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तालिबान सरकार को अमेरिकी मान्यता पूरे खेल को बदल देगी 

तालिबान पर बाइडेन की सोच में बदलाव से चीन जैसे देशों पर संभावित प्रभाव पड़ सकता है।
Taliban

ब्रसेल्स में मंगलवार देर रात एक आश्चर्यजनक खुलासा हुआ कि अमेरिका तालिबान सरकार को मान्यता देने के लिए एक "रोडमैप" पर काम कर रहा है, यह वैसे तो बहुत से लोगों को आश्चर्यचकित करेगा लेकिन इसकी उम्मीद जल्द की जा सकती है। 

अमेरिका के पास अपनी रणनीतियों पर पुनर्विचार करने का एक सुसंगत रिकॉर्ड रहा है, खासकर जब भी उसे पता चलता है कि उसकी नीति एक बंद रास्ते में चले गई है तो वह उस पर पुनर्विचार करता है। इस मामले में ठीक ऐसा ही हुआ है।

सब जानते हैं कि पश्तून जातीय-राष्ट्रवाद में मौजूद मजबूत समर्थन आधार वाले तालिबान पर दबाव की रणनीति काम नहीं करेगी। दूसरी ओर, अमेरिका ने स्वयंभू पंजशिरी "प्रतिरोध" में भी कोई दिलचस्पी नहीं ली है। इसलिए बाइडेन प्रशासन ने पहले से जारी दोहा शांति प्रक्रिया में फिर से सर्वोत्कृष्ट रूप से हिस्सा लेना शुरू कर दिया है। 

अमेरिका के पूर्व विशेष प्रतिनिधि ज़ाल्मय खलीलज़ाद ने हाल ही में स्वीकार किया था कि अमेरिका और तालिबान दोहा समझौते के अनुसार समझ से कुछ ही इंच की दूरी पर थे कि काबुल में एक अंतरिम सरकार का गठन किया जाएगा (जिसे निश्चित रूप से, अशरफ गनी और उनके गुट ने असफल कर दिया था।)

अफ़गानिस्तान पर नियुक्त नए अमेरिकी विशेष प्रतिनिधि टॉम वेस्ट ने मंगलवार को एक ब्रीफिंग में बताया कि वाशिंगटन अफ़गानिस्तान में आईएसआईएस से जुड़े हमलों से काफी चिंतित है और वहां अल-कायदा की उपस्थिति के बारे में भी गंभीर रूप से चिंतित है।

तालिबान के साथ अमेरिका की वार्ता के बारे में नाटो सहयोगियों को जानकारी देने और सरकार की मान्यता की दिशा में "रोडमैप" पर परामर्श करने के लिए वेस्ट वर्तमान में ब्रुसेल्स की यात्रा पर है। महत्वपूर्ण बात यह है कि वे ऑन द रिकॉर्ड बोल रहे थे।

वेस्ट के ब्यान के मुताबिक, "तालिबान ने अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के साथ संबंधों को सामान्य करने, मदद को फिर से शुरू करने, काबुल में अंतर्राष्ट्रीय राजनयिक समुदाय की वापसी करने और प्रतिबंधों में राहत देखने के लिए बहुत स्पष्ट और खुले तौर पर अपनी इच्छा व्यक्त की है। संयुक्त राज्य अमेरिका इनमें से कोई भी चीज़ अपने दम पर नहीं दे सकता है।"

वेस्ट गुरुवार को इस्लामाबाद में "ट्रोइका प्लस" की बैठक के लिए ब्रसेल्स से पाकिस्तान जा रहे  है। वहां से, वे तालिबान सरकार और उसके घटनाक्रम के बारे में वाशिंगटन में नई सोच के बारे में अमेरिका के क्वाड सहयोगी को जानकारी देने के लिए दिल्ली की यात्रा करेंगे।

वेस्ट, दिल्ली से मास्को जाएंगे। तास समाचार एजेंसी ने विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव का हवाला देते हुए पहले ही बता दिया था कि रूसी राष्ट्रपति के दूत ज़मीर काबुलोव के साथ टेलीफोन पर बातचीत के दौरान, वेस्ट ने कहा था कि वह रूसी पक्ष के साथ संपर्क स्थापित करने के लिए मास्को आना चाहते हैं। तदनुसार, एक "कार्य यात्रा" आने वाले सोमवार के लिए निर्धारित की गई है।

वेस्ट का खुलासा मंगलवार को पाकिस्तानी मीडिया रिपोर्टों की पृष्ठभूमि के विपरीत आया है कि इस्लामाबाद "अंतरिम अफ़फगान विदेश मंत्री के साथ-साथ संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस और चीन के विशेष दूतों की मेजबानी करने के लिए तैयार है, जिसका उद्देश्य राजनयिक प्रयासों के तहत जमीन तैयार करना है ताकि तालिबान सरकार को अंतरराष्ट्रीय समुदाय की मान्यता पर बातचीत को आगे बढ़या जा सके।”

संयोग से, अंतरिम अफ़गान विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी, एक उच्चस्तरीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व कर रहे हैं, उनके बुधवार को इस्लामाबाद पहुंचने की उम्मीद है, जो उनकी पाकिस्तान की पहली आधिकारिक यात्रा होगी।

इस्लामाबाद में इन सभी विशेष दूतों की बैठक तथाकथित "ट्रोइका प्लस" के प्रारूप के तहत  होगी – जिसमें रूस, अमेरिका, चीन और पाकिस्तान शामिल है। एक्सप्रेस ट्रिब्यून अखबार के अनुसार, मुत्ताकी भी "ट्रोइका प्लस" बैठक में शामिल होंगे, जो अगर सही है, तो यह अत्यधिक प्रतीकात्मक होगा। वास्तव में, तालिबान अधिकारियों को "ट्रोइका प्लस" द्वारा समायोजीय किया जा रहा है।

निश्चित रूप से, अमेरिका, अमेरिकी बैंकों में अफ़गानिस्तान के रुके धन को जोकि 9.5 अरब डॉलर है को जारी करने पर विचार कर रहा है। क्योंकि इस पर भारी अंतरराष्ट्रीय दबाव है, जैसा कि तथाकथित मास्को प्रारूप में क्षेत्रीय देशों ने हालिया बैठक में स्पष्ट किया था।

स्पष्ट रूप से, बाइडेन प्रशासन इस दृष्टिकोण के इर्द-गिर्द घूम रहा है कि यह क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा के हित में है कि तालिबान सरकार की अफ़गान स्थिति को स्थिर करने की क्षमता, विशेष रूप से सुरक्षा और आर्थिक क्षेत्र में जो भी संभव हो, उसे बढ़ाया जाए। 

निस्संदेह, बाइडेन प्रशासन सही दृष्टिकोण अपना रहा है, हालांकि यह अमेरिका में ध्रुवीकृत राजनीतिक राय या विचार के मामले में विवादास्पद होने जा रहा है। इसे सुनिश्चित करने और  इस पुनर्विचार करने में राष्ट्रपति बाइडेन की छाप है।

ऐसा प्रतीत होता है कि अमेरिकी सोच में आए बदलाव से बीजिंग को बड़ा आश्चर्य हुआ है। ग्लोबल टाइम्स में मंगलवार को छपी एक टिप्पणी स्पष्ट रूप से इस्लामाबाद में "ट्रोइका प्लस" की बैठक से अनजान थी या पैरों के नीचे की जमीन नाटकीय रूप से हिल रही थी।

ग्लोबल टाइम्स की रिपोर्ट में कहा गया है कि "मुत्ताकी की पाकिस्तान यात्रा पारस्परिक चिंता आपसी लेन-देन के व्यावहारिक मुद्दों पर चर्चा करने की संभावना है, जिसमें पाकिस्तानी सरकार और पाकिस्तानी तालिबान के बीच मध्यस्थ के रूप में अफ़गान तालिबान की भूमिका भी शामिल है।

“तालिबान सरकार और पाकिस्तान के बीच लगातार हालिया बातचीत के बावजूद, तालिबान सरकार को वैध मानने वाले किसी भी देश के मामले में तालिबान को अभी लंबा रास्ता तय करना है। तालिबान द्वारा महिलाओं के अधिकारों की सुरक्षा और समावेश सुनिश्चित करने के लिए आतंकवाद विरोधी प्रतिबद्धताओं के कार्यान्वयन के अलावा, आगे विशिष्ट मुद्दे भी हैं जैसे कि सीमाएँ और व्यापार मार्ग आदि जिन पर अभी चर्चा होनी है।”

दिलचस्प बात यह है कि रिपोर्ट ने अनुमान लगाया है कि "एक संभावना यह है कि चीन, रूस, पाकिस्तान और अन्य क्षेत्रीय देशों के मध्य पूर्व में संबंधित देशों के साथ बातचीत करने के बाद, वे सामूहिक रूप से या स्वतंत्र रूप से तालिबान शासन को मान्यता देंगे।"

इसके विपरीत, बाइडेन प्रशासन तालिबान और इस्लामाबाद से सीधे बात करता रहा है, लेकिन चर्चा को "जानने की जरूरत" के आधार को सख्ती से बनाए रखा गया है और इस चर्चा से बीजिंग को बाहर कर दिया है। किसी भी तरह से आप देखें, बीजिंग जुझारू शत्रुतापूर्ण मोड पर रहा है और वाशिंगटन के साथ सहयोग करने से इनकार कर रहा है। काबुल में किंगमेकर के रूप में इसकी बढ़ती मुखरता को एक झटका लगा है क्योंकि वाशिंगटन चुपचाप आगे बढ़ रहा है। महान खेल अब गियर बदल रहा है।

वास्तव में, उपरोक्त घटनाक्रम क्षेत्रीय गठबंधन को पूरी तरह से बदल दे रहा हैं। शुरुआत के लिए ही सही, लेकिन तालिबान सरकार को मान्यता देने के लिए विचाराधीन "रोडमैप" के संबंध में पाकिस्तान आगे की अवधि में वाशिंगटन के सबसे महत्वपूर्ण भागीदार के रूप में वापस आ गया है। अफ़गानिस्तान में एक प्रभावी भविष्य की अमेरिकी भूमिका को पाकिस्तान के सहयोग की जरूरत होगी।

स्पष्ट रूप से, बाइडेन प्रशासन पाकिस्तानी तर्क से प्रभावित हुआ है कि तालिबान सरकार के साथ उलझने से खतरे में है और 1990 के दशक में पैदा हुए अराजक स्थितियों की पुनरावृत्ति हो सकती है जो अतिरिक्त रूप से जटिल हो सकती है क्योंकि आईएसआईएस अभी भी अपनी ताकत जुटा रहा है।

समान रूप से, अमेरिका ब्रिटिश आकलन को भी साझा कर रहा है कि तालिबान के भीतर प्रगतिशील तत्वों का समर्थन किया जाना चाहिए। मंगलवार को यूके के हाउस ऑफ कॉमन्स डिफेंस कमेटी को सबूत देते हुए चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल सर निक कार्टर ने कहा,

“तालिबान 2.0 अलग है। तालिबान 2.0 में बहुत सारे लोग हैं जो अधिक आधुनिक तरीके से शासन करना चाहते हैं, लेकिन वे आपस में बंटे हुए हैं, जैसा कि अक्सर राजनीतिक संस्थाएं होती हैं ये भी कुछ वैसी ही हैं।

"अगर कम दमनकारी तत्व अधिक नियंत्रण हासिल कर लेते हैं ... तो मुझे लगता है कि ऐसा  मानने का कोई कारण नहीं है कि अगले पांच वर्षों में अफ़गानिस्तान एक ऐसे देश में नहीं बदल सकता है जैसा कि वह अन्यथा हो सकता था। 

दिलचस्प बात यह है कि जनरल कार्टर, जिनकी अफ़गान मुद्दों में व्यावहारिक भूमिका रही है, विजेताओं और हारने वालों के बारे में तर्क को खारिज कर रहे थे। जैसा कि उन्होंने कहा: "मुझे लगता है कि यह कहना जल्दबाजी होगी कि हार हो गई है। यहां जीत को परिणामों में मापने की जरूरत है, न कि किसी महान सैन्य फालतू के खेल से इसे मापने की जरूरत है।”

अमेरिका और ब्रिटेन ज्यादातर एक साथ चलते हैं, खासकर जब अफ़गानिस्तान की बात आती है। ग्लासगो में जलवायु शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए बाइडेन पिछले सप्ताहांत ही यूके गए थे।

इसका पूरा श्रेय अंततः बाइडेन को जाता है जिन्होने यथार्थवाद की भावना को यहां प्रदर्शित किया है जो कि बीते हुए दिनों को छोडते हुए जितना जल्दी हो सके अमेरिकी राष्ट्रीय हितों के मामले में एक नया पृष्ठ खोलन चाहते हैं। 

एम.के. भद्रकुमार एक पूर्व राजनयिक हैं। वे उज्बेकिस्तान और तुर्की में भारत के राजदूत रहे हैं। व्यक्त विचार व्यक्तिगत हैं।

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें।

US Recognition of Taliban Govt Will be Game Changer

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