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पहले से बेहाल जनता पर बिजली विभाग की मार

ऐसे समय में जब कोरोना और इस से पैदा हुई विभिन्न समस्याओं से जनता बेहाल है। जब जनता को सरकार से मदद की सबसे ज्यादा आस है, तब सरकार ऐसे समय में नफा नुकसान की बात सोच रही है और पहले से ख़ाली हो चुकी जनता की जेबों को और निचोड़ने का कार्य कर रही है।
पहले से बेहाल जनता पर बिजली विभाग की मार
फ़ोटो साभार: सोशल मीडिया

कोरोना महामारी के चलते एक ओर जहाँ रोज़गार समाप्त हो रहे हैं तथा आम जनता यह सोचकर परेशान है कि बिना किसी आय के साधन के उसकी जरुरी आवश्यकता किस प्रकार पूर्ण होगी। वहीं दूसरी ओर उत्तराखंड सरकार ने बिजली दरों में बढ़ोतरी कर पहले से बेरोज़गारी और महंगाई की मार झेल रही जनता पर एक और वार कर राज्य की जनता की मुश्किले और बढ़ा दी हैं। 26 अप्रैल 2021 को जारी प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार UPCL के द्वारा बिजली के मूल्य में वृद्धी हुई है जो कुल 13.42% की  व्रद्धि है।  UPCL के अतिरिक्त पिटकुल, एसएलडीसी और यूजेवीएन लिमिटेड ने भी वित्तीय वर्ष 2021-22 में टैरिफ व्रद्धि का प्रस्ताव आयोग के सामने रखा है। यदि आयोग द्वारा इन के प्रस्तावित दरों को ज्यों का त्यों स्वीकार किया जाता है तो उपभोक्ताओं के टैरिफ में वित्तीय वर्ष 2021-22 में 16.2% (13.42% +2.78%) की वृद्धि होगी| 

क्या है नई टैरिफ दरें? 

घरेलू उपभोक्ताओं के लिए:


सरकारी शिक्षण संस्थान, अस्पताल के लिए:

अन्य घरेलू उपभोक्ता:

इस के अलावा आयोग ने फिक्स चार्ज में भी बदलाव को हरी झंडी दे दी है। इसके तहत घरेलू श्रेणी में 100 यूनिट तक फिलहाल कोई बदलाव नहीं किया गया है। इस श्रेणी के उपभोक्ताओं को 60 रुपये कनेक्शन चार्ज देना होगा। जबकि 101-200 यूनिट तक उपभोक्ताओं को पहले के 95 रुपये के बजाए 120 रुपये फिक्स चार्ज देना होगा। 201-400 यूनिट तक के उपभोक्ताओं को 165 के बजाए अब 200 रुपये फिक्स चार्ज देना होगा। 400 यूनिट से ऊपर के उपभोक्ताओं को अब 260 रुपये के बजाए 300 रुपये फिक्स चार्ज देना होगा।

इसको आसान भाषा में जानते हैं, मान लीजिये यदि एक उपभोक्ता एक माह में 200 यूनिट बिजली खर्च करता है तो पुराने चार्ज के हिसाब से उस को 835 रुपये देना होता था लेकिन नई दरों के अनुसार उस को देना होगा 920 रुपये मतलब 85 रुपये की बढ़ोतरी हो चुकी है जो लगभग 10% बढ़ोतरी है। उपभोक्ता जिन के बिजली टैरिफ दरों में कोई वृद्धि नहीं की गयी है। उत्तराखंड विद्युत नियामक आयोग की प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार बीपीएल उपभोक्ता जो कुल घरेलू उपभोक्ताओं का 20% है, हिमाच्छादित क्षेत्रों के उपभोक्ता, घरेलु श्रेणी के 100 यूनिट तक उपयोग करने वाले उपभोक्ता जो कि कुल घरेलू उपभोक्ताओं का 45% है, अघरेलु श्रेणी के छोटे उपभोक्ता जिन की विद्युत खपत 50 यूनिट से कम हो और 25 किलोवाट विद्युत भार तक के एलटी उद्योग जो कि कुल एलटी उद्योगों का 75% है, की बिजली दरों में कोई बदलाव नहीं किया गया है।

गोपेश्वर स्थित घनश्याम स्मृति पहाड़ी फ़ूड प्रोडक्ट प्राइवेट लिमिटेड को चलाने वाले दर्शन चौहान बताते हैं कि उन की फैक्ट्री में पर्वतीय फलों का जूस तैयार होता है, लेकिन कोरोना के चलते पिछले एक साल से, उन के यहां जो उत्पादन हो रहा है उस का मात्र कुछ ही हिस्सा बाजार में बेच पा रहे हैं, जिस कारण वह अपने मजदूरों को पूर्ण रूप से उन का वेतन नहीं दे पा रहे हैं। प्रत्येक साल की तरह उन्होंने किसानों से माल्टा, बुराँश और बेल की फ़सल ख़रीद कर उसका जूस बनाकर बाज़ार में भेजा जरूर, लेकिन वहा से उस की पूरी क़ीमत नहीं मिल पायी। आगे वह बताते हैं कि पिछले साल से लेकर आज तक बिजली का मीटर चालू है। मजदूरों और किसानों को वह कुछ समय बाद पेमेंट कर सकते हैं, लेकिन बिजली बिल समय से ही जमा करना होता है, चाहे इस के लिये उन को कहीं से कर्ज ही क्यों न लेना पड़े। आपदा के इस दौर में जब हमारे और हमारे जैसे न जाने कितने लघु उद्योग आज लगभग बंद होने के कगार पर हैं तो सरकार को इन उद्योगों को कुछ आर्थिक मदद देनी चाहिए थी। लेकिन यह सरकार बिजली दरों में वृद्धि कर इन उद्योगों को बंद कराने पर तुली हुई है।  

UPCL के द्वारा बिजली दर बढ़ाये जाने का कारण राजस्व अंतर की वसूली को बताया गया हैं।  विभाग के अनुसार कुल 952.48 करोड़ रुपये का राजस्व का अंतर है, जिस का एक तिहाई हिस्सा (323.78 करोड़ रुपये) टैरिफ में वृद्धि कर के वसूल किया जाना तय हुआ है। इस पर देहरादून से वरिष्ठ पत्रकार योगेश भट्ट का कहना है कि UPCL में घाटे का मुख्य कारण बिजली की चोरी है, लेकिन एक आम आदमी बिजली चोरी नहीं करता। यह काम बड़े उद्योगों द्वारा किया जाता है, परन्तु सरकार इस नुक़सान की भरपाई आम गरीब जनता से वसूलने की बात कर रही है। यह सरासर अमानवीय है। योगेश भट्ट आगे बताते हैं कि उत्तराखण्ड में भारी मात्रा में बिजली उत्पादन होती है, लेकिन अपने राज्य के लिये हमें बिजली दूसरे पड़ोसी राज्यों से लेनी पड़ती है। यदि हम मान भी लें कि राज्य में पैदा होने वाली बिजली पर्याप्त नहीं है।

राज्य में बिजली की आपूर्ति करने के लिए पड़ोसी राज्यों से बिजली खरीदी जाती है, जिस कारण बिजली दर महंगी हो जाती है। लेकिन कोरोना के चलते राज्य में बिजली खपत भी तो कम हुई है। कम खपत मतलब बाहर से बिजली खरीद की आवश्यकता ही नहीं, तो फिर बिजली टैरिफ दर में वृद्धि क्यों? राज्य सरकार ऐसे दौर में बिजली दरों में वृद्धि कर रही है जब राज्य की जनता कोरोना के चलते बेहाल है। आज लाखों लोग अपना रोज़गार खो चुके हैं। लोग परेशान हैं कि अपनी दैनिक आवश्यकता कैसे पूरी करें। ऐसे में बिजली दरों में वृद्धि होने से दैनिक उपयोग में आने वाली वस्तुएं भी महँगी हो जायेंगी।  जब सरकार को बिजली दरों में जनता को राहत देनी चाहिए थी, तब राज्य की इस नकारा सरकार ने बिजली दरों में बढ़ोतरी कर कोढ़ में खाज का काम किया है। सरकार का यह फैसला पूर्ण रूप से अमानवीय है और यह फैसला सरकार की हिटलरशाही को दर्शाता है।

भारत की जनवादी नौजवान सभा के राज्य सचिव राजेश्वर का कहना है कि आज देश में सबसे बड़ी समस्या कोरोना है, जिस से उत्तराखंड भी अछूता नहीं है। कोरोना के चलते लाखों की संख्या में युवाओं ने अपने रोजग़ार गवाए। पिछले साल लॉकडाउन के चलते उत्तराखंड राज्य के युवा जो रोज़गार समाप्त होने के कारण बाहरी राज्यों से वापिस आये थे, उन सभी को इस सरकार ने स्वरोजगार का सपना दिखाया था। लेकिन वो भी आज जुमला ही नजर आता है क्योंकि कोई भी छोटा या बड़ा उद्योग शुरू करने के लिए बिजली की आवश्यकता होती है। यदि बिजली महँगी होगी तो युवा को अपना रोजगार शुरू करने में काफी परेशानी होगी। 

राजेश्वर आगे बताते हैं कि राज्य में प्रत्येक वर्ष चार धाम यात्रा होती है। जो यात्रा के मार्ग में पड़ने बाले होटल, लॉज और रेस्टोरेंट आदि के मालिकों और उन से जुड़े सभी लोगों की आय का मुख्य स्रोत है। लेकिन पिछले साल से यात्रा बंद है मतलब उन की कोई आमदनी नहीं है। लेकिन बिजली का मीटर चालू है,अब ऐसे में बिजली दरों में वृद्धि  उन की मुश्किलें और बढ़ा देती है।

कांग्रेस से सूर्यकांत धस्माना ने सरकार के इस फैसले की निंदा करते हुए कहा कि बीजेपी सरकार आपदा में अवसर तलाशती है। यहाँ पर भी राज्य सरकार ने आपदा में अवसर ही तलाशा है। आगे उन्होंने बताया कि इस समय कोरोना के चलते, जनता जब ऑक्सीजन, वेंटिलेटर और तमाम जरूरी मेडिकल सेवाओं के लिए परेशान है तो सरकार ने बिजली बिल की दरें बढ़ा दी। सरकार जानती है कि अभी इस फैसले के खिलाफ कोई आवाज़ नहीं उठेगी। जब सरकार को ऐसे समय पर जनता को रियायतें देने की आवश्यकता थी। ऐसे में पहले से बेहाल जनता की पीठ पर हंटर का एक और वार, सरकार के इस फैसले को पूर्ण रूप से अमानवीय बना देती है।

CPIM के राज्य सचिव राजेंद्र सिंह नेगी ने कहा, “कोरोना महामारी के चलते लाखों लोगों ने  अपना रोज़गार खोया है। अपना रोजग़ार चले जाने के कारण लोगों को दो वक़्त की रोटी के लिए भी काफी संघर्ष करना पड़ता है। वर्तमान में बेरोजगारी की भयानक समस्या से जूझती जनता के ऊपर तानाशाह सरकार का ये एक और जुल्म है। पिछले एक साल में जो नुकसान जनता ने सहा था अभी उस की भरपाई भी नहीं हो पाई थी कि फिर से कोरोना की दूसरी लहर और सरकार के नाकाम इंतजामों के चलते जनता को भारी क़ीमत चुकानी पड़ रही है । इसके बावजूद सरकार का यह फैसला बहुत निंदनीय है, हम पूर्ण रूप से इस की निंदा करते हैं।”

आज ऐसे समय में जब कोरोना और इस से पैदा हुई विभिन्न समस्याओं से जनता बेहाल है। जब जनता को सरकार से मदद की सबसे ज्यादा आस है, तब सरकार ऐसे समय में नफा नुकसान की बात सोच रही है और पहले से ख़ाली हो चुकी जनता की जेबों को और निचोड़ने का कार्य कर रही है। सरकार की इस नीति से साफ हो जाता है कि सरकार की मानवता आज समाप्त हो चुकी है। यहाँ सरकार को एक बिजनेसमैन और सरकार के बीच के अंतर को समझना की आवश्यकता है।

लेखक देहरादून स्थित एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं।

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