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सेलिब्रिटी पत्रकार तरुण तेजपाल की जीत आम नौकरीपेशा महिलाओं की हार क्यों लगती है?

कोर्ट का फ़ैसला भले ही तेजपाल के पक्ष में आया हो लेकिन इसके नतीजे ने महिलाओं को न्याय की कानूनी लड़ाई लड़ने के साहस से एक क़दम दूर ज़रूर कर कर दिया है।
तरुण तेजपाल

कुछ समय पहले ही एमजे अकबर के खिलाफ प्रिया रमानी की जीत ने महिलाओं को हाई-प्रोफाइल लोगों से बिना डरे यौन शोषण-उत्पीड़न के खिलाफ आवाज़ बुलंद करने का एक हौसला दिया था। अब ऐसे ही एक दूसरे मामले में कोर्ट ने एक समय एशिया के 50 सबसे शक्तिशाली पत्रकारों में शुमार तहलका के पूर्व संपादक तरुण तेजपाल को रेप मामले में बरी कर दिया है। तेजपाल पर 2013 में एक महिला सहकर्मी से गोवा के एक फाइव स्टार होटल की लिफ्ट में रेप का आरोप लगा था। जिसके बाद 30 नवंबर 2013 को उन्हें गोवा पुलिस ने गिरफ्तार किया था। हालांकि मई 2014 से तेजपाल जमानत पर बाहर हैं। लेकिन आठ साल लंबे चले इस केस ने मीडिया जगत में महिलाओं के साथ हो रहे शोषण और यौन उत्पीड़न के कई पहलुओं को सामने रखा। कोर्ट का फैसला भले ही तेजपाल के पक्ष में आया हो लेकिन इसके नतीजे ने महिलाओं को न्याय की कानूनी लड़ाई लड़ने के साहस से एक कदम दूर जरूर कर दिया है।

क्या फ़ैसले से पहले ही तेजपाल को इसकी जानकारी थी?

अदालत के फैसले के बाद जब तरुण की बेटी कारा ने मीडिया के सामने अपने पिता की तरफ से जारी बयान पढ़ा तो उसमें कहा गया था, “पिछले हफ्ते मेरे ट्रायल वकील राजीव गोम्स की कोविड से मौत हो गई। वो बहुत मेहनत से मेरे लिए लड़े। नवंबर 2013 में मेरी एक सहकर्मी ने मेरे ऊपर सेक्शुअल असॉल्ट के गलत आरोप लगाए थे। आज एडिशनल सेशन जज ने मुझे बरी कर दिया। सच के साथ खड़े रहने के लिए मैं उन्हें धन्यवाद कहता हूं। पिछले साढ़े सात साल मेरे और मेरे परिवार के लिए बहुत पीड़ादायक रहे। ज़िंदगी के हर पड़ाव पर हमें इस गलत आरोप के असर का सामना करना पड़ा। हमने गोवा पुलिस और लीगल सिस्टम का पूरा साथ दिया, कोर्ट की सैकड़ों पेशी का सामना किया। कोर्ट के फेयर ट्रायल के लिए मैं धन्यवाद कहता हूं। CCTV फुटेज और बाकी रिकॉर्डेड मटेरियल के गहन एग्जामिनेशन के लिए भी धन्यवाद कहता हूं।”

इस फैसले के साथ ही तेजपाल के स्टेटमेंट को लेकर सवाल उठने लगा, जिसकी वजह बयान की तारीख थी। इसमें 19 मई लिखा था, पहले इसी तारीख पर फैसला आने वाला था लेकिन ताउते तूफान के चलते 21 मई को सुनाया गया। ऐसे में सवाल उठना लाज़मी है कि क्या तरुण को फैसले के बारे में पहले से जानकारी थी? और अगर नहीं थी तो ये कैसे संभव हो सकता है कि अदालत में फैसला पढ़े जाने से पहले ही आरोपी को इसकी भनक लग जाए।

मामले के वक़्त तहलका मैगज़ीन में कोई इंटर्नल कम्प्लेनट्स कमेटी थी ही नहीं

बहरहाल, मामला तारीख की गलती से कहीं आगे का है। तेजपाल ने अपने बयान में अपनी पीड़ा का बखूबी जिक्र किया है, जो निश्चित तौर पर उन्हें झेलनी पड़ी होगी। लेकिन यहां उस शिकायतकर्ता महिला के दर्द को भी नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता, जिसकी मीडिया ट्रायल के दौरान लगभग पहचान उज़ागर कर दी गई थी। पर्सनल लाइफ से लेकर प्रोफेशनल लाइफ तक उसे तमाम दिक्कतों का सामना करना पड़ा। न चाहते हुए भी इस लंबी कानूनी लड़ाई को लड़ना पड़ा, जिसका फैसला शायद उसे पहले से अधिक तोड़ देगा।

आपको बता दें कि तरुण तेजपाल की सहकर्मी ने उनके ख़िलाफ़ पुलिस केस करने की मंशा कभी ज़ाहिर ही नहीं की थी। गोवा पुलिस ने इस मामले में मीडिया रिपोर्ट्स का स्वत: संज्ञान लेते हुए मुकदमा दर्ज किया था। नवंबर 2013 में शिकायतकर्ता महिला ने अपने दफ़्तर को चिट्ठी लिख कर पूरे मामले की जानकारी दी थी और इंटर्नल कम्प्लेनट्स कमेटी के तहत जाँच की माँग की थी। तरुण तेजपाल मामले के वक़्त तहलका मैगज़ीन में कोई इंटर्नल कम्प्लेनट्स कमेटी ही नहीं थी, सो मामला जैसे-तैसे पुलिस तक पहुंच गया।

नेटवर्क फ़ॉर वुमेन इन मीडिया इन इंडिया ने सर्वाइवर महिला के साथ दिखाई एकजुटता

तरुण तेजपाल के बरी होने के अदालती फैसले के बाद नेटवर्क फ़ॉर वुमेन इन मीडिया इन इंडिया ने एक बयान जारी कर शिकायतकर्ता महिला (जिसे स्टेटमेंट में सर्वाइवर कहा गया है) के साथ एकजुटता प्रस्तुत की। संगठन के मुताबिक बीते साढ़े सात साल सर्वाइवर और उसके परिवार के लिए काफी मुश्किल भरे रहे। इन सालों में काम और जिंदगी के उथल-पुथल के बीच सर्वाइवर का बार-बार गोवा आना और सबूतों को प्रस्तुत करना काफी तकलीफदेह है। तमाम दिक्कतें, परेशानियों और सामाजिक- सोशल मीडिया के दबाव के बीच महिला संघर्ष करती रही।

बयान में कहा गया है कि सर्वाइवर का संघर्ष मीडिया जगत में महिलाओं के शोषण-उत्पीड़न से निपटने के लिए बने प्रोसेस और मैकेनिजम की खामियों को दर्शाता है। ये दुर्भाग्यपूर्ण है कि 2013 में विशाखा गाइडलाइन्स को क़ानून की शक्ल देने के बावजूद काम की जगह पर यौन उत्पीड़न के लिए कानून को अब भी संजीदगी से नहीं लिया जाता है।

The NWMI Stands in Solidarity With the Survivor in Tarun Tejpal Case - NWM India by Gautam Kumar on Scribd

संगठन ने कहा है कि क्योंकि गोवा सरकार भी इस फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती देने जा रही है, इसलिए न्याय के लिए संघर्ष जारी रहेगा। संगठन महिलाओं के लिए काम की जगह पर सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है और सभी सर्वाइवर्स के साथ खड़ा है।

कविता कृष्णन ने कहा- न्यायिक व्यवस्था ने एक और महिला को निराश किया!

फैसले के फौरन बाद महिलावादी ऐक्टिविस्ट और ऑल इंडिया प्रोग्रेसिव वुमेन्स एसोसिएशन (ऐपवा) की सचिव कविता कृष्णन ने अपने सोशल मीडिया पेज पर लिखा आज न्यायिक व्यवस्था ने एक और महिला को निराश किया। कोई हैरानी नहीं है कि महिलाएं पुलिस में शिकायत दर्ज नहीं करवाना चाहतीं। उन्होंने इसे अपनी शुरुआती राय बताते हुए जजमेंट देखने के बाद अधिक बात कहने की बात कही है।

उन्होंने अपने एक विस्तृत फेसबुक पोस्ट में लिखा कि करीब आठ साल पहले एक युवा पत्रकार ने अपने सीनियर के खिलाफ यौन हमले की शिकायत की। तब तेजपाल ने घटना को स्वीकार करते हुए कई माफियां भी मांगी। गोवा पुलिस ने स्वत: घटना का संज्ञान लेकर मामले में एफआईआर दर्ज की। तब से सर्वाइवर की जिंदगी बर्बाद हो गई। बार-बार गोवा में पुलिस और अदालत के चक्कर काटना, सालों मामले को एक अल्बाट्रोस की तरह उसकी गर्दन में बांध कर रखना, तेजपाल और उसके साथियों द्वारा व्यवस्थित बदनामी झेलना, आदालत और समाज में उसकी ईमानदार छवि को धूमिल करना, ये सब नरक है। इस सब के अंत में उस बहादुर महिला को न्याय का एक छोटा सा स्वाद भी नहीं मिला। बलात्कार के मुकदमे सर्वाइवर के लिए गहरे पीड़ादाई होते हैं। बावजूद इसके एक बार फिर एक सर्वाइवर को निराश,अपमानित किया गया है, उसे नीचा देखना पड़ा।

उन्होंने आगे लिखा कि जैसा कि मुझे पता लगा है, तेजपाल के पास 19 तारीख का तैयार बयान था, इसका मतलब है कि वो पहले से अपने बचने के निर्णय के बारे में जानता था। कविता ने अपने 2016 के लिखे अपने लेख का जिक्र करते हुए कहा, “मैंने लिखा था कि तरुण तेजपाल के पास अपार शक्ति और प्रभावित करने वाली क्षमता है, जो न्याय व्यवस्था को गुमराह कर अपने पक्ष में सकती है, ये आम आदमी के बस की बात नहीं है। तब तेजपाल ने सुप्रीम कोर्ट में इस आधार पर स्टे मांगा कि उसे सीसीटीवी फुटेज, शिकायतकर्ता के मोबाइल फोन, लैपटॉप आदि की क्लोन कॉपी उपलब्ध नहीं कराई गई और इस तथ्य के बावजूद कि इस तरह की क्लोनिंग के लिए भारत में तकनीक उपलब्ध नहीं है, कोर्ट ने स्टे दे दिया। क्या देश में आम आदमी जो कि तेजपाल जैसा रसूख वाला नहीं होता, उसे ये स्टे मिलता।

सोशल मीडिया के जरिए महिलाएं तेजपाल को बरी किए जाने का कर रही हैं विरोध

कविता की तरह ही तमाम पत्रकार महिलाएं सोशल मीडिया के जरिए तेजपाल को बरी किए जाने का विरोध कर रही हैं। उनका कहना है कि जब तेजपाल जैसा नामचीन आदमी खुद अपना जुर्म कबूल कर चुका है, तो कोर्ट उसे इतनी आसानी से बरी कैसे कर सकती है। क्या ये फैसला महिलाओं की आवाज को एक झटका साबित नहीं होगा।

कई महिलाओं ने लिखा है कि मीडिया जगत में शोषण-उत्पीड़न सालों से चला आ रहा है, कुछ महिलाएं ही हिम्मत कर से सामने रख पाती हैं और जब उसका नतीजा ऐसे सामने आता है तो दुख होता है, न्यायिक व्यवस्था से विश्वास उठने लगता है।

जानी-मानी पत्रकार नेहा दीक्षित लिखती हैं कि फैसले से ज्यादा दुखी करने वाला वो रसूखदार लोगों का समूह है जिसमें महिला-पुरुष, लेखक, पत्रकार सहित तमाम मशहूर हस्तियां शामिल हैं जिन्होंने पहले शिकायतकर्ता महिला की छवि धूमिल की, उसे बदनाम करने की कोशिश की और वो अब भी इसी काम में लगे हैं।

कंपनियां इंटर्नल कम्प्लेनट्स कमेटी को नहीं ले रहीं गंभीरता से

गौरतलब है कि साल 2018 में मीटू कैपेंन का शुरुआत जब भारत में हुई, तो उस दौरान मीडिया-सिनेमा और तमाम जगहों पर काम करने वाली महिलाओं ने अपने साथ वर्क प्लेस पर हुए शोषण-उत्पीड़न पर खुलकर अपनी बात रखी। प्रिया रमानी का मामला भी इसी समय लाइमलाइट में आया। जिसके बाद कई संस्थाओं ने देश में मौजूद इंटर्नल कम्प्लेनट्स कमेटी के आंकड़े जुटाने शुरू किए। हालांकि भारत के निजी क्षेत्र में कितनी कंपनियों ने ये कमेटी बनाई है इसका कोई आधिकारिक आंकड़ा अब तक मौजूद नहीं है। जबकि 2 005 में बनाई गई विशाखा गाइडलाइन्स (जो अब कानून की शक्ल ले चुका है) के अनुसार हर दफ़्तर को काम की जगह पर यौन उत्पीड़न की जाँच और फ़ैसले के लिए इंटर्नल कम्प्लेनट्स कमेटी बनानी होती है।

बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक मार्च 2020 में काम की जगह पर यौन उत्पीड़न पर हुए एक सर्वे में पत्रकार जगत से भाग लेने वाली 456 महिलाओं में से एक-तिहाई ने कहा कि उनके साथ ऐसा हुआ है लेकिन 50 फ़ीसद ने इसके बारे में किसी को नहीं बताया।

सेलिब्रिटी पत्रकार कहे जाते थे तरुण तेजपाल

आपको बता दें कि 2013 में जब ये मामला खुला था उस समय तरुण तेजपाल की गिनती भारत के हाई-प्रोफाइल पत्रकारों में होती थी। सफ़ेद दाढ़ी और चुटिया रखने वाले तेजपाल सेलिब्रिटी पत्रकार कहे जाते थे। उनके स्टिंग्स की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चाएं होती थीं। गार्डियन अख़बार ने उनके एक स्टिंग की तुलना अमरीका के 'वाटरगेट' मामले से करते हुए तेजपाल को भारत का "सबसे सम्मानित" पत्रकार कहा था।

जाने-माने अख़बारों और पत्रिकाओं में दशकों काम करने बाद साल 2000 में तरुण तेजपाल ने तहलका पत्रिका शुरू की थी। तहलका ने बहुत कम समय में अपने स्टिंग ऑपरेशन्स से एक नाम कमाया। तहलका ने सबसे ज़्यादा नाम 2001 में अपने-ऑपरेशन वेस्ट एंड- के लिए कमाया। मैगज़ीन में तरुण तेजपाल के एक स्टिंग ने तत्कालीन अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार को काफ़ी दिक़्क़तों में डाल दिया था। उस समय रक्षा मंत्री रहे जॉर्ज फ़र्नांडिस को अपने पद से इस्तीफ़ा देना पड़ा था। यही कारण है कि तरुण बार-बार अपने खिलाफ लगे बलात्कार के आरोपों को बीजेपी सरकार के "राजनीतिक प्रतिशोध" का हिस्सा बताते रहे हैं।

हालांकि जब तेजपाल पर आरोप लगा था, तब उन्होंने खुद शुरू में कहा था कि उनसे "फ़ैसला करने में ग़लती हुई" और "उन्होंने हालात का ग़लत अर्थ समझा" जिसकी वजह से "ये दुर्भाग्यपूर्ण घटना हुई।" लेकिन मामला बढ़ने पर उन्होंने एक बयान जारी कर अधिकारियों से कहा कि सीसीटीवी फुटेज की जांच की जाए "ताकि पूरे घटनाक्रम की सच्चाई ज़्यादा सही तरीक़े से सामने आ सके।"

तरुण ने खुद मांफी मांग खुद को संपादकीय और तहलका कार्यालय से अलग किया था!

उस दौरान कई अख़बारों, वेबसाइट और टीवी चैनलों ने तरुण तेजपाल और महिला सहकर्मी की एक-दूसरे को और दफ़्तर को लिखे ई-मेल्स बिना सहमति लिए छाप दिए थे। इंटरनेट पर अब भी शिकायतकर्ता की अपनी संस्था को लिखी वो ई-मेल मौजूद है जिसमें उनके साथ की गई हिंसा का पूरा विवरण था। ये ई-मेल केस के कुछ ही समय बाद 'लीक' हो गया था।

 ‘द क्विंट’ की रिपोर्ट के मुताबिक, 20 नंवबर 2013 के दिन तेजपाल ने तहलका की मैनेजिंग एडिटर शोमा चौधरी को एक ईमेल भेजा था। जिसमें लिखा था, “पिछले कुछ दिन बहुत टेस्टिंग रहे और मैं इसके लिए पूरी तरह से दोष लेता हूं…निर्णय में एक बुरी चूक, हालात को गलत तरीके से समझना, इन सबने एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना को जन्म दिया है। जो उन सबके खिलाफ है जिन पर हम विश्वास करते हैं और जिनके लिए हम लड़ते हैं। मैंने पहले ही कंसर्न्ड जर्नलिस्ट से माफी मांग ली है। लेकिन मुझे लगता है कि मुझे आगे प्रायश्चित करना चाहिए। मुझे लगता है कि ये प्रायश्चित केवल शब्दों से नहीं होगा। मुझे तपस्या करनी होगी। इसलिए मैं अगले छह महीनों के लिए तहलका के संपादकीय और तहलका कार्यालय से खुद को अलग कर रहा हूं।”

सेशन कोर्ट से हाईकोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा मामला

30 नवंबर को तरुण की गिरफ्तारी हुई। 17 फरवरी 2014 को गोवा पुलिस ने 2846 पन्नों की चार्जशीट दाखिल की। पुलिस ने कोर्ट में कहा था कि तेजपाल के खिलाफ काफी सबूत हैं। जुलाई 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने तेजपाल को ज़मानत दे दी। इसके बाद सितंबर 2017 को तेजपाल ने गोवा के मपूसा डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में एक याचिका डालकर अपने ऊपर लगे सभी आरोपों को हटाने की मांग की। कोर्ट ने 7 सितंबर 2017 के दिन ऐसा करने से मना कर दिया।

 28 सितंबर 2017 के दिन नॉर्थ गोवा के एडिशनल डिस्ट्रिक्ट एंड सेशन्स कोर्ट ने तेजपाल के खिलाफ आरोप दर्ज किए। उनके खिलाफ IPC की धारा 342 (ज़बरन किसी को कैद करना) और 376 (रेप) के तहत चार्जेस लगे। इन चार्जेस को हटाने के लिए तेजपाल ने बॉम्बे हाईकोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया। 2017 के आखिरी महीनों में इस मामले की सुनवाई हुई। बॉम्बे हाईकोर्ट ने सुनवाई के बाद चार्जेस पर रोक लगाने से मना कर दिया।

इसके बाद अगस्त 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने भी तेजपाल के चार्जेस हटाने की अर्जी खारिज़ कर गोवा ट्रायल कोर्ट को छह महीने के अंदर ट्रायल पूरा करने का निर्देश दिया। इसके बाद कोरोना की वजह से मामले में देरी हो गई। दोनों पक्षों को सुनने के बाद मपूसा सेशन्स कोर्ट ने 27 अप्रैल 2021 के दिन फैसला सुरक्षित रख लिया और आखिरकार 21 मई को फैसला सुनाया गया।

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