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यूपी: शाहजहांपुर में प्रदर्शनकारी आशा कार्यकर्ताओं को पुलिस ने पीटा, यूनियन ने दी टीकाकरण अभियान के बहिष्कार की धमकी

पुलिस के बयान के उलट आशा कार्यकर्ताओं का कहना था कि उन्हें उस समय हिरासत में लिया गया, जब वे उस रैली की ओर मार्च कर रही थीं, जहां मुख्यमंत्री सभा को सम्बोधित कर रहे थे और मुख्यमंत्री के दौरे के पूरा हो जाने के बाद ही उन्हें रिहा किया गया।
ASHA Workers
फ़ोटो:साभार; अमर उजाला

लखनऊ: मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता (आशा), जिन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बतौर 'कोरोना योद्धा कोविड-19 महामारी में उनकी निस्वार्थ सेवा के लिए सम्मानित किया था, उन पर पुलिस ने बेरहमी से हमला किया।

उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में पुलिस ने मंगलवार को विरोध कर रही आशा कार्यकर्ताओं पर बेरहमी से हमला किया और उन्हें हिरासत में ले लिया। एक रैली को सम्बोधित करने के लिए शहर में मौजूद योगी आदित्यनाथ सरकार के ख़िलाफ़ मानदेय में बढ़ोत्तरी और, महामारी ड्यूटी के दौरान जोखिम भत्ता और बीमा कवर के साथ-साथ नियुक्तियों का नियमितीकरण, भविष्य निधि और सामाजिक सुरक्षा जैसी लंबे समय से चली आ रही मांगों को लेकर आशा हेल्थ वर्कर्स यूनियन के बैनर तले ज़िले भर से सैकड़ों की संख्या में कार्यकर्ता रैली स्थल के नज़दीक धरना प्रदर्शन करने पहुंची थीं। सोशल मीडिया पर वायरल हुई घटना के कई वीडियो में देखा जा सकता है कि महिला कांस्टेबल किस तरह कुछ आशा कार्यकर्ताओं की पिटाई कर रही हैं। हालांकि, पुलिस का दावा है कि यह मामूली हाथापाई थी और किसी को चोट नहीं आयी और न ही किसी को हिरासत में लिया गया।

लेकिन, पुलिस के बयान के उलट आशा कार्यकर्ताओं का कहना था कि उन्हें उस समय हिरासत में लिया गया, जब वे उस रैली की ओर मार्च कर रही थीं, जहां मुख्यमंत्री सभा को सम्बोधित कर रहे थे, और मुख्यमंत्री के दौरे के पूरा हो जाने के बाद ही उन्हें रिहा किया गया।

इस घटना ने पूरे राज्य में विवाद खड़ा कर दिया है, जहां अगले साल की शुरुआत में विधानसभा चुनाव होने हैं। कांग्रेस पार्टी ने कार्यकर्ताओं की इस पिटाई में शामिल सभी पुलिस अधिकारियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई की मांग की है।

कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने ट्विटर पर इस घटना का एक वीडियो शेयर करते हुए कहा, "उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से आशा बहनों पर हर हमला उनके किये गये कार्यों का अपमान है। मेरी आशा बहनों ने कोविड-19 महामारी और दूसरे मौक़ों पर पूरी लगन से अपनी सेवायें दी हैं। मानदेय पाना उनका अधिकार है। उनकी बात सुनना सरकार का कर्तव्य है। आशा बहनें सम्मान की पात्र हैं और मैं इस लड़ाई में उनके साथ हूं।"

कांग्रेस नेता का आगे कहना था कि आने वाले विधानसभा चुनावों में राज्य में पार्टी के सत्ता में आने पर आशा कार्यकर्ताओं को प्रति माह 10,000 रुपये का भुगतान किया जायेगा।

इस बीच, पुलिस के इस हमले के बाद बरेली में कई संगठनों के तहत आशा कार्यकर्ताओं ने इस घटना पर नाराज़गी जतायी और आरोपी पुलिसकर्मियों को तत्काल निलंबित करने की मांग की।उन्होंने चेतावनी भी दी है कि अगर आरोपी पुलिसकर्मियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई नहीं की गयी, तो आशा कार्यकर्ता जल्द ही विरोध प्रदर्शन करेंगी और स्वास्थ्य कार्यक्रमों का बहिष्कार करेंगी।

आशा कार्यकर्ताओं की ज़िला उपाध्यक्ष शिववती साहू ने कहा कि आशा कार्यकर्ता अपनी जान जोखिम में डालकर स्वास्थ्य विभाग के कार्यक्रमों और योजनाओं को घर-घर पहुंचाती हैं। उन्होंने कहा, “मुख्यमंत्री से मिलने जा रही आशा कार्यकर्ताओं की पिटाई निंदनीय है। अगर आरोपी पुलिसकर्मियों को सस्पेंड नहीं किया गया, तो आशा वर्कर्स यूनियन सख़्त क़दम उठाने को मजबूर होगा, यहां तक कि हम काम का बहिष्कार करने से भी नहीं हिचकेंगे।"

आशा यूनियन ने कहा, "हम यूपी सरकार के इस कायराना कृत्य की कड़ी निंदा करते हैं, जो लोगों के लोकतांत्रिक अधिकारों का उल्लंघन करती है और पुलिस अधिकारियों के ख़िलाफ़ तत्काल कार्रवाई की मांग करते हैं।" आशा यूनियन ने कहा कि मानदेय की बकाये राशि की मांग को लेकर कार्यकर्ता पिछले कई महीनों से उत्तर प्रदेश के कई ज़िलों में धरना प्रदर्शन कर रही थीं। प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग की ओर से कोई ध्यान नहीं दिये जाने से नाराज़ होकर उन्होंने आशा कार्यकर्ताओं की ओर से चलाये जा रहे टीकाकरण अभियान का बहिष्कार करने की भी धमकी दी।

राज्य कर्मचारी का दर्जा दिये जाने और 18,000 रुपये मानदेय की मांग को लेकर आशा कार्यकर्ताओं का यह आंदोलन सातवें महीने भी जारी है।

एक अन्य आशा कार्यकर्ता सावित्री ने न्यूज़क्लिक को बताया, "आशा किसी भी स्वास्थ्य सेवाओं की मज़बूत कड़ी हैं। हमने कोविड-19 काल के दौरान बिना किसी डर के काम किया। आशा कार्यकर्ता सरकार के शुरू किये गये सभी स्वास्थ्य कार्यक्रमों में सक्रिय भूमिका निभाती हैं। हालांकि, सरकार हमारी चिंताओं पर ध्यान नहीं दे रही है। हमारी प्रमुख मांग है कि हमें 18,000 रुपये मानदेय दिया जाये और राज्य कर्मचारियों का दर्जा भी दिया जाये।"

सितंबर में कोविड-19 के ख़िलाफ़ लड़ाई में सबसे आगे रहीं हज़ारों आशा कार्यकर्ता, सहायक नर्स दाइयों और उत्तर प्रदेश में आंगनवाड़ी, सर्व शिक्षा अभियान और मध्याह्न भोजन योजना (MDM) कार्यकर्ता स्कीम वर्कर्स यूनियन के बैनर तले भारत ने एक राष्ट्रव्यापी विरोध प्रदर्शन में भाग लिया। ऑल इंडिया यूनाइटेड ट्रेड यूनियन सेंटर और अन्य यूनियनों से से जुड़े फेडरेशन ने पर्याप्त मानदेय, नियुक्तियों के नियमितीकरण, भविष्य निधि और सामाजिक सुरक्षा और महामारी ड्यूटी के दौरान जोखिम भत्ता और बीमा कवर की मांग की।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

UP: Protesting Shahjahanpur ASHA Workers Beaten By Cops, Union Threaten to Boycott Vaccination Drive

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