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"बिलक़ीस के दोषियों का स्वागत पूरे महिला समाज का अपमान"

सामाजिक संगठन मानते हैं कि 2014 में केंद्र में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की सरकार बनने के बाद से मुस्लिम और दलित समाज के विरुद्ध हिंसा में बढ़ोतरी हुई है।
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नागरिक समाज का कहना है, बिलक़ीस बानो बलात्कार के दोषियों का स्वागत कर दक्षिणपंथियों ने सम्पूर्ण "महिला" समाज का अपमान किया है। महिलाएँ मानती हैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का "नारी सम्मान" पर भाषण मात्र एक जुमला है।

अपने विश्लेषण के आधार पर यह सामाजिक संगठन मानते हैं कि 2014 में केंद्र में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की सरकार बनने के बाद से मुस्लिम और दलित समाज के विरुद्ध हिंसा में बढ़ोतरी हुई है।

ऐसा भी माना जा रहा की यह “रिहाई”, भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की गुजरात चुनावों से पहले "ध्रुवीकरण" की राजनीति का हिस्सा है। इस सब के बीच कानून के जानकार मानते हैं, गुजरात सरकार के इस फैसले से "यौन उत्पीड़न" को बढ़ावा मिलेगा।

सामाजिक कार्यकर्ता कहते है कि आजादी के 75 साल बाद भी "जातिगत हिंसा" पर अंकुश नहीं लगाया जा सका है। अब तो बच्चे भी जातिगत हिंसा के शिकार हो रहे हैं।

क्या था बिलक़ीस बानो मामला

उल्लेखनीय है कि गुजरात दंगे 2002 में 5 महीने की गर्भवती बिलक़ीस बानो को सामूहिक बलात्कार का शिकार बनाया गया और उनके परिवार के सात लोगों की हत्या कर दी गई थी।

इस मामले के सभी 11 दोषी (बलात्कारियों व हत्यारों) को गुजरात राज्य सरकार ने "क्षमा नीति" के तहत 15 अगस्त, 2022 को रिहा कर दिया ।

न्यूज़क्लिक ने समाज के विभिन्न क्षेत्रों से जुड़े लोगों से बिलक़ीस बानो बलात्कार के दोषियों की रिहाई पर बात करी, जिन्होंने एकमत से इस फैसले की निंदा की और इसको "नारी अस्मिता" का अपमान बताया।

बिलक़ीस का सुकून छीन लिया

सामाजिक कार्यकर्ता अरुंधती धुरु कहती हैं, देश आज़ादी के 75 साल का जश्न मना रहा है और बिलक़ीस बानो से घर में भी सुकून से जीने का अधिकार छीन लिया गया है। वह कहती हैं कि उनका बिलक़ीस बानो के परिवार से संपर्क हुआ है, वह लोग एक बार फिर भय में है। अब पीड़ित परिवार की सुरक्षा का सवाल है, क्योंकि पहले भी बिलक़ीस बानो के परिवार को धमकियाँ मिलती रही है। गुजरात दंगे 2002 की बात करते हुए अरुंधती धुरु कहती है आज ज़ुल्म के खिलाफ उठाने वाली तीस्ता सेतलवाड़ और बिलक़ीस बानो दोनों उत्पीडन का सामना कर रही हैं।

एक बड़ा प्रश्न चिह्न

वही महिला अधिकार कार्यकर्त्ता मधु गर्ग मानती हैं कि आज़ादी के 75 साल बाद भी जातिगत भेदभाव ख़त्म नहीं हुआ है। मधु गर्ग मानती हैं कि राजस्थान के जालौर में एक 9 साल के मासूम बच्चे की जातिगत ज़हर के कारण हुई हत्या, हमारे सरकारों व समाज पर भी एक बड़ा प्रश्नचिह्न है। वह आगे कहती हैं कि सामूहिक बलात्कार करने वाले जघन्य अपराधियों को रिहा करने से बलात्कार पीड़िताओं का मनोबल को कमज़ोर होगा।

गुजरात सरकार पुन: विचार करे

कानून के जानकार भी बिलक़ीस बानो बलात्कार के दोषियों की रिहाई को गलत मानते हैं। अधिवक्ता और मानव अधिकार कार्यकर्ता शुभांगी सिंह कहती "क्षमा नीति" ठीक है लेकिन दंगे में शामिल बलात्कारियों और हत्यारों को क्षमा देने की श्रेणी में नहीं आते हैं। अदालत और गुजरात सरकार दोनों अपने फैसले पर पुनः विचार करें।

"ध्रुवीकरण" की राजनीति

राजनीतिक टिप्पणीकार राजीव धियानी कहते कि बिलक़ीस बानो बलात्कार के दोषियों को रिहा कर के बीजेपी गुजरात विधानसभा चुनावों में "ध्रुवीकरण" की राजनीति करना चाहती है। धियानी मानते हैं ऐसे में देश की जनता को "नारी अस्मिता" का अपमान करने वालों को जवाब देना होगा। उन्होंने कहा मोदी के “नारी सम्मान” पर भाषण और उन्ही की पार्टी द्वारा बलात्कार के दोषियों को छोड़ा जाना सिद्ध करता है बीजेपी के कहने और करने में कितना अंतर है।

मुसलमानों-दलितों और महिलाओं पर हिंसा बढ़ी

लखनऊ विश्विदालय की पूर्व कुलपति रूप रेखा वर्मा कहती है कि केंद्र में नरेन्द्र मोदी सरकार बनने के बाद से मुसलमानों और दलितों दोनों पर हिंसा बढ़ी है। प्रो. वर्मा के अनुसार बहुसंख्यक-अल्पसंख्यकों पर और उच्च जाति वाले दलितों पर ज़ुल्म कर रहे हैं। महिलाओं का उत्पीड़न भी बढ़ा है। बिलक़ीस बानो बलात्कार के दोषियों की रिहाई, जालौर में 9 साल के बच्चे की हत्या और हाथरस कांड इसी के उदहारण हैं। पूर्व कुलपति कहती हैं कि ऐसा प्रतीत होता है देश संविधान से नहीं बल्कि “मनुस्मृति" के सिद्धांतों से चल रहा है।

अपराध को मौन स्वीकृति

सामाजिक कार्यकर्ता मीना सिंह कहती है नरेंद्र मोदी और अमित शाह ने नया भारत बनाया है जहाँ बलात्कारियों और हत्यारों को फूल मालाओं से स्वागत किया जाता है। उन्होंने कहा की गुजरात की बीजेपी सरकार का फैसला निश्चित रूप से दंगाईयों ,हत्यारों व बलात्कारियों को एक विशेष समुदाय के खिलाफ किये गये अपराध को सरकार की मौन स्वीकृति देता है।

“नारी सम्मान” केवल एक जुमला

कांग्रेस नेता सदफ जाफ़र कहती हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का “नारी सम्मान” केवल एक जुमला है। उनके अनुसार बिलक़ीस बानो मामले में जिनको रिहा किया गया है उनका दोष (बलात्कार और हत्या ) साबित हो चुका था।

कांग्रेस नेता के अनुसार मोदी स्वतंत्रा दिवस पर लाल किले से महिला सम्मान की बात करते हैं और उसी रोज़ उनकी पार्टी की सरकार बलात्कारियों और दंगाइयों को रिहा करती है। सदफ आगे कहती हैं कि यह फैसला “यह हिंदुस्तान की महिलाओं के अपमान के साथ देश के हर “संवेदनशील” नागरिक का भी अपमान है।”

बिलक़ीस-तीस्ता निशाने पर

छात्र नेता प्रियांशी अग्रवाल कहती हैं कि तीस्ता का जेल जाना और बिलक़ीस बानो के बलात्कारियों की रिहाई दोनों मामलों में महिलाओं को निशाना बनाया गया है। एक तरफ दंगाइयों के खिलाफ लड़ने वाली तीस्ता को जेल भेज दिया गया है। दूसरी ओर बिलक़ीस बानो के बलात्कारियों और उनके परिवार के हत्यारों को जेल से रिहा कर दिया। इन दोनों महिलाओं ने तत्कालीन मोदी सरकार के विरुद्ध गुजरात दंगों को लेकर आवाज उठाई थी, अब दोनों का उत्पीड़न किया जा रहा है।

लखनऊ मे गुजरात सरकार के विरुद्ध प्रदर्शन

गुजरात सरकार पर बिलक़ीस बानो बलात्कार के दोषियों को पुनः जेल भेजने के लिए नागरिक समाज दबाव बना रहा है। इसी कड़ी में उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ मे भी गुजरात सरकार के विरुद्ध प्रदर्शन हुआ।

शहीद स्मारक पर हुए धरने की अध्यक्षता महिला फेडेरेशन की आशा मिश्र ने की और इसमें साझी दुनिया, भारतीय महिला फेडेरेशन, एडवा, एनएपीएम से, इप्टा और सुगन चौखट आदि संगठन शामिल हुए।

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