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'गौरैया वालों की हवेली'...जैसे शाम अपने पांवों में घुंघरू बांध आंगन में उतर आई

उत्तर प्रदेश के बिजनौर से क़रीब 60 किलोमीटर दूर स्योहरा में एक ऐसा परिवार है जिन्हें विरासत में 300 साल पुरानी हवेली ही नहीं मिली बल्कि उन्हें उस हवेली में रहने वाली हज़ारों गौरैया की ज़िम्मेदारी भी मिली है। 
House sparrow

शाम का वक़्त था बस रोज़ा खुलने का वक़्त हुआ जा रहा था, लेकिन जमाल शेख़ ने हमें व्हाट्सऐप पर वीडियो कॉल किया और अपना पूरा घर घुमाया, घर की एक किलेनुमा दीवार को दिखाते हुए वे दावा कर रहे थे कि ''ये मेरे घर का वो हिस्सा है जो क़रीब तीन सौ से साढ़े तीन सौ साल पुराना है''। इसके बाद जमाल घर के सबसे ऊपरी हिस्से पर चले गए और वहां से आस-पास के नज़ारे को दिखाते हुए कहा कि ''चारों तरफ़ देखिए कहीं कोई पेड़ नज़र आ रहा है? मैं जहां खड़ा हूं और आस-पास आपको जो पेड़ दिखाई दे रहे हैं ये मेरे ही घर का इलाक़ा है। ये पेड़ हमारे या फिर हमारे वालिद के लगाए हैं।'' इसके बाद उन्होंने अपने घर के उस सेहन को दिखाया जहां से चिड़ियों का तेज़ शोर आ रहा था। ऐसा लग रहा था कि शाम अपने पैरों में घुंघरू बांधे जमाल साहब के आंगन में उतर आई हो। दरअसल ये शाम के वक़्त घर लौट कर आई अनगिनत गौरैया चिड़ियों का शोर था या फिर कहें संगीत था। 

पिछले कई दिनों से उत्तर प्रदेश के बिजनौर से क़रीब 60 किलोमीटर दूर स्योहरा में जमाल शेख़ के घर एक मीडिया हाउस से जुड़ी टीम आती है तो दूसरी जाती है, पूरा घर चिड़ियों के बारे में जानकारी देने और उनके घोंसले दिखाने में मसरूफ हो गया है। दरअसल इसकी वजह है उनका घर और उसमें पलने वाली गौरैया। जहां एक तरफ गौरैया की घटती संख्या चिंता का सबब बनी हुई है वहीं स्योहरा की ये हवेली हजारों गौरैया का बसेरा है। 

तीन सौ साल पुरानी हवेली और हज़ारों गौरैया का बसेरा

जमाल शेख़ बताते हैं कि उनकी हवेली का कुछ हिस्सा तीन सौ से साढ़े तीन सौ साल पुराना है। उन्होंने हमें भी उस हिस्से को दिखाया और बताते हैं कि ''हमारी दादी ने बताया कि जब वे शादी करके आई थीं तो उस वक़्त भी उनकी हवेली बहुत ही मज़बूत और ख़ूबसूरत हुआ करती थी।'' वक़्त के साथ घर के कुछ हिस्से में बदलाव आया लेकिन आज भी कुछ हिस्से को आने वाली पीढ़ियों के लिए पुरखों की निशानी के तौर पर वैसा ही छोड़ दिया गया है। वे बताते हैं कि'' हमारा परिवार पीढ़ियों से यहां रह रहा है लेकिन जब उनकी शादी हुई तो उनकी पत्नी ने घर में कुछ बदलाव करने के लिए कहा तो उन्होंने इनकार कर दिया और इसी साल उनके बेटे की शादी हुई और नई दुल्हन ने भी जब घर के सेहन के फ़र्श और वॉशरूम को ठीक करने की बात कही तो जमाल शेख़ ने कहा कि'' मेरे बाद ही सेहन और वॉशरूम का काम हो सकता है मेरे रहते नहीं, क्योंकि अगर किसी भी तरह का कंस्ट्रक्शन किया गया तो शोर से चिड़ियों को परेशानी होगी और वे शोर से उड़ जाएंगी।'' 

''गौरैया वालों की हवेली''

जमाल हंसते हुए कहते हैं कि कई बार तो मैं अपने परिवार में कह चुका हूं कि ''अगर किसी को चिड़ियों के घर में रहने से दिक्कत है तो वे कहीं बाहर जाकर रह सकता है।'' वे बताते हैं कि, ''इस हवेली ने बहुत अच्छे दिन देखे हैं लेकिन वक़्त के साथ वे दिन जाते रहे, हमारा खानदान पूरे इलाक़े में बहुत ही नामी और मशहूर रहा है। और पिछले 20-25 साल से हमारी हवेली का नाम ही ''गौरैया वालों की हवेली'' पड़ गया है''। जमाल कहते हैं कि ''वन विभाग और सरकार चाहे तो मुझे कहीं और घर दे दे। मैं इस पूरी हवेली को ही गौरैया और दूसरी चिड़ियों को समर्पित कर दूंगा''। 

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''जमाल शेख़ की नई पहल''

बीते दिनों 'वर्ल्ड स्पैरो डे' मनाया गया और इस मौक़े पर जमाल शेख़ को सम्मानित भी किया गया लेकिन इसके अलावा उन्होंने अपने मोहल्ले में एक नई पहल की। उन्होंने पचास लोगों (ख़ासकर बच्चों को) को मिट्टी के पानी के कुंडे और चार रंग का अनाज (जो गौरैया को बहुत पंसद है) बांटा। वे बताते हैं कि, ''अब मोहल्ले के बच्चे मेरे पास आ रहे हैं कि गौरैया को देने वाला अनाज ख़त्म हो गया है तो मैं उन्हें फिर से अनाज देता हूं।'' बच्चों का उत्साह देखकर जमाल शेख़ बेहद ख़ुश हैं। वे कहते हैं कि, ''मेरा मानना है कि आज हम पचास लोगों को गौरैया से वापस लौटने की कोशिश से जोड़ रहे हैं। कल को ये सौ होंगे और फिर दो सौ, अगर ये सिलसिला धीरे-धीरे ही सही आगे बढ़ा तो बहुत फायदा होगा''। जमाल आस-पड़ोस में ''पक्षी प्रेमी'' के नाम से मशहूर हो चुके हैं, वे बताते हैं कि उनकी कोशिशों का असर अब दिखने लगा है, वे कहते हैं कि'' मेरे आस-पड़ोस में जो पढ़े-लिखे लोग हैं उन्होंने अब अपने घरों में गमले रखने शुरू कर दिए हैं, चिड़ियों के लिए छतों पर दाना और पानी भी रख रहे हैं। साथ ही मेरे घर भी इन गौरैया को देखने आने वालों का तांता लगा रहता है''।  

घर के सहन में लगी एक बेल पर बैठी गौरैया

हवेली है या कोई बाग़ ? 

जमाल शेख़ की हवेली मोहल्ले में वे जगह दिखती है जहां घर के सेहन से लेकर हवेली के गेट और आस-पास पेड़ ही पेड़ हैं, चिड़ियों को बसाने के लिए जमाल शेख़ ने अपने घर में कई तरह के पेड़ और बेलें लगा रखी हैं। वे बताते हैं कि कुछ बेलें तो बहुत पुरानी लगी हैं, जबकि उन्होंने एक अमरूद और आम के पेड़ को मिला कर एक नया पेड़ तैयार किया है। इनके अलावा उनके घर में शरीफा, शहतूत और बेल के भी पेड़ लगे हैं। वे कहते हैं कि ''भले ही मेरे घर में छोटी सी जगह में बहुत से पेड़ लगे हैं लेकिन मेरा मानना है कि किसी चीज़ को बचाने के लिए दिल में गुंजाइश होनी चाहिए फिर चाहे वे इंसान हो या फिर परिंदे, दिलों की बात होनी चाहिए बस। 

कितनी गौरैया हैं हवेली में? 

जमाल शेख़ इस सवाल के जवाब में कहते हैं कि ''आजतक मैंने एक-एक कर किसी को गिना तो नहीं है लेकिन हां इनकी संख्या हज़ारों में ही दिखती है।'' जमाल बातते हैं कि उनकी हवेली में हज़ारों की तादाद में गौरैया ही नहीं हैं बल्कि ''मेरे यहां कई रंग के परिंदे हैं, हाल ही में एक तितर आया है जो सुबह हमें ही नहीं पूरे मोहल्ले के घरों पर बैठकर लोगों को जगा आता है। 20 से 22 गिलहरियां हैं और जब पहाड़ों पर बर्फ़ गिरती है तो मेरे यहां बहुत से परिंदे आते हैं एक से एक ख़ूबसूरत, गौरैया के अलावा यहां 6 से 7 बुलबुल हैं, 8 से 10 फाख़्ता हैं''। जमाल इन चिड़ियों के खाने-पीने का ख़्याल तो रखते ही हैं साथ ही वे इनकी छोटी-छोटी ज़रूरतों का भी ख़्याल रखते हैं, जैसे कि वे घर से बाहर निकलते हैं तो जहां भी घास दिखती है तो वे घास तोड़कर घर या फिर छत पर रख देते हैं और चिड़िया ख़ुद उस घास से अपने घोंसले बना लेती हैं, इसके अलावा उनकी हवेली में शाम होते ही सेहन की लाइटों को बुझा दिया जाता है (क्योंकि यहां लगी बेलों पर चिड़ियां सबसे ज्यादा बैठी होती हैं)। वे ऐसा इसलिए करते हैं क्योंकि ऐसा न करने पर बिल्ली इन गौरैयों पर हमला कर देती हैं। हालांकि जमाल कहते हैं कि, ''वैसे मैंने बिल्लियों को भी इनका दोस्त बना दिया है। बिल्ली, गौरैया पर हमला न करें इसलिए मैंने उनके लिए भी सेहन में दूध रखना शुरू कर दिया''। 

छत पर दाना चुगती गौरैया

विरासत में हवेली ही नहीं गौरैया भी मिलती हैं

जमाल शेख़ के मुताबिक़ जब वे पांच या सात साल के थे तो उनकी वालिदा (मां) की एक सज़ा ने उनकी जिंदगी पर ऐसा असर छोड़ा कि उन्हें चिड़ियों से लगाव हो गया। वे बताते हैं कि बचपन में एक बार वे और उनके भाई एक चिड़िया का घोंसला तोड़ लाए थे जिसमें चिड़िया ने अंडे दिए थे तो उनकी वालिदा ने न सिर्फ़ उस घोंसले को दोबारा उसी जगह बंधवाया बल्कि उस रात उन्हें खाना भी नहीं मिला, लेकिन अगली सुबह उनकी दादी ने उनसे छत पर चिड़ियों के लिए दाना और पानी रखवाया, बचपन में मिली ये हिदायत जमाल शेख़ को ताउम्र याद रही और उनके वालिद (पिता) ने अपनी ज़िंदगी के आखिरी क्षण में घरवालों से वादा लिया था कि हवेली में रहने वाले न सिर्फ़ हवेली के पेड़-पौधों का ख़्याल रखेंगे बल्कि उसमें रहने वाली गौरैया का भी बादस्तूर ख़्याल रखेंगे। जमाल कहते हैं कि ''हम छह भाई बहनों में से तीन बचे हैं और अब मेरी भी उम्र हो चली है लेकिन मैंने इन गौरैयो का हमेशा ही ख़्याल रखा और अब मेरे घर बहू आ गई है तो मैंने अपनी जिम्मेदारी बेटे और बहू को सौंप दी है, वे भी बहुत ही मोहब्बत से इन गौरैयों का ख़्याल रखते हैं।'' तो जमाल के वालिद ने उन्हें विरासत में इन गौरैया को सौंपा था और अब वे इन नन्हीं गौरैया को अपने बेटे को विरासत में देने के लिए तैयार हैं। 

क्या ख़ूबसूरत विरासत है आख़िर कहां ऐसी विरासतें सौंपी जाती होंगी? जहां हवेली के साथ गौरैया की जिम्मेदारी निभाने की शर्त हो। लेकिन ये कुनबा इस जिम्मेदारी को बहुत ही मोहब्बत से उठाने के लिए तैयार दिखता है। 

''मैं गौरैया को दोबारा लौटा सकता हूं''

जमाल शेख़ बताते हैं कि वे पिछले 40-45 साल से इन गौरैयों को क़रीब से देख रहे हैं और इस दौरान उन्हें जो समझ आया उसके मुताबिक वे चाहते हैं कि सरकार के साथ मिलकर गौरैया को वापस लौटाने की कोशिश में मदद करें। वे कहते हैं कि, ''इन चिड़ियों (गौरैया) के बारे में एक बात समझनी होगी कि ये इंसान के साथ ही रहती है और ये इंसान के पास ही रहना चाहती है, जहां इंसान नहीं होगा वे वहां नहीं होंगी, सरकार मुझे कहे कि गौरैया को किसी इलाक़े में लाकर दिखाओ तो मैं ये करके दिखा सकता हूं क्योंकि मैं जानता हूं ये किन पेड़ों पर बैठना पसंद करती हैं। ये किसी मौसम में क्या खाना चाहती हैं, मैं जानता हूं, जाड़ों में क्या खाती हैं और बरसात में क्या खाना पसंद करती हैं। हो सकता है वैज्ञानिक या फिर इनपर स्टडी करने वाले इनके बारे में मुझ से ज़्यादा जानते हों लेकिन मैं भी एक साल में किसी भी जगह पर हज़ारों की तादाद में इन गौरैया को ला सकता हूं। ये मेरा दावा नहीं, ये मेरी कोशिश होगी जो मैं करके दिखा सकता हूं। लेकिन मुझे कम से कम एक साल का वक़्त दिया जाए और जगह वे दी जाए जहां शहर क़रीब हो या फिर आस-पास इंसान रहते हों, क्योंकि मैंने एक चीज़ गौर की है जब हम छत पर बैठे होते हैं तो ये बहुत ज़्यादा तादाद में हमारे आगे-पीछे दिखती हैं और जैसे ही हम हटे ये भी उड़ जाती हैं तो ये इंसान के बीच में इंसान के क़रीब ही रहना चाहती हैं''। 

छत पर गौरैया के बैठने के लिए किया गया ख़ास इंतज़ाम

''चिड़िया नहीं ये घर का सुकून हैं''

जमाल शेख़ ने अपने घर में एक ऐसे इकोसिस्टम को बना रखा है जो इन गौरैया के लिए किसी जन्नत से कम नहीं है, जिस दौर में इंसानों के बीच से गौरैया दूर होती जा रही हैं उस दौर में जमाल शेख़ और उनके परिवार के लिए ये गौरैया न सिर्फ़ परिवार का हिस्सा हैं बल्कि वे मानते हैं कि ये गौरैया हैं तो घर में रौनक है, चहल-पहल है और ये नहीं तो कुछ भी नहीं। इंसान और परिदों के बीच बना ये रिश्ता बहुत ख़ास है और बताता है कि इंसान अगर चाह ले तो इंसानों के बीच रहने वाली ये नन्हीं सी गौरैया एक बार फिर से लौट सकती हैं। जमाल शेख़ की पत्नी बताती हैं कि, ''जब मैं शादी करके आई थी तो बहुत दिक्कत होती थी। ख़ासकर बरसात में घर में गौरैया की बीट की वजह से ऐसी हींक (बदबू) आती थी कि बिल्कुल बर्दाश्त नहीं होती थी, लेकिन वक़्त के साथ आदत हो गई और अब तक इनसे इतनी मोहब्बत हो गई की ये सब महसूस ही नहीं होता, अब तो ये आलम है कि इन्हें खिलाए बिना चैन नहीं पड़ता। जब ये एक साथ बैठकर खाना खाती हैं तो देखकर दिल को बहुत सुकून मिलता है। ऐसा लगता है कि अगर ये हमारे घर पर रहती हैं हमारे साथ खाती हैं तो क्या पता हमारे हक़ में दुआ करती होंगी। ये फ़ज्र (सुबह की नमाज़ का वक़्त) से पहले और मग़रिब (सूरज डूबने के बाद की नमाज़ का वक़्त) से पहले ख़ूब बोलती हैं, पूरा घर इनसे गुलज़ार रहता है। मैं तो लोगों को दावत देती हूं कि आप हमारे घर की रौनक देखने आइए। हमारे घर की तो रौनक ही इन्हीं से है। पूरा दिन शोर मचाए रहती है लगता है घर में बच्चे खेल रहे हैं ख़ूब चहल-पहल करती हैं। इनकी भी वैसी ही फिक्र होती है जैसे घर के बच्चों की, जब शाम को इनके लौटने में देर हो जाती है तो बहुत घबराहट होती है, कि ये वापस क्यों नहीं लौटीं, क्योंकि ज़्यादातर गौरैया दिन में चली जाती हैं और अस्र के बाद से इनके लौटने के वक़्त होता है और अगर इनके लौटने में ज़रा दे हो जाए तो हम परेशान हो जाते हैं, हम इनके आने से पहले ही इनका खाना (दाना) डाल देते हैं और जब ये लौटकर उसे खाती हैं तो दिल को बहुत तसल्ली मिलती है, ये देखना बहुत ही सुकून भरा होता है''। 

''बोझ नहीं घर की रौनक हैं ये''

जमाल शेख़ की पत्नी जब इनके बारे में बात कर रही थीं तो उनकी आवाज़ में भी एक चहक थी। वे इन गौरैया के बारे में ऐसे बात कर रही थीं जैसे कोई अपने बच्चों की तारीफ़ कर रहा हो, वे कहती हैं कि'' हम इंसानों की दावत करते हैं उन्हें खाने पर बुलाते हैं लेकिन ये हमारा दिया खाती हैं और जब ये खाती हैं तो ऐसा लगता है कि जैसे हम बच्चों को खिलाते हैं ये हमारे घर पर ही खाती हैं और यहीं रहती हैं, सबसे ख़ूबसूरत मंजर वो लगता है जब रात के वक़्त ये छोटी-छोटी सी पेड़ों पर बैठी दिखती हैं ऐसा लगता है जैसे हमने पेड़ों पर कोई फल लगा दिया हो, पेड़ों पर छोटी-छोटी सी ऐसी लगती हैं जैसे कोई फल लगा हो। 

बेशक, जमाल शेख़ की पत्नी ने सही फरमाया पेड़ों पर बैठी ये गौरैया उनकी मेहनत का फल हैं जो सुकून की तासीर रखती हैं।

वन विभाग भी जमाल शेख़ और उनके परिवार की तारीफ़ कर चुका है, बदलते लाइफ स्टाइल और कम होते पेड़ों ने गौरैया को इंसानी बस्ती से दूर कर दिया, लेकिन जमाल शेख़ और उनके परिवार ने अपने बीच इन गौरैया को जगह देकर साबित कर दिया कि गौरैया का संरक्षण सही मायने में तभी हो पाएगा जब इंसान उसे अपने बीच जगह देगा। 

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