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महिला यौन उत्पीड़न: ...केवल पोस्टरबाज़ी से कुछ नहीं होगा सीएम साहब!, कार्रवाई करनी होगी

महिला अधिकारों के लिए आवाज़ उठाने वाले संगठन कहते हैं कि, चौराहों पर अभियुक्तों की तस्वीरें लगाने से महिला विरोधी हिंसा को नहीं रोका जा सकता है।
महिला यौन उत्पीड़न

प्रदेश में बढ़ती महिला हिंसा को देखते हुए, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने आदेश दिया है कि यौन उत्पीड़न में शामिल लोगों की तस्वीरें प्रदेश के चौराहों पर लगाई जाएँ। हालाँकि महिला अधिकारो के लिए सक्रिय संगठन मानते हैं की, इस से महिलाओं के विरुद्ध अपराध में कमी नहीं आयेगी। क़ानून के जानकर और मानव अधिकार कार्यकर्ता भी इस क़दम को असंवैधानिक बता रहे हैं।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने प्रदेश में बढ़ते महिला विरोधी अपराधों, छेड़खानी, दुर्व्यवहार, और यौन अपराध आदि पर लग़ाम लगने के लिए पुलिसकर्मीयों को आदेश देते हुए कहा है कि, दुरचारियों की तस्वीरों वाले पोस्टर प्रदेश के प्रमुख चौराहों पर लगाएँ। मुख्यमंत्री ने बृहस्पतिवार को गृह और पुलिस विभाग के अफसरों को यौन अपराध में लिप्त अपराधियों से सख्ती से निपटने के यह निर्देश दिए हैं। बताया जा रहा है की दुराचार के अभियुक्तों के खिलाफ इस करवाई को “ऑपरेशन दुराचारी” का नाम दिया जायेगा।

विपक्षी पार्टियों का कहना है की सरकार यह बताए की महिला विरोधी हिंसा को रोकने के लिए उसकी नीति क्या है? कांग्रेसी विधायक आराधना मिश्रा ने न्यूज़क्लिक से कहा कि योगी सरकार यह बताए की उसकी महिलाओं के विरुद्ध बढ़ती यौन हिंसा को नियंत्रित करने की क्या नीति है? सदन में कांग्रेस की नेता आराधना मिश्रा कहती हैं, तस्वीर लगने से पहले तो अपराध हो चुका होगा। इस लिए महिलाओं के प्रति बढ़ते अपराध को रोकना प्राथमिकता होना चाहिए है, तस्वीर लगने के नाम पर, जनता का ध्यान अस्ल मुद्दे-समस्या (अनियंत्रित होते यौन उत्पीड़न) से नहीं भटकाया जा सकता है।

प्रदेश की प्रमुख विपक्षी पार्टी समाजवादी पार्टी ने सवाल किया है कि सरकार ने कुलदीप सिंह सेंगर और चिन्मयानन्द की तस्वीरें पोस्टर चौराहे पर क्यूँ नहीं लगाएँ गए थे? समाजवादी पार्टी की नेता पूजा शुक्ला ने आरोप लगाया कि, मुख्यमंत्री आरएसएस की विचारधारा से आते हैं, जहाँ महिलाओं को बराबरी का दर्जा नहीं दिया जाता है। उन्होंने कहा कि क्या सरकार इंतज़ार करेगी अपराध हो, और फ़िर अपराधी के पोस्टर लगाएँ।

पूजा शुक्ला के अनुसार योगी सरकार ने महिला उत्पीड़न के विरुद्ध कार्रवाई करने वाली सेवाओं 1090 और 181 को बंद कर दिया। उन्होंने प्रश्न किया कुलदीप सिंह सेंगर और चिन्मयानन्द की तस्वीरें क्यूँ नहीं लगाई गईं थी? छात्रा राजनीति से सक्रिय राजनीति में आई पूजा शुक्ला ने कहा सरकार सिर्फ़ खोखले बयान न दे, बल्कि महिलाओं की सुरक्षा के लिए ठोस क़दम उठाए। 

महिला अधिकारों के लिए आवाज़ उठाने वाले संगठन कहते हैं कि, चौराहों पर अभियुक्तों की तस्वीरें लगाने से महिला विरोधी हिंसा को नहीं रोका जा सकता है। पूर्व सांसद और अखिल भारतीय जनवादी महिला समिति (एडवा) की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष सुभाषनी अली के अनुसार उत्तर प्रदेश में महिलाओं के विरुद्ध अपराध अनियंत्रित हो गया है, इस लिए सरकार ने साख बचाने के लिए ऐसा असंवैधानिक आदेश दिया है। सुभाषनी अली ने कहा कि किसी भी अभियुक्त को अपराध सिद्ध होने पर सख़्त सज़ा होनी चाहिए है। लेकिन सज़ा देना सरकार का नहीं अदालत का काम है।

एडवा की प्रांतीय उपाध्यक्ष मधु गर्ग कहती हैं कि यदि सरकार महिलाओं के विरुद्ध यौन अपराधों को रोकने के लिए गंभीर है, तो उसे सज़ा की दर (कन्विक्शन रेट) बढ़ाने पर ध्यान देना चाहिए है। क्यूँकि ज़्यादातर अपराधी बरी हो जाते हैं, इसी लिए अपराध पर क़ाबू नहीं किया जा पा रहा है। उन्होंने कहा कि अपराधी सिद्ध होने से पहले तस्वीरें लगाना ग़लत है और समस्या का हल भी नहीं होगा।

महिला अधिकारों के लिए सक्रिय रहने वाली संस्था महिला फ़ेडरेशन ने भी कहा है कि प्रदेश के चौराहों पर अभियुक्तों की तस्वीर लगाने से महिलाओं के विरुद्ध अपराध में कमी नहीं आएगी। महिला फ़ेडरेशन की अध्यक्ष आशा मिश्रा का कहना है की नागरिकता संशोधन क़ानून का विरोध करने वालों की तस्वीरें लगाई गई थी। लेकिन जिनकी तस्वीरें सरकार ने लगाई थी, उनमें ज़्यादातर को ज़मानत मिल गई, क्यूँकि उनके विरुद्ध कोई पुख़्ता सबूत नहीं थे। यही ग़लती सरकार फ़िर दोहराने की बात कर रही है। बिना अदालत के ट्रायल और फ़ैसले के, मुलज़िम को मुजरिम बनाया जाएगा। यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रा के ख़िलाफ़ है और इसलिए हम (महिला फ़ेडरेशन) इसका विरोध करते हैं।

सामाजिक कार्यकर्ता ताहिरा हसन और अखिल भारतीय प्रगतिशील महिला समिति (ऐपवा) की स्थानीय सचिव मीना सिंह कहती हैं, सरकार को महिलाओं पर हो रहे यौन उत्पीड़न को रोकने के लिए सबसे पहले पुलिस सुधार करना होंगे। ताहिरा हसन कहती हैं पुलिस समय रहते पीड़िता की शिकायत दर्ज नहीं करती है। ऐसे में अपराधी सारे सबूत मिटा देता है। वही मीना सिंह का कहना है पुलिस अपराधियों के विरुद्ध इतनी देर से चार्जशीट दाख़िल करती है कि मुक़दमा कमज़ोर हो जाता है और अपराधी आसानी से रिहा हो जाते हैं।

इन दोनों महिलाओं कार्यकर्ताओं का कहना है कि तस्वीर लगाने जैसी असंवैधानिक बातें करने से बेहतर है की मुख्यमंत्री प्रदेश में स्वामी रंगनाथानंद कमेटी की सिफ़ारिशों को सख़्ती से लागू करे। जिस से अपराधियों में उनके विरुद्ध करवाई नहीं करने वाले पुलिसकर्मियों दोनो में डर पैदा होगा।

क़ानून के जानकर कहते हैं कि किसी अपराधी की तस्वीर सार्वजनिक स्थानों पर लगाने की बात किसी क़ानून की किताब में नहीं लिखी है। मानव अधिकार कार्यकर्ता और अधिवक्ता शुभांगी सिंह ने कहा कि महिलाओं के विरुद्ध अपराध, अभियुक्तों की तस्वीर सड़क पर लगाने से ख़त्म नहीं होंगे। यौन उत्पीड़न के मामलों को केवल वैज्ञानिक ढंग से शीघ्र करवाई करने से ही रोका जा सकता है।

सरकार को तस्वीर लगाने की असंवैधानिक आदेश से पहले क़ानून के जानकारों से सलाह लेनी चाहिए थी। अगर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ वास्तव में बढ़ते यौन उत्पीड़न को लेकर गम्भीर हैं तो वह पुलिस को आदेश दें कि, यौन उत्पीड़न की पीड़िताओ की शिकायत (एफ़आईआर) तुरंत दर्ज हों, और सबूत जमा किए जाए। इसके अलावा पुलिस पर सख़्ती हो कि अदालत में अभियुक्त के ख़िलाफ़ चार्जशीट समय से दाखिल की जाए, ताकि सज़ा का दर बढ़े और पीड़ित महिलाओं को न्याय मिल सके।

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