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मध्य प्रदेश : डकैती विरोधी क़ानून का इस्तेमाल और दुरुपयोग

क़रीब डेढ़ दशक पहले ग्वालियर-चंबल इलाक़े से डकैत ग़ायब हो गए थे, लेकिन डकैत विरोधी क़ानून आज भी क़ायम है। अब चुनावी साल में इस क़ानून को रद्द करने की मांग ज़ोर पकड़ रही है।
Raghvendra Yadav
राघवेंद्र यादव और तीन अन्य पर डकैती विरोधी क़ानून के तहत मामला दर्ज किया गया है।

भोपाल: मार्च 2007 में, मध्य प्रदेश पुलिस ने राज्य के आखरी सूचीबद्ध डकैत जगजीवन परिहार को मार गिराया था, जिससे इलाके में डकैतों का ख़तरा ख़त्म हो गया था। हालाँकि, ग्वालियर चंबल इलाके में खूंखार डकैतों पर लगाम लगाने के लिए 1981 में लागू किया गया डकैती विरोधी क़ानून अभी भी कायम है, जिसके तहत  पिछले तीन सालों में 922 एफआईआर दर्ज की गई हैं, जिनमें मोबाइल चोरी, हमले और हिंसक विरोध प्रदर्शन से संबंधित एफआईआर भी शामिल हैं।

मार्च 2023 के राज्य विधानसभा रिकॉर्ड के अनुसार, मध्य प्रदेश से डाकू गायब हो गए हैं, और राज्य में अब डकैत या उनके कोई भी गिरोह सूचीबद्ध नहीं हैं। फिर भी, अप्रैल 2020 और फरवरी 2023 के बीच, पुलिस ने ग्वालियर-चंबल इलाके के छह जिलों में इस डकैती विरोधी क़ानून के तहत 922 एफआईआर दर्ज कीं हैं। एफआईआर के अलावा, डकैती की समस्या पर अंकुश लगाने के लिए 2017-18 और 2019-20 के बीच 115 करोड़ रुपये का फंड भी खर्च किया गया है। 

डकैती विरोधी क़ानून, जो कभी ग्वालियर-चंबल के बीहड़ों में घुसपैठ करने वाले खूंखार डकैतों को दबाने या नियंत्रण में लाने का एक उपयोगी उपकरण था, अब इसका इस्तेमाल हिसाब-किताब बराबर करने के लिए किया जा रहा है, कुछ लोगों का आरोप है कि इसका इस्तेमाल असहमति को दबाने और राजनीतिक विरोधियों को चुप कराने के लिए किया जा रहा है। इसके बढ़ते दुरुपयोग के बीच चुनावी राज्य मध्य प्रदेश में इस क़ानून को रद्द करने की मांग जोर पकड़ रही है।

भारतीय दंड संहिता 1861 और आपराधिक प्रक्रिया संहिता 1973 की विभिन्न धाराओं को मिलाकर, मध्य प्रदेश ने 1981 में एमपी डकैती और व्यपहरण प्रभाव क्षेत्र अधिनियम [एमपीडीवीपीके अधिनियम] या डकैती विरोधी क़ानून बनाया था। यह क़ानून, संगठित और असंगठित डकैतों के गिरोहों के खतरे से निपटने, जमानत प्रावधानों को सख्त करने, दंड को मजबूत करने और सबूत के बोझ को कम करने के लिए पुलिस को विशेष शक्तियां प्रदान करता है।

यह क़ानून, राज्य सरकार को डकैतों की संपत्ति जब्त करने, मुखबिरों को सुरक्षा देने,  और इन से जुड़े मुकदमों से निपटने के लिए विशेष अदालतें स्थापित करने का भी अधिकार देता है। 1981 से, यह विशेष क़ानून चंबल इलाके के सभी चार जिलों, ग्वालियर और शिवपुरी जिलों के साथ-साथ पन्ना, रीवा और सतना जिलों में भी प्रभावी रहा है, क्योंकि ये जिले तब डकैती के खतरे से जूझ रहे थे।

डेढ़ दशक पहले जब आखिरी डकैत को मार दिया गया था, तबसे इस इलाके में शांति है। हालाँकि, डकैती विरोधी क़ानून के तहत मामले बढ़ते जा रहे हैं, और क़ानून के तहत धन का खर्च भी जारी है। मध्य प्रदेश पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी इस क़ानून को बनाए रखने के पक्ष में हैं, लेकिन समाज का एक वर्ग राजनीतिक प्रतिशोध के लिए इसका दुरुपयोग करने का आरोप लगाते हुए इसे रद्द करने की मांग कर रहा है।

उदाहरण के लिए, मध्य प्रदेश के दतिया जिले के 40 वर्षीय कांग्रेस कार्यकर्ता राघवेंद्र सिंह यादव और उनकी पार्टी के तीन सदस्यों पर 2021 में डकैती विरोधी क़ानून के तहत मामला दर्ज किया गया था। उन पर अगस्त 2021 में पार्टी के जिला अध्यक्ष अशोक दांगी पर हमला करने और उनका 8,000 रुपये से अधिक की कीमत वाला मोबाइल फोन छीन लेने का आरोप लगाया गया था। हालांकि, कोतवाली पुलिस ने राघवेंद्र और उबके साथियों पर डकैती की धाराएं [आईपीसी धारा 392] और मध्य प्रदेश के विशेष डकैती विरोधी क़ानून एमपीडीवीपीके अधिनियम 1981 की धारा 11/13 लगा दी।

भारी पुलिस तैनाती के बीच आधी रात को यादव और उनके साथी कांग्रेसियों को गिरफ्तार कर लिया गया था।

"चूंकि हम सत्तारूढ़ दल के एक शक्तिशाली मंत्री और कांग्रेस के दतिया जिला अध्यक्ष दांगी के खिलाफ काफी मुखर थे, इसलिए दोनों ने हम चार आलोचकों को फंसाने की साजिश रची थी। दांगी की शिकायत पर, पुलिस ने डकैती विरोधी क़ानून की धाराएं लागू कीं, जिसे ग्वालियर-चंबल इलाके के खूंखार डकैतों पर लगाम लगाने के लिए लागू किया गया था,'' यादव ने कहा, मंत्री के खिलाफ बोलने के लिए पुलिस स्टेशनों के अंदर उनकी जमकर पिटाई भी की गई। 

अंडरगारमेंट्स में उनकी तस्वीरें भी प्रेस में लीक हो गईं थीं।

यादव, जिनका कोई पिछला आपराधिक रिकॉर्ड नहीं था, 60 दिन जेल में बिताने के बाद तब रिहा हुए जब ग्वालियर उच्च न्यायालय ने उन्हें जमानत दी। बाद में, यादव के साथ गिरफ्तार किए गए उनके एक पार्टी नेता अन्नू खान ने भाजपा का दामन थाम लिया था। "हमें सबक सिखाया गया और भाजपा मंत्री का विरोध न करने की धमकी दी गई।"

सिर्फ व्यक्तियों पर ही नहीं, बल्कि 2 अप्रैल, 2018 की जातीय हिंसा के बाद दर्ज मामलों में भी डकैती विरोधी क़ानून की धाराएं लगाई गईं हैं।

हिंसा के बाद मुरैना जिले में दलितों के खिलाफ नौ मामले दर्ज किए गए और पुलिस ने एफआईआर में डकैती विरोधी क़ानून की धारा 11/13 लगाई। "मुरैना जिले में सैकड़ों दलितों के खिलाफ नौ एफआईआर दर्ज की गईं हैं। समुदाय के नेताओं को घेरने के लिए, पुलिस ने एमपीडीवीपीके अधिनियम 1981 की धाराएं लगाई। “अधिवक्ता जितेंद्र चौहान ने कहा कि, हालांकि मामले अदालत में ठहर नहीं सके, फिर भी पुलिस आरोपियों का पीछा करना और उन्हें धमकाना जारी रखे हुए है। चौहान ने नौ में से तीन मामलों में आरोपियों का बचाव किया है।

उन्होंने कहा कि, "यदि हम डकैती विरोधी क़ानून के तहत दर्ज मामलों की सजा दर देखें, तो इसका वास्तविक इस्तेमाल समझ में आ सकता है।"

क़ानून के दुरुपयोग के एक अन्य उदाहरण में, 2010 में ग्वालियर में, दो मांस विक्रेताओं ने तत्कालीन ग्वालियर नगर आयुक्त, डिप्टी कमिश्नर और पांच अन्य पर, एक मांस की दुकान से 15,000 रुपये लूटने का आरोप लगाया था, क्योंकि नगर निगम आयोग ने विध्वंस अभियान में उनकी दुकानों को नष्ट कर दिया था। विक्रेताओं ने अधिकारियों के खिलाफ विशेष अदालत [डकैती विरोधी] में एक याचिका दायर की, जिसमें डकैती विरोधी क़ानून की धारा 11 और 12 और धारा 396 [डकैती] के तहत प्राथमिकी दर्ज करने की मांग की गई। कोर्ट ने पुलिस को उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का आदेश देते हुए याचिका स्वीकार कर ली। 

जब अधिकारियों ने यह दावा करते हुए उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया कि पुलिस की यह कार्रवाई अनावश्यक थी, तो अदालत ने मामले पर स्टे दे दिया। 

भिंड से कांग्रेस विधायक मेवाराम जाटव ने इस साल विधानसभा के बजट सत्र [फरवरी-मार्च] के दौरान इलाके में डकैती विरोधी क़ानून के दुरुपयोग का मुद्दा उठाया था और इसे निरस्त करने की मांग की थी। जाटव ने फोन पर बताया कि, "इलाके में डकैती विरोधी क़ानून का दुरुपयोग बड़े पैमाने पर हो रहा है। सत्तारूढ़ दल के नेता असहमति को दबाने और विरोधियों को चुप कराने के लिए इन क़ानूनों का इस्तेमाल करते हैं।"

उन्होंने आगे कहा कि, "एक तरफ, गृह मंत्री और मुख्यमंत्री दावा करते हैं कि इलाके  से डकैत गायब हो गए हैं; दूसरी तरफ, पुलिस ने डकैती विरोधी क़ानून के तहत केवल तीन वर्षों में 922 मामले दर्ज किए हैं। विशेष रूप से, अकेले ग्वालियर में पिछले तीन वर्षों में 314 मामले दर्ज किए गए हैं। सरकार को इस पर स्पष्टीकरण देना चाहिए। यदि वे डकैत नहीं हैं, तो डकैती विरोधी क़ानून की धाराएं क्यों लगाई गईं?"

विधानसभा में इस अधिनियम को निरस्त करने की अपनी मांग में, गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने एक लिखित उत्तर में इसका बचाव करते हुए कहा कि, "विशेष क़ानून इलाके में डकैतों के खतरे से निपटने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और इलाके भीतर गैर-सूचीबद्ध गिरोहों को नियंत्रित करने में अभी भी प्रभावी है।" क़ानून को रद्द नहीं किया जा सकता क्योंकि यह अंतरराज्यीय गिरोहों [यूपी और राजस्थान] पर नियंत्रण पाने में प्रभावी है, जो मामले अक्सर सामने आते रहते हैं।"

कभी चंबल इलाके के खूंखार डकैत रहे मलखान सिंह, जिन्होंने 1982 में 60 अन्य साथियों के साथ आत्मसमर्पण किया था और चुनावी राजनीति में प्रवेश किया था, ने भी क़ानून को निरस्त करने की वकालत की है।

विधानसभा चुनाव के मद्देनजर मलखान सिंह कांग्रेस पार्टी के लिए प्रचार करते हुए।

जब क़ानून की प्रासंगिकता के बारे में सवाल किया गया, तो 80 वर्षीय मलखान सिंह ने अफसोस जताया और कहा कि, "इसे तत्काल प्रभाव से निरस्त किया जाना चाहिए क्योंकि क़ानून मौजूदा हालात से निपटने के लिए आईपीसी क़ानून काफी है। इलाके में शांति है, क्योंकि हर कोई विकास चाहता है। उन्नत प्रौद्योगिकी है, राजस्व क़ानूनों में पिछले कुछ वर्षों में सुधार हुआ है। अन्याय अब उतना प्रचलित नहीं है जितना पहले था; इसलिए, कोई भी हथियार उठाकर बीहड़ों में नहीं जाना चाहता है।"

चंबल के डकैतों पर कई किताबें लिखने वाले राकेश अचल ने भी क़ानून के दुरुपयोग पर चिंता जताई है। 

रिपोर्टर से बात करते हुए, उन्होंने कहा कि, "जगजीवन परिहार की मृत्यु के साथ, मध्य प्रदेश में डकैतों का आतंक समाप्त हो गया है। डकैतों के आतंक को समाप्त करने के लिए जो क़ानून लागू किया गया था, उसे बहुत पहले ही निरस्त कर दिया जाना चाहिए था, लेकिन दुख की बात है, यह अभी भी प्रभावी है।"

उन्होंने आगे कहा, "क़ानून के दुरुपयोग की खबरें अक्सर आती रहती हैं, जिसमें किसी व्यक्ति पर डकैतों को शरण देने, हथियार, भोजन की आपूर्ति करने और उन्हें जानकारी देने के खिलाफ मामला दर्ज किया जाता है। जब कोई डकैत नहीं है, तो उन आरोपों के तहत पुलिस किसी पर मामला कैसे दर्ज कर सकती है? कई लोगों का सुझाव है कि पुलिस को इस क़ानून के तहत फंड मिलता रहे इसलिए वह इसे बनाए रखना चाहती है।"

अंग्रेजी में प्रकाशित इस लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें:

Use and Misuse of Anti-Dacoity Law in Madhya Pradesh

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