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हिट-एंड-रन क़ानून रद्द करने को लेकर यूनियन राजनीतिक दलों को देंगे ज्ञापन 

भारतीय न्याय संहिता में कड़ी सजा व जुर्माने से नाराज ड्राइवर्स व वाहन चालकों ने लोकसभा चुनावों में भाजपा का विरोध करने का ऐलान कर दिया है। 
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केंद्र सरकार द्वारा बनाई भारतीय न्याय संहिता में कड़ी सजा व जुर्माने से नाराज ड्राइवर्स व वाहन चालकों ने लोकसभा चुनावों में भाजपा का विरोध करने का ऐलान कर दिया है। इसके साथ ही कानून में बदलाव व सामाजिक सुरक्षा की मांग को लेकर विपक्ष के गठबंधन "इंडिया" में शामिल सभी राजनीतिक दलों को ज्ञापन देने का फैसला लिया है। हिट एंड रन कानून रद्द करने के बारे सभी राजनीतिक दलों से अपने घोषणा पत्र में शामिल करने की मांग की जाएगी। इस कड़ी में 9 मार्च को वाम दलों के राष्ट्रीय नेताओं को जींद में मांग पत्र दिया जाएगा।  

सीआईटीयू से सम्बद्ध दी ट्रांसपोर्ट वर्कर्स यूनियन हरियाणा (1853) के राज्य प्रधान सरबत सिंह पूनिया व महासचिव सतीश सेठी ने प्रेस विज्ञप्ति जारी कर कहा कि "संसद में भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की जगह बनाई गई भारतीय न्याय संहिताओ (बीएनएस) को गृह मंत्रालय ने एक जुलाई 2024 से लागू कर दिया है। इसकी धारा 106 (1) में ड्राइवर व वाहन चालकों को दुर्घटना होने पर पांच साल की सजा का प्रावधान कर दिया है। जबकि पहले वाले कानून में यह सजा दो साल या जुर्माने की थी। इसके साथ ही न्याय संहिता की धारा 106 (2) में 10 साल की सजा व जुर्माने का कड़ा प्रावधान कर दिया है। इन दोनों धाराओं में बढ़ाई गई सजाओं व जुर्मानों के विरोध में नव वर्ष पर ड्राइवर्स के आंदोलन के दवाब में सरकार ने सभी पक्षों से बात कर कानून में संशोधन करने का वायदा किया था।"

विज्ञप्ति में कहा गया कि, "सरकार ने जंहा ट्रांसपोर्ट वर्कर्स की फेडरेशनों से कोई बात करनी उचित नहीं समझी वहीं बजट सत्र में भी ड्राइवर विरोधी कानून में बदलाव का कोई संशोधन या रद्द करने का प्रस्ताव लेकर नहीं आई। इससे सरकार की मंशा का साफ पता चलता है। नोटिफिकेशन में 106(2) पर फिलहाल लगाई गई रोक ड्राइवर्स को गुमराह करने की चाल है ताकि चालक लोकसभा चुनावों में भाजपा का विरोध न कर सके। उन्होंने कहा कि मोदी सरकार की ड्राइवर विरोधी नीयत का तो तभी पता चल गया था जब विपक्ष के 146 सांसदों को संसद से ससपेंड कर बिना किसी चर्चा के यह काला कानून पास किया गया था। इसलिए ट्रांसपोर्ट वर्कर्स सरकार के अब किसी बहकावे में आने वाले नहीं है।" 

पूनिया ने कहा कि "केंद्र सरकार ने पिछले दस सालों में ट्रांसपोर्ट सेक्टर व उसकी मुख्य धूरी ड्राइवर्स पर कई हमले बोले है। कार्पोरेट्स के मुनाफे बढ़ाने के लिए मोटर व्हीकल एक्ट में कई बदलाव किए हैं जिनमें स्क्रैप पॉलिसी, डीजल के रेट में बढ़ोतरी, भारी भरकम टोल टैक्स व इंश्योरेंस के प्रीमियम में बढ़ोतरी शामिल है। इसी प्रकार जहां ड्राइवर्स पर चालान के दस गुणा तक रेट बढ़ाए गए वहीं अब कड़ी सजाओं व जुर्माने के कानून थोंप दिए गए है। जबकि सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार 85% यात्रियों और 66% माल को उनके गंतव्य स्थान तक पहुंचाने का काम केवल सड़क परिवहन से होता है। जिसमें ड्राइवर्स का मुख्य रोल है। परंतु देश हित में काम कर रहे इन वाहन चालकों को जेलों में डालने के लिए तो कड़े से कड़े कानून बनाए जा रहे है। परंतु उनकी सुरक्षा व मान-सम्मान के लिए सरकार चुप्पी साधे हुए है। हर दिन पुलिस व परिवहन अधिकारियों द्वारा सरेआम ड्राइवर को अपमानित किया जाता है। उनसे खुल्लम खुल्ला लूट खसूट तो आम बात हो गई है। ड्राइवर्स के काम के कोई घंटे निश्चित नहीं है। ईएसआई व पीएफ की कोई सुविधा नहीं है।" 

सेठी ने कहा "यहां तक कि आजादी के 75 साल बाद भी देश के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करने वाले ड्राइवर्स के लिए कोई सामाजिक सुरक्षा की व्यवस्था नहीं है। इन हालात में ऑल इंडिया रोड ट्रांसपोर्ट वर्कर्स फेडरेशन की 27 व 28 फरवरी को केरल में हुई बैठक में इन काले कानून को वापस लिए जाने एवं अन्य मांगों को लागू करवाने के लिए लगातार जन-जागरण अभियान चलाने तथा विपक्षी पार्टियों के गठबंधन इंडिया में शामिल सभी राजनीतिक दलों को ड्राइवर्स की मांगों का ज्ञापन देने का फैसला लिया गया है।" 

ट्रांसपोर्ट वर्कर्स की मांगों में मुख्य रूप भारतीय न्याय संहिता 106(1) व (2) को वापस लिया जाए। इस बारे आवश्यक संशोधन संसद में पारित किया जाए। असंगठित क्षेत्र के ट्रांसपोर्ट वर्कर्स पर न्यूनतम वेतन 26 हज़ार रुपये लागू करने। ईएसआई व पीएफ की सुविधा को लागू करते हुए 60 वर्ष की उम्र पर 10 हज़ार रुपये पेंशन की व्यवस्था करने। ड्राइवर कल्याण बोर्ड का गठन करने। मोटर व्हीकल एक्ट 2019 के संशोधनों को वापस लेने। डीजल, टोल व इंश्योरेंस प्रीमियम की बड़ाई गई दरें वापस लेने। ड्राइवरों व ग्राहकों के हितों की सुरक्षा के लिए ऊबर, ओला, रेपिडो के लिए भारत सरकार वैकल्पिक एप तैयार करे। वाहन स्क्रैप पॉलिसी को आवश्यक की बजाए वैकल्पिक बनाया जाए। रोड़ ट्रांसपोर्ट कॉर्पोरेशन को मजबूत और विकसित किया जाए। इलेक्ट्रिक बसों की खरीद, रखरखाव व संचालन के लिए सरकारी परिवहन विभाग को वित्तीय सहायता देना शामिल है। 

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