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ख़बरों के आगे-पीछे : पटना में विपक्षी जमावड़ा क्या करेगा और अन्‍य ख़बरें  

विपक्षी दलों का कोई नया गठबंधन बन सकता है। इस बारे में पटना बैठक में बातचीत होगी। इसके अलावा भाजपा के खिलाफ चुनावी एजेंडा तय करने और न्यूनतम साझा कार्यक्रम बनाने के बारे में चर्चा होगी। 
Opposition Parties
प्रतीकात्‍मक तस्‍वीर: PTI

पटना में विपक्षी जमावड़ा क्या करेगा?

पटना में 23 जून को सभी विपक्षी दलों की बैठक में भाजपा के खिलाफ कोई विपक्षी गठबंधन आकार लेने नहीं जा रहा है। इस बैठक में सीटों के बंटवारे को लेकर भी कोई बातचीत नहीं होनी है। ज्यादातर दलों का मानना है कि अभी ऐसा करने का समय नहीं आया है। दरअसल यह बैठक यह संदेश देने के लिए है कि विपक्षी दल एक व्यापक गठबंधन की दिशा में आगे बढ़ने के लिए तैयार हैं। बताया जा रहा है कि बैठक में गठबंधन की रूपरेखा को लेकर चर्चा हो सकती है। कांग्रेस का जोर इस बात पर रहेगा कि सारी पार्टियां यूपीए के बैनर तले ही चुनाव लड़े। दूसरी ओर प्रादेशिक पार्टियां चाहेंगी कि नया गठबंधन बने। इसका कारण यह है कि ममता बनर्जी, अखिलेश यादव और वामपंथी पार्टियां यूपीए के बैनर तले चुनाव लड़ने को तैयार नहीं हैं। अरविंद केजरीवाल और के. चंद्रशेखर राव को तो कांग्रेस से ही परहेज है और इसलिए उन्होंने पटना की बैठक में शामिल होने से इनकार कर दिया है। इसलिए कोई नया गठबंधन बन सकता है। इस बारे में पटना बैठक में बातचीत होगी। इसके अलावा भाजपा के खिलाफ चुनावी एजेंडा तय करने और न्यूनतम साझा कार्यक्रम बनाने के बारे में चर्चा होगी और इसके लिए एक कमेटी अलग बनाई जा सकती है। सीटों के तालमेल पर बात करने करने के लिए भी एक अलग कमेटी बन सकती है। इन कमेटियों की अलग-अलग बैठकें होती रहेंगी और उनकी सिफारिशों पर विचार के लिए सभी पार्टियों की एक नियमित बैठक हर महीने या दो महीने पर हो सकती है। इस बारे में फैसला होगा कि पटना जैसी ग्रैंड बैठक अलग-अलग राज्यों में हर महीने या दो महीने पर हो। अगली बैठक किसी कांग्रेस शासित राज्य में हो सकती है। 

हरियाणा में भाजपा का गठबंधन संकट में 

हरियाणा में पिछले विधानसभा चुनाव से ठीक पहले बनी जननायक जनता पार्टी से भाजपा ने सरकार बनाने के लिए गठबंधन किया था। कुछ समय पहले तक सरकार और गठबंधन दोनों में कोई दिक्कत नहीं थी। लेकिन जैसे-जैसे लोकसभा और विधानसभा के चुनाव नजदीक आ रहे हैं, वैसे-वैसे दोनों के बीच दूरी बढ़ रही है। दूरी बढ़ने का कारण राजनीतिक है। किसान आंदोलन के बाद पहलवानों के आंदोलन ने जाट मतदाताओं को नाराज किया है। गौरतलब है कि ओमप्रकाश चौटाला के पोते दुष्यंत चौटाला की जननायक जनता पार्टी को जो दस सीटें मिली है वह विशुद्ध रूप से जाट वोट की बदौलत मिली है। लेकिन पहलवानों के साथ जैसा बरताव हुआ है उससे जाटों में नाराजगी बढ़ी है। दुष्यंत की पार्टी के विधायकों ने खुल कर पहलवानों का साथ दिया है। दूसरी ओर भाजपा भी जाट और गैर जाट के ध्रुवीकरण की पुरानी राजनीति को फिर से साधने की कोशिश कर रही है और ऐसा तभी होगा, जब दुष्यंत की पार्टी अलग हो। इसके लिए पार्टी के प्रभारी बिप्‍लब देव ने उचानाकलां सीट का दांव चला है। उन्होंने कहा कि उचानाकलां सीट पर प्रेमलता लड़ेंगी। दुष्यंत इसी सीट से चुनाव जीते हैं, जबकि प्रेमलता पुराने नेता बीरेंद्र सिंह की पत्नी हैं। बिप्‍लब देव के बयान पर दुष्यंत ने जैसी तीखी प्रतिक्रिया दी, उससे आगे की राजनीति का अंदाजा होता है। टकराव का दूसरा मुद्दा हिसार लोकसभा सीट बन सकती है, जहां से दुष्यंत चुनाव लड़ते रहे हैं और उनकी पार्टी इस सीट पर दावा करती है। पिछले दिनों भाजपा में शामिल हुए कांग्रेस के बड़े नेता कुलदीप बिश्नोई को भाजपा ने हिसार सीट देने का वादा किया है। पिछले दिनों बिप्लब देव ने गोपाल कांडा सहित पांच निर्दलीय विधायकों की परेड भी कराई थी। परेड का मकसद यह बताना था कि दुष्यंत के बगैर भी भाजपा के पास सरकार चलाने का बहुमत है।

पांच महीने बाद बीएसएफ के डीजी की नियुक्ति

आखिरकार करीब पांच महीने के बाद सीमा सुरक्षा बल बीएसएफ को एक पूर्णकालिक प्रमुख मिल गया। सरकार ने बीते सोमवार को बीएसएफ के महानिदेशक यानी डीजी की नियुक्ति की। पिछले 160 दिन से कामचलाऊ डीजी के नेतृत्व में ही देश की इस प्रमुख अर्धसैनिक बल का काम चल रहा था। असल में 31 दिसंबर 2022 को बीएसएफ के डीजी पंकज सिंह का कार्यकाल समाप्त हो गया था। उसके बाद केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल यानी सीआरपीएफ के डीजी सुजय लाल को बीएसएफ का प्रभार सौंप दिया गया था। तब से इसी तदर्थ व्यवस्था के तहत काम चल रहा था। अधिकारियों की नियुक्ति करने वाली कैबिनेट कमेटी की मंजूरी के बाद सोमवार को 1989 बैच के आईपीएस अधिकारी नितिन अग्रवाल को बीएसएफ का नया डीजी नियुक्त किया गया। वे जुलाई 2026 में रिटायर होने तक इस पद पर रहेंगे। ऐसा नहीं है कि पहली बार बीएसएफ के डीजी का पद इतने समय तक तदर्थ व्यवस्था के तहत रहा हो। इससे पहले मार्च 2020 में भी विवेक जौहरी के रिटायर होने के बाद पांच महीने से कुछ ज्यादा समय तक उनकी जगह आईटीबीपी के एसएस देसवाल ने बीएसएफ का प्रभार संभाला था। असल में इस सरकार में कई अहम पदों पर या तो काम चलाऊ व्यवस्था चल रही है या रिटायर अधिकारियों को ठेके पर रख कर उनसे काम कराया जा रहा है।

राघव चड्ढा को भी बड़ा बंगला चाहिए

आम आदमी पार्टी ने अपने गठन के समय ऐलान किया था कि उसके नेता सरकारी बंगले नहीं लेंगे, बड़ी गाड़ियों में नहीं चलेंगे, सुरक्षा नहीं लेंगे और आम लोगों की तरह रहेंगे। लेकिन सबने देखा है कि पार्टी के सर्वोच्च नेता अरविंद केजरीवाल ने न सिर्फ बंगला लिया बल्कि पुराने बंगले को तोड़ कर करीब 50 करोड़ रुपए की लागत से नया बंगला बनवा लिया। वे आधा दर्जन गाड़ियों के काफिले से चलते हैं। चार्टर्ड हवाई जहाज से यात्रा करते हैं। उनको दो राज्यों से सुरक्षा मिली हुई है। अब उन्हीं के रास्ते पर चलते हुए उनकी पार्टी के राज्यसभा सदस्य राघव चड्ढा अपना बंगला बचाने के लिए कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं। उन्होंने राज्ससभा के सभापति जगदीप धनकड़ से बहुत अनुरोध करके टाइप सात का एक बड़ा बंगला लिया था और अब उसे बचाने के लिए लड़ रहे है। इस तरह के बंगले उन सांसदों को मिलते हैं जो पूर्व में केंद्रीय मंत्री, राज्यपाल या मुख्यमंत्री रहे हों, जबकि चड्ढा पहली बार के सांसद है। जब उनको बंगला खाली करने का नोटिस मिला तो वे अदालत में पहुंच गए और अदालत ने बंगला खाली कराने के आदेश पर रोक लगा दी। राज्यसभा आवास समिति के चेयरमैन सीएम रमेश का कहना है कि पिछली कमेटी की ओर से किए गए आबंटन में बदलाव किया गया है और जो जिस योग्य है वह बंगला उसको दिया जा रहा है। लेकिन जल्दी ही शादी करने जा रहे राघव चड्ढा किसी हाल में टाइप सात का बंगला नहीं छोड़ना चाहते हैं।

भाजपा के रंग में मौसम का भंग

भाजपा ने नरेंद्र मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के चार साल पूरे होने के मौके पर एक महीने का महासंपर्क अभियान शुरू किया है, जिसमें अब कई तरह की मुश्किलें पेश आ रही हैं। सबसे बड़ी मुश्किल गर्मी की है। इस अभियान की शुरुआत 31 मई को राजस्थान के अजमेर में प्रधानमंत्री मोदी की रैली से हुई थी लेकिन उसके बाद ही उत्तर और पूर्वी भारत के राज्यों में जबरदस्त गर्मी पड़ने लगी। कई राज्यों में गरमी और लू की वजह से अलर्ट जारी करना पड़ा। भाजपा ने तय किया था कि महासंपर्क अभियान के तहत देश के अलग अलग हिस्सों में 51 रैलियां होगी और इसके अलावा पार्टी कार्यकर्ताओं व नेताओं के साथ चार हजार टिफिन मीटिंग होगी। टिफिन मीटिंग की शुरुआत पिछले चुनाव से पहले प्रधानमंत्री मोदी ने की थी। इसके तहत पार्टी के बड़े नेता और छोटे कार्यकर्ता भी अपने घर से खाना लेकर आते हैं और एक जगह इकट्ठा होकर सब लोग खाते हैं। इस दौरान पार्टी की राजनीतिक गतिविधियों पर चर्चा होती है। यह कार्यक्रम करीब तीन घंटे का होता है। लेकिन गर्मी के कारण सारा माहौल बिगड़ा हुआ है। शुरुआत के 15 दिन में बहुत कम टिफिन मीटिंग हुई और उसमें भी ज्यादा लोग नही जुटे। सब मौसम ठीक होने और बारिश शुरू होने का इंतजार कर रहे हैं। रैलियां हो रही है लेकिन उनमें भी सारी कोशिशों के बावजूद भीड़ नहीं जुट रही है। 

केजरीवाल की हसरतें फिर उफान पर

आम आदमी पार्टी के सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल की अखिल भारतीय हसरतें एक बार फिर उफान पर हैं। दिल्ली के रामलीला मैदान में रैली करके उन्होंने रैली में जिस अंदाज में भाषण किया और जो मुद्दे उठाए उससे भी लग रहा है कि उनकी मौजूदा राजनीतिक गतिविधियों के केंद्र में आगामी लोकसभा चुनाव है। रैली से पहले वे देश भर में घूमे और विपक्षी पार्टियों के नेताओं से मिले। उन्होंने अपने भाषण में 12 साल पहले की याद दिलाई, जब इसी रामलीला मैदान में अन्‍ना हजारे का चेहरा आगे रख कर उन्होंने इंडिया अगेंस्ट करप्शन का आंदोलन चलाया था। तब उस आंदोलन का फायदा भाजपा उठा ले गई थी क्योंकि तब केजरीवाल की पार्टी नई थी और उसके पास पूरे देश में संगठन नहीं था। अब वे पूरे देश में चुनाव लड़ने को तैयार है। इसीलिए उन्होंने पटना में 23 जून को होने वाली विपक्षी दलों की बैठक से अपने को अलग कर लिया है। दिल्ली सरकार के अधिकारियों के तबादले और नियुक्ति को लेकर केंद्र की ओर से लाए गए अध्यादेश को भी उन्होंने इसीलिए अखिल भारतीय मुद्दा बनाने की कोशिश की है। केजरीवाल ने कहा कि यह सिर्फ दिल्ली का मामला नहीं है। उन्होंने कहा कि कल इस तरह का अध्यादेश किसी भी राज्य में लागू हो सकता है। हालांकि जम्मू-कश्मीर का पूर्ण राज्य का दर्जा खत्म कर वहां अनुच्छेद 370 को बेअसर करने के केंद्र सरकार के फैसले का केजरीवाल ने समर्थन किया था, लेकिन अब उन्हें संविधान और संघीय ढांचे पर मंडराता संकट नजर आने लगा है और वे सभी राज्यों को आगाह कर रहे हैं। केजरीवाल ने अपने भाषण में 140 करोड़ लोगों को संबोधित किया। इससे पहले 140 करोड़ लोगों का जुमला सिर्फ प्रधानमंत्री मोदी ही बोलते थे।

आशीर्वाद और धन्यवाद की भाजपाई राजनीति

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सार्वजनिक रूप से हमेशा कहते रहे हैं कि वे प्रधान सेवक हैं लेकिन उनकी पार्टी ऐसा नहीं मानती है। उनकी पार्टी का मानना है कि वे सेवा नहीं कर रहे हैं बल्कि देश के लोगों पर कृपा कर रहे हैं और इसके लिए देशवासियों को उनका आभारी होना चाहिए। इसीलिए भाजपा का कोई नेता कहता है कि जनता उनको धन्यवाद कहे तो कोई कहता है कि जनता उनका आशीर्वाद लेने के लिए भाजपा को वोट दे। पिछले दिनों केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह तमिलनाडु के दौरे पर गए थे। वहां चेन्नई की एक सभा में उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी ने तमिलनाडु से मिले राजदंड सेंगोल को संसद में स्थापित किया है इसलिए राज्य के लोगों को उनका धन्यवाद करने के लिए भाजपा के 20 सांसद जिता कर भेजना चाहिए। इससे पहले कर्नाटक में विधानसभा चुनाव के प्रचार में भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने कहा था कि प्रधानमंत्री मोदी का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए राज्य के लोगों को फिर से भाजपा की सरकार बनवानी चाहिए। यह डबल इंजन की सरकार में ज्यादा विकास होने के दावे का ही एक रूप था। नड्डा के इस बयान पर तीखी प्रतिक्रिया हुई थी। कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी ने इसे कन्नड़ लोगों के आत्मसम्मान से जोड़ते हुए कहा था कि कर्नाटक के लोग किसी के आशीर्वाद के आकांक्षी नहीं हैं। वे अपनी मेहनत और योग्यता के दम पर विकास कर रहे हैं। कर्नाटक मे आशीर्वाद वाली बात उलटी पड़ गई थी। कोई वजह नहीं है कि तमिलनाडु में भी धन्यवाद वाली बात का कोई असर होगा।

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