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यूक्रेन-रूस युद्ध और नाभिकीय बिजली घर पर ख़तरे का खेल

माना जाता है कि आइएईए की प्राथमिकता परमाणु सुरक्षा है लेकिन यूक्रेन में इसकी प्राथमिकता यूक्रेन और उसके नाटो सहयोगियों की राजनीतिक मांगों को पूरा करने जैसा लगता है।
nuclear Plant
Image courtesy : Nature

जपोरोझिये (जिसे जपोरिझिया भी लिखा जाता है) नाभिकीय बिजली घर अब यूक्रेन युद्घ का केंद्र बिंदु ही बन गया है। अगर यहां कोई बड़ी दुर्घटना हो जाती है, तो इससे बहुत बड़े क्षेत्र में रेडियोधर्मी विकिरण फैल सकता है। ऐसी कोई दुर्घटना होने की सूरत में यूक्रेन ही नहीं बल्कि यूरोप का ही विशाल हिस्सा रेडियोधर्मी किरण से प्रभावित हो सकता है और बड़ी संख्या में कैंसर तथा अन्य रोगों की चपेट में आ सकता है। रूस ने दावा किया है कि यूक्रेनी की ओर से खुद ही जुलाई तथा अगस्त महीने में, जपोरोझिये नाभिकीय बिजली घर पर गोलेे बरसाए थे। उसने 23 अगस्त को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के सामने इसके फोटोग्राफिक तथा दस्तावेज़ी साक्ष्य भी पेश किए हैं। उधर यूक्रेन का दावा है कि रूस ही इस नाभिकीय बिजली घर पर गोले बरसाता रहा है, हालांकि इस पर पहले ही रूस का क़ब्ज़ा हो चुका था। बहरहाल यह लेख लिखते समय ख़बर आ रही है कि आइएईए के नेतृत्व में एक टीम भेजी जा रही है जो इस सप्ताह के अंत तक संयंत्र पहुंच जाएगी।

किएव सरकार के बेतुके दावे और पश्चिमी मीडिया

एनरहोडर शहर में स्थित जपोरोझिये नाभिकीय बिजली घर यूरोप का सबसे बड़ा नाभिकीय बिजली घर है। इसमें 1,000 मेगावाट क्षमता की छ: नाभिकीय बिजली इकाइयां हैं। ये सभी इकाइयां प्रैशराइज्ड वाटर रिएक्टर (पीडब्ल्यूआर) पर आधारित हैं और सोवियत काल की हैं। इनमें सबसे पुरानी नाभिकीय विद्युत इकाई 37 साल पहले चालू हुई थी और सबसे नयी इकाई 26 साल पहले चालू हुई थी। युद्घ से पहले इन नाभिकीय विद्युत इकाइयों से ही यूक्रेन को अपनी 20 फ़ीसद बिजली मिलती थी। इतना ही नहीं, इसी साल मार्च में जपोरोझिये पर रूस का क़ब्ज़ा होने के बाद भी, इससे यूक्रेन के बिजली ग्रिड के लिए बिजली की आपूर्ति पहले की तरह जारी रही थी।

चेर्नोबिल या फुकुशीमा के पैमाने की किसी बड़ी नाभिकीय दुर्घटना के ख़तरों तथा संभावनाओं पर आने से पहले, एक सतही नज़र यूक्रेन के इसके दावों पर भी डाल लेना ज़रूरी है कि रूस खुद इस नाभिकीय संयंत्र पर गोलाबारी करता रहा है और उसने इस संयंत्र के अंदर भारी संख्या में तोप तथा अन्य सैन्य साज-सामान लगा दिए हैं। अब इसकी तो कोई तुक ही नहीं बनती है कि रूस खुद एक ऐसे संयंत्र पर गोलाबारी करेगा जो हर लिहाज से पहले से ही उनके नियंत्रण में है। अब तक सामने आए सारे साक्ष्य रूसी दावों की ही पुष्टि करते हैं कि यूक्रेन ने ही इस संयंत्र पर गोले बरसाए हैं। रही बात रूस के इस संयंत्र में भारी हथियार व सैन्य उपकरण तैनात करने की, जिसका दावा यूक्रेन कर रहा है, तो सैटेलाइटों से ली जाने वाली तस्वीर के इस ज़माने में, यक्रेन या उसके नाटो के सहयोगियों के लिए इसके साक्ष्य पेश करना तो बाएं हाथ का खेल होना चाहिए था। उनका इस संबंध में कोई साक्ष्य पेश नहीं करना, अपने आप में इसका बड़ा साक्ष्य है कि यूक्रेन के इन दावों में दम नहीं है।

बहरहाल, यह बात तो फिर भी समझ में आती है कि यूक्रेन, जो युद्घ में फंसा हुआ है, प्रचार के इस तरह के झूठे दावों का सहारा ले। दिलचस्प बात यह है कि रायटर्स, एपी, न्यूयार्क टाइम्स, वाशिंगटन पोस्ट तथा अन्य बड़े समाचार संस्थानों ने भी किएव में बैठी सरकार के दावों को ज्यों का त्यों दोहरा दिया है और तथ्यों या संभाव्यता की जरा सी पड़ताल तक करने का कष्ट नहीं किया है। इस तरह की सारी की सारी रिपोर्टों में, किएव से जारी इस प्रकार के बयानों को दैवीय सत्य की तरह पेश कर दिया गया है कि जपोरोझिये संयंत्र पर क़ाबिज़ रूसी खुद ही इस संयंत्र पर गोले बरसाते रहे हैं। ऐसा लगता है कि पश्चिम का बड़ा मीडिया, कम से कम यूक्रेन युद्घ के मामले में, जॉर्ज ऑरवेल की कल्पना के ‘ट्रुथ एंड इन्फोर्मेशन वॉर’ मंत्रालय का बाकायदा हिस्सा बना हुआ है।

नाभिकीय दुर्घटना : बचाव और वास्तविक जोखिम

और जपोरोझिये नाभिकीय बिजलीघर के किसी बड़ी नाभिकीय दुर्घटना का शिकार हो जाने का ख़तरा कितना ज़्यादा है? इस संयंत्र के सभी छ: रिएक्टरों की इमारतों में तगड़े कंटेनमेंट गुंबद हैं और तोप के गोलों और यहां तक रॉकेट के हमले तक से नुकसान नहीं पहुंचाया जा सकता है। रिएक्टरों के इस कवच को भेदने के लिए बंकर भेदी बमों या उतने ही प्रबल विस्फोटकों की ज़रूरत होगी। कोई भी दुर्घटना होने की सूरत में रिएक्टर बंद हो जाएंगे। किसी चालू नाभिकीय संयंत्र के मामले में दिक्कत यह होती है कि इस संयंत्र को अगर बंद भी कर दिया गया हो तब भी इसे लगातार ठंडा करते रहने की ज़रूरत होती है। रिएक्टरों को ठंडा रखने वाले पंपों के लिए भी बिजली की ज़रूरत होती है और यह बिजली संबंधित ग्रिड से ही आती है। आपात स्थितियों में इस काम के लिए बिजली, डीजल से चलने वाले जनरेटरों से ही हासिल की जा सकती है। लेकिन, डीजल से चलने वाले जनरेटरों से मिलने वाली बिजली सिर्फ़ अस्थायी, कामचलाऊ व्यवस्था का ही हिस्सा हो सकती है।

अगर कूलिंग पंप काम नहीं कर रहे होंगे, तो संयंत्र के बंद होने के बावजूद, संयंत्र के नाभिकीय कोर में जो बची-खुची नाभिकीय गतिविधि बची रह जाएगी, वह लगातार गर्मी पैदा करने और ताप बढ़ाने का काम करेगी। अगर कूलिंग को बहाल ही नहीं किया जा सकेगा, तो संयंत्र का ताप बढ़ते-बढ़ते उस स्तर पर पहुंच जाएगा कि, संयंत्र का नाभिकीय कोर ही पिघल जाएगा और रेडियोधर्मी संक्रमण बड़े पैमाने पर तथा दूर-दूर तक फैल जाएगा। नाभिकीय कोर के इस प्रकार पिघलने को, दर्जा-7 की दुर्घटना के रूप में वर्गीकृत किया जाता है। नाभिकीय तथा रेडियोधर्मी दुर्घटनाओं के अंतर्राष्ट्रीय पैमाने के हिसाब से यह दुर्घटना का सबसे गंभीर स्तर है। अब तक सिर्फ़ चेर्नोबिल तथा फुकुशिमा दुर्घटनाओं को ही दर्जा-7 की दुर्घटनाओं के रूप में वर्गीकृत किया गया है। थ्री माइल आइलेंड नाभिकीय दुर्घटना में नाभिकीय रिएक्टर, कोर के पूरी तरह से पिघलने और दुर्घटना के दर्जा-7 का वर्गीकरण हासिल करने से, आधा घंटे पीछे रह गया था।

ऑक्जिलरी प्रणालियों के लिए ख़तरे

किसी नाभिकीय संयंंत्र में कोर का ठंडा बनाए रखा जाना इतना महत्वपूर्ण क्यों है? रिएक्टर का कोर ही होता है, जहां नियंत्रित स्थितियों में नाभिकीय विखंडन घटित होता है और इस प्रक्रिया में ऊष्मा उत्सर्जित होती है। इस ऊष्मा को वाष्प की ऊर्जा में तब्दील कर लिया जाता है और इस भाप से बिजली जनरेटरों को चलाया जाता है और बिजली बनायी जाती है। विखंडन के जरिए यूरेनियम का अन्य बहुत ही रेडियोधर्मी सामग्री में तब्दील होना, किसी रिएक्टर के बंद कर दिए जाने के बाद भी, उसमें गर्मी पैदा होने की प्रक्रिया को जारी रखता है। इसमें से कुछ सामग्री की रेडियोधर्मी सक्रियता का जीवन थोड़ा ही होता है और इसलिए, रिएक्टर के बंद किए जाने के बाद, वह धीरे-धीरे ठंडा भी हो ही जाता है। लेकिन, इसमें समय लगता है और इस अर्से में बंद संयंत्र में भी कूलिंग व्यवस्थाओं को सक्रिय बनाए रखना ज़रूरी होता है। इसलिए, इन संयंत्रों के कूलिंग पंपों के लिए, ऑक्जिलरी बिजली व्यवस्था बहुत ही महत्वपूर्ण होती है।

फुुकुशीमा के दायची नाभिकीय विद्युत संयंत्र में, जापान पर पड़ी भूकंप-सुनामी की मार से ग्रिड फेल होने के चलते, ऑक्जिलरी बिजली पूरी तरह से कट गयी। तीन रिएक्टर, अपनी ताप वहन क्षमता से बहुत ज़्यादा गरम हो गए और इसका नतीजा इनके कोर के पिघलने के रूप में सामने आया। इसका कुल मिलाकर यह नतीजा निकला कि न सिर्फ़ रेडियोधर्मी प्रभाव वातावरण में फैल गया बल्कि बहुत बड़ी मात्रा में रेडियोधर्मिता प्रभावित पानी इस संयंत्र से निकलकर प्रशांत सागर में जा मिला, जिसके मछलियों व अन्य समुद्री जीवों के लिए हुए दुष्प्रभावों का अभी पता नहीं लग सका है। चूंकि ये समुद्री उत्पाद हमारी भोजन शृंखला तक पहुंचते हैं, इसलिए फुकुशीमा को दुष्परिणाम अभी लंबे अर्से तक सामने आते ही रहेंगे।

चेर्नोबिल, फुकुशिमा और थ्री माइल आइलेंड दुर्घटनाएं

दूसरी ओर, हालांकि चेर्नोबिल दुर्घटना के तात्कालिक दुष्प्रभाव कहीं ज़्यादा देखने को मिले, यह दुर्घटना इंसानी भूल का नतीजा थी। सारी सावधानियों को ताक पर रखकर, इस रिएक्टर को बहुत ही कम बिजली के सहारे चला कर देखा जा रहा था। यह दुर्घटना, इस संयंत्र को चलाने वाले इंजीनियरों के झूठे अहंकार का नतीजा थी और इसके दोहराए जाने की शायद ही कोई संभावना होगी। इससे भिन्न, थ्री माइल आइलेंड दुर्घटना में, ऑक्जिलरी बिजली से चलने वाले कूलिंग पंपों को, संयंत्र चलाने वाले कर्मचारियों ने ही हाथ से बंद कर दिया था क्योंकि रिएक्टर के कोर के भीतर की स्थिति को वे पूरी तरह से ग़लत ही समझ बैठे थे। अगली शिफ्ट के संचालक आए और उन्होंने सही तरीक़े से समझ लिया कि कोर में क्या हो रहा था और इस तरह ऐन आख़िरी वक़्त पर भयंकर दुर्घटना को बचा लिया गया, वर्ना यह भी दर्जा-7 की श्रेणी की बड़ी नाभिकीय दुर्घटना का मामला हो जाता।

ऑक्जिलरी उपकरण चूंकि रिएक्टर के सुरक्षित ढांचे के अंदर नहीं होते हैं, उन्हें ज़रूर ऐसे किसी भी संयंत्र पर गोलाबारी आदि से नुक़सान पहुंच सकता है। जपोरोझिये संयंत्र पर गोलाबारी के एक प्रकरण में ज़रूर ऑक्जिलरी उपकरणों को नुक़सान पहुंचा था, लेकिन ये उपकरण भी रिएक्टर की कूलिंग व्यवस्थाओं से जुड़े हुए नहीं थे। जैसाकि हमने पहले कहा है कि, ऑक्जिलरी बिजली व्यवस्था के फेल होने से ज़रूर रिएक्टर की कूलिंग व्यवस्था ठप्प हो सकती है और इससे रिएक्टर के कोर के ही पिघलने की भी नौबत आ सकती है। बेशक, डीजल से चलने वाले जनरेटरों से भी कुछ समय के लिए तो बिजली हासिल की जा सकती है, लेकिन उसके सहारे कोई हमेशा के लिए कूलिंग प्रणालियों को नहीं चलाया जा सकता है।

नाभिकीय बिजली घरों के मामले में ख़तरे का दूसरा रास्ता, उनके ठंडा करने वाले पानी के ताल होते हैं। इन तालों में, इस्तेमाल हो चुके नाभिकीय ईंधन की छड़ों को पानी में डुबोकर रखा जाता है। इस्तेमालशुदा ईंधन की छड़ों में बची-खुची रेडियोधर्मिता होती है और इसलिए इन्हें लंबे अर्से तक ठंडे किए जाते पानी में डुबोकर रखा जाता है, ताकि धीरे-धीरे इनकी रेडियोधर्मिता खत्म हो जाए और तब तक इनका ठंडा बना रहना सुनिश्चित हो। ऐसे में अगर किसी तरह की गोलाबारी की चपेट में ये पानी के ठंडा रखने के ताल आ जाते हैं, तो इससे होने वाली दुर्घटना में काफ़ी रेडियोधर्मिता फैल सकती है।

यूक्रेन और नाभिकीय ख़तरे का खेल

तब सवाल यह उठता है कि यूक्रेन भी ऐसा कुछ भी क्यों करेगा? इससे तो वह भी फुकुशीमा या चेर्नोबिल के दर्जे की भयावह नाभिकीय दुर्घटना के शिकार देशों की सूची में आ सकता है? ऐसा लगता है कि इस पूरे घटनाक्रम को रूस के इस वक्तव्य ने भडक़ाया था कि वह जपोरोझिये नाभिकीय बिजली संयंत्र को यूक्रेनी बिजली ग्रिड से काटकर, रूसी बिजली ग्रिड से जोड़ देगा। जपोरोझिय़े पर गोलाबारी क़रीब-क़रीब उक्त बयान के आने के बाद ही शुरू हो गयी। इसके जरिए नाभिकीय संयंत्र के लिए ख़तरा बढ़ गया, जिससे विश्व स्तर पर शोर मच गया और अब अंतर्राष्ट्रीय एटमी ऊर्जा अथॉरिटी (आइएईए) द्वारा हालात का जायज़ा लिया जा रहा है। इस नाभिकीय बिजली घर के मामले में यथास्थिति बनाए रखने और इस तरह इस संयंत्र से यूक्रेन के लिए बिजली की आपूर्ति बनाए रखने का एक तरीक़ा यह भी है।

यूक्रेन युद्घ की यही तो विडंबना है। जहां यूक्रेन तथा नाटो के उसके सहयोगियों ने रूस के ख़िलाफ़ तरह-तरह की पाबंदियां लगा दी हैं, यूक्रेन को रूस से प्राकृतिक गैस मिलती रही है और जपोरोझिये संयंत्र से बिजली मिलती रही है। दूसरी ओर, चूंकि यूक्रेन का औद्योगिक बिजली उपभोग घट रहा है और उसका 20 फ़ीसद भूभाग भी उसके नियंत्रण से बाहर जा चुका है, उसका अपना कुल बिजली उपभोग घट गया है। इसके चलते वह इसी दौरान, क़रीब 100 मेगावाट बिजली यूरोपियन यूनियन को भी बेचता रहा है, जबकि इसी युद्घ के चलते यूरोप में बिजली के दाम छ: से आठ गुना तक बढ़ गए हैं। ऐसे में अगर रूस, जपोरोझिये नाभिकीय बिजली संयंत्र को यूक्रेनियाई ग्रिड से काट देता है, तो यूक्रेन के हाथ से बिजली तो जाएगी ही, यह अतिरिक्त पैसा भी जाएगा। इसीलिए, जेलेंस्की निजाम जपोरोझिये नाभिकीय संयंत्र को लेकर नाभिकीय ख़तरे का खेल खेल रहा है। यह देखना होगा कि इस संभावित आपदा से पहले कौन पीछे हटता है।

मानवता के सच्चे हित की आवाज़ की ज़रूरत

रूस की मुश्किल यह है कि जपोरोझिये संयंत्र पर गोलाबारी से इस मुद्दे के अंतर्राष्ट्रीय मुद्दा बन जाने में इसका ख़तरा छिपा है कि अंतर्राष्ट्रीय एटमी ऊर्जा प्राधिकार और संयुक्त राष्ट्र संघ, इस संयंत्र के मामले में हस्तक्षेप कर सकते हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव, एंटोनियो गुटारेज वैसे भी संयुक्त राष्ट्र के मुखिया कम और पश्चिम के भोंपू ही ज़्यादा लगते हैं। इसी प्रकार, अंतर्राष्ट्रीय एटमी ऊर्जा प्राधिकार भी, जैसाकि हम इससे पहले इराक़ युद्घ के मामले में और ईरान के मामले में उसकी भूमिका के संदर्भ में देख चुके हैं, पश्चिम के इशारे पर ही चलता है। रूस तो काफ़ी समय से इसकी मांग करता आ रहा था कि आइएईए द्वारा जपोरोझिये संयंत्र का इंस्पेक्शन किया जाए। लेकिन, आइएईए ही इस दलील पर अड़ा रहा है कि सिर्फ़ किएव द्वारा नियंत्रित क्षेत्र से होकर ही इंस्पेक्शन किया जाएगा और इससे पहले इस संयंत्र को तथा इसके ईर्द गिर्द के पूरे इलाक़े को असैन्यीकृत किया जाना चाहिए। अगर आइएईए को वाकई नाभिकीय सुरक्षा की चिंता है, तो क्या उसे किएव तथा उसके नाटो के सहयोगियों द्वारा पेश की गयी उक्त राजनीतिक मांगों पर अटकने के बजाए, क्या संयंत्र की सुरक्षा सुनिश्चित करने को ही प्राथमिकता नहीं देनी चाहिए।

बहरहाल, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद और आइएईए में चल रहे राजनीतिक खेलों को तो फिर भी, इन मंचों पर निर्णयकारी भूमिका अदा करने वाले खिलाडिय़ों के खुद की हितों से जोडक़र समझा जा सकता है। लेकिन, क्या नाभिकीय संयंत्र की सुरक्षा के मुद्दे को, ऐसे सभी स्वार्थों से ऊपर नहीं रखा जाना चाहिए? और क्या यूरोपीयन यूनियन के देशों को, जो इस खेल में खुद भी चेर्नोबिल या फुकुशीमा के स्तर की विनाशलीला की चपेट में आ सकते हैं, क्या अपनी-अपनी जनता के हितों की भी चिंता नहीं करनी चाहिए? या उनके लिए, रूस को कमज़ोर करना, उनकी अपनी ही जनता की सुरक्षा से भी ज़्यादा महत्वपूर्ण हो चुका है?

आज की दुनिया की समस्या यह है कि हर एक देश, विदेश नीति को अपने तनिक स्वार्थों की नज़र से ही देखता नज़र आता है। अब दुनिया ने उस तरह का नैतिक सीमा ही खो दिया है, जो किसी ज़माने में गुटनिरपेक्ष आंदोलन के नेहरू, नासिर, न्कू्रमाह तथा सुकर्ण जैसे नेताओं ने दुनिया के सामने रखा था। आज सबसे ज़्यादा मानवता के हितों को स्वर देने वाली विवेक की आवाज़ की कमी अखरती है!

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करेंः

Game of Nuclear Chicken in Zaporozhye

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