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डीएनए बिल के दुरुपयोग को लेकर संसदीय समिति की क्या चिंताएं हैं?

समिति के सदस्यों और इसके सामने पेश हुए कई सांसदों ने इस बात की आशंका जाहिर की है कि धर्म, जाति या राजनीतिक विचार के आधार पर लोगों को निशाना बनाने के लिए इस कानून का दुरुपयोग किया जा सकता है।
डीएनए
फोटो साभार: The Hindu 

संसद की स्थायी समिति ने डीएनए प्रौद्योगिकी (उपयोग एवं अनुप्रयोग) विधेयक 2019 के तहत प्रस्तावित क्राइम सीन डीएनए प्रोफाइल का एक राष्ट्रीय डेटाबेस बनाने पर चिंता जताई है। समिति का कहना है कि इससे क्राइम में शामिल नहीं होने वाले लोग भी टारगेट होंगे। समिति ने आशंका जाहिर की है कि डीएनए डेटा बैंक के ज़रिये धर्म, जाति या राजनीतिक विचार के आधार पर लोगों को निशाना बनाने के लिए इसका दुरुपयोग किया जा सकता है।

इस बिल के संबंध में संसदीय समिति का ये भी कहना है कि इससे डेटाबेस में हर उस व्यक्ति का डीएनए मौजूद हो सकता है, जो क्राइम सीन पर पहले या बाद में गए होंगे या फिर उनके बाल या किसी भी सैंपल को क्राइम सीन तक पहुंचाया गया होगा।

क्या है समिति की चिंताएं?

बुधवार यानी 3 फरवरी को कांग्रेस नेता जयराम रमेश की अध्यक्षता में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन पर संसद की स्थायी समिति से संबंधित 32 सदस्यीय विभाग ने इस बिल के संबंध में अपनी रिपोर्ट राज्यसभा के पटल पर रखी।

इस बिल पर समिति के दो सदस्यों, तेलंगाना से लोकसभा सदस्य असदुद्दीन ओवैसी तथा केरल से राज्यसभा सदस्य बिनॉय विश्वम ने असहमति नोट भी प्रस्तुत किया। दोनों ने बिल का विरोध करते हुए कहा कि इससे निजता के अधिकार का उल्लंघन होगा।

इंडियन एक्सप्रेस की खबर के अनुसार समिति ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा, “कमेटी इस बात से अवगत है कि यह विधेयक बहुत ही टेक्निकल, जटिल एवं संवेदनशील है। कई सदस्यों ने डीएनए तकनीक के इस्तेमाल- इसके दुरुपयोग को लेकर चिंता जाहिर की है। ये डर पूरी तरह से निराधार नहीं हैं और इसका निराकरण किया जाना चाहिए।”

संविधान की भावना के अनुरूप हो डीएनए प्रोफाइलिंग

समिति का मानना है कि डीएनए प्रोफाइलिंग सुनिश्चित करने के लिए एक ऐसा सक्षम तंत्र जल्द ही बनाया जाए, जो पूरी तरह से सुप्रीम कोर्ट के विभिन्न फैसलों और संविधान की भावना के अनुरूप हो।”

अपनी रिपोर्ट में संसदीय समिति का कहना है कि डीएनए प्रोफाइल के राष्ट्रीय डेटा बैंक के साथ जोखिम यह है कि इसमें संभवतः सभी को शामिल किया जाएगा, जो क्राइम सीन पर पहले या बाद में गए होंगे, अगर वह क्राइम से जुड़े भी नहीं होंगे तो भी वह जांच का हिस्सा बन जाएंगे। इसके बाद बिना इन लोगों की जानकारी के इनका डीएनए "क्राइम सीन इंडेक्स" का हिस्सा बन जाएगा।

संसदीय समिति ने सुझाव दिया कि अपराध स्थल डीएनए प्रोफाइल का उपयोग जांच और परीक्षण में किया जा सकता है, लेकिन इसे डेटा बैंक में नहीं डाला जाना चाहिए और मामला समाप्त होने के बाद इसे नष्ट कर दिया जाना चाहिए। अगर कोई दोषी है, तो दोषी के डीएनए प्रोफाइल को ही डेटा बैंक में शामिल किया जा सकता है।

आख़िर डीएनए प्रौद्योगिकी (उपयोग और अनुप्रयोग) विनियमन विधेयक है क्या?

सरकार की माने, तो इस बिल का उद्देश्य ‘विशेष श्रेणी के व्यक्तियों’ जैसे कि अपराध के शिकार लोगों, लापता व्यक्तियों और बच्चों, अज्ञात शवों के साथ अपराधियों, संदिग्धों और मामलों में विचाराधीन लोगों का एक डेटाबेस स्थापित करना है।

इस बिल के तहत राष्ट्रीय डीएनए डेटा बैंक और हर राज्य में क्षेत्रीय डीएनए डेटा बैंक खोले जाने का प्रावधान है। हर डेटा बैंक में क्राइम सीन इंडेक्स, संदिग्ध व्यक्तियों (सस्पेक्ट) या विचाराधीन कैदियों (अंडरट्रायल्स) के इंडेक्स, अपराधियों के इंडेक्स, लापता व्यक्तियों के इंडेक्स और अज्ञात मृत व्यक्तियों के इंडेक्स होंगे।

बिल के मुताबिक, ऐसा डेटाबेस डीएनए प्रोफाइलिंग के माध्यम से बलात्कार और हत्या जैसे जघन्य अपराधों को दोहराने वाले व्यक्तियों का पता लगाने में मदद करेगा। इस बिल में कुछ लोगों की पहचान स्थापित करने हेतु डीएनए टेक्नोलॉजी के प्रयोग के रेगुलेशन का प्रावधान है।

कैसे होगा डीएनए कलेक्शन?

इंडिया टुडे की  रिपोर्ट के अनुसार नए डीएनए बिल के मुताबिक, डीएनए प्रोफाइल तैयार करते समय जांच अधिकारियों द्वारा किसी व्यक्ति के शारीरिक पदार्थों को इकट्ठा किया जा सकता है। कुछ स्थितियों में इन पदार्थों को इकट्ठा करने के लिए अधिकारियों को उस व्यक्ति की सहमति लेनी होगी। सात साल से नीचे के सज़ायाफ्ता कैदी से भी सहमति लेनी होगी, लेकिन उससे ऊपर वाले की सहमति नहीं चाहिए।

डीएनए बिल में डीएनए रेगुलेटरी बोर्ड की स्थापना का प्रावधान है जोकि डीएनए डेटा बैंक और डीएनए लेबोरेट्रीज़ को सुपरवाइज करेगा। बायोटेक्नोलॉजी विभाग का सेक्रेटरी बोर्ड का एक्स ऑफिशियो चेयरपर्सन होगा। डीएनए की इंट्री, उसे रखने या हटाने के मानदंडों पर रेगुलेटरी बोर्ड फैसला लेगा। इसके अलावा डीएनए का खुलासा करना या अनुमति के बिना डीएनए सैंपल का इस्तेमाल करने पर सजा का प्रावधान है। डीएनए सूचना का खुलासा करने पर तीन साल तक की कैद की सजा भुगतनी पड़ सकती है और एक लाख रुपए तक का जुर्माना भरना पड़ सकता है।

लोगों को निशाना बनाने के लिए कानून का दुरुपयोग हो सकता है!

हालांकि समिति के सदस्यों और इसके सामने पेश हुए कई सांसदों ने इस बात की आशंका जाहिर की है कि धर्म, जाति या राजनीतिक विचार के आधार पर लोगों को निशाना बनाने के लिए इस कानून का दुरुपयोग किया जा सकता है।

समिति ने यह भी कहा, “वे इस तरह के कानून बनाने की जरूरत से इनकार नहीं कर रहे हैं, खासतौर पर जब डीएनए तकनीक पहले से ही प्रयोग में है। वास्तव में हाल के महीनों में इसके प्रयोग से एक फर्जी मुठभेड़ का खुलासा हुआ है, जिसमें निर्दोष मारे गए थे, ये उस दावे के बिल्कुल विपरीत था, जिसमें ये कहा गया था कि मृतक आतंकी थे।”

समिति के सदस्य बिनॉय विश्वम ने कहा कि बिना पर्याप्त कानूनी सुरक्षा के यह कानून हाशिये पर पड़े लोगों विशेषकर दलितों, आदिवासी एवं अल्पसंख्यकों के लिए समस्यात्मक होगा। ओवैसी ने जातिगत डेटा के साथ-साथ ‘विशिष्ट समूहों के साथ भेदभाव के लिए’ जानकारी इकट्ठा करने की संभावना पर चिंता जताई।

आपको बता दें कि पहली बार साल 2003 में इस तरह के विधेयक का प्रस्ताव रखा गया था। इसमें कई बार जैव प्रौद्योगिकी विभाग और कानून मंत्रालय द्वारा संशोधन किया गया है। इससे पहले ऐसा ही एक बिल अगस्त, 2018 को लोकसभा में पेश किया गया था लेकिन वह लैप्स हो गया था। अक्टूबर 2019 में तत्कालीन विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री हर्ष वर्धन ने लोकसभा में डीएनए बिल पेश किया था। जिसके बाद इसे संसद की स्थायी समिति के पास भेज दिया गया था।

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