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अमेरिका-रूस संबंधों में क्या वास्तव में गरमाहट आई है?

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में गत शुक्रवार को सीमा-पार तुर्की से सीरिया के लिए सहायता-विस्तार प्रस्ताव की सर्वसम्मत स्वीकृति को एक महत्त्वपूर्ण अवसर माना जाना चाहिए। 
अमेरिका-रूस संबंधों में क्या वास्तव में गरमाहट आई है?

अमेरिका-रूस के बीच ठंडे पड़े संबंधों में एक “गरमाहट” आती मालूम होती है। पिछले शुक्रवार को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सीमा पार तुर्की से सीरिया में सहयोग-सहायता के विस्तार के सर्वसम्मत प्रस्ताव को एक महत्त्वपूर्ण अवसर के रूप में देखा जाना चाहिए। 

यह अमेरिका और रूस के बीच आखिरी क्षण की बातचीत से हुए समझौते से संभव हुआ है। संयुक्त राष्ट्र संघ में रूस के राजदूत वसीली नेबेंजिया ने सुरक्षा परिषद में मतदान के बाद संवाददाताओं से कहा, “हम उम्मीद करते हैं कि यह जिनेवा में पुतिन और बाइडेन के बीच हुए विचार-विमर्श की लाइन पर एक महत्त्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकता है। यह दिखाता है कि जब भी आवश्यकता पड़ेगी और जब हमारी इच्छा होगी तो हम एक-दूसरे को सहयोग कर सकते हैं।” 

अमेरिकी राजदूत थॉमस-ग्रीनफील्ड ने संवाददाताओं से कहा “यह दिखाता है कि हम रूसियों के साथ मिलकर काम कर सकते हैं, अगरचे हम उनके साथ साझा मकसदों के लिए कूटनीतिक सूझबूझ से काम करें। मैं साझा हित के मुद्दों पर रूसियों के साथ काम करने के अन्य अवसरों की तलाश करने के लिए उत्सुक हूं।" 

इसके पहले, आयरलैंड एवं नार्वे द्वारा तैयार किए गए प्रस्ताव के प्रारूप पर विचार के लिए हफ्तों चली बातचीत में रूस को शामिल नहीं किया गया था, लेकिन विस्मय का वसंत बृहस्पतिवार को ही आया। जिसके पश्चात, शुक्रवार की सुबह थॉमस-ग्रीनफील्ड और नेबेंजिया के बीच बातचीत हुई और आश्चर्यजनक रूप से सुरक्षा परिषद में सीमा पार सहायता अभियान के जनादेश का विस्तार करने के एक समझौता प्रस्ताव को सर्वसम्मति से स्वीकार कर लिया गया।

स्पष्ट है कि मास्को ने अपने राजदूत नेबेंजिया को अपना रास्ता बदलने के लिए निर्देशित कर दिया था। यद्यपि, अभी-अभी 30 जून को रूसी विदेश मंत्री सेर्गेई लावरोव अपनी बात पर अड़े हुए थे। तुर्की विदेश मंत्री मेव्लुट कैवुसोग्लू के साथ एंटाल्या में बातचीत के बाद लावरोव ने सीरिया पर प्रतिबंध लगाने के लिए दरअसल अमेरिका पर एक तरह से यह कहते हुए हमला ही बोल दिया था कि अमेरिका की कोशिश यूफ्रेटस के पूरब में अलगाववादी प्रवृत्तियों को बढ़ावा देने का प्रयास है। 

इसके आठ दिन बाद, हालांकि, इस रुख में एक बदलाव आया। वास्तव में, आठ जुलाई को रूस, तुर्की एवं ईरान के विशेष राजदूत कज़ाकिस्तान के नुर-सुल्तान में सीरिया पर तथाकथित अस्ताना प्रक्रिया के दायरे में मिले और मरणासन्न सीरिया के संयुक्त राष्ट्र की निगरानी में पुनर्जीवन के लिए प्रयास करने पर बातचीत की। 

सीरिया के लिए रूस के राष्ट्रपति के विशेष राजदूत एलेक्ज़ेंडर लावेरेंटिएव ने जिन्होंने अस्ताना की त्रिपक्षीय वार्ता में भी भाग लिया था, बाद में तास (TASS) को बताया कि मास्को एवं वाशिंगटन सीरिया से अमेरिकी फौज की वापसी पर बातचीत कर रहे हैं और यह “वापसी किसी भी समय हो सकती है”। 

महत्त्वपूर्ण है कि लावरोव के एंटाल्या के दौरे और आठ दिन बाद नुर-सुल्तान में अस्ताना-त्रयी की बैठक के बीच, उन्हें जलवायु पर अमेरिका के राष्ट्रपति के विशेष प्रतिनिधि जॉन केरी का फोन आया। तास ने दो जुलाई को खबर दी कि “केरी की मास्को आने की योजना है”। खबर में मास्को के एक सूत्र को उद्धृत करते हुए कहा गया था कि “केरी का दौरा होने वाला है। जलवायु मसला बातचीत के एजेंडे में है। इस पर उनके साथ बैठक का कार्यक्रम बनाया जा रहा है।”  

दरअसल, आठ जुलाई तक, अमेरिका का विदेश मंत्रालय पहले ही घोषणा कर चुका था कि केरी “रूसी सरकार के अधिकारियों से वैश्विक जलवायु आकांक्षा पूरी करने की बाबत संसाधनों के विस्तार पर बातचीत” करने के लिए 12 से 15 जुलाई के अपने पांच दिन के दौरे पर मास्को जा रहे हैं।

केरी 12 जुलाई को मास्को पहुंचे, जहां लावरोव के साथ उनकी पहली बैठक हुई। इसके पहले, लावरोव ने केरी का गर्मजोशी के साथ स्वागत करते हुए कहा: “आपका दौरा द्वपक्षीय संबंधों को बढ़ावा देने, तनावों को दूर करने तथा उन क्षेत्रों में पेशेवराना वास्तविक गतिविधियों की स्थापना के लिहाज से महत्त्वपूर्ण है और एक सकारात्मक संकेत है, जहां हम एक साझा धरातल पा सकते हैं। यह दृष्टिकोण हमारे राष्ट्रपतियों के बीच जिनेवा शिखर वार्ता की भावना के एकदम अनुरूप है। हम हितों में संतुलन साधने के लक्ष्य से समान एवं परस्पर लाभों पर आधारित संवाद को हर संभव तरीके से बढ़ावा देने के लिए तैयार हैं।” 

रूसी राष्ट्रपति व्लादीमिर पुतिन से भी केरी की मुलाकात संभव है क्योंकि लावरोव ने उनके दौरे के महत्व को इस स्तर पर बढ़ा दिया है कि अब वह केवल जलवायु मसले पर बातचीत तक ही सीमित नहीं रह गया है। सच में, रूसी पक्ष का रोमांच शब्दों में समा नहीं रहा है। उसका अमेरिका-विरोधी सुर सहसा ही मुलायम हो गया है। 

दरअसल, हवाना में मास्को के राजदूत का आकलन है कि क्यूबा में ताजा विरोध की वजह घरेलू परिस्थितियां हैं, जो महामारी के कारण लोगों की जीवन दशा में आई गिरावट पर आक्रोश की अभिव्यक्ति है। इसलिए मास्को क्यूबा के राष्ट्रपति मिगुएल डियाज़-कैनेलु के इस आरोप से इत्तेफाक नहीं रखता कि वाशिंगटन ही इन विरोध-प्रदर्शनों को शह दे रहा है। 

दिलचस्प है कि, पुतिन ने सप्ताहांत में एक लेख लिखा था, जिसका मिजाज यूक्रेन के राष्ट्रपति के नेतृत्व के लिए एक मसौदा है। उन्होंने अपने लेख पर खुद ही कैफियत दी है और बाद में यह कसम भी खाई है कि रूस यूक्रेन के माध्यम से गैस पारगमन-संबंधित अपनी सभी देनदारियों को लागू करेगा। इससे पहले के उलट अमेरिका-रूस जो यूक्रेन को लेकर परस्पर तने हुए हैंं, उनके बीच जमी बर्फ थोड़ी तो पिघली है। संभवत: यह बाइडेन प्रशासन को नोर्ड स्ट्रीम-2 प्राकृतिक गैस पाइपलाइन पर और प्रतिबंध लगाने से रोकेगा। 

सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह कि, अमेरिकी विशेषज्ञों ने यह गौर किया है कि रेविल (REvil) के नाम से जाना जाने वाला कुख्यात साइबर अपराधी समूह, जिसके बारे में अमेरिकी खुफिया एजेंसियों का मानना है कि वह रूस से अपना नेटवर्क चलाता है, वह अपनी ऑनलाइन साइट से सहसा गायब हो गया है। REvil को एक विशाल हैकर्स समूह के रूप में माना जाता है, जिसने अमेरिका की साइबर सर्विस प्रदाता केसेया पर चार जुलाई के सप्ताहांत शुरू होने के कुछ ही घंटे पहले हिट किया था। 

इस घटना पर भड़के बाइडेन ने गत शुक्रवार को पुतिन से फोन पर तल्खी से बातचीत की। उन्होंने पुतिन को चेतावनी दी कि अगर उन्होंने इस पर कार्रवाई नहीं की तो अमेरिका भी रूस पर चोट करेगा। आश्चर्यजनक रूप से, REvil की साइटें मंगलवार की सुबह से बंद हो गईं। 

वाशिंगटन पोस्ट ने बुधवार को इस संभावना को रेखांकित किया कि “अमेरिका के दबाव में क्रेमलिन झुक गया है और उसने REvil से अपनी दुकान बंद करने के लिए कह दिया है...हो सकता है कि पुतिन ने तय किया हो कि इस लड़ाई में फंसने से उन्हें कोई फायदा नहीं है।” 

बेशक, पुतिन और बाइडेन जिनेवा शिखर वार्ता में फिरौती वाले सॉफ्टवेयर पर उच्चस्तरीय वार्ता करने पर रजामंद हुए थे। इस समूह की कल बैठक हुई। रूस इसमें देरी की शिकायत करता रहा है। निश्चित ही, एक मंजे हुए राजनीतिक बाइडेन जानते हैं कि रूस के दंभ को बहलाना कितना आसान है। 

यह नाटकीय नृत्य तभी समझ में आएगा जब लावरोव द्वारा विदेश मंत्रालय की वेबसाइट के लिए 28 जून को लिखे गए असाधारण आलेख को एक बेंचमार्क माना जाएगा। “कानून, अधिकारों एवं कायदे” शीर्षक से लिखा गया आलेख काफी लंबा था और उसमें रूस के प्रति “अवमाननापूर्ण व्यवहार” के लिए अमेरिका की कटु आलोचना की गई थी। अब यह सब प्राचीन इतिहास मालूम होता है।

(भद्रकुमार पूर्व राजनयिक हैं। वह उज्बेकिस्तान एवं तुर्की में भारत के राजदूत रह चुके हैं। आलेख में व्यक्त विचार उनके निजी हैं।) 

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें।

US-Russia Ties Warming up -- Is it for Real?

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