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उत्तराखंड : दलित भोजन माता की नियुक्ति और विवाद का ज़िम्मेदार कौन है?

चंपावत के सूखीढांग इंटर कॉलेज मामले में कई बड़े झोल सामने आ रहे हैं। कभी भोजन माता की नियुक्ति को अवैध बताया जा रहा है, तो कभी जातिवाद का मुद्दा हावी हो रहा है। बहरहाल, मामला जो भी हो ज़िम्मेदारी और जवाबदेही तो प्रशासन की ही बनती है।
mid day meal
'प्रतीकात्मक फ़ोटो'

यूं तो मीड डे मील की स्कीम बच्चों में पोषण की कमी और स्कूलों तक उनकी पहुंच को ध्यान में रखकर लाई गई थी, लेकिन धीरे-धीरे ये स्कीम स्कूल में जातिगत भेदभाव की सच्चाई भी हमारे सामने ले आई है। उत्तर प्रदेश के स्कूलों से कई बार ऐसी ख़बरें आई हैं कि यहां सामान्य वर्ग के बच्चे और दलित जाति के बच्चों एक साथ बैठकर मीड डे मील नहीं खाते। अब उत्तराखंड से ख़बर है कि दलित महिला के हाथ का बना खाना सामान्य वर्ग के छात्रों ने नहीं खाया।

बता दें कि ये मामला चंपावत के सूखीढांग इंटर कॉलेज का है और इस मामले में कई बड़े झोल सामने आ रहे हैं। कभी महिला की नियुक्ति को अवैध बताया जा रहा है, तो कभी जातिवाद का मुद्दा हावी हो रहा है। बहरहाल, मामला जो भी हो ज़िम्मेदारी और जवाबदेही तो सिस्टम की ही बनती है।

क्या है पूरा मामला?

टाइम्स ऑफ़ इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक इस मामले में अगड़ी जाति के छात्रों ने दलित महिला के हाथ से बना मिड-डे मील खाने से इन्कार कर दिया। बाद में महिला की नौकरी भी चली गई। ख़बर के मुताबिक दलित महिला की नियुक्ति ‘भोजनमाता’ के पद पर हुई थी। बताया गया कि अगड़ी जाति के छात्र इस बात से इतना नाराज़ हुए कि महिला के हाथ से बना खाना खाने से ही इन्कार कर दिया।

हालांकि अधिकारियों का कहना है कि छात्र इसलिए नाराज़ हुए क्योंकि महिला की नियुक्ति ग़लत तरीक़े से हुई थी। लेकिन यहांं सवाल ये भी है कि भोजनमाता की नियुक्ति से छात्रों का क्या लेना-देना, उन्हें तो खाना मिलने से मतलब होना चाहिए।

अमर उजाला की ख़बर के मुताबिक, अनुसूचित जाति की महिला को भोजनमाता बनाए जाने से सामान्य वर्ग के छात्रों ने उनके हाथ का खाना खाने से इन्कार कर दिया। इसके बाद मुख्य शिक्षा अधिकारी ने खंड शिक्षा अधिकारी को मामले की जांच कर रिपोर्ट देने के लिए कहा।

मुख्य शिक्षा अधिकारी ने बताया कि खुली बैठक में दोनों पक्षों को सुनने और अभिलेखों की जांच में भोजनमाता की नियुक्ति अवैधानिक पाई गई। इसलिए नियुक्ति रद्द कर दी गई। अब जल्द ही नए सिरे से विज्ञप्ति निकालकर भोजनमाता की नियुक्ति होगी।

हिन्दुस्तान की रिपोर्ट के मुताबिक, राजकीय इंटर कॉलेज सूखी ढ़ाग में 230 छात्र पढ़ते हैं। इनमें से क्लास 6 से 8वीं तक के 66 बच्चे मिड-डे मील के दायरे में आते हैं। लेकिन सोमवार, 20 दिसंबर को केवल एससी वर्ग के 16 छात्रों ने मिड-डे मील खाया। वहीं सामान्य वर्ग का कोई भी छात्र नहीं आया क्योंकि एससी वर्ग की ‘भोजनमाता’ ने खाना तैयार किया था। ऐसे कई बच्चे घर से ही टिफिन लेकर आए थे। वहीं कइयों ने खाना ही नहीं खाया। इसके बाद विवाद हुआ, स्थानीय मीडिया में खबरें छपीं।

इसके अगले दिन स्कूल की मैनेजमेंट कमेटी, अभिभावक संघ और अन्य लोगों की बैठक हुई। एडी बेसिक अजय नौटियाल, मुख्य शिक्षा अधिकारी आरसी पुरोहित, बीईओ अंशुल बिष्ट ने जांच कर भोजन माता की नियुक्ति को ही अवैध करार दिया और इसे रद्द कर दिया।

रिपोर्ट के मुताबिक, कुछ दिनों पहले स्कूल ने भोजन माता की नियुक्ति के लिए विज्ञापन निकाला था। इसके लिए 10 महिलाओं ने आवेदन किया। ग्रामीणों के मुताबिक अभिभावक संघ और प्रबंधन समिति की मौजूदगी में सर्वसम्मति से खुली बैठक में पुष्पा भट्ट को भोजनमाता नियुक्त किया गया। लेकिन आरोप है कि इस बीच दूसरी महिला को भोजनमाता नियुक्त कर दिया गया। हालांकि स्कूल प्रबंधन समिति खुली बैठक में सामान्य वर्ग की महिला की नियुक्ति को सिरे से खारिज कर रहा है। उनका कहना है कि शासनादेश के अनुरूप ही भोजन माता की नियुक्ति की गई। लेकिन कुछ लोगों को ये पसंद नहीं आय़ा, जिसके कारण लोग विरोध कर रहे हैं।

विपक्ष ने सरकार को आड़े हाथों लिया

इस पूरे मामले को दु:खद बताते हुए में पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने राज्य की बीजेपी सरकार को आड़े हाथों लिया। उन्होंने कहा कि ऐसी दुखद घटना वाला हमारा उत्तराखंड नहीं हो सकता। ये भाजपा का ही उत्तराखंड हो सकता है, जहां एक भोजनमाता को केवल इसलिए हटा दिया जाए क्योंकि वह एक वर्ग विशेष की है।

सोशल मीडिया पर वायरल अपने वीडियो संदेश में पूर्व मुख्यमंत्री रावत ने कहा कि अखबार में मन को उत्तेजित करने वाला एक दु:खद समाचार पढ़ा। 21वीं सदी में इस मानसिकता के साथ यदि उत्तराखंड चल रहा है तो ये बहुत दु:खद है। राज्य सरकार ने एक भोजनमाता को केवल इसलिए हटा दिया क्योंकि वह अनुसूचित जाति परिवार की थी। हरीश रावत ने राज्य सरकार से क्षमा मांगते हुए हटाई गई भोजनमाता को बहाल करने की मांग की। उन्होंने कहा कि यदि राज्य सरकार चेती नहीं तो वह गांधी की मूर्ति के सामने अनशन पर बैठेंगे।

ग़ौरतलब है कि नियुक्ति को लेकर उपजे विवाद के चलते पूरी नियुक्ति प्रक्रिया को ही रद्द कर कर दिया गया है। अब जल्द विज्ञप्ति जारी कर नए सिरे से भोजनमाता की नियुक्ति होगी। लेकिन इस पुरानी नियुक्ति की लीपापोती के जिम्मेदार और इसके पीछे की सच्चाई शायद ही कभी सामने आए। वैसे भी दलितों के खिलाफ अपराध और अत्याचार के बढ़ते मामले किसी से छिपे नहीं हैं।नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो यानी एनसीआरबी की ओर से जारी आंकड़ों की मानें तो साल 2020 में दलितों और आदिवासियों के खिलाफ अपराध में बढ़ोतरी हुई है। 'सबके साथ, सबके विकास' में ये दलित समुदाय कहीं पीछे छूटता जा रहा है।

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