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उत्तराखंड : छात्रों पर पुलिस बर्बरता के ख़िलाफ़ लोगों में गुस्सा

12 दिनों से लगातार धरना प्रदर्शन कर रहे आयुष विद्यार्थियों पर 19 अक्टूबर की रात किये गये लाठीचार्ज ने सबको सकते में डाल दिया। अदालत ने जिन बच्चों के पक्ष में फ़ैसला दिया, जो शांतिपूर्ण तरीके से धरना प्रदर्शन कर रहे थे, उन लड़के-लड़कियों पर लात-घूंसे क्यों बरसाए गए। शासन-प्रशासन का ये बर्बर रवैया किसी के गले नहीं उतर रहा।
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पिछले चार वर्ष से उत्तराखंड आयुर्वेद विश्वविद्यालय से सम्बद्ध निजी मेडिकल कॉलेज के स्टुडेंट्स गैर-कानूनी फीस बढ़ोतरी के खिलाफ संघर्ष कर रहे हैं। वर्ष 2015 में राज्य सरकार ने एक शासनादेश के ज़रिये 80 हज़ार रुपये ली जाने वाली फीस को बढ़ाकर दो लाख 25 हज़ार कर दी। छात्र-छात्राओं ने कोर्ट कचहरी, अनशन, धरना प्रदर्शन सब तरीके अपनाए ताकि उन्हें बढ़ी हुई फीस न देनी पड़े।
 
इतनी महंगी शिक्षा हज़ारों बच्चों को कॉलेजों से दूर कर देगी। अपने सपनों को पूरा करना, उच्च-प्रोफेशनल शिक्षा हासिल करना सबके बस की बात नहीं रह जाएगी।
 
12 दिनों से लगातार धरना प्रदर्शन कर रहे आयुष विद्यार्थियों पर 19 अक्टूबर की रात किये गये लाठीचार्ज ने सबको सकते में डाल दिया। अदालत ने जिन बच्चों के पक्ष में फ़ैसला दिया, जो शांतिपूर्ण तरीके से धरना प्रदर्शन कर रहे थे, उन लड़के-लड़कियों पर लात-घूंसे क्यों बरसाए गए। शासन-प्रशासन का ये बर्बर रवैया किसी के गले नहीं उतर रहा।
19 अक्टूबर की रात की तस्वीर.jpg
पुलिस के साथ हुई हाथापायी में कई छात्र-छात्राओं को गंभीर चोटें आईँ। लड़कियों के पेट में लात मारी गए। बाल खींचे गए। कमर पर चोट आई। पुलिस आठ दिनों से अनशन पर बैठे बच्चे को उठाने आई थी। लेकिन जिस तरह से पुलिस ने इस काम को किया, वो मित्र पुलिस के रवैये पर सवाल खड़े करता है। इसे लेकर आम लोगों में भी गुस्सा है।
 
बढ़ी हुई फीस के विरोध में छात्र-छात्राओं का अनशन जारी है। पहले एक छात्र अनशन पर था, अब दो छात्र और एक छात्रा परेड ग्राउंड में अनशन पर बैठ गए हैं।
 
19 अक्टूबर की रात क्या हुआ

12 दिनों से देहरादून के परेड ग्राउंड में आयुष विद्यार्थियों का धरना और क्रमिक अनशन चल रहा था। आठ दिन से अनशन कर रहे छात्र अजय मौर्य की तबीयत बिगड़ने पर पुलिस ने छात्र से अनशन तोड़ने की बात की। लेकिन वह तैयार नहीं हुआ।

छात्र-छात्राओं के मुताबिक पुलिस ने दिन ढलने और अंधेरा छाने का इंतज़ार किया। पहले बातचीत की गई। अजय अपना अनशन तोड़ने को तैयार नहीं हुआ तो पुलिस उसे जबरन अस्पताल ले जाने लगी। इस बीच वहां मौजूद विद्यार्थियों ने इसका विरोध किया। बदले में पुलिस ने छात्र-छात्राओं पर लात-घूंसे बरसाने शुरू कर दिए। पुलिस की टीम में मात्र तीन महिला कर्मी थी जबकि वहां एक दर्जन से अधिक छात्राएं मौजूद थीं।
छात्र-छात्राओं के पत्र_0.jpeg 
छात्राओं ने आरोप लगाए कि पुलिस वालों ने उनके पेट पर लात मारी। उनके बाल खींचे, फोन तोड़ दिए। इस हाथापाई में कई छात्रों को चोटें आईं। लेकिन मदरहुड मेडिकल कॉलेज, देहरादून के कुनाल कटियार और हिमालय मेडिकल कॉलेज के ललित तिवारी को गंभीर चोटें आईँ। दोनों को सांस लेने में परेशानी हो रही थी।

20 अक्टूबर तक कुनाल की स्थिति अच्छी नहीं थी। उन्हें ऑक्सीजन दिया जा रहा था। दोनों इस समय दून अस्पताल में भर्ती हैं।
 
हरिद्वार के ओम आयुर्वेदिक मेडिकल कॉलेज की छात्रा प्रगति जोशी भी चार दिन अनशन पर रहीं। इसके बाद पुलिस ने उन्हें जबरन अस्पताल भेज दिया था। शनिवार रात हुई हाथापाई में प्रगति की कमर और पैर में चोट लगी। वह कहती हैं कि फीस बढ़ोतरी के विरोध में हमारा प्रदर्शन जारी रहेगा।
 
प्रगति कहती हैं कि अदालत का आदेश विद्यार्थियों के पक्ष में आने के बावजूद राज्यभर के निजी कॉलेज बच्चों से बढ़ी हुई फीस वसूल रहे हैं। वह बताती हैं कि बढ़ी फीस न देने पर परीक्षा नहीं देने की धमकी दी जा रही है। कक्षा में प्रवेश नहीं करने दिया जा रहा। उनके कॉलेज में बहुत से विद्यार्थियों का प्रवेश वर्जित कर दिया गया है। प्रगति भी उनमें से एक हैं। प्रगति कहती हैं कि मैं चार महीने से कॉलेज नहीं गई। हमें देखकर कॉलेज के गेट पर ताला लगा दिया जाता है।

दून अस्पताल में मौजूद स्टुडेंट_0.jpg

उनका आरोप है कि जब छात्र-छात्रा ओम आयुर्वेदिक मेडिकल कॉलेज के चेयरमैन से बात करने गए, तो उन्होंने खुद ही कुर्सी उठाकर अपने कमरे के शीशे तोड़ दिए और विद्यार्थियों पर एफआईआर दर्ज करा दी। उऩके मुताबिक इसका वीडियो भी सोशल मीडिया पर वायरल हुआ।
 
फीस बढ़ोतरी की लड़ाई

वर्ष 2015 में उत्तराखंड सरकार ने एक शासनादेश के ज़रिये आयुर्वेद मेडिकल कॉलेजों की फीस 80 हज़ार से बढ़ाकर दो लाख 25 हज़ार रुपये कर दी। छात्र-छात्राओं ने इसका विरोध किया। हिमालय मेडिकल कॉलेज के छात्र ललित तिवारी ने नैनीताल हाईकोर्ट में पीआईएल दाखिल की।

सुप्रीम कोर्ट की गाइड लाइन्स के तहत कॉलेजों की फीस बढ़ाने के लिए फीस रेग्यूलेटरी कमेटी की सलाह जरूरी है। जबकि इस मामले में सरकार का शासनादेश था।
 
नैनीताल हाईकोर्ट की सिंगल बेंच ने जुलाई 2018 में सरकार के इस शासनादेश को निरस्त कर दिया। साथ ही निजी कॉलेजों को 14 दिन के अंदर विद्यार्थियों को बढ़ी हुई फीस लौटाने के निर्देश दिए। पुरानी फीस पर पढ़ाने को कहा और नई फीस का फैसला रेग्यूलेटरी कमेटी पर छोड़ दिया।
 
इसके बाद आयुर्वेद मेडिकल एसोसिएशन ने दोबारा हाईकोर्ट में अपील की। डबल बेंच ने 9 अक्टूबर को कहा कि वह सिंगल बेंच के फैसले से सहमत हैं। छात्र-छात्राओं को पुरानी फीस पर ही पढ़ाया जाएगा। जिन छात्र-छात्राओं से बढ़ी फीस ली गई है, वो वापस करनी होगी।
 
प्रगति जोशी का कहना है कि हम अपने कॉलेज प्रशासन से लगातार बढ़ी हुई फीस वापस मांगते रहे, लेकिन वो नहीं माने। ऐसा राज्यभर में हुआ। फिर विद्यार्थी अदालत के आदेश की अवमानना को लेकर निजी आयुर्वेदिक मेडिकल कॉलेज के खिलाफ हाईकोर्ट चले गए। वहां से भी विद्यार्थियों के पक्ष में फ़ैसला आया। प्रगति समेत अन्य छात्र-छात्रा बताते हैं कि इसके बावजूद मेडिकल कॉलेज अपनी मनमानी कर रहे हैं।
परेड ग्राउंड में अनशन की फाइल फोटो_0.jpeg 
दून अस्पताल में बिस्तर पर लेटे ललित तिवारी कहते हैं कोर्ट ने ये तक कहा कि यदि बच्चों को परीक्षा में नहीं बैठने देंगे, उनसे अवैध फीस मांगेंगे तो आपको व्यक्तिगत तौर पर अदालत में उपस्थित होना होगा। लेकिन इतने आदेशों के बाद भी अगर कोई संस्थान नहीं मानता है, तो वो गुंडागर्दी कर रहा है या वो प्रदेश सरकार के संरक्षण में है।

वह कहते हैं कि छात्रों की सुनने के बजाय सरकार छात्रों पर ही डंडे बरसा रही है। हम परेड ग्राउंड में धरने पर बैठे रहे और सरकार को कोई प्रतिनिधि हमसे मिलने नहीं आया। वो खुद को जन प्रतिनिधि नहीं राजा समझते हैं। हम सही हैं, कोर्ट के आदेश हैं, इसके बावजूद हमें धरना देना पड़ रहा है और निजी कॉलेजों को संरक्षण दिया जा रहा है।
 
उधर, देहरादून के मदरहुड आयुर्वेदिक कॉलेज के प्रिंसिपल अशोक कुमार का कहना है कि आयुर्वेदिक मेडिकल एसोसिएशन इस मामले को लेकर दोबारा कोर्ट में गई है। उनका कहना है कि हमने किसी बच्चे को कॉलेज आने से नहीं रोका है। न ही हम बढ़ी हुई फीस मांग रहे हैं। अशोक कुमार के मुताबिक ज्यादातर बच्चे क्लास कर रहे हैं, सिर्फ कुछ बच्चे जिन्हें नेतागिरी करनी है, वो धरना देने जा रहे हैं।
 
इतनी अधिक फीस क्या जायज़ है। इस पर अशोक कुमार कहते हैं कि सेंट्रल काउंसिल ऑफ इंडियन मेडिसिन के नियमों के मुताबिक हर साल हमारे संस्थानों में कमिया दर्ज होती हैं। जितनी फैकल्टी होनी चाहिए, वो नहीं हो पाती। वह कहते हैं कि प्रोफेसर, रीडर के वेतन इतने अधिक हैं, लाइब्रेरी-लेबोरेटरी-बुनियादी ढांचे से जुड़े खर्च कम फीस में पूरे नहीं हो पाते। वह कहते हैं कि फिलहाल हम विद्यार्थियों की शिक्षा के लिए जरूरी सभी आवश्यकताएं पूरी कर रहे हैं लेकिन कम फीस से उनकी शिक्षा की गुणवत्ता प्रभावित होगी।
 
गंभीर हालत में अस्पताल के बिस्तर पर लेटे ललित और कुनाल से मिलने शासन-प्रशासन की ओर से कोई नहीं आया। इस बीच कांग्रेस-.यूकेडी के लोग जरूर विद्यार्थियों का हालचाल पूछने गए और विद्यार्थियों के आंदोलन को समर्थ दिया।
 
सीपीआई-एमएल ने भी प्राइवेट आयुर्वेदिक मेडिकल कॉलेजों के छात्र-छात्राओं पर पुलिसिया दमन की निंदा की और कहा कि एक बार फिर त्रिवेन्द्र रावत सरकार ने अपना जन विरोधी, उत्पीड़नकारी चेहरा उजागर किया है।

भाकपा (माले) इन छात्र-छात्राओं के आंदोलन का समर्थन करती है। वाम दल का कहना है कि कार्यपालिका द्वारा इस तरह खुलेआम न्यायपालिका के आदेशों की अवमानना एवं अवहेलना ने प्रदेश में एक संवैधानिक संकट की स्थिति उत्पन्न कर दी। इस स्थिति के लिए सीधे तौर पर मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत और उनकी सरकार जिम्मेदार है।

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