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एमएसपी पर केंद्र की समिति को लेकर क्यों आशंकित हैं किसान नेता

‘‘समिति का गठन करके महज औपचारिकता पूरी की गई है। एमएसपी की कानूनी गारंटी के लिए हमारी लड़ाई जारी रहेगी। हमारी मांग एमएसपी के मुद्दे पर एक अलग समिति की थी।’’
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फाइल फ़ोटो।

संयुक्त किसान मोर्चा के नेताओं और बाकी आंदोलन मे शामिल पंजाब और हरियाणा अन्य किसान ने न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर केंद्र की ओर से हाल ही में गठित एक समिति को लेकर आशंका व्यक्त करते हुए आरोप लगाया है कि सरकार निरस्त किये गए कृषि कानूनों को पिछले दरवाजे से वापस लाना चाहती है।
 
किसान नेताओं का मानना है कि समिति को खुद को एमएसपी के मुद्दे तक सीमित रखना चाहिए था, जबकि अन्य विषयों जैसे कि प्राकृतिक खेती और फसल विविधीकरण को बढ़ावा देने के तरीकों पर अलग से विचार किया जा सकता था।
 
भारतीय किसान यूनियन-डकौंडा के नेता मंजीत सिंह धनेर ने दावा किया कि सरकार ने समिति का गठन महज औपचारिकता के तौर पर किया है। उन्होंने कहा, ‘‘समिति का गठन करके महज औपचारिकता पूरी की गई है। एमएसपी की कानूनी गारंटी के लिए हमारी लड़ाई जारी रहेगी। हमारी मांग एमएसपी के मुद्दे पर एक अलग समिति की थी।’’
     
धनेर ने यह भी आरोप लगाया कि समिति में शामिल कुछ सदस्यों ने पहले तीन कृषि कानूनों का समर्थन किया था। उन्होंने कहा, ‘‘ऐसा लगता है कि सरकार कृषि कानूनों को फिर से पिछले दरवाजे से वापस लाना चाहती है।’’
 
हरियाणा बीकेयू (चढूनी) के प्रमुख गुरनाम सिंह चढूनी ने कहा कि किसानों ने एमएसपी पर एक समिति की मांग की थी, लेकिन एमएसपी मुद्दे को कमजोर करने के लिए फसल विविधीकरण आदि जैसे कई मुद्दों को जोड़ दिया गया है। उन्होंने भी कहा कि जिन लोगों ने कृषि कानूनों की खुले तौर पर वकालत की थी, वे समिति में है।
        
चढूनी ने कहा, ‘‘ऐसा लगता है कि सरकार कृषि कानूनों को फिर से पिछले दरवाजे से वापस लाना चाहती है। हम (बीकेयू-चढूनी) इस समिति का बहिष्कार करते हैं।’’
        
राज्यसभा सदस्य एवं सार्वजनिक महत्व के मामलों पर पंजाब सरकार को सलाह देने के लिए एक अस्थायी समिति के अध्यक्ष राघव चड्ढा ने आरोप लगाया कि केंद्र सरकार की समिति ‘‘कृषि पर भाजपा की अदूरदर्शिता और कुटिलता का नवीनतम उदाहरण है कि इस सरकार ने कोई सबक नहीं सीखा है।’’
        
उन्होंने समिति से पंजाब की संस्थाओं और राज्य सरकार के प्रतिनिधियों को बाहर रखने पर आपत्ति जताई। चड्ढा ने ट्वीट किया, ‘‘जानबूझकर पंजाब को बाहर रखकर केंद्र सरकार ने हमारे लोगों का अपमान किया है।’’
        
उन्होंने दावा किया कि राज्यों, विशेष रूप से पंजाब के गैर-प्रतिनिधित्व के माध्यम से संघवाद के सिद्धांतों का उल्लंघन किया गया है। चड्ढा ने कहा, ‘‘इस बात के स्पष्ट सबूत हैं कि भाजपा एकीकृत तरीके से भारत का नेतृत्व नहीं कर सकती, खासकर अपने किसानों के लिए महत्वपूर्ण मुद्दों पर। यह स्पष्ट है कि एमएसपी को 'प्रभावी' बनाना क्यों विचाराधीन है, लेकिन न्यूनतम एमएसपी के लिए कानूनी गारंटी नहीं।’’
        
भारतीय किसान यूनियन (लखोवाल) के महासचिव हरिंदर सिंह लखोवाल ने कहा कि समिति को लेकर कई आशंकाएं हैं। उन्होंने कहा, ‘‘यह स्पष्ट नहीं है कि समिति का दायरा क्या है... हमें नहीं लगता कि यह समिति एमएसपी पर काम कर सकती है।’’
       
हालांकि, हरियाणा के एक किसान नेता और समिति के सदस्य गुणी प्रकाश ने कहा कि अन्य किसान नेताओं द्वारा उठाई गई सभी आशंकाओं पर समिति द्वारा चर्चा की जाएगी। उन्होंने कहा कि एमएसपी एकमात्र मुद्दा नहीं, जिसका किसान सामना कर रहे हैं और फसल विविधीकरण और प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने जैसे कई मुद्दे कृषि को मजबूत करने के तरीकों में हैं।
        
इस बीच, किसान संघों के संयुक्त निकाय संयुक्त किसान मोर्चा ने एमएसपी पर सरकार की समिति को यह कहते हुए खारिज कर दिया है कि वे "तथाकथित किसान नेता" इसके सदस्य हैं, जिन्होंने निरस्त हो चुके कृषि कानूनों का समर्थन किया था।
        
सरकार ने पिछले साल तीन विवादास्पद कृषि कानूनों को वापस लेते हुए एमएसपी के मुद्दे पर एक समिति का गठन करने का वादा करने के लगभग आठ महीने बाद सोमवार को उसका गठन किया।
        
अधिसूचना के अनुसार, समिति व्यवस्था को अधिक प्रभावी और पारदर्शी बनाकर किसानों को एमएसपी देने के तरीकों पर विचार करेगी। समिति एमएसपी के अलावा प्राकृतिक खेती, फसल विविधीकरण और सूक्ष्म सिंचाई योजना को बढ़ावा देने के तरीकों पर भी विचार करे।

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