अनुसूचित जातियों की गरिमा और आत्म सम्मान पर कब बात होगी?

हाल ही में उत्तर प्रदेश के ललितपुर जिले में वर्चस्वशाली जाति के तीन लोगों ने एक दलित युवक को इतना पीटा कि उसका हाथ टूट गया। उस युवक की गलती सिर्फ इतनी थी कि उसने आरोपियों से मटके से पानी भरकर पी लिया था। इसके बाद उसके 3 घरवालों को भी पीटकर घायल कर दिया।
थाना नाराहट के गांव उमरिया निवासी संतोष अहिरवार ने बताया कि वह गत 1 नवंबर 2020 को मनक की दुकान पर गया था। वहां उसे प्यास लगी तो उसने जग उठाकर दुकान पर रखे मटके से पानी भरकर पी लिया। इससे नाराज होकर मनक ने अपने बेटे प्रकाश के साथ मिलकर उससे गाली गलौज और मारपीट की।
आरोप है कि मनक ने जातिसूचक शब्दों का प्रयोग कर संतोष का हाथ तोड़ दिया। इसके बाद दबंग उसके घर पहुंच गए और चाचा, चाची सहित घर के अन्य परिजनों से भी मारपीट की, जिसमें तीन लोग घायल हो गए।
भले ही भारतीय संविधान के अनुच्छेद 17 में छुआछूत का उन्मूलन कर दिया गया है और इसे दंडनीय अपराध माना गया है पर आज 70 साल बाद भी जाति आधारित छुआछूत बदस्तूर जारी है। उपरोक्त घटना तो एक उदाहरण मात्र है।
कहां हैं छुआछूत की जड़ें?
कोई भी बच्चा जब पैदा होता है तो वह मासूम होता है। उसका दिमाग कोरे कागज़ की तरह होता है। वह जिस माहौल में पला-बड़ा होता है और परिवार वाले उसे जैसा संस्कार देते हैं वह उसे वैसा ही ग्रहण करता है। वह अपने माता-पिता, परिवार के लोगों और अपने पास-पड़ोस से जो सीखता है वैसी ही उसकी मानसिकता बनती जाती है।
हमारे यहां छुआछूत को जाति और जन्म से जोड़ दिया गया है। जो बच्चा जिस जाति में पैदा हुआ वह आजीवन उसी जाति का माना जाएगा। ब्राह्मणवादी व्यवस्था कुछ ऐसी है कि जाति के आधार पर ही बच्चे को यह पता चलता है कि वह ऊंची जाति का है या नीची। वह दूसरी जाति के साथ छुआछूत और भेदभाव करेगा या इसे सहेगा।
जात-पांत और छुआछूत की भेदभावकारी मानसिकता हजारों सालों से जारी कैसे है? क्यों है? क्या हैं इसके स्रोत? जब हम इस पर विचार करते हैं तो पाते हैं कि पुराने धर्मग्रंथों में इसके स्रोत निहित हैं। इन धर्मग्रंथों के प्रति सम्मान रखने वाले अन्धविश्वास की हद तक इन पर विश्वास करते हैं। वे कभी तार्किक ढंग से इनकी विचारधारा पर विचार नहीं करते कि इनमे कुछ गलत भी हो सकता है।
ताजा उदाहरण मनुस्मृति का लिया जा सकता है। 30 अक्टूबर 2020 को ‘कौन बनेगा करोड़पति’ में अभिताभ बच्चन द्वारा सफाई कर्मचारी आंदोलन के राष्ट्रीय संयोजक बेजवाडा विल्सन से एक प्रश्न पूछा गया। प्रश्न था – 25 दिसंबर 1927 को डॉ. बी.आर. आंबेडकर और उनके अनुयायियों ने किस धर्मग्रन्थ की प्रतियां जलायीं थीं? इसके चार विकल्प थे – विष्णुपुराण, भगवदगीता, ऋग्वेद और मनुस्मृति। सही उत्तर मनुस्मृति था। विल्सन ने भी वही दिया।
अमिताभ बच्चन ने बताया कि बाबा साहेब ने जातिगत भेदभाव और अस्पृश्यता को वैचारिक रूप से उचित ठहराने के लिए प्राचीन धर्मग्रन्थ मनुस्मृति की निंदा की और उसकी प्रतियों को जलाया।
यह ऐतिहासिक सत्य है और इसमें गलत कुछ भी नहीं है। पर मनुस्मृति के प्रति अंधश्रद्धा रखने वालों को यह बुरा लगा और उन्होंने लखनऊ और लातूर में अमिताभ बच्चन के खिलाफ धार्मिक भावनाएं आहत करने के लिए FIR दर्ज करा दी।
इसके निहितार्थ स्पष्ट हैं कि मनुस्मृति को मानने वाला वर्ग छुआछूत और जातिगत भेदभाव को बरकरार रखना चाहता है। गौरतलब है कि मनुस्मृति में दलितों और स्त्रियों को गुलाम बनाए रखने के लिए विधान किए गए हैं और ब्राह्मणों को सर्वोच्च वर्ग का दर्जा दिया गया है।
क्या कहते हैं छुआछूत और भेदभाव झेलने वाले
ऐशबाग लखनऊ के रहने वाले अनुसूचित जाति के चालीस वर्षीय अजय बताते हैं कि यहां शौचालय साफ़ करने वाली हमारी महिलाओं के साथ भेदभाव किया जाता है। उन्हें घर के बर्तनों में चाय या पानी नहीं दिया जाता। उनके लिए एक अलग कप या गिलास रख दिया जाता है कि तुम इसमें चाय या पानी पीकर इसे साफ करके घर के बाहर के किसी हिस्से में रख दो ताकि अगले दिन इसे दुबारा उपयोग कर सको।
उनका मेहनताना भी उन्हें दूर से फेंक कर दिया जाता है या फिर एक स्थान पर रख दिया जाता है ताकि सफाई कर्मचारी महिलाएं उसे उठा लें और देने वाले का हाथ उनसे न छुए। अगर कोई सफाई कर्मचारी पुरुष या महिला किसी सवर्ण के घर में आवश्यक कार्य से या गलती से भी अंदर घुस गई तो उसको जानवरों की तरह जाति सूचक गालियाँ देकर दुत्कार घर से निकाल दिया जाता है। और यह चेतावनी दी जाती है कि ‘अपनी जात मे रहो – औकात में रहो!’
उत्तर प्रदेश में कई जगहों पर मुसलमान भी ब्राह्मणवादी व्यवस्था के पोषक हैं। चालीस वर्षीय सफाई कर्मचारी रामदास अलीगढ़ में रहते हैं। उनका कहना है कि ऊंची जाति के हिन्दुओं की तरह मुसलमान भी हमसे छुआछूत करते हैं। अपने घर में नहीं घुसने देते और न अपनी चारपाई पर बैठने देते हैं।
फर्रुखाबाद निवासी सामाजिक कार्यकर्ता पैतीस वर्षीय कृष्ण गोपाल कहते हैं कि आज भी फर्रुखाबाद में कोई नाई सफाई कर्मचारियों के बाल नहीं काटता है। धोबी को मालूम हो कि ये सफाई कर्मचारी है तो वह उसके कपड़े प्रेस नहीं करता। कहने का मतलब यह है कि जाति उच्च निम्न क्रम पर आधारित है और दलित जातियां भी एक दूसरे से उच्च-निम्न क्रम के आधार पर भेदभाव करती हैं।
उत्तर प्रदेश के लखनऊ में रहने वाली अनुसूचित जाति की पैंतीस वर्षीया रिनिका कहती हैं कि हम शहर में रहते हैं इसलिए बड़ी कही जाने वाली जाति के लोग हम से सीधे-सीधे छुआछूत और भेदभाव नहीं करते पर पीछे-पीछे करते हैं। जैसे हमारे घर में दूसरी जाति के किराएदार रहते हैं तो उनसे लोग कहते हैं कि तुम जमादारों (सफाई करने वालों) के घर में किराए पर क्यों रहते हो। जमादारों के घर में रहोगे तो तुम्हारी क्या इज्जत रहेगी। कौन तुम्हारी इज्जत करेगा?
इस मनुविधान का क्या निदान
इस ब्राह्मणवादी व्यवस्था या कहें मनुविधान के कारण अछूत कही जाने वाली जातियों के साथ छुआछूत, भेदभाव और अत्याचार की घटनाएं आज भी निरंतर जारी हैं। उत्तर प्रदेश में जिस तरह से हाथरस प्रकरण के पश्चात एक के बाद एक दलित महिलाओं के साथ सामूहिक दुष्कर्म की बर्बर घटनाएं हुईं ये इस बात का प्रमाण है कि वर्चस्वशाली जातियां आज भी मनुविधान को जारी रखना चाहती हैं।
वे चाहती हैं कि अनुसूचित जाति के लोग हमेशा उनकी सेवा भाव में लगे रहें। और वे इनकी महिलाओं का, इनका शोषण करते रहें और ये उफ्फ तक न करें। चुपचाप सहते रहें। पर लोकतंत्र और संविधान के इस दौर में अब हालत बदल रहे हैं। इसलिए वर्चस्ववादी ताकतों में बौखलाहट है। जिन धर्मग्रंथों के आधार पर वे इन अछूतों पर शासन करते थे। उन्हें जलाने की जानकारी सबको हो रही है।
बाबा साहेब जिस धर्मग्रंथ को जला चुके हैं और संविधान जिन भेदभावकारी विचारों का निषेध कर रहा है। छुआछूत का उन्मूलन कर रहा है। देश के सभी नागरिकों को समानता, स्वतंत्रता, न्याय और बंधुत्व का पाठ पढ़ा रहा है। सभी जाति और धर्मों के लोगों की समान मानवीय गरिमा और सबके आत्म-सम्मान की बात कर रहा है। उसे देखकर ये लोग विचलित हो रहे हैं। बौखला रहे हैं। दलितों का उत्पीड़न करना और अमिताभ बच्चन पर FIR दर्ज करना इसी बौखलाहट को दर्शाता है।
लेखक सफाई कर्मचारी आन्दोलन से जुड़े हैं। विचार निजी हैं।
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