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उत्तराखंड स्वास्थ्य श्रृंखला भाग-4: बढ़ता कोरोना; घटते वैक्सीन, रेमडेसिविर, बेड, आईसीयू, वेंटिलेटर

“वैक्सीन का डर नहीं है लेकिन अस्पताल की लंबी दूरी का डर है। वहां जाने के लिए 8-10 लोगों को मिलकर गाड़ी बुक करना होगा। इसके लिए हर एक को करीब 100 रुपये खर्च करने होंगे। किसी के पास पैसे होते हैं तो किसी के पास नहीं होते। हमारे गांव के नज़दीक ही टीकाकरण के लिए कैंप लग जाता तो हमारे लिए अच्छा रहता”।
उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में स्वास्थ्य केंद्रों की लंबी दूरी ग्रामीणों के लिए बन रही चुनौती 
उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में स्वास्थ्य केंद्रों की लंबी दूरी ग्रामीणों के लिए बन रही चुनौती 

“उत्तराखंड में एक अप्रैल से 15 अप्रैल तक के आंकड़े बताते हैं कि हर 1.5 मिनट (89 सेकेंड) पर राज्य में कहीं न कहीं एक व्यक्ति दौरान राज्य में कुल 15,833 कोविड केस सामने आए हैं। इनमें से तकरीबन 71 प्रतिशत केस हरिद्वार और  कोरोना पॉजिटिव हो रहा है। इसदेहरादून में है। उत्तराखंड में सितंबर 2020 में हमने सबसे ज्यादा कोविड केस देखे थे। अप्रैल 2021 में हम दोबारा वही स्थिति देख रहे हैं”। एसडीसी फाउंडेशन के अनूप नौटियाल कोविड से जुड़े आंकड़ों की पड़ताल के बाद की उत्तराखंड की तस्वीर को स्पष्ट करते हैं।

कोरोना की दूसरी लहर ज्यादा घातक है। बचाव के लिए ज्यादातर लोग अब वैक्सीन पर भरोसा कर रहे हैं। लेकिन अस्पताल तक की दूरी और वैक्सीन की अनुपलब्धता उनकी चुनौतियां बढ़ा रही हैं। केंद्र सरकार के दिशा-निर्देशों के मुताबिक टीकाकरण केंद्र या टीकाकरण एंबुलेंस 1.2 किलोमीटर से ज्यादा दूर नहीं होनी चाहिए। 

पौड़ी के चौबट्टाखाल बाज़ार में मिली महिलाएं बताती हैं कि टीकाकरण के लिए उन्हें गाड़ी बुक करके जाना पड़ा। रास्ते में गुलदार के हमले का खतरा था।

पर्वतीय क्षेत्रों में टीकाकरण केंद्रों तक जाना बड़ी चुनौती

पौड़ी के चौबट्टाखाल तहसील के बाज़ार में मैंने कुछ ग्रामीण महिलाओं से बातचीत की और कोविड टीकाकरण से जुड़े उनके अनुभव जाने। पोखड़ा ब्लॉक के सुंदरई गांव की सौभाग्य देवी बताती हैं, “वैक्सीन लगवाने के लिए हम सब गाड़ी बुक करके पोखड़ा के देवराजखाल के प्राइमरी स्कूल में गए। गाड़ीवाले ने हमसे 1200 रुपये लिए। पैदल जाते तो रास्ते में बाघ के हमले का डर था। लौटते-लौटते शाम के साढ़े 6 बजे गए थे। अंधेरा हो गया था।”

सौभाग्य देवी के साथ बैठीं राजेश्वरी देवी कहती हैं, “हमें वहां पानी भी नहीं मिला। हम प्यास से मर गए। शौचालय में ताला लगा दिया था। हम तो फिर भी ठीक हैं लेकिन बुजुर्ग लोगों की तो बड़ी मुश्किल हो गई थी। वे शौचालय के लिए कहां जाते। 4 किलोमीटर दूर प्राइमरी स्कूल में टीका लगाया जा रहा था। जबकि हमारा अस्पताल तो कोई 12 किलोमीटर दूर है। नज़दीक में टीका लग रहा है यही सोचकर गांववाले वहां पहुंचे। उन्होंने बोला कि केवल 400 लोगों को टीका लगेगा। जबकि लोग ज्यादा थे। बीमारी बहुत फैल रही है। हम सब वैक्सीन लगाने को तैयार हैं। अब 20 मई को हमें दोबारा बुलाया है”।

नज़दीक में लगे टीके तो उमड़ी भीड़, डोज़ खत्म

सुनील रतूड़ी की चौबट्टाखाल बाज़ार में अपनी दुकान है। वह मझगांव ग्राम सभा में सुंदरी गांव के निवासी हैं। जहां कभी 45 परिवार रहते थे। अब 10-11 परिवार हैं। सुनीत बताते हैं, “वैक्सीन कम होने के कारण हम वंचित हो गए। अब अगले राउंड का इंतज़ार कर रहे हैं। नवाखाल के सामुदायिक विकास केंद्र पर एक ही दिन टीकाकरण हुआ।  हमारा दूसरा बड़ा अस्पताल करीब 23 किमी दूर है। जब नज़दीक में कैंप लगा तो हम भी पहुंच गए। हमारी बारी आने तक डोज खत्म हो गई। हमें बिना टीकाकरण के आना पड़ा। हम चाह रहे हैं कि हमें जल्द वैक्सीन लग जाए”।

गंवाणी गांव की बुजुर्ग महिलाएं चाहती हैं कि गांव के नज़दीक ही टीकाकरण हो। कई किलोमीटर दूर टीकाकरण केंद्रों तक जाना सबके लिए संभव नहीं है।

वैक्सीन का नहीं, अस्पतालों की लंबी दूरी का है डर

पोखड़ा ब्लॉक के ही फीलगुड सेंटर सांस्कृतिक केंद्र पर मेरी गंवाणी गांव की महिलाओं से बात हुई। महिलाओं ने बताया कि गांव के कुछ ही लोगों ने 14 किलोमीटर दूर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पर टीकाकरण कराया है। लेकिन ज्यादातर लोगों को अभी तक वैक्सीन नहीं लगी है। यहां मौजूद करीब 20 महिलाओं में से मात्र एक बुजुर्ग महिला ने वैक्सीन लगाई थी। 

राज्य में एक मार्च से 45 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों का वैक्सीनेशन किया जा रहा है। 65 वर्ष की जशोदा देवी कहती हैं, “हमें इतनी दूर अस्पताल जाने में परेशानी है। वैक्सीन का डर नहीं है लेकिन अस्पताल की लंबी दूरी का डर है। वहां जाने के लिए 8-10 लोगों को मिलकर गाड़ी बुक करना होगा। इसके लिए हर एक को करीब 100 रुपये खर्च करने होंगे। किसी के पास पैसे होते हैं तो किसी के पास नहीं होते। हमारे गांव के नज़दीक ही टीकाकरण के लिए कैंप लग जाता तो हमारे लिए अच्छा रहता।” 

टीकाकरण करवा कर लौटी बुजुर्ग महिला बताती हैं, “7 अप्रैल को टीका लगाकर आई। थोड़ा दर्द हुआ और चक्कर भी आए। वहां कुछ इंतज़ाम नहीं था। पानी तक नहीं था। बैठने के लिए कुर्सी दी थी। कुछ ऐसे भी लोग थे जिनको घबराहट हो रही थी। ब्लड प्रेशर बढ़ गया था। लेकिन उनके पास चेक करने के लिए कुछ भी नहीं था। टीकाकरण के लिए बहुत लोग आए थे। सबको वैक्सीन नहीं लग पाई।”

आशा कार्यकर्ता धनेश्वरी देवी बताती हैं कि टीकाकरण केंद्रों की लंबी दूरी की वजह गांव में टीकाकरण में मुश्किल आ रही है।

गंवाणी गांव की आशा कार्यकर्ता धनेश्वरी देवी बताती हैं,  “60 वर्ष से ऊपर के बहुत से लोगों को वैक्सीन लग गई है। लंबी दूरी होने की वजह से टीकाकरण में दिक्कत आ रही है। जब गांव के पास कैंप लगा तो इतने लोग आ गए कि वैक्सीन कम पड़ गई। कल (8 अप्रैल) भी वैक्सीन खत्म हो गई थी और आज (7 अप्रैल) भी खत्म हो गई। लेकिन जब पोखड़ा के सीएचसी में वैक्सीन लग रही थी तो सौ लोग भी नहीं पहुंच पाए। वो यहां से 18 किलोमीटर दूर है। वहां जाना आसान नहीं है।” धनेश्वरी बताती हैं कि गांव के स्कूल में कैंप लगाने की बात हो रही है लेकिन ऐसा कब होगा ये उनकी जानकारी में नहीं है।

ग्राम प्रधान रेखा देवी भी चाहती हैं कि टीकाकरण कार्यक्रम गांव के नज़दीक ही हो ताकि सभी को टीका लग सके

स्वास्थ्य सुविधाओं की बदहाली का टीकाकरण पर असर

गंवाणी गांव की प्रधान रेखा देवी और उनके पति संजय नवानी भी स्वास्थ्य सुविधाओं की बदहाली के बारे में बताते हैं। जिसका असर सीधे तौर पर टीकाकरण पर पड़ रहा है। रेखा कहती हैं कि गंवाणी अस्पताल, फिर नवाखाल का अस्पताल, उसके आगे पोखड़ा का सीएचसी, फिर सतपुली अस्पताल, फिर कोटद्वार अस्पताल, फिर देहरादून और अंत में दिल्ली के अस्पताल। यह उनके स्वास्थ्य सुविधाओं के स्टॉपेज हैं। गंवाणी अस्पताल में साधारण बीमारियों का इलाज भी नहीं होता। नवाखाल की यही स्थिति है। एक साधारण ब्लड टेस्ट या एक्सरे के लिए सतपुली या कोटद्वार जाना होता है। लेकिन सचमुच बीमार पड़े तो देहरादून ही उम्मीद का केंद्र है। 

संजय नवानी कहते हैं, “यदि गांव के पास ही टीकाकरण कैंप लग जाए तो बहुत सुविधा हो जाएगी। बुजुर्ग अस्पताल नहीं जा सकेंगे। गाड़ी बुक करके जाना भी सबके बस की बात नहीं। कोरोना तेज़ी से फैल रहा है इसलिए अब वैक्सीन की डिमांड बढ़ गई है।”

उत्तराखंड के पर्वतीय जिलों से लेकर मैदानी ज़िले तक लोग कोविड टीकाकरण का इंतज़ार कर रहे हैं। देहरादून कोरोना की पहली और दूसरी दोनों लहरों में सबसे ज्यादा प्रभावित ज़िला है। आम लोगों के साथ स्वास्थ्य कार्यकर्ता, स्वच्छता कार्यकर्ता, फ्रंट लाइन वर्कर के साथ हर उम्र और वर्ग के लोग वैक्सीन पर भरोसा कर रहे हैं।

पिछले वर्ष सितंबर में कोविड पॉज़िटिव होने और इस वर्ष कोविड टीकाकरण के दोनों डोज लेने के बाद फिर कोरोना संक्रमित हुए डॉ केसी पंत

वैक्सीन कितनी असरदार: कोविशील्ड की दो डोज़ लेने के बाद फिर पॉज़िटिव हुए दून मेडिकल कॉलेज के चिकित्सा अधीक्षक

राजकीय दून मेडिकल कॉलेज अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक और वरिष्ठ फिजीशियन डॉ. केसी पंत कोविड वैक्सीन की दोनों डोज़ ले चुके हैं। पिछले वर्ष सितंबर में वे कोविड पॉज़िटिव पाए गए थे। इस बार अप्रैल के दूसरे हफ्ते में वह और उनकी पत्नी कोविड पॉज़िटिव आए हैं। डॉ पंत बताते हैं कि उन्हें ज्यादा दिक्कत नहीं है। 

मार्च के महीने में वैक्सीन को लेकर जब मैंने उनसे बात की थी तो वह कहते हैं,  “हम सब एक बड़ी रिसर्च का हिस्सा हैं। हमें नहीं मालूम की वैक्सीन हम पर किस तरह से असर करेगी। पहले बताया गया था कि वैक्सीन की पहली डोज़ लेने के बाद दूसरी डोज़ 28 दिन के भीतर लेनी है। फिर कहा गया गया कि दूसरी डोज़ 6-8 हफ्ते के अंतराल पर लेनी है। इतनी जल्दी कोई वैक्सीन तैयार नहीं होती। वैक्सीन का प्रभाव भी 70-80 प्रतिशत तक ही है। लेकिन मौजूदा हालात में वैक्सीन पर भरोसा करना ही पड़ेगा।”

कोरोना संक्रमण की मौजूदा स्थिति पर वह चिंता जताते हैं। डॉ पंत कहते हैं, “हमने स्वास्थ्य महानिदेशालय और शासन से रेमडेसिविर इंजेक्शन की मांग की है। कोरोना के इलाज के लिए ये जरूरी है। राज्य में रेमडेसिविर की सख्त किल्लत हो गई है। दून अस्पताल में कुछ ही दिनों के लिए इसका स्टॉक उपलब्ध है। हमारे पास अन्य अस्पतालों से भी इस दवा की मांग आ रही है। लेकिन अभी हम उन्हें ये दवा देने की स्थिति में नहीं हैं।”

कोविड टीकाकरण की मौजूदा स्थिति

देश के अन्य राज्यों की तरह उत्तराखंड में भी कोरोना संक्रमण के केस लगातार बढ़ रहे हैं। साथ ही वैक्सीन की मांग भी बढ़ रही है। अप्रैल के दूसरे हफ्ते में राज्यभर से वैक्सीन की कमी की ख़बरें आने लगीं। टीकाकरण केंद्रों पर पहुंचे लोगों को बिना वैक्सीन लगाए ही वापस लौटना पड़ा। 

राज्य प्रतिरक्षण अधिकारी डॉ कुलदीप सिंह मर्तोलिया मानते हैं कि वैक्सीन की दिक्कत आई थी। फिलहाल राज्य के पास अगले 10 दिनों के लिए वैक्सीन उपलब्ध है। डॉ कुलदीप कहते हैं “13 अप्रैल को हमें 1.54 लाख वैक्सीन अलग-अलग जगहों से मिली थी। 54 हज़ार डोज़ पुणे से आई और एक लाख डोज़ करनाल से आई है। 16 अप्रैल को हमें कोविशील्ड वैक्सीन की 2 लाख डोज़ मिलने वाली है। अभी अगले 10 दिनों के लिए हमारे पास पर्याप्त वैक्सीन है”। हालांकि उत्तराखंड सरकार ने केंद्र से 10 लाख वैक्सीन डोज की मांग की थी।

राज्य प्रतिरक्षण अधिकारी डॉ कुलदीप सिंह मर्तोलिया कहते हैं कि गांवों में टीकाकरण कैंप लगाना संभव नहीं है।

‘गांवों में टीकाकरण कैंप नहीं लगेंगे’

डॉ कुलदीप कहते हैं कि टीकाकरण की मौजूदा रफ्तार के लिहाज से अगले 35 से 45 दिनों में हम 45 वर्ष और उससे अधिक के लोगों का टीकाकरण पूरा कर लेंगे। 45 वर्ष से कम उम्रवालों के लिए अभी केंद्र से दिशा-निर्देश नहीं मिले हैं।

राज्य के दुर्गम पर्वतीय क्षेत्रों में टीकाकरण की स्थिति पर वह बताते हैं, “दूरस्थ क्षेत्र के अस्पतालों में भी हम टीकाकरण कैंप लगा रहे हैं। बस ये देख रहे हैं कि वहां कनेक्टिविटी को लेकर कोई बड़ा मुद्दा न हो। पंचायतीराज, समाज कल्याण जैसे विभागों के साथ मिलकर ज़िलाधिकारी और मुख्य चिकित्सा अधिकारी लोगों को टीकाकरण के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं। गांवों में भी हम टीकाकरण के लिए कैंप लगा सकते थे। दिक्कत ये है कि अगर किसी पर वैक्सीन का उलटा असर पड़ा तो उसे संभालना मुश्किल हो जाएगा। इसलिए गांवों में भी कैंप लगाकर टीकाकरण नहीं किया जा रहा।”

डॉ कुलदीप के मुताबिक स्कूलों में भी टीकाकरण नहीं हो रहा है। लेकिन पौड़ी में प्राइमरी स्कूल में टीकाकरण के बारे में बताने पर वह कहते हैं कि अगर ऐसा हुआ है तो स्कूल के नज़दीक अस्पताल भी होगा। नहीं तो इस तरह टीकाकरण की अनुमति नहीं है।

टीकाकरण से जुड़े आंकड़े

वर्ष 2021 तक उत्तराखंड की आबादी 1.19 करोड़ का अनुमान है। 16 जनवरी से यहां टीकाकरण अभियान शुरू किया गया। 15 अप्रैल तक राज्य में 76 हज़ार 534 स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को कोविड वैक्सीन की दोनों डोज़ दी जा चुकी है। 64589 फ्रंट लाइन वर्कर का पूरी तरह वैक्सीनेशन हो चुका है। जबकि 45 वर्ष से अधिक उम्र के 70640 लोगों को कोविड की दोनों डोज़ मिल चुकी है। 

इस तरह 15 अप्रैल तक 211,763 लोगों को कोविड टीके की दोनों खुराक दी जा चुकी है। यानी 16 जनवरी से 15 अप्रैल तक 90 दिनों में राज्य की 2 प्रतिशत आबादी को भी वैक्सीन की दोनों खुराक नहीं दी जा सकी है।

45 वर्ष से अधिक उम्र वाले कोविड टीके की दोनों खुराक लेने वाले सबसे अधिक 14,382 लोग देहरादून में हैं। रुद्रप्रयाग, चंपावत में अभी तक दो हज़ार लोग भी ऐसे नहीं हैं जिन्हें कोविड की दोनों खुराक मिल सकी हो।

उत्तराखंड के 13 ज़िलों में 45 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों को कोविड की दोनों खुराक दिए जाने की स्थिति 

वैक्सीन लगने के बाद बिगड़ी तबीयत

टीकाकरण के बाद बदन दर्द, बुख़ार जैसी दिक्कतों के मामले सामने आ रहे हैं। जो कि एक या दो दिन में सामान्य हो जा रहे हैं। डॉ कुलदीप के मुताबिक ऐसे 294 केस रजिस्टर किए गए हैं। 

कोविड केस बढ़े तो देहरादून के अस्पतालों की बिगड़ी हालत

बड़ी मुश्किल ये है कि कोरोना संक्रमण के हालात एक बार फिर चिंताजनक हो गए हैं। जिससे स्वास्थ्य विभाग की व्यवस्थाएं कम पड़ गई हैं। सरकारी अस्पतालों में बेड, आईसीयू और वेंटिलेटर नहीं मिल पा रहे हैं। निजी अस्पतालों में भी इनकी दिक्कत हो गई है। कोविड के इलाज के लिए जीवन रक्षक इंजेक्शन रेमडेसिविर उपलब्ध नहीं है। इस इंजेक्शन के बाज़ार से गायब होने और कई गुना दामों में काला बाज़ारी की शिकायत आ रही है। 

प्रदेश कांग्रेस उपाध्यक्ष सूर्यकांत धस्माना ने इन्हीं स्थितियों को लेकर 15 अप्रैल को स्वास्थ्य महानिदेशक डॉ तृप्ति बहुगुणा को ज्ञापन सौंपा और स्वास्थ्य के लिए आंदोलन की चेतावनी दी। सूर्यकांत धस्माना का कहना है कि जब देश के अन्य राज्यों से कोविड-19 के संक्रमण की दूसरी तीसरी और चौथी लहर की खबरें आ रही थी तभी उत्तराखंड को दूसरी लहर की तैयारी करनी चाहिए थी। जो कहीं नजर नहीं आ रही। उन्होंने स्वास्थ्य महानिदेशक से रेमिडिसेर की उपलब्धता के बारे में पूछा। साथ ही निजी अस्पतालों में इलाज के लिए जा रहे लोगों से मनमाने पैसे वसूलने पर रोक की मांग की। उन्होंने कहा कि निजी अस्पतालों के लिए कम से कम टैरिफ में प्रति दिन के हिसाब से किराया तय करना चाहिए। जिसके भुगतान का एक बड़ा अंश राज्य सरकार को मुख्यमंत्री राहत कोष में से देना चाहिए। 

इस श्रृंखला की पहली कड़ी, दूसरी कड़ी और तीसरी कड़ी आप यहां पढ़ सकते हैं।

सभी फोटो, सौजन्य : वर्षा सिंह

(देहरादून से स्वतंत्र पत्रकार वर्षा सिंह)

(This research/reporting was supported by a grant from the Thakur Family Foundation. Thakur Family Foundation has not exercised any editorial control over the contents of this reportage.)

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