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यूपी चुनाव : किसानों ने कहा- आय दोगुनी क्या होती, लागत तक नहीं निकल पा रही

"हमें तो खेती करने के लिए और क़र्ज़ ही लेना पड़ रहा है फ़ायदे की तो बात ही छोड़ दीजिए। अभी तो हाल यह हो गया है कि खेती में लागत का पैसा भी नहीं निकल पा रहा है।"
यूपी चुनाव : किसानों ने कहा- आय दोगुनी क्या होती, लागत तक नहीं निकल पा रही
किसान बिरेंद्र सिंह

देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव का दूसरा चरण कल समाप्त हो गया। सभी पार्टियां सत्ता हासिल करने के लिए फिर से जनता से बड़े-बड़े वादे कर रही हैं। पहले के चुनावों में भी जनता से इसी तरह के वादे किए गए थे। वर्ष 2016 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किसानों की आय वर्ष 2022 तक दोगुनी होने का वादा किया था। इस साल का फरवरी महीना लगभग आधा बीत गया है लेकिन जब उत्तर प्रदेश के कासगंज के किसानों और किसान नेता से न्यूज़क्लिक ने बात की तो जमीनी सच्चाई कुछ अलग दिखी। उनका कहना है कि कृषि पर लागत जितना बढ़ा उसके अनुसार उपज के दाम नहीं मिल रहे है। वे कहते हैं कि हालत ये है कि लागत दोगुनी से ज्यादा हो गई है लेकिन उपज की कीमत जो आज से चार-पांच साल पहले थी वही है। ऐसे में आय दोगुनी होनी तो दूर उसकी लागत तक नहीं निकल पा रही है।

करीब 25-30 बिगहा में कृषि करने वाले ग्राम नगला के किसान बिरेंद्र सिंह न्यूज़क्लिक से फोन पर हुई बातचीत में कहते हैं "हमें तो इस काम को करने के लिए और कर्ज ही लेना पड़ रहा है फायदे की तो बात ही छोड़ दीजिए। अभी तो हाल यह हो गया है कि खेती में लागत का पैसा भी नहीं निकल पा रहा है। इसी मौसम में हमने आलू बोया था जिसको सुअरों ने पूरी तरह बर्बाद कर दिया। लागत भी निकल पाना मुश्किल है। हमलोग काफी परेशान है। हमारा पूरा परिवार इसमें लगा हुआ है। खेती ही आजीविका का एक सहारा है। इसे छोड़ना भी मुश्किल है।"

वहीं "ग्राम नगला हुंडा के रहने वाले किसान सोरन सिंह बताते हैं कि हमारा कुछ अपना खेत है और कुछ पट्टे पर ले रखा है। कुल मिलाकर 20 बिगहा जमीन पर खेती करते हैं। पूरा परिवार इससे जुड़ा हुआ है। हमलोग दूसरा कोई काम करने के लायक हैं नहीं इसलिए यही आजीविका का मुख्य साधन है। दूसरा कोई काम नहीं कर सकते हैं इसलिए इसमें लगे हुए हैं।"

ऑल इंडिया किसान सभा कासगंज के किसान नेता सुनिल सिंह न्यूजक्लिक से बातचीत में कहते हैं कि "इस क्षेत्र की बात करें तो किसानों का कोई अनाज एमएसपी पर नहीं खरीदा जाता है। सरकार ने मक्का की खरीद की बात की तो केवल एक दिन किसानों से खरीदारी के लिए कांटा लगाया गया और प्रशासन ने लोगों को सूचना दे दी कि अब खरीदारी पूरी हो गई है। अब कोई खरीदारी नहीं होगी। ज्यादातर किसानों का मक्का जब प्राइवेट मंडी में जा चुका था तब ये कांटा लगाया गया था। इसको लेकर किसान सभा की लगातार मांग रही है लेकिन जिले के तमाम अधिकारियों से आश्वासन मिलने के बावजूद आगे की कार्रवाई नहीं हुई।"

उन्होंने कहा कि, "धान या गेहूं हो किसी कभी अनाज की खरीदारी एमएसपी पर यहां नहीं होती है। इन्होंने (सरकार ने) वादा किया था कि हम स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशें लागू करेंगे और उसके अनुसार किसानों से अनाज की खरीदारी की जाएगी और किसानों को उनकी लागत का डेढ़ गुणा कीमत दिया जाएगा लेकिन सरकार ने इस पर हमारे क्षेत्र में कोई काम नहीं किया।"

सुनिल सिंह कहते हैं, "खाद, बीज, मजदूरी समेत कीटनाशक आदि की कीमतें पहले के मुकाबले दोगुना से ज्यादा बढ़ गईं हैं। इस तरह की लागत लगातार बढ़ रही हैं और उत्पादित चीजों की उचित कीमत किसानों को बाजार में मिल नहीं रही है और सरकार भी उनके उत्पादन पर कोई ध्यान नहीं देती है। इस तरह किसान चारो तरफ की मार झेल रहे हैं।"

किसान नेता बताते हैं, "गेहूं की ही बात करें तो पिछले चार-पांच वर्षों से सीजन के समय मजबूरी के तहत किसान 15-16 सौ रूपये प्रति क्विंटल बेच देते हैं। बाद में जब ये बड़े-बड़े दुकानदारों और बिचौलियों के पास चला जाता है तब इसकी कीमत बढ़ जाती है।"

गेहूं की प्रतिक्विंटल लागत और उससे होने वाले मुनाफे पर चर्चा करते हुए सुनिल सिंह कहते हैं, "एक क्विंटल गेहूं पर किसानों के खर्च की बात करें तो खेत का पट्टा, किसानों की मेहनत और उपज पर लागत समेत तमाम चीजों को जोड़ ली जाए तो यह खर्च करीब ढ़ाई हजार रुपये तक पहुंच जाएगा। ऐसे में किसानों का प्रति क्विंटल पर एक हजार रुपये नुकसान हो रहा है। किसानों की अभी भी बहुत बुरी हालत है। जो लोग काफी समय से खेती किसानी में लगे हुए हैं उनको दूसरा काम करने का अनुभव है नहीं इसलिए वे अपने परिवार का खर्च चलाने के लिए इसी काम को कर रहे हैं। अब ये किसान अपने बच्चों खेती-किसानी करने नहीं दे रहे हैं क्योंकि इसमें कोई फायदा है नहीं और न ही भविष्य ही सुरक्षित है। ऐसे में किसान अपने बच्चों को मजदूरी करने के लिए शहर की तरफ भेज रहे हैं। यहां के किसानों को खेती किसानी के समानांतर अगर कोई काम मिल जाए तो किसान इसको खुशी-खुशी छोड़ देगा। मजबूरी में लोग कृषि कर रहे हैं।"

किसान नेता सुनिल सिंह व अन्य

इस क्षेत्र में सिंचाई को लेकर उन्होंने कहा कि "इसकी भी यहां गंभीर समस्या है। यहां पर सिंचाई के दो मुख्य साधन है। पहला है डिजल इंजन और दूसरा है नहर, बंबा आदि। खेतों में पटवन का समय जब होता है तो ये बंबा, नहर सूखे रहते हैं। इंजन सेट से पानी पटाना काफी महंगा हो जाता है। जो किसान भाड़े पर ये सेट लेकर पानी पटाते हैं तो उनका खर्च और बढ़ जाता है। इस तरह किसान बुरी तरह पीस रहे हैं।"

वे आगे कहते हैं कि, "डीजल की कीमत लगातार बढ़ने से सिंचाई करना हर किसानों के बस की बात नहीं रह गई है। चार-पांच वर्षों में इसकी कीमत दोगुनी हो गई है। इससे किसानों का कृषि लागत बढ़ गया लेकिन गेहूं, धान या अन्य उपज उसी रेट पर बिक रहा है जो चार-पांच वर्ष पहले बिकता था।"

सुनिल सिंह कहते हैं, "कासगंज जिले में सात-आठ बंबे ऐसे हैं जिनमें काफी समय से बिल्कुल पानी नहीं आ रहा है। स्थानीय तौर पर इसे ठीक कराने के लिए किसान सभा के नेतृत्व में आंदोलन चलाया गया था लेकिन सरकार और प्रशासन की ओर से इसकी अनदेखी लगातार होती रही है। पहले इस विभाग का मुख्यालय कासगंज जिले में ही होता था लेकिन अब इसे वहां से हटाकर अलीगढ़ ले जाया गया है। कासगंज में छोटे कर्मचारी रह गए हैं और बड़े अधिकारी अलीगढ़ के कार्यालय में रहते हैं। ऐसे में हमलोग जब इन कर्मचारियों से इन समस्याओं के संबंध में चर्चा करते हैं तो वे बड़े अधिकारियों का हवाला देकर बात टाल देते हैं। नहरों आदि की सफाई हर साल की जाती है लेकिन पानी की समस्या जस की तस बनी हुई है।"

आवारा पशुओं को लेकर वे कहते हैं, "यहां जंगली जानवर जैसे नीलगाय, बंदर, सुअर के साथ साथ आवारा पशु किसानों की फसलों को चौपट कर रहे हैं जिससे भी किसान परेशान हैं। इन जानवरों से फसल को बचाने के लिए किसान रात-रात भर जाग कर अपने फसलों की रखवाली करता है।"

गन्ना किसानों की स्थिति को लेकर सिंह बताते हैं, "यहां गन्ने की फसल काफी अच्छी होती है। न्यौली एक मात्र शुगर मिल है जिस पर पिछले साल किसानों का करीब सत्तर-अस्सी करोड़ रुपया बकाया था। गन्ना किसानों को पिछले साल की पैदावार का भुगतान हुआ भी नहीं फिर इस साल किसानों को मजबूरन अपने गन्ना को फिर इस मिल को किसानों को देनी पड़ी। इन किसानों को उम्मीद थी कि मिल की ओर से भुगतान हो जाएगा लेकिन उनका भुगतान हुआ नहीं। किसानों ने फिर से गन्ने की बुआई कर दी तो अब किसान के सामने यह समस्या आ गई कि वे इनको कहां लेकर जाएं। आखिरकार फिर किसानों को अपने गन्ने की उपज इसी मिल को देनी पड़ी। दूसरी बात ये है कि गंगा नदी के तराई क्षेत्र में गन्ने के अलावा दूसरी फसल लगा भी नहीं सकते हैं।"

 

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