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बढ़ती नफ़रत के बीच भाईचारे का स्तंभ 'लखनऊ का बड़ा मंगल'

आज की तारीख़ में जब पूरा देश सांप्रादायिक हिंसा की आग में जल रहा है तो हर साल मनाया जाने वाला बड़ा मंगल लखनऊ की एक अलग ही छवि पेश करता है, जिसका अंदाज़ा आप इस पर्व के इतिहास को जानकर लगा सकते हैं।
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मैं लखनऊ हूं... मेरे दिल में आज भी हिंदू और मुसलमानों के लिए उतनी ही मुहब्बत है जितनी पहले हुआ करती थी। शायद मैं ही एक ऐसा शहर हूं, जहां एक मुग़ल बादशाह की पत्नी अल्लाह के साथ बजरंग बली की भी इबादत करती है।

इस बात का जिक्र मैं सिर्फ इसलिए कर रहा हूं क्योंकि मेरे दिल में रहने वाले बाशिंदों ने अपने भाईचारे से मेरी संस्कृति को मरने नहीं दिया है। इसी संस्कृति का एक हिस्सा है बड़ा मंगल...

यकीन मानिए हर लखनऊ वासी मई-जून या कहें ज्येष्ठ महीने में होने वाले बड़े मंगल का बेसब्री से इंतज़ार करता है। इंतज़ार हो भी क्यों न.. पूरे महीने लखनऊ शहर में जमकर भंडारा जो होता है। या यूं कहें कि इस महीने पूरे शहर में कोई भूखा नहीं सोता।

आपको जानकर हैरानी होगी कि सिर्फ लखनऊ में ही बड़ा मंगल बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। ये बड़ा मंगल सिर्फ हिंदू धर्म की आस्था का प्रतीक ही नहीं बल्कि सभी धर्मों के लिए मान्यता रखता है। इस पर्व में हिंदुओं के साथ-साथ मुस्लिम, सिख, ईसाई आदि धर्मों के लिए भी शामिल होते हैं। बड़े मंगल के दौरान पूरे शहर में हनुमान मंदिरों के बाहर कथा, पूजा-पाठ का आयोजन किया जाता है। वहीं हर धर्म के लोग शहर के अलग-अलग हिस्सों में भंडारे का आयोजन करते हैं। इन भंडारों में लोग अपनी-अपनी श्रद्धा के अनुसार खाना बनवाते हैं, कोई पूड़ी-सब्जी बांटता है, तो कोई कढ़ी चावल... वहीं चिलचिलाती गर्मी से बचने के लिए कई जगहों पर लोगों के लिए ठंडे पानी और शरबत का इंतज़ाम भी किया जाता है। बड़े मंगल के भंडारे में मिलने वाले खाने को लेकर लोग कहते हैं, कि इसके स्वाद जैसा कुछ नहीं होता।

आज की तारीख में जब पूरा देश सांप्रादायिक हिंसा की आग में जल रहा है तो हर साल मनाया जाने वाला बड़ा मंगल लखनऊ की एक अलग ही छवि पेश करता है, जिसका अंदाज़ा आप इस पर्व के इतिहास को जानकर लगा सकते हैं।

बड़ा मंगल क्यों है हिंदू-मुस्लिम भाईचारे की मिसाल?

हिंदुओं के भगवान के लिए मनाए जाने वाले बड़े मंगल की कहानी करीब 400 साल पुरानी है। जब पहले मुगल शासक नवाब मोहम्मद अली शाह के बेटे की तबीयत ख़राब हो गई थी। कई जगह इलाज कराया लेकिन वो ठीक नहीं हुआ। इसके बाद नवाब की बेग़म रूबिया बेटे की सलामती के लिए मन्नत मांगने अलीगंज के हनुमान मंदिर पहुंची। कहा जाता है कि उस वक्त मंदिर के पुजारी ने उनके बेटे को मंदिर में ही छोड़ जाने के लिए कहा था। बेगम जब अपने बेटे को अगले दिन वापस लेने आईं तब तक उनका बेटा पूरी तरह से स्वस्थ्य हो चुका था। जिसके बाद नवाब की बेगम ने अलीगंज मंदिर का जीर्णोद्धार कराया। नवाब की बेगम द्वारा लगाया गया प्रतीक चिह्न चांदतारा आज भी मंदिर के गुंबद पर एक मिसाल बना हुआ है।

हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसाल बना अलीगंज का पुराना हनुमान मंदिर... सकरी गलियों से घिरा हुआ है, यहां हर साल पहले बड़े मंगल से मेला शुरू होकर करीब एक महीने तक चलता है, बड़ी बात ये है कि इस मेले में शामिले होने के लिए जितनी तादाद में हिंदू धर्म के लोग होते हैं, उतनी ही तादाद मुस्लिमों की भी होती है। यानी इस मेले में आप को लखनऊ का वो रंग दिख जाएगा, जिसके लिए वो जाना जाता है।

ये कहना भी ग़लत नहीं होगा कि जब देश के अलग-अलग हिस्सों में कभी बुलडोज़र के ज़रिए, कभी उन्मादी नारों के ज़रिए दो धर्मों के बीच नफरत की आग बोई जा रही है, लोगों के खाने, पहनावे, रंग और भाषा पर सवाल खड़े किए जा रहे हैं, ऐसे में लखनऊ में बड़े मंगल के दौरान ये मेला तमाम रंगो, भाषाओं, पहनावों, खान-पान और धर्मों को खुद में समेटकर एक जवाब की तरह खड़ा है।

बड़ा मंगल लखनऊ की धर्मनिरपेक्षता और धार्मिक मान्यताओं का सबसे बड़ा उदाहरण है। इस शहर में हमेशा गंगा-जमुनी तहज़ीब को बखूबी देखा जा सकता है। यहां एक मुसलमान मंदिर का निर्माण करवाता है और हिंदू मस्ज़िद का निर्माण करवाते हैं। यही वजह है कि इस भाईचारे और सौहार्द की मिसाल हमेशा दी जाती रही है।

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