Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

क्यों नहीं बन पा रहा है बाबा साहेब अंबेडकर के सपनों का भारत

राजनेता बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर को “पूज्यनीय” तो बताएंगे पर उनके विचारों को नहीं अपनाएंगे। वे बाबा साहेब का चित्र लगाएंगे, उस पर माल्यार्पण करेंगे, उसके आगे नतमस्तक भी होंगे, पर उनके विचारों पर नहीं चलेंगे।
ambedkar
फ़ोटो साभार: पीटीआई

आज बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर के महापरिनिर्वाण दिवस पर राजनेता उनका गुणगान कर रहे हैं। महिमा मंडन कर रहे हैं। पर मुझे याद आ रहा है फिरोज़ाबाद मेडिकल कॉलेज का एमबीबीएस का वह 21 वर्षीय दलित छात्र शैलेंद्र कुमार जिसे आत्महत्या करने के लिए मजबूर किया गया। टाइम्स ऑफ़ इंडिया की ख़बर के अनुसार उसने 3 दिसंबर 2022 को हॉस्टल में अपने कमरे में फांसी लगा ली। बकौल उसके पिता उदय सिंह शंकवार ‘दलित होने के नाते कॉलेज प्रशासन द्वारा मेरे बेटे का उत्पीड़न किया जा रहा था। उसको इतना टॉर्चर किया गया कि वह आत्महत्या के लिए विवश हुआ।‘ शिक्षा विभाग के ये द्रोणाचार्य पता नहीं कितने ‘रोहित वेमुला’ को आत्महत्या करने के लिए विवश करेंगे। इन पंक्तियों के लेखक यानी मुझे खुद अपने बेटे की चिंता हो रही है।

ये राजनेता बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर को “पूज्यनीय” तो बताएंगे पर उनके विचारों को नहीं अपनाएंगे। वे बाबा साहेब का चित्र लगाएंगे, उस पर माल्यार्पण करेंगे, उसके आगे नतमस्तक भी होंगे, पर उनके विचारों पर नहीं चलेंगे। असल में वे संविधान के मूल्यों को ताक पर रख कर मनुविधान को लागू कर रहे हैं। बाबा साहेब ने शिक्षा को सर्वाधिक महत्व दिया था और ये राजनेता उन्हें उनके शैक्षिक अधिकार से वंचित कर रहे हैं। राउंड टेबल इंडिया के प्रणव जीवन के 4 दिसंबर2022 के लेख के अनुसार 22 आईआईटी संस्थानों ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति तथा ओबीसी के 3773 छात्रों को उनकी सीटों से वंचित कर दिया।

ये राजनेता एक तरफ़ दलितों-आदिवासियों-ओबीसी को उनके अधिकारों से वंचित करने के लिए नई-नई नीतियां बना रहे हैं ताकि उन्हें जो सुविधाएं मिलनी चाहिए वे न मिल सके। इसी प्रकार सरकारी उपक्रमों का निजीकरण कर उन्हें आरक्षण के लाभ से भी वंचित कर रहे हैं। क्या विडंबना है कि एक तरफ़ ये दलितों वंचितों के हक़ म़ार रहे हैं वहीं दूसरी और उनके मसीहा के आगे नतमस्तक होकर उनके हितैषी होने का दिखावा कर रहे हैं। मानना होगा कि ये अदाकारी में माहिर हैं!

किसी भी देश और समाज में समता, समानता, स्वतंत्रता, बंधुत्व और न्याय जैसे मानवीय मूल्य काफ़ी महत्व रखते हैं। बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर ऐसे ही मानवीय मूल्यों का भारत देखना चाहते थे जहां समता हो, बराबरी हो, सभी नागरिकों को स्वतंत्रता हो और सभी में बंधुत्व की भावना हो, सब एक-दूसरे से मिलकर रहें। सामाजिक सद्भाव हो, सौहार्द हो। क्षेत्र, भाषा, संस्कृति, जाति, लिंग आदि के आधार पर कोई भेदभाव न हो। जहां महिलाओं का सम्मान हो। विविधता में एकता हो। ऐसे वातावरण में देश निश्चित रूप से चहुंमुखी विकास करता है।

बाबा साहेब अंबेडकर ने कहा था कि हम सबसे पहले और अंततः भारतीय हैं। पर भारतीय समाज के हर क्षेत्र में असमानता दिखाई देती है। हमारा समाज वर्गों और जातियों में बंटा है। यहां लोग पहले स्वयं को हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, जैन आदि समझते हैं भारतीय बाद में। भले ही सबको अपना-अपना धर्म अपनाने की स्वतंत्रता है और नागरिक अपनी पसंद के धर्म को अपना सकते हैं। हमारा देश धर्मंनिरपेक्ष है। पर लोग अपने-अपने धर्म को सर्वश्रेष्ठ मानते हैं और धर्म के नाम पर हिंसा करने से भी बाज़ नहीं आते। भले ही कभी इक़बाल ने कहा हो कि 'मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना'। मज़हब के नाम पर ही यहां सांप्रदायिक दंगे होते हैं। यहां फ़ासीवादी ताक़तों को दलितों का धर्मांतरण भी बर्दाश्त नहीं होता है।

जिस तरह भारतीय समाज जातियों के नाम पर बंटा हुआ है वह शर्मनाक है। कथित उच्च जाति के लोग अपने जाति के दंभ में चूर होते हैं वहीं कथित निम्न जाति के लोग उनका अत्याचार झेलने को मजबूर होते हैं। छूआछूत और भेदभाव से पीड़ित होते हैं। इसीलिए बाबा साहेब अंबेडकर ने जाति के विनाश की बात कही थी। पर स्वयं को बाबा साहेब का भक्त बताने वाले गुजरात को देखें। जहां हॉस्टल भी जाति के नाम पर बने हैं। वहां कथित उच्च कही जाने वाले पटेल पाटीदार जाति का वर्चस्व सर्वत्र दिखाई देता है। जाति समाज के कण-कण में व्याप्त है।

जहां तक आर्थिक स्थिति की बात है, भारतीय समाज में आर्थिक असमानता अपने विकराल रूप में है। वैश्विक असमानता रिर्पोट के मुताबिक़ 10 फ़ीसदी भारतीय आबादी के पास कुल राष्ट्रीय आय का 57 प्रतिशत हिस्सा है। इन 10 फ़ीसदी में भी एक प्रतिशत के पास 22 प्रतिशत हिस्सा है। वहीं, निचली 50 फ़ीसदी आबादी के पास केवल 13 प्रतिशत हिस्सा रहा।

नीति आयोग की ग़रीबी सूचकांक (एमपीआई) रिपोर्ट के अनुसार यूपी, बिहार और मध्यप्रदेश के संयुक्त 10 ज़िलों में अन्य राज्यों के मुक़ाबले बेहद ग़रीबी है। ख़ासकर यूपी के तीन ज़िलों की 70 फ़ीसदी आबादी बेहद ग़रीबी में जीवनयापन कर रही है। यह पहली एमपीआई रिपोर्ट है। इसके अनुसार देश में ग़रीबी अनुपात क़रीब 25.01 प्रतिशत है। बिहार में लगभग 51.91 प्रतिशत आबादी बहुआयामी ग़रीब हैं। इसी तरह यूपी के तीन ज़िलों में ग़रीबी अनुपात 70 फ़ीसदी है। मध्य प्रदेश के तीन ज़िलों में ग़रीबी अनुपात 60 फ़ीसदी है।

हमारे देश में कथित उच्च और दबंग जाति सफ़ाई कर्मचारी समुदाय को देश के संसाधनों में भागीदारी नहीं देती। उन्हें आर्थिक प्रगति का अवसर नहीं देती। भले ही हमारे देश में सभी नागरिकों को समान अवसर देने वाला संविधान है पर उसका उचित कार्यान्वयन नहीं होता। दूसरी ओर वास्तव में मनुवादी व्यवस्था यानी यहां मनुविधान लागू है जिसमें स्पष्ट कहा गया है कि शूद्रों (दलितों) को संपत्ति संग्रह करने का अधिकार नहीं है। यदि वे संपत्ति का संग्रह करते भी हैं तो ब्राह्मणों को चाहिए कि वे उनकी संपत्ति छीन लें। यही कारण है कि ब्राह्मणवादी व्यवस्था उनका आर्थिक शोषण करती रहती है।

भारतीय समाज में व्याप्त पितृसतात्मक व्यवस्था भी बाबा साहेब अंबेडकर के सपनों के भारत में अवरोधक है। यह व्यवस्था लैंगिक भेदभाव और ग़ैर-बराबरी पर आधारित है जबकि बाबा साहेब स्त्री-पुरुष समानता के पक्षधर थे। लैंगिक बराबरी के लिए ज़रूरी है कि पितृसत्ता का उन्मूलन किया जाए।

बाबा साहेब भारतीय समाज को वैज्ञानिक चेतना से लैस देखना चाहते थे। पर हम सब जानते हैं कि इस इक्कीसवीं सदी में भी समाज में अंधविश्वास व्याप्त है। कहना चाहिए कि अंधविश्वास के प्रति लोगों की आस्था और बढ़ती जा रही है। इनके चलते आदिवासी और दलित महिलाओं को डायन बता कर मार दिया जाता है। मासूम बच्चों की बलि दे दी जाती है। धार्मिक प्रतीकों को लेकर लोग मरने-मारने पर उतारू हो जाते हैं। अंधविश्वासों और धार्मिक कर्मकांडो में लोग अपनी मेहनत की कमाई बर्बाद करते हैं। यहां तक कि लोग क़र्ज़ लेकर भी अंधविश्वास और रुढियों को निभाते हैं।

बाबा साहेब ने इसीलिए शिक्षा पर सबसे अधिक ज़ोर दिया था। वे चाहते थे कि लोग शिक्षित होकर चेतनशील बने। वैज्ञानिक चेतना को अपनाएं। अंधविश्वास दूर भगाएं और अपने जीवन को बेहतर बनाएं।

आज की राजनीति अपने वोट बैंक के लिए जिस तरह से धर्म और पूंजी का इस्तेमाल कर रही है वह हमारे संविधान और लोकतंत्र के लिए ख़तरनाक है। यहां राजनीतिक दल बाक़ायदा ये समीकरण बनाते हैं कि इतने फ़ीसदी वोट हिंदुओं के होंगे, इतने दलितों के, इतने मुसलमानों के, सिखों के, ईसाइयों के आदि। यही वजह है कि यहां धर्मों और जातियों के आधार पर ध्रुवीकरण किया जाता है। इससे राजनीतिक दलों का स्वार्थ तो सधता है पर धर्म और जाति के नाम पर देश के नागरिकों के बीच दीवारें खड़ी कर दी जाती हैं। ये राजनीति न केवल हमारे संविधान बल्कि लोकतंत्र की मूल भावना के ख़िलाफ़ है।

दलित चिंतक, साहित्यकार और ‘समय संज्ञा’ के संपादक ईश कुमार गंगानिया अपने संपादकीय में उचित ही कहते हैं कि –“राजनीति अपना हित साधने के लिए पूंजी यानी पूंजीपतियों का मोहरा भी बनती रही है।...इस गठजोड़ के चलते आम आदमी के आर्थिक हितो का दोहन होता है।...जब राजनीति अपने साथ धर्म और पूंजी दोनों को साध लेती है तो एक सशक्त त्रिभुज बनता है।...जब मीडिया इस त्रिभुज को चतुर्भुज बनाने में इनके साथ होता है तो जनता चौतरफ़ा म़ार झेलने को बाध्य होती है।“

हमारा लोकतंत्र चार स्तंभों पर खड़ा है जिसे कार्यपालिका, विधायिका, न्यायपालिका और मीडिया कहा जाता है। आज की तारीख़ में ये चारों स्तंभ ही कमज़ोर हो रहे हैं। एक ख़ास विचारधारा सब पर हावी होती जा रही है। निश्चित तौर पर यह बाबा साहेब के सपनों के भारत को ध्वस्त करने में लगी है। बाबा साहेब द्वारा निर्मित संविधान को नुक़सान पहुंचा रही है। लोकतांत्रिक मूल्यों का ह्रास कर रही है। एक तरह से यह लोकतंत्र को तानाशाही में बदल रही है।

बाबा साहेब ने एक ज़माने में दलितों-वंचितों–महिलाओं का शोषण-उत्पीड़न करने वाली, उन्हें ग़ुलाम बनाने वाली मनुस्मृति का दहन किया था। क्या यह समय, मनुस्मृति के पुनःवापसी का समय है?

लेखक सफाई कर्मचारी आंदोलन से जुड़े हैं। लेख में व्यक्त विचार निजी है।

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest