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विकास दुबे तो मारा गया, लेकिन अपने पीछे कई सवाल छोड़ गया!

इस एनकाउंटर को लकेर कई सवाल उठ रहे हैं। कई लोगों का कहना है कि विकास दुबे के साथ ही कई राज दफ़न हो गए, सबके गुनाहों पर परदा पड़ गया। इस एनकाउंटर को लेकर पुलिस की मंशा पर भी सवाल उठ रहे हैं और पूरे मामले की उच्च स्तरीय जांच की भी मांग की जा रही है।
Vikas dubey
image courtesy : India Today

“गाड़ी पलटने के बाद विकास दुबे पुलिसवालों का हथियार छीनकर भाग निकला। उसे सरेंडर करने का मौका दिया गया था, लेकिन विकास दुबे ने फायरिंग शुरू कर दी। जवाबी फायरिंग में उसे गोली लगी और उसकी मौत हो गई है।”

ये कानपुर के एसएसपी दिनेश कुमार का बयान है, जिन्होंने विकास दुबे के एनकाउंटर की पुष्टि की है। पुलिस अधिकारी ने बताया कि गाड़ी पलटने से कुछ पुलिस कर्मी घायल हुए थे और उन्हीं घायल पुलिस कर्मियों का पिस्तौल लेकर विकास दुबे भागने की कोशिश कर रहा था। इस एनकाउंटर में चार पुलिसकर्मी भी घायल हुए हैं।

कैसे हुआ एनकाउंटर?

पुलिस के अनुसार, प्रदेश की स्पेशल टास्क फ़ोर्स विकास को उज्जैन से सड़क के रास्ते कानपुर लेकर जा रही थी जब गाड़ी पलट गई। इसके बाद विकास दुबे ने भागने की कोशिश की जिसके बाद पुलिस को गोली चलानी पड़ी जिसमें अभियुक्त की मौत हो गई।

गोली लगने के बाद विकास दुबे के शव को कानपुर के लाला लाजपत अस्पताल ले जाया गया। जहां डॉक्टरों ने उसकी मौत की पुष्टि की।

बता दें कि 3 जुलाई से ही फरार चल रहे विकास दुबे को एक दिन पहले ही गुरुवार, 9 जुलाई को मध्य प्रदेश पुलिस ने उज्जैन के महाकाल मंदिर से बहुत ही नाटकीय ढंग से गिरफ्तार किया था। जिसे लेकर बहुत लोगों का मानना था कि ये सरेंडर ही है, जिसे गिरफ्तारी के नाम पर मैनेज किया गया है।

इसके बाद उज्जैन पुलिस ने ही उससे करीब 8 घंटे तक पूछताछ की और फिर देर शाम उसे यूपी एसटीएफ के हवाले कर दिया था।

मालूम हो कि इससे पहले विकास दुबे के साथी अमर दुबे, प्रभात मिश्रा और बऊआ दुबे का भी एनकाउंटर हो चुका है। वहीं इस मामले में चौबेपुर के एसओ विनय तिवारी समेत करीब 200 पुलिसवाले शक के दायरे में हैं।

विकास दुबे के एनकाउंटर पर उठे सवाल

उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव ने विकास दुबे की मौत पर एक ट्वीट किया है जिसमें लिखा है, "दरअसल ये कार नहीं पलटी है, राज़ खुलने से सरकार पलटने से बचाई गयी है।"

पूर्व मुख्यमंत्री और बसपा प्रमुख मायावती ने कहा, “कानपुर पुलिस हत्याकांड के साथ ही इसके मुख्य आरोपी दुर्दान्त विकास दुबे को मध्यप्रदेश से कानपुर लाते समय आज पुलिस की गाड़ी के पलटने व उसके भागने पर यूपी पुलिस द्वारा उसे मार गिराए जाने आदि के समस्त मामलों की माननीय सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में निष्पक्ष जांच होनी चाहिए। यह उच्च-स्तरीय जांच इसलिए भी जरूरी है ताकि कानपुर नरसंहार में शहीद हुए 8 पुलिसकर्मियों के परिवार को सही इंसाफ मिल सके। साथ ही, पुलिस व आपराधिक राजनीतिक तत्वों के गठजोड़ की भी सही शिनाख्त करके उन्हें भी सख्त सजा दिलाई जा सके। ऐसे कदमों से ही यूपी अपराध-मुक्त हो सकता है।”

कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने अपने ट्वीट में लिखा, 'अपराधी का अंत हो गया, अपराध और उसको सरंक्षण देने वाले लोगों का क्या?'

कांग्रेस नेता जितिन प्रसाद ने ट्वीट करते हुए लिखा, सरकार से लोग न्याय की उम्मीद करते हैं, बदले की नहीं…… यही सिपाही और अपराधी में फर्क होता है।

शिवसेना नेता प्रियंका चतुर्वेदी ने लिखा, ''न रहेगा बाँस, न बजेगी बाँसुरी।''

कांग्रेस के दिग्विजय सिंह ने ट्वीट किया, ''यह पता लगाना आवश्यक है विकास दुबे ने मध्यप्रदेश के उज्जैन महाकाल मंदिर को सरेंडर के लिए क्यों चुना? मध्यप्रदेश के कौन से प्रभावशाली व्यक्ति के भरोसे वो यहाँ उत्तर प्रदेश पुलिस के एनकाउंटर से बचने आया था?"

जम्मू-कश्मीर नेशनल कॉन्फ़्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला ने ट्वीट किया, ''मरे हुए आदमी कोई कहानी नहीं सुनाते हैं।''

जस्टिस मार्केंडय काटजू ने लिखा, ''इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस एएन मुल्ला ने एक फ़ैसले में कहा था- मैं पूरी ज़िम्मेदारी से ये बात कहना चाहता हूं कि पूरे देश में एक भी ऐसा आपराधिक गैंग नहीं है, जिसके अपराध क्रिमिनल्स के संगठित रूप जिसे हम इंडियन पुलिस फ़ोर्स के नाम से जानते हैं, उनके क़रीब भी नज़र आएं।''

गीतकार स्वानंद किरकिरे ने भी इस घटना पर ट्वीट किया उन्होंने लिखा है, ''कोई लेखक ऐसा सीन लिख दे तो बोलेंगे बड़ा फिल्मी है।''

बॉलीवुड एक्ट्रेस तापसी पन्नू ने एक ट्वीट कर इस पूरे घटनाक्रम पर तंज कसा है। तापसी पन्नू ने लिखा, ''वाह! ये उम्मीद तो बिल्कुल नहीं थी!! और फिर लोग कहते हैं कि बॉलीवुड की कहानियां सच्चाई से बेहद दूर होती हैं।'' 

सोशल मीडिया पर इस एनकाउंटर को लकेर कई सवाल उठ रहे हैं। कई लोगों का कहना है कि विकास दुबे के साथ ही कई राज दफ़न हो गए, सबके गुनाहों पर परदा पड़ गया। तो वहीं कई लोग इस एनकाउंटर को लेकर पुलिस की मंशा पर भी सवाल उठा रहे हैं।

प्रभात और विकास का एनकाउंटर एक जैसा होना मात्र संयोग है?

गुरुवार को प्रभात दुबे के एनकाउंटर के बाद भी पुलिस ने कुछ इसी तरह का घटनाक्रम बताया था कि पहले पुलिस की गाड़ी पंक्चर हुई फिर प्रभात पुलिसकर्मियों से पिस्टल छीनकर भागने की कोशिश करने लगा और फिर एनकाउंटर में मारा गया। आज भी लगभग सबकुछ उसी तरह से हुआ है, क्या ये मात्र संयोग है?

इस मामले में पुलिस के हाथ से दो दिन में दो बार अपराधी हथियार छीन कर भागने की कोशिश करते हैं। ऐसे में कई लोग सवाल उठा रहे हैं कि क्या पुलिसकर्मी शातिर अपराधियों को ले जाते समय अपने हथियारों को रखने में लापरवाही बरत रहे हैं। आख़िर कैसे कोई बदमाश जो उनके गिरफ्त में है वो उनसे ही हथियार छीन लेता है?

विकास ने अगर कल सरेंडर किया, तो आज भागा क्यों?

विकास दुबे की गिरफ्तारी के सवालों पर भी अभी पुलिस का साफ जवाब नहीं मिला है। कई मीडिया रिपोर्ट्स में बताया गया कि विकास दुबे ने खुद मंदिर परिसर में कुछ लोगों को अपनी पहचान बताई थी। यदि वह गिरफ्तारी के लिए तैयार नहीं था तो एक हाई सिक्यॉरिटी जोन में गया ही क्यों? यदि विकास दुबे कल गिरफ्तारी के लिए तैयार था तो आज उसने भागने की कोशिश क्यों की?

विकास के पैर पर गोली क्यों नहीं मारी गई?

एक महत्वपूर्ण सवाल ये भी है कि आखिर काफिले में मौजूद इतनी गाड़ियों में से केवल विकास की गाड़ी ही अचानक कैसे पलटी। यदि इसे संयोग मान लिया जाए तो भी बड़ा सवाल यह है कि जब इतने बड़े अपराधी को पुलिस गाड़ी में ला रही थी तो उसके हाथ खुले क्यों थे? क्या उसे हथकड़ी नहीं लगाई गई थी? यदि विकास ने भागने की कोशिश की तो उसके पैर में गोली क्यों नहीं मारी गई? खबरों के अनुसार विकास को कमर और कंधे में गोली लगी है।

मीडियाकर्मियों को दुर्घटना स्थल से पहले क्यों रोका गया?

कई मीडिया रिपोर्ट्स में का दावा किया जा रहा है कि कई मीडियाकर्मी भी पुलिस के उस काफिले के साथ ही उज्जैन से आ रहे थे, लेकिन दुर्घटना स्थल से कुछ पहले मीडिया और सड़क पर चल रही निजी गाड़ियों को रोक दिया गया था। न्यूज़ एजेंसी एएनआई ने भी इसका फुटेज जारी किया है। आखिर क्यों मीडिया को आगे बढ़ने से कुछ देर के लिए रोक दिया गया था?

हालांकि कानपुर रेंज के आईजी मोहित अग्रवाल का कहना है कि इस घटना का पूरा ब्यौरा देने के लिए पुलिस प्रेस कॉन्फ्रेंस करेगी और तभी सबकुछ बताया जाएगा।

गौरतलब है कि इस मामले में पुलिसवालों की संलिप्तता, विकास दुबे के राजनीतिक गठजोड़ के अलावा भी कई ऐसे सवाल हैं जिनके जवाब अब तक नहीं मिले हैं। 3 जुलाई की घटना के बाद भले ही विकास दुबे राज्य के टॉप अपराधियों की लिस्ट में शामिल कर लिया हो लेकिन इससे पहले सिर्फ एक थाने में ही 60 से अधिक आपराधिक मामले दर्ज होने के बावजूद उसका नाम कानपुर ज़िले के टॉप टेन क्रिमिनल्स या मोस्ट वांटेड की लिस्ट में नहीं था।

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