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घर पहुंचने की कोशिश में दो-दो, तीन-तीन बार क्वारंटीन भुगत रहे हैं मज़दूर

बिहार में हज़ारों मज़दूरों की यही कहानी है। गोपालगंज जिले के सीमावर्ती इलाकों में बने सीमा आपदा राहत केंद्र में रह रहे 11 सौ से अधिक मज़दूरों के साथ भी ऐसी ही मुसीबतें आयी हैं। उनमें से ज्यादातर को दो दफा और कई अन्य लोगों को तीन बार क्वारंटीन होना पड़ा है। 
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बिहार के बेगूसराय जिले के नावकोठी में प्रखंड क्वारंटीन सेंटर में खड़े ये मज़दूर तीसरी बार क्वारंटीन का सामना कर रहे हैं।

24 मार्च को कोरोना की वजह से देश में लागू हुए पहले लॉकडाउन के दिन बिहार के आठ मज़दूर दिल्ली के आनंद विहार बस अड्डे से अपने घर बेगूसराय जिले के मंझौल और नावकोठी के गांवों के लिए निकले थे। मगर बसों की यात्रा करने के बावजूद 42 दिन बाद भी उन्हें अपने घर की दहलीज़ नसीब नहीं हुई है। इस बीच उन्हें बिहार और यूपी के अलग-अलग जगहों में दो बार क्वारंटीन में रहना पड़ा है, अभी वे अपने प्रखंड मुख्यालय नावकोठी में 21 दिनों के लिए क्वारंटीन किये गये हैं। इस तरह अगर सबकुछ ठीक रहा तो लगभग दो महीने बाद 20-21 मई को ही वे अपने घर पहुंच पायेंगे। सिस्टम की गड़बड़ियों की वजह से इन्हें तीन बार क्वारंटीन में रहना पड़ रहा है।

कोरोना संकट के इस दौर में इस तरह की अजीबो-गरीब समस्या का सामना करने वाले ये मज़दूर बेगूसराय जिले के मझौल अनुमंडल के पहसारा पूर्वी पंचायत के गरही के रंजीत राम,  बालो राम,  राजू कुमार,  नावकोठी समसा के गोविंद राम,  रॉबिन राम,  डफरपुर पंचायत के छतौना निवासी लालो पासवान तथा नावकोठी के राजू साह एवं राजीव साह हैं। ये सभी आठ लोग 24 मार्च को आनंद विहार बस टर्मिनल से अपने गांव के लिए निकले थे। मगर जब बस उत्तर प्रदेश के कुशीनगर पहुंची तो वहां सभी को उतार दिया गया। वहां उन्हें 25 दिनों के लिए क्वारंटीन कर दिया गया। 25 दिनों बाद उन्हें बस से बिहार भेज दिया गया।

मगर जब उनकी बस बिहार के सीमावर्ती जिले गोपालगंज पहुंची तो उन्हें वहां उतार लिया गया और क्वारंटीन कर दिया गया। बिहार सरकार के आपदा प्रबंधन ने पहले लॉकडाउन के वक्त से ही सीमावर्ती इलाकों में क्वारंटीन सेंटर खोल रखे थे। हालांकि कैमूर स्थित कर्मनाशा सीमा पर पहुंचने वाले लोगों को बसों से सीधे उनके पंचायत पहुंचाने की व्यवस्था की गयी थी, मगर गोपालगंज की सीमा पर ऐसी व्यवस्था नहीं थी। ऐसे में उन्हें वहां दुबारा क्वारंटीन होना पड़ा। वहां उन्हें बिहार सरकार के नियमानुसार 14 दिन तक क्वारंटीन होना था, मगर गोपालगंज सीमा स्थित इस सेंटर में अप्रैल के आखिर में कोरोना के पॉजिटिव मरीज मिलने लगे, इसलिए तय हुआ कि वहां जो भी मज़दूर क्वारंटीन हैं, उन्हें उनके गृह जिले में भेज दिया जाये। ऐसे में ये मज़दूर भी 30 अप्रैल को वहां से निकले और तीसरे लॉकडाउन के लिए बिहार सरकार द्वारा बनाये गये नियम के मुताबिक अपने प्रखंड मुख्यालय नावकोठी में 21 दिनों के लिए क्वारंटीन कर दिये गये हैं।

पत्रकार सुशील मानव की एक पोस्ट से इस सिलसिले की जानकारी मिली तो हमने इसे आगे बढ़ाया। पता चला कि यह कहानी सिर्फ इन्हीं आठ मज़दूरों की नहीं है। बिहार के गोपालगंज जिले के सीमावर्ती इलाकों में बने सीमा आपदा राहत केंद्र में रह रहे 11 सौ से अधिक मज़दूरों के साथ ऐसी ही मुसीबतें आयी हैं। उनमें से ज्यादातर को दो दफा और कई अन्य लोगों को तीन बार क्वारंटीन होना पड़ा है। इसकी वजह सिर्फ इतनी है कि इन्हें सीधे इनके पंचायत भेजने के बदले सीमावर्ती इलाकों में रोक लिया गया। इनमें से कई तो बसों से पहुंचे थे, कई ऐसे भी थे जो साइकिल चलाकर और पैदल बिहार पहुंचे थे। राज्य की सीमा पुलिस ने उन्हें पकड़कर वहां क्वारंटीन कर दिया। अब वे अपने प्रखंड मुख्यालयों में फिर से 21 दिनों के लिए क्वारेंटीन हो रहे हैं।   

गोपालगंज में एक प्रमुख स्थानीय अखबार के प्रभारी अवधेश राजन बताते हैं कि यहां इस तरह की परेशानियां खूब हुई हैं। दरअसल राज्य के दूसरे सीमावर्ती इलाकों से मज़दूरों को सीधे उनके पंचायत भेजने की व्यवस्था की गयी थी, मगर गोपालगंज में पिछले महीने तक सभी आने वालों को सीमा पर क्वारंटीन किया जा रहा था। उन्हें उनके पंचायत नहीं भेजा जा रहा था, जिस वजह से एक तो उन्हें बार-बार क्वारंटीन होना पड़ रहा है, वहीं यहां भी भीड़भाड़ की वजह से कोरोना का संक्रमण फैलने लगा था। जब इन क्वारंटीन सेंटर के दो मज़दूरों के कोरोना संक्रमित होने की खबर आयी तो इन्हें आनन-फानन में इनके प्रखंड तक भेजा जाने लगा।

अवधेश से मिली जानकारी की पुष्टि कैमूर जिले में कर्मनाशा बार्डर पर लगातार नजर रखने वाले पत्रकार मनोज करते हैं। वे कहते हैं कि कर्मनाशा बार्डर पर पिछले एक माह से लगातार बसें चल रही हैं। यहां आने वाले प्रवासी मज़दूरों की थर्मल स्क्रीनिंग के बाद स्पेशल बसों द्वारा उन्हें सीधा उनके पंचायत भेजा जा रहा है। इस वजह से इन मज़दूरों को दो या तीन बार क्वारेंटीन नहीं होना पड़ रहा है।

दरअसल पहले लॉक डाउन के बाद जब देश के कोने-कोने से मज़दूर पैदल ही अपने गांवों के लिए निकल पड़े थे, उस वक्त बिहार सरकार ने पहले तय किया था कि इन मज़दूरों के लिए सीमावर्ती जिलों में क्वारंटीन सेंटर खोले जायेंगे। मगर फिर यह तय हुआ कि सीमावर्ती क्षेत्रों में इनकी स्क्रीनिंग होगी और इन्हें बसों से इनके पंचायत तक भेजा जायेगा। कर्मनाशा बार्डर पर तो यह प्रक्रिया शुरू हो गयी, लिहाजा वहां पहुंचने वाले मज़दूरों को इस तरह की मुसीबत का सामना नहीं करना पड़ा, मगर गोपालगंज सीमा पर बसों की सुविधा नहीं होने के कारण यह प्रक्रिया शुरू नहीं हो पायी। इसलिए उधर से बिहार आने वालों को बार-बार क्वारंटीन होना पड़ रहा है। इसके अलावा राज्य सरकार भी अपने क्वारंटीन का सिस्टम बार-बार बदल रही है। पहले पंचायतों में 14 दिन के क्वारेंटीन की बात थी, अब प्रखंड मुख्यालय में 21 दिन क्वारंटीन में रखे जाने का निर्देश मुख्यमंत्री ने जारी किया है।

मगर इस बीच कोई यह बताते के लिए तैयार नहीं है कि एक ही व्यक्ति क्यों बार-बार क्वारंटीन हो। एक ही बार में उसे अधिकतम क्वारंटीन कर क्यों न छोड़ा जाये। इस संबंध में बार-बार फोन करने पर भी राज्य सरकार के आपदा प्रबंधन विभाग के प्रधान सचिव प्रत्यय अमृत से बात नहीं हो पायी।

इस संबंध में बात करने पर एनएपीएम के समन्वयक महेंद्र यादव कहते हैं कि यह उदाहरण इस बात को उजागर करने के लिए पर्याप्त है कि न लॉकडाउन से पहले इन मज़दूरों के बारे में सोचा गया और न ही अब सोचा जा रहा है। लॉकडाउन से पहले जहां विदेशों से लोगों को चार्टर प्लेनों से लाया गया, वहीं इन करोड़ों मज़दूरों को अपने हालात से जूझने के लिए छोड़ दिया गया है। वे कहते हैं कि अगर वे मज़दूर यात्रा पर निकल पड़े थे, या देश के दूसरे इलाकों में भी मज़दूर घर के लिए यात्रा पर निकल पड़े हैं तो उन्हें गन्तव्य से पहले क्वारंटीन करना सिर्फ़ उनकी मुसीबत को बढ़ाना है। सरकारों को उन्हें सीधे उनके पंचायतों तक पहुंचाना चाहिए, और वहीं उन्हें क्वारंटीन करना चाहिए। ताकि वे इस तरह की बेवजह की मुसीबतों का सामना न करें।

(पुष्यमित्र वरिष्ठ स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

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