पेपर लीक प्रकरणः ख़बर लिखने पर जेल भेजे गए पत्रकारों की रिहाई के लिए बलिया में जुलूस-प्रदर्शन, कलेक्ट्रेट का घेराव
उत्तर प्रदेश के बलिया जिले में तीन सीनियर पत्रकारों की गिरफ्तारी के मामले ने तूल पकड़ लिया है। सोमवार को बड़ी संख्या में पत्रकारों ने कलेक्ट्रेट का घेराव किया और धरना दिया। इससे पहले पत्रकारों ने कलेक्टर इंद्र विक्रम सिंह और पुलिस कप्तान राजकरन नय्यर खिलाफ के खिलाफ शहर में जुलूस निकाला एवं प्रदर्शन किया। निर्दोष पत्रकारों की रिहाई के लिए आर-आर की लड़ाई लड़ने के लिए संयुक्त पत्रकार संघर्ष मोर्चा का गठन किया है। इस मामले को अब राष्ट्रीय स्तर पर उठाया जाएगा। तीन पत्रकारों की अवैध तरीके से की गई गिरफ्तारी से पूर्वांचल के पत्रकार आक्रोशित और बेहद गुस्से में हैं। जेल भेजे गए पत्रकारों को आजाद कराने के लिए पत्रकार और मानवाधिकार संगठनों ने आंदोलन तेज करने का अल्टीमेटम दिया है।
यूपी बोर्ड के पेपर लीक मामले में बलिया प्रशासन ने "अमर उजाला" के पत्रकार अजित कुमार ओझा, दिग्विजय सिंह और राष्ट्रीय सहारा के पत्रकार मनोज कुमार गुप्ता ‘झब्बू’ को गिरफ्तार कर जेल भेजा है। इन पत्रकारों का कुसूर सिर्फ इतना था कि इन्होंने बाजार में बिक रहे अंग्रेजी और संस्कृत के पर्चे को अपने अखबार में छाप दिया था। तीनों पत्रकारों की रिहाई के लिए सोमवार को बलिया और आसपास के सभी जिलों के सैकड़ों पत्रकार कलेक्ट्रेट पहुंचे और डीएम-एसपी के खिलाफ जमकर नारेबाजी की। आक्रोशित पत्रकारों ने कलेक्ट्रेट को घेरकर प्रदर्शन किया। इससे पहले सभी पत्रकार सुबह साढ़े नौ बजे टाउनहॉल पहुंचे। वहां से पत्रकारों का जुलूस नारेबाजी करते हुए कलेक्ट्रेट की तरफ रवाना हुआ। जुलूस और प्रदर्शन में बड़ी संख्या में आंचलिक पत्रकार भी शामिल हुए। खासतौर पर वे पत्रकार जिनसे अखबार प्रबंधन काम तो लेता है, लेकिन मुश्किल दौर में पहचान छीन लेता है।
पत्रकारों का जुलूस टाउनहॉल से होकर कलेक्ट्रेट पहुंचा और धरने पर बैठ गया। आंदोलनकारी पत्रकारों का नेतृत्व ग्रामीण पत्रकार एसोसिएशन के बलिया जिलाध्यक्ष शशिकांत मिश्रा कर रहे थे। आंदोलनकारी पत्रकारों को संबोधित करते हुए करुणा सिंधु सिंह ने आरोप लगाया कि "बलिया के कलेक्टर आकंठ तक भ्रष्टाचार में डूबे हुए हैं। तानाशाही का परिचय देते हुए उन्होंने बगैर जांच किए ही तीन वरिष्ठ पत्रकारों को गिरफ्तार करा लिया। बलिया के प्रशासनिक अफसर अपनी गर्दन बचाने के लिए पत्रकारों को बलि का बकरा बना रहे हैं।"
वरिष्ठ पत्रकार मुकेश मिश्र ने कहा, "जब तक वरिष्ठ पत्रकार अजित कुमार ओझा, दिग्विजय सिंह और मनोज कुमार गुप्ता ‘झब्बू’ की रिहाई नहीं होगी, तब तक आंदोलन जारी रहेगा। योगी सरकार ने पत्रकारों के साथ न्याय नहीं किया तो उनके कार्यक्रमों का भी बहिष्कार करने का निर्णय लिया जा सकता है।" पत्रकार राजेश कुमार ओझा और अनिल अकेला ने कहा, "तीनों पत्रकारों की गिरफ्तारी जिस पेपर के लीक होने के मामले में हुई वह बलिया से लीक हुआ है अथवा नहीं? बलिया प्रशासन इसकी पुष्टि करने के लिए तैयार नहीं है। इस मामले में शिक्षा माफिया और ठेके पर नकल कराने वालों के खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए, न कि पत्रकारों को जेल भेजने की। बलिया के कलेक्टर साबित करें कि जो पेपर लीक और वायरल हुआ है वो बंद लिफाफे का पेपर है।" सीनियर जर्नलिस्ट अजय भारती ने कहा, "पेपर लीक प्रकरण के जरिए प्रशासन लोकतंत्र के चौथे खंभे पर हमला बोलना चाहता है। प्रशासन का रवैया गुंडों जैसा है। संगीनों के बल पर प्रशासन अपनी नाकमियों को छुपाने की कोशिश में है। इसकी जितनी भी निंदा की जाए वह कम है।"
बलिया के पत्रकारों की रिहाई के लिए आंदोलन को गतिशील बनाने को एक कोर कमेटी गठित की गई है, जिसमें ग्रापए के प्रदेश अध्यक्ष सौरभ कुमार के अलावा भारतीय राष्ट्रीय पत्रकार महासंघ के मधुसूदन सिंह और वरिष्ठ पत्रकार सुधीर कुमार ओझा, ओंकार सिंह, अखिलानंद तिवारी, हरिनारायण उर्फ रंजीत मिश्र, सौरभ संदीप सिंह, करुणा सिन्धु सिंह, अजय कुमार भारती, अनूप हेमकर, संजय पांडेय, असगर खां, मुकेश मिश्र आदि को शामिल किया गया है। सोमवार को आंदोलन-प्रदर्शन के दौरान अखिलेश, बसंत पांडेय, नित्यानंद सिंह, यशवंत सिंह, महेश कुमार, मांधाता सिंह, सुधीर सिंह चौधरी, मनोज चतुर्वेदी, भोलाजी, नरेंद्र मिश्र, अमर नाथ चौरसिया, राणा प्रताप सिंह, संजय तिवारी, संजीव बाबा, अमित वर्मा, नवल, अजय सिंह, सुनील सेन, शशि कुमार, राजू गुप्ता, सनंदन उपाध्याय, रत्नेश सिंह, दीपक तिवारी, कृष्णकांत, अरविंद सिंह, चंदन ने पत्रकारों को संबोधित करते हुए आर-पार की लड़ाई लड़ने का एलान किया है।
पत्रकारों की रिहाई लिए बलिया से शुरू आंदोलन देश भर में तूल पकड़ सकता है। इसकी बड़ी वजह यह है कि इस आंदोलन में ग्रामीण पत्रकार एसोशिएशन (ग्रापए) कूद गया है। आंचलिक पत्रकारों का यह देश का सबसे बड़ा संगठन है। ग्रापए के प्रदेश अध्यक्ष सौरभ कुमार कहते हैं, " बलिया बागियों की धरती है। जब भी यहां से कोई आंदोलन छेड़ा जाता है, सत्ताएं हिलने लगती हैं। बेहतर होगा कि सरकार तीनों पत्रकारों को तत्काल आजाद कराए और फर्जी मुकदमा वापस ले। योगी सरकार को चाहिए कि पेपर लीक मामले में नकल माफिया पर नकेल करने के बजाए पत्रकारों का उत्पीड़न करने वाले कलेक्टर को तत्काल यहां से निलंबत करे।"
"अमर उजाला" ने भी खोला मोर्चा
पेपर लीक मामले में कई दिनों की चुप्पी के बाद अमर उजाला अखबार ने भी अब बलिया प्रशासन के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। इस अखबार ने डीएम इंद्र विक्रम सिंह और एसपी राजकरन नैयर को कठघरे में खड़ा करते हुए कहा है, "ये दोनों अफसर शासन का आदेश नहीं मानते। बोर्ड परीक्षाएं शुरू होने से पहले 22 मार्च को जारी सरकारी विज्ञप्ति में साफ-साफ कहा गया है कि प्रश्नपत्र लीक होने की सूचना अधिकारियों को देने पर संबंधित व्यक्ति को दंडात्मक कार्रवाई से संरक्षण मिलेगा, लेकिन 29-30 मार्च को जिला विद्यालय निरीक्षक और जिलाधिकारी को संस्कृत व अंग्रेजी के वायरल पर्चे भेजने पर पत्रकारों को ही गिरफ्तार कर लिया गया।"
अखबार लिखता है, "माध्यमिक शिक्षा विभाग की अपर मुख्य सचिव की ओर से जारी सूचना के मुताबिक, परीक्षा खत्म होने से पहले प्रश्नपत्र या हल कॉपी को किसी माध्यम से प्रसारित करना उप्र सार्वजनिक परीक्षा (अनुचित साधनों का निवारण) अधिनियम-1998 की धारा-4/10 के तहत दंडनीय अपराध है। लेकिन, ऐसे कृत्य की सूचना जनहित में अपर मुख्य सचिव, डीएम-एसपी, जिला विद्यालय निरीक्षक समेत अन्य अफसरों को देने पर यह धारा लागू नहीं होगी।"
"वरिष्ठ पत्रकार अजीत कुमार ओझा ने जनहित में ही जिला विद्यालय निरीक्षक और डीएम को वायरल पेपर भेजे थे। दोनों पत्रकारों का मकसद छात्रहित में नकल और नकल माफिया पर अंकुश लगवाना था। फिर भी, सरकारी आदेश को दरकिनार करते हुए तीन पत्रकारों को पकड़कर जेल में डाल दिया गया। यह स्थिति तब है जब पत्रकार अजित ने डीएम और तत्कालीन जिला विद्यालय निरीक्षक बृजेश मिश्र को कार्रवाई के लिए व्हाट्सएप संदेश पहले ही भेज दिया था। बलिया के डीएम इंद्र विक्रम सिंह ने खुद अमर उजाला संवाददाता अजित कुमार ओझा से फोन कर वायरल पेपर की मांग की थी। प्रशासन ने अंग्रेजी पेपर लीक होने की सूचना शासन को भेजी तो संस्कृत के लीक पेपर के मामले को क्यों हजम कर गए? "
प्रशासन की मदद अपराध कैसे?
"अमर उजाला" ने प्रशासन पर कई सवाल खड़ा करते हुए कहा है, "बलिया में यूपी बोर्ड परीक्षा के पेपर आउट होना नई बात नहीं हैं। यहां तो करीब-करीब हर साल ऐसा होता है। सामूहिक नकल और परीक्षा केंद्रों के बाहर कॉपियों का लिखा जाना भी आम बात है। साल 2020 में इंटर गणित, भौतिक विज्ञान, हाईस्कूल गणित और अंग्रेजी के पेपर आउट हुए थे। वर्ष 2019 में इंटर भौतिक विज्ञान, जीव विज्ञान, गणित और हाईस्कूल संस्कृत का पेपर आउट हुआ था। यह सब नकल माफिया और शिक्षाधिकारियों की मिलीभगत से होता है। यही वजह है कि जब भी कोई इन्हें बेनकाब करने की कोशिश करता है तो प्रशासन इन्हीं पर सख्ती करने लगता है। इस बार भी ऐसा ही हुआ है।"
बलिया के पुलिस और प्रशासनिक अफसरों पर आड़े हाथ लेते हुए अमर उजाला लिखता है, "प्रशासन ने अपनी गर्दन बचाने के लिए ऐसी कहानी गढ़ी कि नकल माफिया की करतूत उजागर करने वालों को ही कठघरे में खड़ा कर दिया। सवाल है, अगर पत्रकार नकल माफिया से मिले होते, तो प्रशासन को पर्चा लीक होने की सूचना क्यों देते? या प्रशासन को सूचना देना ही अपराध है? "
बलिया से गिरफ्तार तीनों पत्रकारों आजमगढ़ जिला जेल में रखा गया है। कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू तीन अप्रैल को पत्रकारों से मिलने आजमगढ़ जेल पहुंचे, लेकिन जेल प्रशासन ने उन्हें मिलने की अनुमति नहीं दी। लाचारी में उन्हें बैरंग लौटना पड़ा। बताया जा रहा है कि प्रशासन गिरफ्तार पत्रकारों को किसी से मिलने नहीं दे रहा है।
तेज़ हुए विरोध के स्वर
वरिष्ठ पत्रकार योगेश हिंदुस्तानी अपने फेसबुक वाल पर लिखते हैं, "अब कोई पेपर आउट नहीं होगा। पत्रकार को जेल भेजकर यूपी के अफसरों और बलिया जिला प्रशासन ने शिक्षा माफियाओं को खुली छूट दे दी है। अब रोज पेपर आउट होंगे, वायरल होंगे, जब अखबार में छपेंगे ही नहीं तो पता ही नहीं चलेगा….पता नहीं चलेगा तो रद्द भी नहीं होंगे। ऐसे में जिसके पास पैसे होंगे वो पेपर खरीद कर पास हो जाएगा। होनहार छात्र पूरे साल मेहनत करने के बाद भी नकलखोर छात्रों से कम नंबर लेकर हताश निराश होंगे। होनहार छात्र को भनक भी नहीं लगेगी कि उसके साथ क्या हो गया? "
"बलिया में प्रशासन ने जो कुछ भी किया है, वह बेहद खौफनाक है। पेपर आउट की सूचना पत्रकार ही देता रहा है। बलिया में भी उसी ने दिया। वायरल हो रहे पेपर को अधिकारियों को भेजा। अपने अखबार में पेपर की तस्वीर भी एक दिन पहले ही छाप दी। इसका इनाम पत्रकार को जेल भेजकर दिया गया है? पत्रकार की गिरफ्तारी का विरोध होनहार छात्रों, उनके अभिभावकों, कोचिंग संस्थानों और हर उस व्यक्ति को करनी चाहिए जो चाहते हैं कि एग्जाम पैसे के बल पर नहीं, योग्यता के दम पर लड़ा जाना चाहिए। अगर पत्रकार दोषी है तो प्रशासन को प्रेस कांफ्रेंस कर पूरा पक्ष रखना चाहिए। बताना चाहिए कि पत्रकार का क्या दोष है? "
योगी सरकार में बलिया के परिवहन मंत्री दयाशंकर सिंह ने भी कहा है कि पत्रकारों का उत्पीड़न और जेल भेजना निंदनीय है। वह कहते हैं, "मैंने प्रकरण को संज्ञान में लिया है। पत्रकारों को न्याय जरूर मिलेगा। नकल माफिया की करतूत को उजागर करने वाले पत्रकारों के खिलाफ की गई कार्रवाई निंदनीय है।"
यूपी बोर्ड परीक्षा में इंटरमीडिएट का अंग्रेजी पेपर होने के मामले में पत्रकारों को फंसाने के विरोध में अधिवक्ताओं के एक प्रतिनिधिमंडल ने भी डीएम के माध्यम से राज्यपाल को ज्ञापन सौंपा है और इस मामले में डीएम बलिया को ही दोषी ठहराया है। वरिष्ठ अधिवक्ता मनोज राय हंस ने कहा है, " कुल 24 जनपदों में अंग्रेजी का पेपर लीक हुआ था। परीक्षा शुरू होने से पहले पेपर सोशल मीडिया पर वायरल होने लगा था। इसके बावजूद डीएम ने घोर उदासीनता और लापरवाही का परिचय दिया। परीक्षा निरस्त करने की घोषणा वायरल हुए पेपर से मिलान किए बिना लगभग दो घंटे पहले ही कैसे कर दी गई? इससे स्पष्ट है कि डीएम ने अंग्रेजी का पेपर समयपूर्व ही सीलबंद लिफाफे को खोल कर देखा और इसकी गोपनीयता भंग की। अधिवक्ताओं ने मांग की है कि पत्रकारों पर दर्ज मुकदमा वापस लिया जाए और गोपनीयता भंग करने के आरोप में डीएम को निलंबित कर उन पर मुकदमा दर्ज कराया जाए।"
सामाजिक कार्यकर्ता रिपुंजय रमण पाठक ने कहा है, "पत्रकारों का मुख्य कार्य जनहित में खबरों को प्रकाशित करना है। जिला प्रशासन ने बिना जांच किए ही पत्रकारों को गिरफ्तार कर लिया है। अखिल भारतीय पत्रकार सुरक्षा समिति के जिलाध्यक्ष शैलेश सिंह ने घटना में पत्रकारों को ही दोषी ठहरा कर जेल भेज देने को लोकतंत्र की हत्या बताया और कहा कि अगर समाज का कोई प्रहरी भ्रष्ट व्यवस्था को उजागर करने की हिम्मत जुटा पाता है तो जिला प्रशासन प्रोत्साहित करने की बजाय उसे ही जेल में डाल दे, यह सर्वथा निंदनीय है।"
मास्टरमाइंड की गिरफ्तारी का दावा
बलिया पुलिस ने दावा किया है कि 12वीं के अंग्रेजी पेपर लीक मामले के मास्टरमाइंड को गिरफ्तार किया जा चुका है। इनमें एक है महाराजी देवी स्मारक इंटर कॉलेज का प्रबंधक निर्भय नारायण सिंह और दूसरा, कंप्यूटर की दुकान चलाने वाला राजीव प्रजापति। इस मामले में अब तक कुल 46 लोगों को पुलिस गिरफ्तार कर चुकी है। बलिया जनपद के अलग-अलग तीन थाना क्षेत्र सिकंदरपुर, नगरा और सदर कोतवाली इलाके से सभी गिरफ्तारियां की गई हैं। पेपर लीक के बाद 24 जिलों में परीक्षा निरस्त कर दी गई है।
बलिया जिले में नकल माफिया कितने हावी है इसका अंदाज इस बात से लगाया जा सकता है कि साल 2020 में एसटीएफ लखनऊ की टीम ने तीन नकल माफियाओं को दबोचा। नगरा व भीमपुरा में परीक्षा के दौरान इंटर भौतिक विज्ञान, हाईस्कूल अंग्रेजी की हल प्रति वायरल हुई थी।
इससे पहले बलिया में साल 2019 में इंटर गणित की परीक्षा समाप्त होने के कुछ समय पहले एसटीएफ गोरखपुर की टीम ने बाबा महेंद्र दास शहीद प्रवीण सिंह शिक्षण संस्थान छोटकी सेरिया में दबिश दी। 38 कापियों के साथ छह सॉल्वर को पकड़ लिया। प्रिंसिपल व उसका बेटा भी गिरफ्तार। साल 2018 में भी यूपी एसटीएफ ने रसड़ा में बालेश्वर इंटर कालेज पर छापेमारी की। एसटीएफ ने स्कूल मैनेजर घर में 10वीं के गणित का पेपर हल कर रहे चार सॉल्वर सहित स्कूल के प्रिंसिपल और मैनेजर के भाई को गिरफ्तार किया था।
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