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"भारतीय मीडिया पर पूंजीपतियों के क़ब्ज़े के कारण सही ख़बरें नहीं आ पाती"

ऐप्सो ने इस प्रतिवाद मार्च में मीडिया पर कॉरपोरेट के क़ब्ज़े, पत्रकारों के पेंशन व मजीठिया आयोग की सिफारिशों को लागू करने समेत अन्य मांगों को उठाया। 
Patna

भारतीय शांति व एकजुटता संगठन (ऐप्सो) के पटना जिला परिषद की ओर से 'भारतीय मीडिया पर पूंजीपतियों (कॉरपोरेट) के कब्जे के खिलाफ' प्रतिवाद मार्च का आयोजन किया गया। इस दौरान "पूंजीपतियों द्वारा मीडिया पर कब्जा नहीं चलेगा, मीडिया पर कॉरपोरेट मोनोपॉली नहीं चलेगा, पत्रकारों को ठेके पर बहाल करना बंद करो, पत्रकारों को पेंशन सहित सामाजिक सुरक्षा प्रदान करो, मजीठिया आयोग की सिफारिशों को लागू करो, सांप्रदायिक वैमनस्य पैदा करने वाले मीडिया संस्थानों पर रोक लगाओ, और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर रोक लगाना बंद करो जैसे नारे लगाए गए। 

इस प्रतिवाद मार्च में पटना के अलावा बाढ़, मोकामा, पटना सिटी विभिन्न क्षेत्रों के लोग भी इकट्ठा हुए। इस मार्च में पटना शहर के पत्रकार, बुद्धिजीवी, रंगकर्मी, सामाजिक कार्यकर्ता,  राजनीतिक दलों, ट्रेड यूनियन सहित छात्र और युवा संगठनों के प्रतिनिधि शामिल हुए।  जी.पी.ओ गोलंबर से निकलकर यह मार्च बुद्धा स्मृति पार्क तक आया और सभा में तब्दील हो गया। सभा का संचालन विजयश्री डांगरे उर्फ जया ने किया। 

ऐप्सो के राज्य महासचिव अनीश अंकुर ने अपने संबोधन में कहा, "आज दुनिया की जो भी खबरें हम तक पहुंचती है उसका अस्सी-पचासी प्रतिशत हिस्सा मात्र तीन न्यूज एजंसियों-एपी, ए.एफ.पी और रायटर्स द्वारा प्रसारित किया जाता है। ये तीनों इंग्लैंड, अमेरिका और फ्रांस से संचालित किया जाता है। और तीनों नाटो के हितों का ख्याल रखकर अपनी खबरें हम तक लाती है। युद्ध और साम्रज्यवाद के हितों का ख्याल रखकर सूचनाएं लाई जाती है। आज यूक्रेन और फिलीस्तीन की खबरें सही ढंग से नहीं पहुंचाई जाती है। यह शांति वी एकजुटता के लिए खतरा है।" 

ऐप्सो के जिला महासचिव भोला शर्मा ने सभा को संबोधित करते हुए कहा, "आज भारत के मीडिया संस्थानों में यहां के कॉरपोरेट और बड़े औद्योगिक घराने का प्रभाव बढ़ गया है। इससे आम लोगों को सही खबरें और सूचनाएं नहीं मिल पाती हैं। यदि खबर नहीं मिलेगी तो एक आम नागरिक कैसे अपनी भूमिका निभाएगा।"

शिक्षाविद सर्वेश के अनुसार "मीडिया को स्वतंत्र करना होगा। अन्यथा देश की स्वतंत्रता खतरे में पड़ जायेगी। विज्ञापन के माध्यम से मीडिया को नियंत्रण किया जा रहा है। हमलोगों को फ्री मीडिया, फ्री कंट्री की बात उठानी होगी।" 

चर्चित सामाजिक कार्यकर्ता चक्रवर्ती अशोक प्रियदर्शी ने कहा, "मीडिया में यदि बोलने पर सीमित किया जाएगा या कॉरपोरेट का कब्जा होगा तो लोगों को सही सूचना नहीं मिल सकेगा। कॉरपोरेट का मतलब सरकार का कब्जा मीडिया पर बढ़ता जा रहा है।"

पटना हाईकोर्ट के अधिवक्ता लक्ष्मी कांत तिवारी ने कहा, "यह लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है। आज देश के लिए शर्म की बात है कि चंद पूंजीपति मीडिया को अपने हित के लिए उपयोग कर रहे हैं।"

इस्कफ के महासचिव रविंद्रनाथ राय के अनुसार "आज पत्रकारों को ठेके पर रखा जा रहा है। मजीठिया आयोग की जिन सिफारिशों को सुप्रीम कोर्ट ने बढ़ाया उसे भी हमारे अखबार लागू नहीं कर रहे।" 

सीपीआई के पटना जिला सचिव विश्वजीत कुमार ने बताया "हमारी लड़ाई मीडिया से नहीं बल्कि कॉरपोरेट से है जो मीडिया पर कब्जा कर आमलोगों के अधिकार को खत्म कर रही है। हमें वैकल्पिक मीडिया खड़ा करना चाहिए। अब तो आमलोगों को मीडिया की रक्षा के लिए सड़क पर उतरना होगा।"

स्वतंत्र पत्रकार संतोष सिंह ने कहा "आज आमलोग समझ रहे हैं कि आमल्लोगों को सुनी नहीं जा रही है। अब तो एजेंडा तय करने के लिए मीडिया को गाइड किया जाता है। स्थिति बदली है। यह बदलनी होगी। समाज विवेक शून्य की स्थिति बन गई हैं। इसे बदलना होगा और यह बदलेगा भी।" 

राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष राणा रणधीर ने कहा "मीडिया बिक गई है। अब लोगों को टीवी चैनलों को देखने का मन नहीं करता है। अब यह औद्योगिक घराने का कठपुतली बन गई है। उन्हें चेतावनी देता हूं की जनता जगी तो आपको बुरा हाल कर देगी।" 

अधिवक्ता शगुफ्ता रशीद ने अपने संबोधन में कहा, "मीडिया घराना बिक गया है। इससे मीडियाकर्मी भी परेशान हैं।" 

आज अखबार के वरिष्ठ  संवादाता अमलेंदु ने अपना अनुभव साझा करते हुए कहा, "वर्तमान मीडिया लगभग गोदी मीडिया बन गया है। इसका वे औजार के रूप में उपयोग कर रहे हैं।" 

सीपीएम के अरुण मिश्र ने कहा "मीडिया का संचालन कॉरपोरेट कर रहा है। लोगों को मूल समस्या से दूर रखा जा रहा है। मानवाधिकार का उल्लंघन किया जा रहा है, पर उसे सुना नहीं जा रहा है।" 

मजदूर पत्रिका से जुड़े सतीश कुमार ने बताया "कॉरपोरेट द्वारा मीडिया को खरीद लिया गया है। यह खतरनाक है।"

'प्राच्य प्रभा' के संपादक विजय कुमार सिंह ने कहा कि "कॉरपोरेट के कब्जा के खिलाफ अब बिगुल बज चुका है। अब यह विरोध जारी रहेगा।"

जनवादी लेखक संघ के राज्य सचिव विनिताभ ने कविता के माध्यम से कहा "अब सब कुछ मालिक के अधीन होता जा रहा है।"

बिहार एटक के कौशलेंद्र वर्मा ने कहा "भारत के संविधान के अनुसार जो मीडिया के अधिकार हैं वह मिलना चाहिए।"

विद्युत कर्मचारियों के नेता डी.पी यादव ने कहा "अंबानी-अदानी के द्वारा मीडिया को खरीद लिया गया है। देश के अंदर किसानों-मजदूरों के हिस्से को लूट लिया है।"

पटना विश्विद्यालय में इतिहास के प्रोफेसर सतीश कुमार ने कहा, "मैं एमए के अंतिम सेमेस्टर में मीडिया को पढ़ाता हूं। मैने टेलीविजन को कपड़े में लपेट कर रख दिया है। ऐसा पूंजीपतियों के प्रभाव के कारण देखने लायक नहीं रह गया है। आजादी के आंदोलन पत्रकार भूखे रहकर भी जनता को खबरें दिखाया करते थे। सत्ता के काले कारनामों को ही सिर्फ दिखाया जाता है। यह हमलोगों का काम है कि आमलोगों तक इस बात को ले चलें।" 

केदरदास श्रम वी समाज अध्ययन संस्थान के अमरनाथ के अनुसार "कुछ पूंजीपतियों ने मीडिया घराने पर कब्जा कर न्यूज को प्रोपेगेंडा बना दिया। हिंदू- मुस्लिम के घटना को बड़ा कर दिखाया जाता है जबकि किसानों के खबर को नहीं दिखाया जाता। साम्राज्यवाद की सूचनाओं को प्रमुखता से दिखाया जा रहा है।"

मगही कवि पृथ्वी राज पासवान ने काव्य पाठ कर कहा कि "गरीबी पर कोई खबर नहीं आता है।" 

अध्यक्षीय वक्तव्य राजीव रंजन ने देते हुए कहा "आजादी के आंदोलन के दौरान भी हमला होता था लेकिन आज शांति के लिए काम करने वालों को मीडिया के लिए उतरना पड़ा है।" 
सभा को साहित्यकार अरुण शाद्वल, फारवर्ड ब्लॉक के नेता बालगोविंद सिंह,  फिल्म अभिनेता रमेश कुमार सिंह, डॉ एम भारती ने भी संबोधित किया।

प्रतिवाद मार्च में शामिल प्रमुख लोगों में कुलभूषण गोपाल, पटना जिला किसान सभा के नेता गोपाल शर्मा, जयप्रकाश, मनोज कुमार, विनोद कुमार वीनू, सरिता पांडेय, अभय पांडेय, सुजीत कुमार, उदयन, अभिषेक कुमार, प्रशांत, राजू कुमार, मंजुल कुमार दास, बी.के.राय, सुजीत कुमार, सुनील सिंह, चंद्रकिशोर कुमार, सिकंदर-ए-आजम, रौशन कुमार, गोपाल शर्मा, अमोल शंकर आदि मौजूद थे।

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