आदित्यनाथ सरकार फिलहाल शिक्षा क्षेत्र में भ्रष्टाचार और धांधलिंयों से जूझ रही है। एक ओर यूपी टीईटी का पेपर लीक के  होने के बाद ऐन मौके पर सरकार ने परीक्षा रद्द कर दी, तो वहीं दूसरी ओर 69 हज़ार शिक्षक भर्ती का मामला पिछले तीन सालों से अधर में लटका हुआ है। इस मामले में धांधली और घोटाले के खिलाफ जब शनिवार, 4 दिसंबर को अभ्यर्थियों ने विरोध प्रदर्शन किया तो पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर लाठीचार्ज कर दिया, जिसके बाद इस मामले ने एक बार फिर जोर पकड़ लिया है।

बता दें कि साल 2018 के दिसंबर महीने में उत्तर प्रदेश की मौजूदा योगी आदित्यनाथ सरकार ने सरकारी प्राइमरी स्कूलों में 69 हज़ार सहायक अध्यापकों की भर्ती के लिए वैकेंसी निकाली थी। जिसके लिए 6 जनवरी 2019 को करीब चार लाख अभ्यार्थियों ने लिखित परीक्षा दी। लेकिन परीक्षा के ठीक एक दिन बाद ही सरकार की तरफ से कट ऑफ मार्क्स का मानक तय किया गया, जिसे लेकर बवाल शुरू हो गया। तब से प्रदेश का 69 हज़ार शिक्षक भर्ती मामला, कभी प्रोटेस्ट तो कभी हाईकोर्ट, सुप्रीम कोर्ट के फैसले के चलते की सुर्खियों में ही रहा है।

प्रदर्शकारियों का क्या कहना है?

प्राप्त जानकारी के मुताबिक 69 हजार शिक्षक भर्ती के मामले में उम्मीदवार कैंडल मार्च निकाल रहे थे। जब वे 1090 चौराहे से मुख्यमंत्री आवास की तरफ बढ़ने लगे, तब पुलिस ने पहले उन्हें रोकने की कोशिश की, लेकिन जब अभ्यर्थियों ने इसका विरोध किया, तो पुलिस ने लाठीचार्ज कर दिया। इससे पहले इन अभ्यर्थियों ने चार दिसंबर की सुबह बीजेपी ऑफिस के बाहर भीख मांगकर विरोध प्रदर्शन किया था।

प्रदर्शनकारी अभ्यर्थियों का कहना है कि 69 हजार शिक्षक भर्ती मामले में 22 से 23 हजार सीटों पर आरक्षण नियमों का पालन नहीं किया गया है। उनका कहना है कि इस भर्ती में ओबीसी यानी अन्य पिछड़ा वर्ग की कुल 18,598 सीटें थीं, लेकिन उन्हें केवल 2,637 सीटों पर ही भर्ती दी गई।

इनका आरोप है कि इस भर्ती में आरक्षण संबंधी घोटाला हुआ है। मसलन, ओबीसी वर्ग की आरक्षित सीटों पर सामान्य वर्ग के कैेंडिडेट्स को नियुक्ति दी गई है। दूसरी तरफ, पुलिस के लाठीचार्ज के वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं। जिस पर आम लोगों के साथ ही राजनेता भी टिप्पणी कर रहे हैं।

लाठीचार्ज पर विपक्ष ने उठाए सवाल

प्रदर्शन कर रहे उम्मीदवारों पर पुलिसिया लाठीचार्ज के घटनाक्रम से प्रदेश का सियासी पारा भी चढ़ गया है। इस पूरे घटनाक्रम को लेकर विपक्ष ने सत्ता पक्ष को आड़े हाथों लिया है। समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, कांग्रेस समेत तमाम दलों ने इस घटना की निंदा की, तो वहीं बीजेपी नेता और सांसद वरुण गांधी ने भी अपनी ही पार्टी के शासन पर सवाल उठाए।

बीजेपी सांसद वरुण गांधी ने लाठीचार्ज पर सवाल उठाते हुए ट्वीट किया, “ये बच्चे भी मां भारती के लाल हैं। इनकी बात मानना तो दूर, कोई सुनने को तैयार नहीं है। इस पर भी इनके ऊपर ये बर्बर लाठीचार्ज। अपने दिल पर हाथ रखकर सोचिए क्या ये आपके बच्चे होते तो इनके साथ यही व्यवहार होता? आपके पास रिक्तियां भी हैं और योग्य अभ्यर्थी भी, तो भर्तियां क्यों नहीं?”

उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने ट्वीट किया, “भाजपा के राज में भावी शिक्षकों पर लाठीचार्ज कर विश्वगुरु बनने का मार्ग प्रशस्त किया जा रहा है। हम 69 हजार शिक्षक भर्ती की मांगों के साथ हैं। युवा कहे आज का, नहीं चाहिए भाजपा।”

कांग्रेस पार्टी के पूर्व अध्यक्ष और लोकसभा सांसद राहुल गांधी ने ट्वीट किया, “रोजगार मांगने वालों को यूपी सरकार ने लाठियां दीं। अब भाजपा वोट मांगने आए तो याद रखना।”

उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री और बसपा सुप्रीमो मायावती ने भी योगी सरकार पर निशाना साधते हुए ट्वीट किया, “यूपी में 69 हजार शिक्षक भर्ती के पुराने व लंबित मामले को लेकर राजधानी लखनऊ में कल रात शांतिपूर्ण कैंडल मार्च निकालने वाले सैंकड़ों युवाओं का पुलिस लाठीचार्ज करके घायल करना बहुत दुखद और निंदनीय है। सरकार इनकी जायज मांगों पर तुरंत सहानुभूतिपूर्व विचार करे, बीएसपी की यही मांग है।”

शिक्षक भर्ती मामले की गड़बड़ियां

गौरतलब है कि पूरे विवाद के दौरान शिक्षक भर्ती मामले में कई आपत्तियां भी देखने को मिलीं। जैसे कभी पहले ही पेपर आउट होने का मामला सामने आया तो कभी चयनित अभ्यार्थियों में ओवरलैपिंग की बात उठी। यहां तक की लिखित परीक्षा में पूछे गए कई सवालों को ही आउट ऑफ कोर्स बता दिया गया। तो वहीं अब 150 में से 143 अंक अर्जित करके सबको चौंकाने वाले टॉपर की गिरफ़्तारी की कहानी भी चर्चा में है।

इस परीक्षा के एक अभ्यार्थी सुशील सिंह ने न्यूज़क्लिक को बताया था, “6 जनवरी 2019 को लिखित परीक्षा होनी थी लेकिन उससे एक दिन पहले ही पेपर आउट हो गया। यूट्यूब-व्हाट्सएप पर ऑन्सर के वायरल होने का दावा भी किया गया। इसके बाद धांधली रिजल्ट के समय भी देखने को मिली। रिजर्व्ड कैटेगरी की छूट और अन्य रियायतें लेने वाले कैंडिडेट को जनरल कैटेगरी में समायोजित कर दिया गया।”

एक अन्य अभ्यार्थी आरती यादव ने कहा था, “कुल 150 सवालों में से तीन सवालों को परीक्षा नियामक प्राधिकरण ने आउट ऑफ कोर्स माना और उनके मार्क्स सभी को बांट दिए गए। लेकिन अभी और भी कई सवालों पर आपत्ति उठी थी, उसका मामला भी कोर्ट में है। इसके अलावा जो लोग अभी नौकरी कर रहे हैं, मतलब पहले वाली भर्ती में सेलेक्ट हो चुके हैं। उन्होंने भी इस भर्ती में अप्लाई किया है ताकि उन्हें अपने गृह जनपद में तैनाती मिल जाए। अगर ऐसे लोग बार-बार अप्लाई करेंगे तो नए लोगों को कैसे मौका मिलेगा?”

एसटीएफ को सौंपी गई जांच

बता दें कि शिक्षक परीक्षा में फ़र्ज़ीवाड़े मामले में यूपी एसटीएफ और प्रयागराज पुलिस ने छापेमारी कर 8 नकल माफियाओं को गिरफ़्तार किया। इसके अलावा एसटीएफ संदिग्ध सेंटरों, परीक्षा में शामिल संदिग्ध अभ्यर्थियों व अन्य आरोपों की जांच भी कर रही थी। प्रशासन की ओर से बताया गया कि जांच में दोषी पाए गए अभ्यर्थियों को डिबार कर भर्ती प्रकिया से बाहर किया जाएगा। हालांकि इतना समय बीतने के बाद भी जांच के क्या नतीजे सामने आए ये शायद ही कोई जानता हो। सरकार के भ्रष्टाचार पर जीरों टॉलरेंस के दावे के बीच बार-बार सरकारी भर्तियों और परीक्षाओं में भ्रष्टाचार के मामले सामने आ रहे हैं, जाहिर है सरकार की नीयत और नीति में कुछ तो अलग है, जो आए दिन प्रदेश के हज़ारों बेरोज़गार युवाओं को सड़कों पर प्रदर्शन और लाठी खाने को मजबूर कर देता है।

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