कम्युनिस्ट आंदोलन के लिए जितना त्याग करना होगा उतना करेंगे: डी राजा
जननायक व कम्युनिस्ट नेता चंद्रशेखर सिंह की स्मृति में केदार दास श्रम व समाज अध्ययन संस्थान द्वारा 'वामपंथ के समक्ष राजनीतिक चुनौतियां' विषय पर विमर्श का आयोजन किया गया। इस स्मृति आयोजन में पटना शहर के बुद्धिजीवी, सामाजिक कार्यकर्ता, संस्कृतिकर्मी तथा विभिन्न जनसंगठनों के नेता मौजूद थे। इस सभा की अध्यक्षता संस्थान के उपाध्यक्ष गजनफर नवाब ने की जबकि संचालन रंगकर्मी जयप्रकाश ने की।
अतिथियों का स्वागत करते हुए संस्थान के सचिव अजय कुमार ने कहा, "चंद्रशेखर सिंह का जन्म 1915 में हुआ था। वे ऐसे ओजस्वी वक्ता थे जिन्हें सुनकर मुर्दों में भी जैसे प्राण मिल जाता था। वे ट्रेड यूनियन के लोगों से कहा करते थे कि अपनी मांगें संघर्षों के माध्यम से मनवाने की कोशिश करें।"
सीपीआई के राष्ट्रीय महासचिव डी.राजा ने अपने संबोधन में कहा, "चंद्रशेखर सिंह सिर्फ सीपीआई नहीं बल्कि पूरे कम्युनिस्ट आंदोलन के प्रमुख नेता थे। चंद्रशेखर सिंह के नाम पर आंदोलन और संगठन बढ़ना चाहिए। आजकल प्रधानमंत्री कहते हैं कि भारत तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनेगी। राममंदिर को लेकर तामिलनाडु और केरल में भी प्रचार चल रहा है। यह चुनावी मुद्दा बनता जा रहा है। ऐसे में कम्युनिस्ट को क्या करना चाहिए। ऐसे में इस चुनौती का कैसे मुकाबला करें। इसके लिए जितना भी त्याग के जरूरत हो हम करने को तैयार हैं। ऐसे में सीपीआई और सीपीएम को कैसे मजबूत करें। यह देखना चहिए। आज बिल्कीस बानो मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अपराधियों को छोड़ना गलता था। हमे भाजपा हटाने और देश बचाने के लिए कम्युनिस्ट आंदोलन को काम करना चाहिए। यही चंद्रशेखर सिंह के नाम पर संकल्प लेना चाहिए। बिहार में सीपीआई का पारंपरिक ताकत है। उत्तर भारत में बिहार ही एक मात्र वामपंथ की जगह है। हम संसदीय जनतंत्र के अंदर काम कर रहे हैं। ऐसे में हमे चुनावों में भाजपा को हराने के लिए जितना त्याग करना होगा उतना करेंगे।"
विषय प्रवेश करते हुए संगठन के राज्य महासचिव रवींद्रनाथ राय ने कहा "चंद्रशेखर सिंह ने आजादी के पूर्व ऑल इंडिया स्टूडेंट फेडरेशन की स्थापना की थी। उनका अंतिम कार्यक्रम पटना में एंटीफासिस्ट कांफ्रेंस के आयोजन था। आजकल स्मार्ट सिटी, स्टार्टअप, समावेशी विकास आदि का नारा दिया जाता है। आज न्यूनतम सरकार की बात की जाती है लेकिन जो सरकार जनता के पक्ष में जितना काम करे उसे ही न्यूनतम सरकार कहा जाता है। जाने अनजाने हमलोग भी उसी भाषा में बात करने लगते हैं। फ्युडलिजम के जमाने में दुश्मन साफ साफ दिखता था लेकिन पूंजीवाद में असली दुश्मन कहां छुपा है वह दिखता ही नहीं है। अभी भले कोई एक नेता या दल दिखाई देता है लेकिन उसे संचालित करने वाली ताकतें कौन सी है उसकी पहचान होनी चाहिए। भारत के अंदर फासिज्म लाने का तरीका सिर्फ हिटलर और मुसोलिनी जैसा ही नहीं है।"
सीपीएम नेता अरुण मिश्रा ने कहा "चंद्रशेखर सिंह जैसे लोग जनता के बीच काम किया करते थे इससे सीखने की जरूरत है। जब ऐसे लोग गांव में काम करने जाते थे तो जमींदार उनपर कुत्ता छोड़ देता था। कम्युनिस्ट पार्टी बनी है क्रांतिकारी परिवर्तन के लिए। ताशकंद और कानपुर के समय से ही हमारे साथ दमन की कारवाई होती थी। उनके सामने देश और समाज को बदलने का ख्वाब देखा करते थे। हमारे सामने यह तात्कालिक सवाल है वर्तमान सरकार को बेदखल करना लेकिन अपने स्वप्न को भूलें नहीं। नवउदारवाद के साथ जनतंत्र चल ही नहीं सकता। दक्षिणपंथी ताकतें उनके अंदर से ही फल फूल रहे हैं। पूंजीवाद का संकट मानवता के लिए संकट बन चुका है। गाजा में जो संकट है वह अमेरिकी साम्राज्यवाद कर रहा है। मिड्ल ईस्ट के देशों में नेशनलिस्ट, सेक्युलर और वामपंथी शक्तियों को खत्म कर फंडामेंटलिस्ट ताकतों को खड़ा किया गया है। हमें लेनिन की तरह आज के साम्राज्यवाद की व्याख्या करनी होगी। संगठन और विचारधारा के मध्य तालमेल होना चाहिए। ऐसा नहीं होगा कि विचारधारा कुछ और कहे, संगठन दूसरी ओर चले। हमें समाजवाद की बात साफ रूप से कहनी चाहिए।"
सीपीआई के पटना जिला सचिव विश्वजीत कुमार ने बताया "इस गंभीर वक्त में हम कितने लोगों को लेकर चलेंगे। यह चुनौती है।"
प्रगतिशील लेखक संघ के उपमहासचिव अनीश अंकुर ने बताया "वामपंथ की जितनी बड़ी ताकत है उससे उसे कम करके आंकने की परिपाटी है। हमें उस मनःस्थिति से बाहर आना होगा। वामपंथ के सामने राजनीतिक चुनौती यह है कि हम सुरक्षात्मक संघर्ष में लगे हैं। जिन उपलब्धियों को अब तक संघर्षों से हासिल किया था उसे ही बचाने में लगे हैं लेकिन हमें थोड़ा और साहस के साथ काम करना होगा, आक्रामक होना होगा। हमें जाति के साथ संपत्ति के सवाल को उठाना होगा क्योंकि दोनों जन्म से निर्धारित होते हैं। अंग्रेज भारत में रेलवे लाए लेकिन उनकी नीतियों के कारण भारत में करोड़ों लोग अकाल से मर गए। मोबाइल आया, बेंगलुरु और मुंबई जैसा केंद्र बना लेकिन सबसे ज्यादा किसान आत्महत्या वहीं करते हैं।"
आंगनबाड़ी कर्मचारियों के नेता कुमार बिंदेश्वर ने अपने संबोधन में कहा, "कम्युनिस्ट लोगों को आज एकजुट होने की जरूरत है।"
टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज के पटना सेंटर के चेयरपर्सन पुष्पेंद्र ने कहा, "पूंजीवाद का सबसे तेज विकास सिंगापुर में हुआ लेकिन वहां एक ही आदमी चालीस साल तक शासन किया। सैनिक शासन में भी पूंजीवाद रहा है। पूंजीवाद के बारे में कहा जाता है कि वह व्यक्तिगत स्वतंत्रता को अधिकार देता है, विस्तार करता है। आज उदार जनतंत्र मात्र 17 प्रतिशत आबादी को ही मिला हुआ है जबकि 72 प्रतिशत निरंकुश माहौल में जी रहा है। बीआरएलडी फ्रीडम इंडेक्स को देखें तो उसका ह्रास हो रहा है। उदार जनतंत्र ढलान पर है खासकर पिछले दस साल में। आज समाजवाद के लिए परिपक्व स्थिति होनी चाहिए। आज वामपंथ की चुनौती इसी स्थिति में है। जहां बेरोजगारी है वहां समाजवादी विचारों की पार्टी नहीं आ पाती जबकि फासीवादी लोग आ जाते हैं। न्याय के सवाल पर क्या कोई मोर्चा बन सकता है? इस बात का प्रयास उन्हें ही करना चाहिए।"
ट्रेड यूनियन नेता डीपी यादव ने बताया, "चद्रशेखर सिंह को हमने बचपन में देखा था। किऊल नदी के माध्यम से सिंचाई का काम उन्होंने किया। आज देश में हम दो, हमारे दो की सरकार है। किसानों के खिलाफ काला कानून के लिए संघर्ष जारी है।"
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