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यूपी : मदरसों में ग़ैर मुस्लिम छात्रों की पढ़ाई को लेकर राष्ट्रीय बाल अधिकार आयोग-मदरसा बोर्ड आमने-सामने

यह विवाद आयोग द्वारा उत्तर प्रदेश सरकार को भेजे गए एक पत्र के बाद शुरू हुआ। अपने पत्र में आयोग ने कहा कि मदरसों में ग़ैर मुस्लिम बच्चों का सर्वे कर उनका प्रवेश अन्य सामान्य स्कूलों में कराया जाए। बोर्ड ने आयोग का फ़रमान मानने से इंकार कर दिया है।
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मदरसा बोर्ड एग्जाम 2017 फ़ाइल फ़ोटो। फ़ोटो : सैयद आजम

उत्तर प्रदेश में ग़ैर मुस्लिम बच्चों की पढ़ाई को लेकर राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) और उत्तर प्रदेश मदरसा बोर्ड के के बीच विवाद पैदा हो गया है। एनसीपीसीआर ग़ैर मुस्लिम बच्चों की मदरसे में पढ़ाई का विरोध कर रहा है और उनको सामान्य स्कूलों में शिफ्ट करना चाहता है। जबकि मदरसा बोर्ड इसका विरोध कर रहा है और उसका कहना है कि किसी भी ग़ैर मुस्लिम बच्चे मदरसे से नहीं निकला जायेगा।

यह विवाद आयोग (एनसीपीसीआर) द्वारा उत्तर प्रदेश सरकार को भेजे गए एक पत्र के बाद शुरू हुआ। अपने पत्र में आयोग (एनसीपीसीआर) ने कहा कि मदरसों में ग़ैर मुस्लिम बच्चों का सर्वे कर उनका प्रवेश अन्य सामान्य स्कूलों में कराया जाए। बोर्ड ने आयोग (एनसीपीसीआर) का फ़रमान मानने से इंकार कर दिया।

आयोग (एनसीपीसीआर) के अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो ने 8 दिसंबर 2022 को सभी राज्यों को निर्देश दिए थे कि मदरसों की जांच कराकर ग़ैर मुस्लिम बच्चों को वहां से निकालकर अन्य सामान्य स्कूलों में दाखिला कराया जाए। जिस पर उत्तर प्रदेश मदरसा बोर्ड की बैठक के बाद चेयरमैन डॉ. इफ़्तेख़ार अहमद जावेद ने साफ़ कहा कि वह उत्तर प्रदेश में ऐसी कोई जांच नहीं कराएंगे।

प्रियंक कानूनगो ने सोशल मीडिया पर अपने पत्र के पीछे की मंशा को ज़ाहिर किया। उन्होंने एक पोस्ट लिखा कि मदरसे प्राथमिक रूप से “इस्लामिक धार्मिक शिक्षा” सिखाते हैं। हिंदू या दूसरे ग़ैर इस्लामिक बच्चों का वहां कोई काम नहीं है। कानूनगो के अनुसार इन ग़ैर मुस्लिम बच्चों का सामान्य स्कूलों में प्रवेश करवाना राज्य सरकार का दायित्व है। मदरसा बोर्ड सरकारी पैसे से हिंदू बच्चों को मुस्लिम मज़हबी शिक्षा देने की ज़िद कर रहा है। जो ग़ैर क़ानूनी है,बच्चों को पढ़ाना हैं तो स्कूल बनाएं।

वहीं इस मामले पर अब उत्तर प्रदेश बाल अधिकार संरक्षण आयोग भी सक्रिय हो गया है। प्रदेश बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने भी मदरसा बोर्ड को निशाना बनाया और ग़ैर मुस्लिम बच्चों के मदरसे में पढ़ने को अनुचित ठहराया है। एक निजी टीवी चैनल से बात करते हुए राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग की सदस्य डॉ. शुचिता चतुर्वेदी ने कहा, 'यह काम “अल्पसंख्यक कल्याण विभाग” को दिया गया है। मदरसा बोर्ड के अध्यक्ष इफ्तिखार अहमद को थोड़ा पढ़ाई करने की जरूरत है।'

शुचिता कहती है कि 'ऐसा लगता है कि मदरसा बोर्ड को समझ नहीं है और उसको लगता है कि यह सब मदरसे का प्रश्न है। जबकि यह सिर्फ मदरसे या उसके अस्मिता का का प्रश्न नहीं है। उनके अनुसार यह प्रश्न है उन बच्चों का जो समाज में शिक्षा के अधिकार से किसी वजह से वंचित रह रहे हैं।

वह मानती है कि इस चीज को आयोग (एनसीपीसीआर) ने बड़ी संवेदनशीलता से लिया है । क्योंकि मदरसों की स्थिति स्वयं देखी गई है, वहां ग़ैर मुस्लिम बच्चा क्यों पढ़ेगा? क्यों केवल एक धर्म की शिक्षा लेने के लिए आएगा? शुचिता ने यह भी कहा कि मदरसा बोर्ड के चेयरमैन इफ़्तेख़ार अहमद को अपनी समझ बढ़ानी चाहिए, यह कोई लड़ाई नहीं है। '

जबकि मदरसा बोर्ड की एक बैठक चेयरमैन इफ़्तेख़ार जावेद की अध्यक्षता में हुई। चेयरमैन ने बैठक के बाद बताया कि आयोग (एनसीपीसीआर) का पत्र प्रदेश शासन के जरिये मदरसा बोर्ड को मिला था। जिस पर विचार किया गया और निर्णय लिया गया कि आयोग का यह निर्देश कि ग़ैर मुस्लिम बच्चों को मदरसों से निकाल कर अन्यत्र उनके पठन पाठन की व्यवस्था की जाए इसे पूरी तरह खारिज किया गया। इफ़्तेख़ार जावेद ने साफ़ कहा कि यूपी मदरसा शिक्षा बोर्ड ऐसी कार्यवाही नहीं करेगा।

न्यूज़क्लिक से बात करते हुए उन्होंने कहा कि मदरसे के बारे में आयोग (एनसीपीसीआर) को सही जानकारी नहीं है। मदरसे में संस्कृत जैसे विषय भी पढाये जाते हैं। इसके अलावा दूसरे आधुनिक विषय जैसे इंग्लिश, हिन्दी, गणित, विज्ञान और सामाजिक विज्ञान आदि भी पढाया जाता है। इफ़्तेख़ार जावेद का कहना है कि इस विषयों को पढ़ाने वाले ज़्यादातर अध्यापक ग़ैर-मुस्लिम हैं।

हालाँकि मदरसा बोर्ड से नाराज़ आयोग (एनसीपीसीआर) के अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो ने एक और नोटिस में कहा है कि उनके 08 दिसम्बर को भेजे पत्र पर अल्पसंख्यक कल्याण और वक्फ विभाग के तरफ से कोई कार्यवाही नहीं की गई है और ना ही आयोग को इस संबंध में कोई रिपोर्ट प्राप्त हुई है।

इसके अलावा, नोटिस में कहा गया है कि आयोग को विभिन्न मीडिया रिपोर्टें मिली जिनमें मदरसा बोर्ड के चेयरमैन इफ्तिखार जावेद ने मदरसों में अन्य धर्मों के बच्चों के बने रहने का समर्थन करते हुए विभिन्न मीडिया पर अप्रासंगिक और अलग-अलग बयान दिए हैं। कानूनगो ने कहा कि वह मदरसा बोर्ड के अध्यक्ष के बयान से पूरी तरह असहमत है।

उनके अनुसार बोर्ड के चेयरमैन इफ़्तेख़ार जावेद का बयान न केवल बच्चों के संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन करता है बल्कि आयोग के शासनादेश का भी अनादर करता है। आयोग (एनसीपीसीआर) ने सख्ती से विशेष सचिव से कहा है 08 दिसम्बर 2002 को भेजे पत्र पर आयोग की सिफारिशों के अनुसार मामले में तत्काल उचित कार्रवाई करें और इस पत्र की प्राप्ति से एक अनुपालन रिपोर्ट आयोग को प्रस्तुत की जाए।

हालाँकि जब इस पत्र के बारे में बोर्ड के चेयरमैन इफ़्तेख़ार जावेद से बात की गई तो उन्होंने कहा उनको दूसरे किसी पत्र की सूचना नहीं है। इफ़्तेख़ार जावेद ने आगे कहा बोर्ड को जो फैसला लेना था वह हो गया है। फ़िलहाल बोर्ड अपने फैसले पर पुनः विचार नहीं करेगा।

उल्लेखनीय है कि उत्तर प्रदेश में 16,513 मान्यता प्राप्त मदरसे हैं जिसमें 560 अनुदानित हैं। हाल में ही योगी आदित्यनाथ सरकार द्वारा ग़ैर-मान्यता प्राप्त मदरसों का सर्वे कराया गया था। सर्वे के अनुसार, प्रदेश में लगभग 8 हजार मदरसे ग़ैर-मान्यता प्राप्त मिले हैं। सर्वे में मदरसों की आय के स्रोत और इन्हें संचालित करने वाली संस्था सहित वर्तमान स्थिति के बारे में सरकार द्वारा सवाल पूछे गए थे।

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