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बनारस का रण: मोदी का ग्रैंड मेगा शो बनाम अखिलेश की विजय यात्रा, भीड़ के मामले में किसने मारी बाज़ी?

काशी की आबो-हवा में दंगल की रंगत है, जो बनारसियों को खूब भाता है। यहां जब कभी मेला-ठेला और रेला लगता है तो यह शहर डौल बांधने लगाता है। चार मार्च को कुछ ऐसा ही मिज़ाज दिखा बनारस का। यह समझ पाना मुश्किल हो गया कि इस सियासी दंगल में कौन-किस पर और कितना भारी है?
Banaras

उत्तर प्रदेश के बनारस में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ग्रैंड मेगा शो के बाद सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव की विजय यात्रा में उमड़े हुजूम में आखिर तक यह सवाल अनुत्तरित रह गया कि भीड़ के मामले में किसने बाजी मारी? एक ही दिन और एक ही स्टाइल के दो रोड शो में सिर्फ एक बात की शिनाख्त हुई कि बनारस को तमाशा भी प्रिय है। काशी की आबो-हवा में दंगल की रंगत है, जो बनारसियों को खूब भाता है। यहां जब कभी मेला-ठेला और रेला लगता है तो यह शहर डौल बांधने लगाता है। चार मार्च को कुछ ऐसा ही मिज़ाज दिखा बनारस का। यह समझ पाना मुश्किल हो गया कि इस सियासी दंगल में कौन-किस पर और कितना भारी है?

बनारस में रोड शो के जरिए सियासी मुकाबला पहली मर्तबा देखने को मिला। अब से पहले काशी के लोग बहेलिया टोला में ललमुनिया की लड़ाई, कबूतर की लड़ाई, सुग्गा (तोता) की लड़ाई और मुर्गे की लड़ाई भेड़ और भैंसों की लड़ाई के अलावा नाग पंचमी पर सांप-नेवले की लड़ाई देखते आए थे। सियासी घात-प्रतिघात और आघात की लड़ाई पहली मर्तबा दिखी। देश के दिग्गज नेताओं के सियासी दांव-पेच में अजूबा यह रहा कि बनारसी यह नहीं समझ पाए कि वो किस दंगल को हिट करें?

दिग्गजों का हाट स्पाट बनी काशी

यूपी के पिछले विधानसभा चुनाव की तरह इस बार भी पीएम नरेंद्र मोदी का ग्रैंड शो उम्दा था। भीड़ के मामले में नहीं, इवेंट के मामले में। पिछली मर्तबा रोड शो में न डमरू वाले थे, न शहनाई वाले और न ही गाने-बजाने वाले। दूसरी बात, साल 2017 में मोदी के रोड शो का जवाब देने के लिए मैदान में सपा मुखिया अखिलेश यादव नहीं थे। अबकी चुनावी जंग में अखिलेश उतरे तो कांग्रेस की महासचिव प्रियंका गांधी और उनके भाई राहुल गांधी भी। कार्यकर्ताओं और संसाधनों के घोर अभाव के बावजूद पिंडरा में कांग्रेस प्रत्याशी अजय राय के समर्थन में आयोजित राहुल-प्रियंका की रैली में बड़ी तादाद में लोग जुटे। भाई-बहन की जोड़ी ने भी उसी अंदाज में बाबा विश्वनाथ की पूजा की, जिस तरह मोदी ने किया था। सपा-भाजपा की तर्ज पर आम आदमी पार्टी के संजय सिंह ने शहर दक्षिणी इलाके में अपने प्रत्याशी अजीत सिंह के समर्थन में रोड शो किया।

एक नई बात और, मोदी के सिर पर पहली मर्तबा भगवा टोपी दिखी। आमतौर पर इस टोपी को भाजपा और हियुवा के कार्यकर्ता पहनते हैं। इस बार मोदी ने खुद को बनारसी मिज़ाज के अनुरूप तैयार किया था। शायद वह भाजपा कार्यकर्ताओं को यह संदेश देना चाहते थे कि वे घरों से बाहर निकलें और सड़क पर उतरकर उनकी तरह आर-पार की जंग लड़ें, क्योंकि इस बार मुकाबला करो-मरो का है। दूसरी ओर, समाजवादी विजय यात्रा के दौरान लाल और हरे रंग के गुब्बारे, आतिशबाजी के साथ ही अखिलेश यादव के समर्थन में विजय गीत गूंजते रहे। काशी में करिश्मा होगा, दस मार्च को खदेड़ा होगा... आदि गीतों के जरिए सपा समर्थकों ने अपनी ताकत दिखाई।

यूपी विधानसभा चुनाव में छठे चरण का मतदान हो चुका है। सातवें चरण के लिए सात मार्च को नौ जिले की 54 सीटों के लिए वोट डाले जाएंगे। इस चुनाव में छह मंत्रियों-अनिल राजभर, रविंद्र जायसवाल, नीलकंठ तिवारी, गिरीश यादव, रमाशंकर सिंह के अलावा सपा में शामिल होने वाले मंत्री दारा सिंह की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है। सात मार्च को पूर्वांचल के बनारस, चंदौली, गाजीपुर, जौनपुर, मिर्जापुर, भदोही और सोनभद्र में मतदान होगा। आखिरी दौर का जंग जीतने के लिए ही चार मार्च को सभी दलों के दिग्गज मैदान में उतरे और सभी ने अपने चिरपरचित अंदाज में ताकत झोंकी। भाजपा की ओर से चुनावी मोर्चे की कमान खुद पीएम नरेंद्र मोदी ने संभाल रखी है।

शुक्रवार दोपहर बाद शुरू हुए मोदी के ग्रैंड रोड शो में बड़ा हुजूम उमड़ा। इनके शो में शहनाई बजाने वाले थे तो डमरू वादकों का बड़ा जखेड़ा भी शामिल था। रोड शो को ग्रैंड बनाने के लिए गुलाब की दस कुंतल पंखुड़ियां मंगवाई गई थीं। इनका रोड शो शाम को खत्म हुआ तो रात आठ बजे के बाद अखिलेश यादव भी मैदान में उतर गए। मोदी-अखिलेश के इस शक्ति प्रदर्शन के गवाह बने बनारस शहर के लाखों वोटर। दोनों ही रोड शो में कितनी भीड़ रही, इसका अंदाज लगा पाना कठिन था। यह कयास लगाना भी मुश्किल था कि कौन किसको शिकस्त दे गया।

सबसे पहले बात मोदी के रोड शो की। मलदहिया इलाके से उनका रोड शो निकला। तीन किमी का फासला तीन घंटे में पार किया। आखिर में पीएम विश्वनाथ धाम पहुंचे और विश्वनाथ मंदिर में दर्शन-पूजन के बाद सीधे लंका इलाके में मालवीय जी की प्रतिमा पर माल्यार्पण करने के लिए आगे बढ़ गए। इस बीच अस्सी इलाके से गुजरते समय उन्होंने आपनी गाड़ी रुकवाई और पहुंच गए पप्पू चाय की अड़ी पर। यह वही अड़ी है जहां चाय की चुस्कियों के सात सियासत का नब्ज टटोला जाता रहा है।

मोदी के बाद बारी थी सपा मुखिया अखिलेश यादव की। इन्होंने अपने रोड शो का नाम दिया था विजय यात्रा। भारत माता मंदिर से शुरू हुई अखिलेश की यह विजय यात्रा रात करीब पौने दस बजे गोदौलिया चौराहे पर पहुंच कर खत्म हो गई। सपा के ट्विटर हैंडल से इसकी कई तस्वीरें ट्विट की गईं, जिसमें लिखा गया था, "वाराणसी में समाजवादी पार्टी विजय यात्रा के दौरान जनता ने भरी हुंकार, भाजपा सरकार के बस दिन है बचे चार। सिर्फ छह दिन शेष, दस मार्च को आ रहे हैं अखिलेश।" मोदी की तरह अखिलेश यादव की विजय यात्रा में भी कई स्थानों पर फूलों की बारिश की गई। बनारस के रथयात्रा से लेकर गिरजाघर तक आतिशबाजी से उनका स्वागत किया गया। लोगों का उत्साह देख अखिलेश भी अपने रोक नहीं पा रहे थे। वह समाजवादी रथ की छत पर चढ़ कर लोगों का हाथ हिलाकर अभिवादन कर रहे थे।

अखिलेश और पीएम मोदी के रोडशो को देखें तो भीड़ के मामले में दोनों ही नेताओं ने अपना पूरा दमखम दिखाया। अबकी ओम प्रकाश राजभर और अपना दल कमेरावादी के साथ गठबंधन में उतरे अखिलेश यादव पूर्वांचल में समीकरण बदलने का दावा कर रहे हैं। अखिलेश की सभाओं में उमड़ रही भीड़ के जरिए सपा गठबंधन दावा कर रहा है कि उसे पूर्वांचल की अधिकतर सीटों पर बड़ी जीत मिल रही है। हालांकि भाजपा भी अपना दल (सोनेलाल) और निषाद पार्टी के साथ मैदान में है। भाजपा को उम्मीद है कि पीएम मोदी के असर से वह सातवें चरण की अधिकतर सीटों पर 2017 जैसा प्रदर्शन दोहराएगी।

गौर करने की बात यह है कि बनारस में एक हफ्ते के भीतर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चार मार्च को दोबारा दूसरा रोड शो करना पड़ा। बेशक यह रोड सो अलग-अलग इलाकों में थे, लेकिन था तो बनारस में ही।

वाराणसी में शुक्रवार को सिर्फ मोदी-अखिलेश के बीच ही सियासी दंगल नहीं हुआ। राहुल गांधी, प्रियंका गांधी, स्मृति ईरानी सहित कई दिग्गजों ने बनारस को हॉट स्पॉट बना दिया था। यहां हर नेता भीड़ जुटाने में कामयाब रहा। वाराणसी के वोटर पूरी तरह कन्फ्यूज रहे कि कौन किस पर और कितना भारी है? शहर में रुककर कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी भी पिछले दो दिनों से यहां उम्मीदें टटोल रही हैं। दस दिनों के अंतराल पर प्रियंका का भी यह दूसरा दौरा है। हालांकि अखिलेश यादव तीन महीने बाद बनारस आए थे।

बनारस में चाय-पान की अड़ियों पर लंका, अस्सी, गोदौलिया, चौक, मैदागिन से लेकर पीलीकोठी तक सिर्फ एक ही बात पर बहस चलती रही आखिर भीड़ किसके रोड शो में ज्यादा थी। मोदी ने यहां पहली मर्तबा 27 फरवरी को रोड शो निकाला था। भीड़ कम होने से भाजपा कार्यकर्ता काफी निराश थे। इस बार मेगा इवेंट की तरह उनका ग्रैंड शो दिखा, जिसमें भव्यता थी और दिव्यता भी। मोदी ने अपने समर्थकों के नजदीक जाकर उनका नब्ज को टटोलने और हवा का रुख अपनी तरफ मोड़ने की कोशिश की।

दांव पर मोदी की प्रतिष्ठा

बनारस में विधानसभा की आठ सीटें हैं, जिनमें पांच मोदी के संसदीय क्षेत्र की हैं। इन सीटों पर इस बार भी भाजपा प्रत्याशी नहीं, खुद मोदी चुनाव लड़ते नजर आ रहे हैं। प्रत्याशियों की कम, मोदी की प्रतिष्ठा ज्याद दांव पर लगी हुई है। सियासी पंडितों का मानना है कि बनारस हारने का मतलब समूचा देश हार जाना होगा। इसलिए मोदी के लिए बनारस की सभी सीटें प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गई हैं।

साल 2017 के विधानसभा चुनाव में भी पीएम मोदी ने अपने प्रत्याशियों को जिताने के लिए विशाल रोड शो किया था, लेकिन उस बार विपक्ष के किसी नेता ने उनकी घेराबंदी नहीं की थी। इस बार का सीन थोड़ा अलग है। यह पहला मौका है जब बनारस में उन्हें तीन दिन रुकना पड़ा और एक हफ्ते के भीतर दो रोड शो करने पड़े। विजय पताका फहराने के लिए दो-दो बार विश्वनाथ मंदिर में मत्था टेकना पड़ा। मोदी अभी बनारस में टिके हुए हैं। आधी रात में वो बनारस की गलियों और घाटों में घूमते रहे। शायद प्रचार के लिए मोदी का यह नया अंदाज है। आखिरी दिन सेवापुरी इलाके में उनकी जनसभा होनी है। मोदी के जोर लगाने के बावजूद बनारस में उनके मोहरों की स्थिति साफ नहीं है। वोटरों के मन में क्या है? इसका अंदाजा कोई नहीं लगा पा रहा है?

अखिलेश के शो में जुनूनी कार्यकर्ता

अचूक संघर्ष के संपादक अमित मौर्य कहते हैं, "बनारस में सभी दिग्गजों का रोड शो देखते बना। ऐसे में कोई भी भविष्यवाणी करना कठिन है। चुनाव आयोग ने अखिलेश यादव को दिन में रोड शो करने का मौका नहीं दिया। फिर भी उन्होंने अपार भीड़ जुटाकर मोदी को यह दिखा दिया कि चुनावी जंग में वह उनसे तिनिक भी कमतर नहीं हैं। मोदी का ग्रैंड शो दिन के उजाले में था, जिसमें अफसरों की गाड़ियां थी तो गाने गाने-बजाने वाले भी। मोदी के शो में रोचकता थी, लेकिन पब्लिक का जुनून तो अखिलेश के विजय जुलूस में दिखा। रात के अंधेरे में समर्थकों के भारी हुजूम ने यह एहसास करा दिया कि मुकाबले में वो भाजपा से तनिक भी पीछे नहीं हैं।"

अमित कहते हैं, "अखिलेश के विजय जुलूस में बीएचयू के वो स्टूडेंट भी बड़ी संख्या में शामिल हुए जिन्हें नौकरी की चिंता सताती आ रही है। वे अपने बैनर और पोस्टर लेकर उनकी विजय यात्रा में पहुंचे थे। मोदी के मेगा इवेंट में चंदौली, मिर्जापुर, गाजीपुर से लेकर जौनपुर तक कार्यकर्ताओं को बुलाया गया था। मैं नरेंद्र मोदी को नेता कम, अभिनेता मानता हूं। वोटरों को लुभाने के लिए आखिरी अस्त्र के रूप में डमरू भी बजाया और बहेलियों की तरह जाल भी फेंका, लेकिन इस बार उनकी बातों में लोग आएंगे, इसकी गुंजाइश कम है।"

वरिष्ठ पत्रकार एवं चुनाव विश्लेषक प्रदीप कुमार कहते हैं, "चुनाव में भीड़ के आधार पर किसी नेता अथवा दल के हार-जीत का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता है। बनारस में जब भी इस तरह के कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं तो आसपास के जिलों के कार्यकर्ता भी बुला लिए जाते हैं। वैसे भी बनारस के लोग इस तरह के मुकाबले दिलचस्पी के साथ देखने के आदी रहे हैं। अखिलेश के विजय जुलूस में जनसैलाब नजर आया तो, जिसमें पैर रखने की जगह नहीं थी। उनके साथ वह भीड़ ज्यादा थी, जो स्वतः आई थी। मोदी का शो पिछली बार से अबकी फीका था। दरबारी मीडिया ने बहुत कुछ सच नहीं दिखाया, लेकिन ग्राउंड रियल्टी यही है कि मोदी पर अखिलेश बीस पड़े। दरअसल, चुनाव में मोदी प्रचार का कोई मौका नहीं छोड़ना चाहते।"

प्रदीप यह भी कहते हैं, "चुनाव जीतने के लिए मोदी इस कदर आतुर दिखे कि उन्होंने यूक्रेन से लौटे कई छात्रों से मिलकर उनकी तस्वीरें वायरल करने के लिए बनारस बुला लिया। यही नहीं, बनारसियों को अपनी सजगता दिखाने का कोई मौका नहीं छोड़ा। दरबारी मीडिया के साथ वह आधी रात में कैंट स्टेशन समेत कई इलाकों में घूम आए। हालांकि इवेंट मैनेजमेंट के नजरिए से लोग मोदी के ग्रैंड मेगा शो बेहतर मान रहे हैं। दीगर बात है कि उनके शो में भीड़ स्वतः स्फूर्त वाली नहीं थी। अखिलेश के रोड शो में जो लोग आए थे, उनमें दीवानगी थी और चुनाव जीतने का जज्बा भी था। ऐसे में अभी हार-जीत पर कयास लगाया जाना ठीक नहीं है। इतना तय है कि तमाशबीनों के शहर में जो भी पराजित होगा, माना जाएगा कि ठगहारों के लिए विख्यात रही बनारस नगरी में बनारसियों ने उसे ठग लिया।"

(बनारस स्थित विजय विनीत वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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