क्यों भाजपा को बिहार में कड़ी मेहनत करनी पड़ेगी?
उत्तर बिहार के सीवान जिले के दरैली मठिया गांव में भारतीय सेना के पूर्व सैनिक 50 वर्षीय कृष्णा यादव का कहना है कि, “उन्हें [केंद्रीय एजेंसियों को] पहले तेजस्वी यादव को जेल भेजने दो, उल्टे उनका वोट बढ़ेगा और बिहार से भारतीय जनता पार्टी का सफाया हो जाएगा।” यह पूर्वी उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले से चार किलोमीटर दूर एक दूर-दराज का गांव है, जहां कृष्णा यादव रहते हैं और गुजरात में सुरक्षा गार्ड की नौकरी से छुट्टी पर घर आए हुए हैं। हाथ में मोबाइल फोन लिए वे 18 मार्च को आयोजित इंडिया टुडे कॉन्क्लेव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषण पर प्रतिक्रिया दे रहे थे।
उनके निर्माणाधीन घर में उनके साथ फुलेश्वर राम और हरिद्वार भगत भी थे, उनका प्लॉट गेहूं, मक्का, सरसों, टमाटर और मिर्च की फसल से घिरा हुआ है। फुलेश्वर, 70 वर्ष के हैं और दलित हैं और उन्होंने 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में "मोदी" के लिए मतदान किया था। लेकिन वे आज कृष्ण यादव से सहमत हैं। फुलेश्वर मुस्कुराते हुए कहते हैं, ''जैसे ही तेजस्वी गिरफ्तार होगा, भाजपा का सफाया हो जाएगा।
इस दूरदराज के गांव में यह सुनना दिलचस्प लगता है कि यहाँ लोग निर्विवाद रूप से राष्ट्रीय महत्व के मुद्दे पर विचार कर रहे हैं; केंद्र सरकार द्वारा जांच एजेंसियों का इस्तेमाल और उसका दुरुपयोग। वे बिहार के छोटे शहरों में मैरवान और उत्तर प्रदेश के महरौना से चार किलोमीटर दूर हैं, लेकिन लोकतांत्रिक तकनीक को धन्यवाद, कि आम नागरिक दिल्ली से दूर होते हुए भी एक खास समारोह में प्रधानमंत्री के भाषण पर चर्चा कर सकते हैं। और यह सोनपुर से सीवान तक लगभग 150 किलोमीटर की दूरी वाले इलाके के ग्रामीण भारतीयों के एक बड़े वर्ग के लिए समान है। इन दिनों उनकी बातचीत से संकेत मिलता है कि राजनीतिक मौसम कितनी तेजी से बदल रहा है।
कृष्णा, फुलेश्वर और हरिद्वार (पिछड़ी कोयरी जाति से हैं) बिहार के युवा उपमुख्यमंत्री, लंबे समय तक पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के बेटे के पक्ष में थोड़े संरक्षणपूर्ण तरीके से बोलते हैं। लेकिन सबसे अलग बात यह है कि उन्होंने संसद के भीतर और बाहर विपक्ष की तरफ से प्रधानमंत्री और उनकी पार्टी की 'नीति' पर सवाल उठाए। गैर-बीजेपी नेताओं को निशाना बनाने के लिए जांच एजेंसियों के इस्तेमाल की जनता में इतनी आलोचना हो रही है कि यह भाजपा के कार्यकर्ताओं को भी चिंतित कर रही है। दरैली मठिया के एक ब्राह्मण और भाजपा समर्थक 65 वर्षीय रमेश गिरी से पूछा कि, "क्या मोदी जी 2024 में सत्ता में लौटेंगे?" उन्हे इस बारे में संदेह था जो उनके चेहरे पर नज़र आ रहा था।
फिर चाहे बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के समर्थक हों, महागठबंधन के समर्थक हों या भाजपा के समर्थक- अब सभी यह मानते हैं कि सीबीआई, प्रवर्तन निदेशालय और आयकर (आई-टी) विभाग- तेजस्वी और उनके परिवार को, भाजपा के "शीर्ष नेतृत्व" के इशारे पर निशाना बना रहे हैं। किसी को भी विश्वास नहीं हो रहा है कि प्रधानमंत्री भ्रष्टाचार को समाप्त करने की सच्ची इच्छा से प्रेरित हैं। साधारण ग्रामीण भी इस बात को जानते हैं कि, हिमंत बिस्वा सरमा, नारायण राणे, शुभेंदु अधिकारी और अन्य ऐसे ही नेता जो भाजपा में शामिल हुए उन्होने जांच एजेंसियों को अपनी जूते की एडी के नीचे दबा दिया है, क्योंकि भाजपा में शामिल होकर वे अब “पाक़-साफ" हो गए हैं और सत्ता और धन का आनंद उठा रहे हैं।
मोदी बनाम नीतीश की कल्याणकारी योजनाएं
नीतीश कुमार के जनता दल (यूनाइटेड) की महागठबंधन में वापसी से भाजपा बुरी तरह से बौखलाई हुई है। और राष्ट्रीय जनता दल (राजद), जनता दल (यूनाइटेड) या जदयू और कांग्रेस के इस महागठबंधन में तीन वामपंथी दल, जिसमें 12 विधायकों वाली भाकपा (माले) लिबरेशन भी शामिल है, और इनका उत्तर और दक्षिण बिहार के दलितों, पिछड़ों और अल्पसंख्यकों में मजबूत आधार है।
हिंदुत्व पार्टी के लिए दलित और महादलित मतदाताओं और अल्पसंख्यकों के साथ, पिछड़े वर्गों को अपने साथ लाना लगभग असंभव होगा, क्योंकि वे बिहार के 75 प्रतिशत से अधिक मतदाता हैं। बस शर्त एक ही है कि महागठबंधन बरकरार रहे। सीबीआई ने 2017 में भी लालू और उनके परिवार पर कार्रवाई की थी। इसने तेजस्वी को भ्रष्टाचार के आरोपों में उलझा दिया था, जिसके बाद नीतीश कुमार ने महागठबंधन छोड़ दिया था और भाजपा के साथ गठबंधन में लौट आए थे।
चाल इस बार भी वही है। जब से नीतीश ने भाजपा का दमन छोड़ा है, तब से केंद्रीय एजेंसियां यानि अगस्त 2022 से लालू, तेजस्वी और उनके परिवार के अन्य सदस्यों पर लगातार छापे मार रही है और तलाशी ले रही हैं। सीबीआई ने तेजस्वी की जमानत रद्द करने के लिए याचिका दायर की, लेकिन कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया। केंद्रीय एजेंसियों ने होली के त्योहार के आसपास तेजस्वी की पत्नी राजश्री और तीन बहनों से भी घंटों पूछताछ की है।
लेकिन इस बार नीतीश ने झुकने से इनकार कर दिया है। उन्होंने कहा कि, 'बीजेपी में वापसी का सवाल ही नहीं उठता है। उन्होंने 2017 में हमारे गठबंधन को तोड़ने के लिए एजेंसियों का इस्तेमाल किया था। अब हम जब दोबारा साथ आए हैं तो वे ऐसा ही कर रहे हैं। इस बार यह सब काम नहीं करेगा"।
भाजपा नेतृत्व जानता है कि बिहार में महागठबंधन के बड़े सामाजिक आधार के खिलाफ सफल होना असंभव होगा। और केंद्र की कल्याणकारी योजनाएं- जैसे गरीबों को पांच किलोग्राम अनाज और किसान सम्मान योजना के तहत सीधे नकद हस्तांतरण- यह सब बिहार में काम नहीं करेंगा क्योंकि नीतीश के पास लाभ वितरण का अधिक व्यापक जमीनी नेटवर्क है।
बिहार में पिछड़े, अति-पिछड़े तथा दलित गठजोड़ में सेंध लगाना भाजपा के लिए कठिन है क्योंकि नीतीश ने इन समुदायों के सदस्यों को लोकतांत्रिक शासन में शामिल किया है। उदाहरण के लिए, बिहार सरकार ने स्थानीय निकाय पदों का 15 प्रतिशत अत्यंत पिछड़े वर्ग के लिए, 12 प्रतिशत अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए और 33 प्रतिशत महिलाओं के लिए आरक्षित किया है। युवाओं को 10 लाख नौकरियां देने का भी वादा किया है।
बिहार सरकार ने छात्रों के लिए छात्रवृत्ति योजनाएं भी शुरू की हैं और एक दशक से अधिक समय से स्कूली छात्रों को मुफ्त साइकिल, वर्दी और मध्याह्न भोजन दिया जा रहा है। तेजस्वी के स्वास्थ्य मंत्री बनने के बाद से स्वास्थ्य सुविधाओं में सुधार पर विशेष ध्यान दिया गया है। उन्होंने नियमित रूप से स्वास्थ्य सुविधाओं की जांच और निगरानी की है, और सड़कों, बिजली और अन्य नागरिक सुविधाओं में लगातार सुधार हो रहा है।
इसके अलावा, बिहार सरकार जातिगत जनगणना करा रही है, जिसकी रिपोर्ट संभवत: मई में जारी की जाएगी। यह 2024 के आम चुनाव में पिछड़े तबकों को बिहार सरकार के पीछे पिछड़े लामबंद करेगा।
उत्तर प्रदेश में भाजपा के लिए आसानी
हालांकि, सरयू, झरही और गंडक नदियों को पार करने के बाद उत्तर प्रदेश के बलिया, देवरिया और कुशीनगर जिलों में जब हम प्रवेश करते हैं, तो माहौल निस्संदेह अलग है। यदि भाजपा को पूर्वी उत्तर प्रदेश में कुर्मी, कोयरी और सैंथवार [गैर-यादव ओबीसी] समुदायों से अच्छा समर्थन मिल रहा है, तो वाल्मीकि और गैर-जाटव दलित के अलावा सबसे अधिक आबादी वाले राज्य के मध्य और पश्चिमी भागों में सैनी, गंगवार और अन्य पिछड़े वर्गों का भी समर्थन हासिल है।
इसके अलावा, ऐसा लगता है कि योगी आदित्यनाथ सरकार ने नफरत फैलाने वालों को संरक्षण दिया है और अल्पसंख्यकों के घरों और प्रतिष्ठानों पर बुलडोज़र चला दिया है, जिसने सवर्ण हिंदुओं के बीच उनके समर्थन को मजबूत किया है। उत्तर प्रदेश पुलिस पर बड़े पैमाने पर अल्पसंख्यकों को गिरफ्तार करने और बजरंग दल, विश्व हिंदू परिषद और अन्य उग्र हिंदुत्व संगठनों के उपद्रवियों को खुला छोड़ने का आरोप है। लेकिन बिहार में ऐसी स्थिति नहीं है, यहां पुलिस टकराव पैदा करने वालों के बारे में सतर्क है, भले ही उनका किसी भी समुदाय या धर्म से संबंध क्यों न हो।
लेखक, वरिष्ठ पत्रकार हैं तथा मीडिया शिक्षक भी हैं, वे सामाजिक मानव विज्ञान में स्वतंत्र शोधकर्ता हैं। व्यक्त विचार निजी हैं।
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