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सरकार की यह कैसी एमएसपी? केवल धान में ही किसान को प्रति क्विंटल 651 रुपये का नुक़सान!

हाल ही में मोदी जी ने सरकारी ख़रीद, सीजन 2021-22 के लिए ख़रीफ़ की फ़सलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य जारी किए हैं जोकि स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट के समर्थन मूल्य से बहुत पीछे है। 
सरकार की यह कैसी एमएसपी? केवल धान में ही किसान को प्रति क्विंटल 651 रुपये का नुक़सान!

मोदी जी का वादा - मोदी जी ने 2014 के चुनावी भाषण में 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने का वादा किया था जिसको बार-बार दुहराते भी रहे है ।  मोदी जी को सत्ता में आए अब 7 साल हो चुके हैं और 2022 आने में अब 6 महीने से भी कम समय शेष है, लेकिन मोदी सरकार अभी तक किसानों को लागत का 150 फीसदी यानी डेढ़ गुना दाम तक नहीं दे पायी है। इससे साफ हो जाता है की मोदी जी का किसानों की आय दोगुना करने का वादा मात्र एक जुमला था।

इस जुमले को और स्पष्ट रूप से समझने के लिए, हालही में मोदी सरकार द्वारा लाए गए तीनों कृषि कानूनों की तरफ़ नज़र डालते है । कृषि कानूनों में सरकार ने कहीं भी यह स्पष्ट नहीं किया है की निजी कम्पनियां किसानों से न्यूनतम समर्थन मूल्य पर फ़सलें खरीदेगीं। आमतौर पर निजी क्षेत्र में वस्तुओं का मूल्य, माँग और आपूर्ति से निर्धारित होता है। इससे किसानों में इस बात का खतरा पैदा हो जाता है, क्या उन्हें फ़सलों का सही दाम मिल पाएगा।

कृषि लागत और मूल्य आयोग अपनी रिपोर्ट में राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय स्तर पर ज़्यादा मात्रा में उत्पादन का हवाला देकर न्यूनतम समर्थन मूल्य को निम्न स्तर पर रखने का एक कारण बताता रहा है। इससे यह स्पष्ट होता है की निजी कम्पनिया दोनों बड़ी फ़सलों गेहूं और चावल को ओने पौने दाम पर ही खरीदेंगी । फिर आय दोगुनी होने का सवाल ही नहीं उठता।

ख़रीफ़ का न्यूनतम समर्थन मूल्य - हाल ही में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता वाली मंत्रिमंडलीय समिति ने कृषि उपज की सरकारी खरीद, सीजन 2021-22 के लिए सभी ख़रीफ़ फ़सलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य जारी किए है। जिसमें धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य 1,940 रुपये/क्विंटल, ज्वार का मूल्य 2,758 रुपये/क्विंटल, बाजरे का मूल्य 2,250 रुपये/क्विंटल, रागी का मूल्य 3,377 रुपये/क्विंटल, मक्का का मूल्य 1,870 रुपये/क्विंटल, अरहर का मूल्य 6,300 रुपये/क्विंटल, मूंग का मूल्य 7,275 रुपये/क्विंटल, उड़द का मूल्य 6,300 रुपये/क्विंटल, मूंगफली का मूल्य 5,550 रुपये/क्विंटल, सूरजमुखी का मूल्य 6,015 रुपये/क्विंटल, सोयाबीन का मूल्य 3,950 रुपये/क्विंटल, तिल का मूल्य 7,307 रुपये/क्विंटल, नाइजर सीड का मूल्य 6,930 रुपये/क्विंटल और कपास का मूल्य 5,726 रुपये/क्विंटल तय किए गए हैं।

दावा किया जा रहा है की सरकार ने फ़सलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ाकर लागत का डेढ़ गुना कर दिया है।

मोदी जी का डेढ़ गुना मुनाफे वाला फार्मूला - मोदी जी के लागत में डेढ़ गुना मुनाफ़ा वाले फॉर्मूले को इस बात से समझिये-

स्वामीनाथन आयोग ने किसानों की आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिए 2004 में केंद्र सरकार को अपनी रिपोर्टें सौंपी थी। जिसमें स्वामीनाथन आयोग ने किसान की आर्थिक बदहाली और आत्महत्या जैसे मुद्दों को गंभीरता से समझा और केंद्र सरकार को लागत C2 पर 50 फ़ीसदी मुनाफ़े का न्यूनतम समर्थन मूल्य देने की सिफारिश की थी। 

C2 लागत में फ़सल उपजाने में जुड़ी सभी लागत को शामिल किया जाता है। जैसे बीज, खाद, मजदूरी, पानी आदि पर किया गया नकद खर्चा, फ़सल उपजाने में काम कर रहे परिवार के सदस्यों की मजदूरी, फ़सल उपजाने के लिए किराये पर ली गयी जमीन का किराया और फ़सल उपजाने के लिए, लिए गए कर्ज पर ब्याज आदि।

सरकार को C2 के आधार पर लागत में 50 फीसदी मुनाफ़ा जोड़कर फ़सलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य निर्धारित करने चाहिए। लेकिन सरकर फ़सलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य को लागत A2+Fl में 50 की बढ़ोतरी के साथ निर्धारित कर रही है।

लागत A2+Fl में नगद ख़र्चे और परिवार के सदस्यों की मजदूरी को ही जोड़ा जाता है । जिसके कारण स्वामीनाथन आयोग के मूल्य और सरकार के निर्धारित मूल्य में बहुत बड़ा अंतर बना हुआ है। जैसा की नीचे ग्राफ में दिखाया गया है।

सरकार को कितना न्यूनतम समर्थन मूल्य निर्धारित करना चाहिए - स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट के अनुसार किसानों के खुशहाल जीवन और आर्थिक मजबूती के लिए सरकार को लागत C2 का 50 फ़ीसदी मुनाफे से मूल्य निर्धारित करना चहिए। जिससे छोटे मोटे किसान भी इस दौर में बढ़ती महंगाई का सामना कर सकें और आर्थिक तौर पर मजबूत हों। लेकिन सरकार ने जो न्यूनतम समर्थन मूल्य निर्धारित किया है वह लागत C2 पर 50 फ़ीसदी मुनाफे के हिसाब से बहुत कम है।

धान की फ़सल की बात करे तो, धान की फ़सल में आने वाली लागत C2, 1,727 रुपये /क्विंटल है । जिसका 50 फ़ीसदी मुनाफ़े के साथ मूल्य 2,591 रुपये /क्विंटल होता है लेकिन सरकार ने इसका मूल्य मात्र 1,940 रुपये /क्विंटल ही निर्धारित किया है। जिसके कारण इस बार धान में किसान को 651 रुपये /क्विंटल के घाटे का सामना करना पड़ेगा या फिर यह कहिये किसान को प्रति क्विंटल 651 रुपये का हक़ उसको नहीं मिल पाएगा।

ख़रीफ़ की फ़सलों के समर्थन मूल्य में सबसे बड़ा अंतर सोयाबीन, तिल और तिलहन में है ,जैसा की नीचे तालिका में दिखाया गया है ।

सरकार के ख़रीद की ज़मीनी हक़ीक़त - उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के एक किसान गुरप्रीत बताते हैं, सरकार ने न्यूनतम समर्थन मूल्य तो निर्धारित कर दिया है लेकिन सबसे बड़ी दिक्तत सरकारी मंडियों में आती है, इस बार तो किसान आंदोलन के कारण सरकार पर दबाव था इसलिए खरीदारी सही हुई है, वरना कई बार ऐसा होता है कि एक या दो किसानों की फ़सलें खरीदी जाती हैं और कह दिया जाता की मंडी की खरीदारी की सीमा पूरी हो गयी है। इसके पीछे कारण यह है की मंडियों के आढ़ती, धान मिलों का धान खरीद कर कोटा पूरा क़र लेते है जोकि धान मिलों ने किसानों से ओने-पौने दाम पर ख़रीदा होता है और मुनाफे का बंटवारा कर लेते हैं। साथ ही मंडियों में दूसरी बड़ी परेशानी यह है की हमारी फ़सलें मंडियों के मानकों को पूरा नहीं कर पाती हैं जिसके कारण मूल्य भी कम मिलता है।

जिला बिजनौर के एक किसान दीपक चौहान बताते हैं कि हाल ही में सरकार ने रबी की फ़सलों की खरीदारी की है। मंडियों में ज़्यादा किसानों के आ जाने के कारण, मंडियों ने किसानों से खरीदारी की सीमा बांध दी। जिसके कारण हम अपनी पूरी फ़सल को मंडियों ने नहीं बेच सकते हैं और फ़सल का एक बड़ा हिस्सा ओपन मार्किट में बेचना पड़ता है जहां फ़सलों का सही दाम मिल पाना मुश्किल होता है। साथ ही वे बताते हैं कि हमे सबसे बड़ी परेशनी धान की फ़सल को बेचने में होती है। मंडिया अच्छी क्वालिटी के धान को साधारण धान के दाम पर खरीदती हैं। चूंकि अच्छी क्वालिटी के धान का उत्पादन भी कम होता है इससे हमें धान का सही दाम नहीं मिल पाता ।

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