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उत्तर प्रदेश का बजट खंगालने पर पता चला कि योगी सरकार तो पैसा ही नहीं ख़र्च कर रही!

सरकार के पहले तीन वर्षों (2017-18 से 2019-20) के वास्तविक खर्चे देखें तो पाते है कि सरकार से किये वादों के मुताबिक 1.96 लाख करोड़ रूपये खर्च ही नहीं किये गए। इस अवधि में यदि हम पिछले वर्ष यानि 2020-21 के पुनरीक्षित अनुमान में दिए आंकड़ों को भी सम्मिलित कर ले तो वादों के मुताबिक खर्च नहीं की गयी राशि बढ़कर 2.94 लाख करोड़ रुपयों के पार हो जाती है, जो की इस अवधि में किये गए वादों का 16.3 प्रतिशत है।
योगी सरकार

हाल ही में उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने अपने इस कार्यकाल का आखिरी बजट पेश किया है। राज्य के मुख्यमंत्री एवं वित्त मंत्री ने अपने इस बजट को ऐतिहासिक बजट बताया और अपने बजट भाषण में एलान किया कि हम सब मिलकर उत्तर प्रदेश को स्वस्थ, सुरक्षित, समृद्ध एवं आत्मनिर्भर उत्तर प्रदेश बनाये।  

परन्तु जब हम बजट के असली मायनों को समझने के लिए आंकड़ों का विश्लेषण करते हैं तो एक दूसरी ही स्थिति नजर आती है। इस लेख में हम उत्तर-प्रदेश के 2021-22 के बजट का विश्लेषण करते हुए विस्तृत चर्चा करेंगे।
 
उत्तर प्रदेश आबादी की दृस्टि से देश का सबसे बड़ा राज्य है। राज्य की जनसँख्या का बड़ा हिस्सा ग्रामीण क्षेत्रों में रहता है। इसमें से अधिकांशत: खेती-किसानी पर निर्भर है। ऐसे में राज्य में समावेशी विकास के लिए कृषि, सिंचाई और ग्रामीण समुदाय बहुत अधिक अहमियत रखते हैं, जिसके कारण यह और भी अधिक जरुरी हो जाता है कि राज्य सरकार इन क्षेत्रों पर विशेष ध्यान दे।  

परन्तु योगी सरकार को जहाँ इन क्षेत्रों पर बजट बढ़ाना चाहिए था, वहीं वह इन क्षत्रों मे होने वाले खर्चों में लगातार कटौती कर रही है। योगी सरकार ने अपने पहले साल में कृषि पर कुल बजट का 8.97 प्रतिशत खर्च किया था, जिसमें बड़ा खर्चा किसानों की ऋणमाफ़ी पर होने वाला खर्च शामिल था। परन्तु उसके बाद से लगातार कृषि खर्चों में कटौती हुई है और इस बार के बजट में कृषि पर होने वाला खर्चा कुल बजट का मात्र 2.46 प्रतिशत है। आपको बता दें कि कृषि पर यह खर्चा पिछले 6 वर्षों में सबसे कम हैं।

इसी तरह से ग्रामीण विकास में इस बार कुल कुल बजट का 5 फ़ीसदी खर्चा किया गया है, जबकि यह 2018-19 में कुल बजट का 7.5 फीसदी था। इस मसले पर राज्य की मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी ने सरकार को कटघरे में खड़ा करते हुए कहा है कि भाजपा सरकार ने किसानों को अपने अंतिम बजट में भी सिर्फ धोखा देने का काम किया है। संकल्प पत्र में संपूर्ण गन्ना भुगतान और कर्ज माफी का वादा आज तक अधूरा ही है। जब से भाजपा सरकार बनी है कृषि विकास दर अपने अब तक के सबसे न्यूनतम स्तर पर है। प्रदेश में ना तो धान खरीदी केंद्रों पर एमएसपी पर धान खरीदा जा रहा है, ना गन्ने का दाम बढ़ाया गया है, ना आलू का लाभकारी दाम तय किया गया है, ना कर्ज माफी का इंतजाम है, ना सस्ते डिजल, बिजली की व्यवस्था। ऐसे में 100 करोड़ रुपए के अनुदान से चलने वाली कृषक समन्वित विकास योजना से कैसे किसानों की आय 2022 तक दोगुनी होगी।

बजट में किये वादे और वास्तविक खर्चे की स्थिति

उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा बजट में किये गए वादों और खर्चों की वास्तविक स्थिति का विश्लेषण करने से पहले आपको बताते चलें कि बजट अनुमान और वास्तविक खर्चे होते क्या है?
 
बजट आवंटन और खर्चे को मुख्यतः तीन तरीके से देखते है - 1.बजट अनुमान (BE), 2. पुनरीक्षित अनुमान (RE), 3. वास्तविक खर्च (AE)

बजट अनुमान (BE) सरकार द्वारा आगामी वर्ष में खर्च किये जाने वादा होता है और वास्तविक खर्च (AE) राज्य सरकार द्वारा वास्तविक रूप से किया गया खर्चा होता है, AE के आंकड़े बजट पेश करने के दो वर्ष बाद उपलब्ध होते हैं तथा पुनरीक्षित बजट (RE) में वर्ष के मध्य या उससे अधिक अवधि तक के खर्चो का विवरण होता है।  

हम नीचे दी गयी तालिका में देख सकते हैं कि प्रदेश की योगी सरकार के बजट में किये गए वादों और वास्तविक खर्चों में भारी अंतर् दिखाई पड़ता है, हम यदि सरकार के पहले तीन वर्षों (2017-18 से 2019-20) के वास्तविक खर्चे देखें तो पाते है कि सरकार से किये वादों के मुताबिक 1.96 लाख करोड़ रूपये खर्च ही नहीं किये गए।

इस अवधि में यदि हम पिछले वर्ष यानि 2020-21 के पुनरीक्षित अनुमान में दिए आंकड़ों को भी सम्मिलित कर ले तो वादों के मुताबिक खर्च नहीं की गयी राशि बढ़कर 2.94 लाख करोड़ रुपयों के पार हो जाती है, जो की इस अवधि में किये गए वादों का 16.3 प्रतिशत है, जबकि पिछली सरकार यानि समाजवादी पार्टी के नेतृत्व वाली सरकार अपने पांचों सालों में 97,537 करोड़ खर्च नहीं किये थे। यह राशि इस अवधि में खर्चा करने के वादे का 7.2 प्रतिशत है | पिछली सरकार में यह अंतर वर्तमान सरकार के वादों और वास्तविक खर्च के गैप से काफी कम है।जबकि अभी वर्तमान सरकार का आखिरी साल बाकी है।जब 2021-22 के वास्तविक खर्चे के आंकड़े उपलब्ध होंगे देखना होगा कि भाजपा सरकार ने प्रदेश के कल्याण के खर्चों में कितनी कटौती की है।

यह सोचने वाली बात है कि सरकार यह कटौती आखिर करती है और इसके क्या परिणाम होते है? कोविड के चलते जहां पूरी दुनिया में त्राहिमाम की स्थिति पैदा हो गयी थी, जिससे उत्तर प्रदेश भी अछूता नहीं था, बल्कि प्रदेश की जनता ने कोरोना काल से लेकर अभी तक भारी वित्तीय समस्याओं का सामना कर रही है।अभी भी प्रदेश की बड़ी जनसंख्या के सामने रोजीरोटी की गंभीर समस्या है।  

इस वर्ष के उत्तर प्रदेश के बजट दस्तावेजों में एक दस्तावेज है- जिसका नाम है खंड-06, इसमें उत्तर प्रदेश में राजपत्रित एवं अराजपत्रित पदों की स्थिति के अनुसार पूरे प्रदेश के विभिन्न विभागों में लगभग 4 लाख से अधिक पद रिक्त पड़े हुए हैं, जो कि कुल स्वीकृत पदों का 33 प्रतिशत है।  प्रदेश में कोई भी ऐसा विभाग नहीं है, जिसमें बड़ी संख्या में पद रिक्त ना हों।

जहाँ एक ओर प्रदेश की जरूरतों को मद्देनजर रखते हुए स्वीकृत पदों की संख्या में खासा इजाफा करने की जरूरत है, वहां इतनी बड़ी संख्या में खाली पद बड़ी चिंता का विषय है। जबकि ऐसा बिलकुल नहीं है कि प्रदेश में स्किल्ड और जरुरी शिक्षा प्राप्त लोग न हो।

सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (CMIE) के द्वारा सितंबर-दिसंबर 2020 अवधि के रिपोर्ट अनुसार प्रदेश में बेरोजगारी दर 6.86 प्रतिशत है और राज्य में ग्रेजुएट एवं उससे अधिक पढाई किये हुए युवक एवं युवतियों में तो बेरोजगारी दर 18 प्रतिशत से अधिक है।

सामाजिक व आर्थिक सेवाओं से योगी सरकार ने मुहँ मोड़ा

राज्य अपना खर्चा तीन महत्वपूर्ण केटेगरी; सामान्य, सामाजिक व आर्थिक सेवाएँ में करते हैं। सामान्य सेवाओं में प्रशासन को चलाने का खर्चा शामिल होता है।   सामाजिक सेवाओं में सामाजिक विकास पर होने वाला खर्चा शामिल होता है, जिसमें बेहतर शिक्षा, स्वास्थ्य और दूसरी बुनियादी जरूरतों पर खर्च किया जाता है ताकि जनता प्रदेश की अर्थव्यवस्था के विकास में अपना सहयोग दे सके।

इसके साथ आर्थिक सेवाओं में जनता के लिए आय बढ़ाने वाली आर्थिक गतिविधियों के प्रोत्साहन और बढ़ावा देने के लिए खर्च किया जाता है। इस प्रकार सामाजिक व आर्थिक सेवाओं पर वर्ष दर वर्ष खर्चा बढ़ाए जाने की जरूरत है, परन्तु योगी सरकार इसके उलट सामाजिक व आर्थिक सेवाओं पर खर्चा कम रही है।

योगी सरकार के गठन के पहले वित्तीय वर्ष 2016-17 में प्रदेश में सामाजिक व आर्थिक सेवाओं पर कुल बजट का क्रमश: 34.8 व 27.1 प्रतिशत खर्च करने का वादा बजट में किया गया था, जो वित्त वर्ष 2020-21 के बजट में घटकर 31.4 व 24.5 प्रतिशत हो गया है.

इस वर्ष के बजट में मामूली वृद्धि हुई है,जोकि सामाजिक सेवाओं के मामलें में कुल बजटीय आवंटन का 33% एवं आर्थिक सेवाओं में 25.7 प्रतिशत है। लेकिन योगी सरकार के कार्यकाल में सामान्य सेवाओं यानी दूसरे शब्दों में  कहें तो सरकार और प्रशासन को चलाने के खर्च में लगातार वृद्धि हुई है।  

सरकार का यह रवैया विकास विरोधी है क्योंकि सामाजिक व आर्थिक सेवाओं पर खर्च में कटौती होने से प्रदेश में मानव संसाधन का विकास नहीं हो पायेगा और भविष्य में प्रदेश की आय भी घटेगी और इतना ही नहीं आर्थिक सेवाओं में कटौती होने से प्रदेश में वस्तु व सेवाओं की पूर्ति में कमी आएगी, जिसके कारण वस्तु व सेवाओं के दाम बढ़ेंगे और जिसका सीधा प्रभाव जनता पर पड़ेगा। इसलिए जरूरी है कि योगी सरकार प्रशासन चलाने के नाम पर खर्च करने के साथ ही सामाजिक और आर्थिक सेवाओं पर आवंटन बढ़ाए।

महत्वपूर्ण विभाग और क्षेत्रों में बजटीय आवंटन

नीचे दिए गए चार्ट में आप 2015-16 से 2019-20 तक के वास्तविक खर्चों (AE) तथा 2020-21 के पुनरीक्षित अनुमान एवं 2021-22 के बजट अनुमान में 10 महत्वपूर्ण विभाग/क्षेत्र में किये खर्चे की स्थिति देख सकते है, इन 10 प्रमुख क्षेत्रों में 2015-16 के वास्तविक खर्चों में कुल बजटीय आवंटन का 60.24 प्रतिशत खर्च हुआ था, जोकि अब 2021-22 के बजट अनुमान में 56.8 प्रतिशत है |

ऊपर दिए गए चार्ट में हम देख सकते है कि अधिकांशत: सभी विभागों में कुल बजटीय आवंटन के सापेक्ष या तो गिरावट हुई अथवा पहले की भांति यथास्थिति है, जैसे कि ऊपर दिया गया चार्ट दर्शाता है कि 2015-16 में शिक्षा, खेल, कला एवं संस्कृति में कुल बजटीय आवंटन का 15.04 % खर्च हुआ था तथा खर्चा राज्य सकल घरेलू उत्पाद (GSDP, Current Prices) का 4.02% था, जो की इस वर्ष के बजट में घटकर कुल बजट सापेक्ष 12.3% तथा GSDP के सापेक्ष 3.11% हो गया है, बाकि विभागों/क्षेत्रों में बजट आवंटन की स्थिति आप चार्ट में देख सकते है, हमने लेख की शुरुआत में ही कृषि और ग्रामीण विकास पर होने वाले खर्चों में कटौती का विवरण भी दिया है |

इन क्षेत्रों के बजटीय आवंटन और वास्तविक खर्चों में धनराशि के रूप में जरूर बढ़ोत्तरी नजर आती है। पर क्या यह बढ़ोतरी सही मायनों में हुई है? जनता के उत्थान से सीधे जुड़े क्षेत्रों के बजटीय आवंटन में सही शब्दों में बढ़ोतरी तब मानी जाएगी, जब यह वृद्धि कुल बजटीय आवंटन/खर्चे और राज्य के सकल घरेलु उत्पाद के सापेक्ष एक संतुलित और जनता की जरूरतों और मांगों को ध्यान में रखते हुए बढे, अन्यथा यह वृद्धि केवल कुछ रुपयों में तो जरूर बढ़ी नजर आएगी परन्तु यह वृद्धि जनविकास नहीं कर पायेगी।  
 
प्रदेश की विधानसभा में वित्त मंत्री सुरेश खन्ना ने 5.50 लाख करोड़ रूपये का बजट पेश करते हुए कहा है कि यह प्रदेश का अभी तक का सबसे बड़ा बजट है, सरकार के इस दावे में वाकई सच्चाई है कि आंकड़ों में यह अबतक का सबसे अधिक धनराशि का बजट है और होना भी चाहिए क्योकि साल-दर-साल मुद्रास्फीति लगातार बढ़ रही है, महंगाई बढ़ रही है, जनसँख्या लगातार वृद्धि हो रही है, देश की सबसे ज्यादा जनसँख्या प्रदेश में निवास करती है तो बजट तो बड़ा होना ही चाहिए।
 
2021-22 के बजट की इस राशि में पिछले वर्ष से महज 7.3% की बढ़ोतरी हुई। पर यहां एक बात सोचने वाली है कि बजट राशि में यह जो वृद्धि हुई है क्या वो काफी है ? पिछले वर्ष तो यह बढ़ोत्तरी मात्र 6.9% थी, वर्तमान बजट की तुलना में और भी कम थी। पिछली सरकार और वर्तमान सरकार यानि की 2012-13 से लेकर 2021-22 तक बजट में पिछले वर्ष और इस साल के बजट में सबसे कम बढ़ोतरी हुई है।  

कुल बजटीय खर्चे में यह वृद्धि इस सरकार के कार्यकाल के पहले तीन वर्षो में यानि कि 2017-18, 2018-19 और 2019-20 में क्रमश: 10.9%, 11.4% एवं 12% थी और आपको बताते चलें प्रदेश में समाजवादी पार्टी के नेतृत्व वाली सरकार के कार्यकाल के किसी भी साल में यह बढ़ोतरी 10% से कम नहीं रही है बल्कि 2014-15 में तो यह वृद्धि 24.2% थी।

सीपीएम उ0प्र0 राज्य सचिव मण्डल ने बजट पर अपनी बात रखते हुए कहा है कि चालू सत्र में किसानों के धान खरीद का सरकार के पास करोड़ों रूपये बकाया है। गन्ना किसानों का पिछला बकाया दस हजार करोड़ रूपये से अधिक है। चालू सत्र में गन्ने का दाम सरकार ने तय नहीं किया है और न ही वृद्धि की घोषणा की।

कृषि लागत में छूट या सहायता नदारद है। मुफ्त सिंचाई की बात तो की गयी है, किन्तु बिजली और डीजल के मूल्यों में वृद्धि, किसानों के नलकूपों में मीटर लगाने की योजना जारी है। योगी सरकार ने कृषि और किसानों के लिए विनाशकारी ठेका खेती और तीनो नये कृषि कानूनों को लागू करने की प्रतिबद्धता सबसे आगे बढ़कर जतायी है। लगभग दो करोड़ किसान परिवारों की दोगुनी आमदनी के लिए 100 करोड़ छलावा तो है ही, हास्यास्पद भी है।

असंगठित मजदूरों के बीमा के लिए दुर्घटना बीमा में 12 करोड़ रूपये का प्रावधान है, किन्तु उनके मजदूरी वृद्धि व सामाजिक सुरक्षा की बात नहीं की गयी है। मनरेगा में मजदूरों की मजदूरी एवं काम के दिनों को नहीं बढ़ाया गया है। खेतीहर  मजदूर के लिए तो बजट ने आंख ही मूंद ली है।

सबसे अधिक बेरोजगारी वाले प्रदेश के लिए योगी बजट रोजगार सृजन की व्यवस्था नहीं करता और न ही बेरोजगार युवाओं की किसी तरह की सहायता करता है।उ0प्र0 सर्वाधिक 46.3 प्रतिशत वाला बाल कुपोषित प्रदेश है। 52 प्रतिशत माताएं कुपोषित हैं। बजट में कुपोषण रोकने के लिए मात्र 100 करोड़ की व्यवस्था की गयी है।

पुरानी पेंशन के लिए लंबे समय से आंदोलित कर्मचारियों को दरकिनार कर दिया गया है और अन्य को कोई राहत भी नही दी गयी है।बजट में लघु उद्योगों को भी तवज्जो नहीं दी गयी है। डीजल पेट्रोल की मूल्य वृद्धि से राहत के लिए वैट में कमी करना चाहिए था, किन्तु नहीं किया गया। कुल मिलाकर योगी सरकार का बजट किसानों, मेहनतकशों, कर्मचारियों, युवाओं, व्यापारियों, महिलाओं, दलितों, आदिवासियों के लिए भुलावा और छलावा है। भूखे व अभावग्रस्त लोगों के प्रति संवेदनहीन है। यह बजट कंपनियों और कारपोरेट परस्ती एवं साम्प्रदायिक एजेण्डे को आगे बढ़ता है। वोट जनता से लेना है, सेवा कारपोरेट की करनी है वह भी जनता के अधिकारो को छीनकर, पूरा बजट इस द्वंद से ग्रस्त है।

यह बजट योगी सरकार के इस कार्यकाल का आखिरी बजट है और इस में योगी सरकार ने चुनाव को ध्यान में रख कर अपनी पीठ थपथपाते हुए  बजट नंबर और आंकड़ों के जाल से जरूर जनता को लुभाने की कोशिश की है। परन्तु सरकार की यह कोशिश दिखावी नजर ना आती. अगर यह कोशिश पूरे कार्यकाल के दौरान जारी रहती और जनपक्षीय दृटिकोण के साथ नीतियां  निर्धारण करती |

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