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कॉन्सर्ट में हुई भगदड़ से उभरीं चिंताजनक प्रवृत्तियां

रहमान के संगीत समारोह में हुई भगदड़ और 25 नवंबर को कोच्चि में इससे भी बदतर त्रासदी की पुनरावृत्ति उभरते भारत में जन संस्कृति की स्थिति के बारे में काफी परेशान करने वाले सवाल खड़े करती है।
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फ़ोटो साभार : द न्यू इंडियन एक्सप्रेस

तात्कालिक संदर्भ में फोकस है कार्यक्रम प्रबंधन, भीड़ नियंत्रण, संगीत कार्यक्रमों के लिए आवश्यक बुनियादी ढांचे आदि। निःसंदेह ऐसी त्रासदियों की पुनरावृत्ति को रोकने के लिए ये गंभीर मुद्दे हैं जिन पर ध्यान दिया जाना चाहिए।

गहन स्तर पर यह सांस्कृतिक कार्यक्रमों के व्यावसायीकरण, बड़े पैमाने पर मीडिया निर्माण, युवा संस्कृति में गिरावट, भीड़ का हिस्सा होने के दौरान उपद्रवी व्यवहार, बड़े पैमाने पर यौन उत्पीड़न के वाकये और अराजक भीड़ मानसिकता के बारे में कई सवाल भी उठाता है। इन मुद्दों का समाधान समाज और उसकी संस्थाओं के लिए अधिक विकट चुनौतियां खड़ी करता है।

ख़राब इवेंट मैनेजमेंट

एआर रहमान कॉन्सर्ट से पहले बड़े पैमाने पर विज्ञापन ब्लिट्ज लॉन्च किया गया था। युवाओं में एक प्रकार का कृत्रिम उन्माद पैदा किया गया। आदित्यराम पैलेस सिटी के कार्यक्रम स्थल में लगभग 24,000 लोग बैठ सकते थे, लेकिन 50,000 से अधिक लोग जमा हो गये। जिन वाहनों से दर्शक कार्यक्रम में शामिल होने आ रहे थे वे वाहन कार्यक्रम स्थल तक पहुंचने वाली सड़क पर 2 किलोमीटर से अधिक दूरी तक कतार में खड़े थे। इससे ट्रैफिक जाम और भीड़ पैदा हो गई और कार्यक्रम स्थल पर गुस्सा, व्यग्रता और हताशा बढ़ गई।

टिकट लिये हुए कई लोग अंदर नहीं जा सके। कुछ लोगों ने आरोप लगाया कि आयोजकों ने खुद सभागार में उपलब्ध सीटों की संख्या से अधिक टिकट बेचे थे। इससे सभागार के प्रवेश द्वार पर अफरातफरी पैदा हो गई और भगदड़ मच गई। भगदड़ में कई लोग घायल हो गए, खासकर बच्चे। लेकिन एआर रहमान कॉन्सर्ट में भगदड़ की विशेष बात थी महिलाओं के साथ बड़े पैमाने पर हुई छेड़छाड़। भीड़ में छेड़छाड़ और अन्य प्रकार की यौन हरकतों के मामले बड़े पैमाने पर सामने आये।

हालांकि, केरल में कोच्चि त्रासदी एक विश्वविद्यालय, कोचीन यूनिवर्सिटी ऑफ़ साइंस एंड टेक्नोलॉजी (CUSAT) के परिसर में हुई थी जहां मुख्य रूप से एक संगीत समारोह चल रहा था और जहां बॉलीवुड पार्श्व गायिका निखिता गांधी को प्रस्तुति देनी थी। यह मुख्य रूप से एक छात्र कार्निवल था जिसमें विश्वविद्यालय के बाहर से भी बड़ी संख्या में सामान्य युवाओं ने भाग लिया। सभागार में बैठने की कोई व्यवस्था नहीं थी और लगभग 3000 लोग ही वहां खड़े होकर कार्यक्रम देख सकते थे। लेकिन कथित तौर पर 10,000 से अधिक लोग आये। आयोजक गेट पर प्रवेश करने वालों की स्क्रीनिंग कर रहे थे ताकि बाहरी लोगों की बजाय विश्वविद्यालयों के पंजीकृत छात्रों को प्रवेश में प्राथमिकता मिल सके। इससे कुछ देरी और व्यवधान हुआ और पूरी प्रतीक्षारत भीड़ प्रवेश द्वार की ओर बढ़ आई। कई लोग कुचले गए और चार की मौत तक हो गई व 50 से अधिक घायल हो गए। इनमें से दो की हालत गंभीर बताई जा रही है।

चेन्नई में कार्यक्रम आयोजन की जिम्मेदारी एक कार्यक्रम आयोजित करने वाली फर्म ACTC को दी गई थी। पुलिस ने ACTC के खिलाफ मामला दर्ज किया है लेकिन एआर रहमान ने खुद इस त्रासदी की पूरी नैतिक जिम्मेदारी ली और माफी मांगी। उन्होंने उन लोगों के टिकट के पैसे भी वापस करने की पेशकश की जो कॉन्सर्ट हॉल के भीतर नहीं पहुंच सके। यह निर्धारित करने के लिए जांच अभी भी जारी है कि क्या अधिक टिकट बेचे गए थे और यदि हां तो इसका निर्णय किसने लिया।

चेन्नई पुलिस ने केवल आयोजकों को दोषी ठहराया और उन पर उच्च संभावित उपस्थिति के बारे में पुलिस को सूचित न करने का आरोप लगाया। आरोप-प्रत्यारोप के बीच, ये त्रासदियां कुछ बड़े मुद्दों पर गहन आत्मनिरीक्षण की मांग करती हैं।

भीड़ की सामाजिक-सांस्कृतिक असामान्यता

भारत में भगदड़ आम बात है। जहां भी भारी भीड़ जमा होती है वहां भगदड़ मचने का खतरा रहता है। कुछ लोग कहते हैं कि यह एक सांस्कृतिक मुद्दा है। जन मनोविज्ञान के गहरे स्तर पर कुछ लोग इसे झुंड-मानसिकता या भीड़-मांसिकता से जोड़ते हैं जिसका अर्थ है कि यह जानवरों सरीखे व्यवहार के समान है।

सामाजिक-सांस्कृतिक रूप से, भीड़ असाधारण इकाइयां होती हैं। यहां सारी सामाजिक मान्यताएं टूट जाती हैं। व्यवहार के पैटर्न में भारी बदलाव आता है और सभी व्यक्तिगत नैतिक मूल्य लुप्त हो जाते हैं। आम तौर पर अंतर-यौन (inter-sexual) व्यवहार में देखी जाने वाली सामाजिक पाबंदियां टूट जाती हैं। बर्बरता आदर्श बन जाती है। सार्वजनिक संपत्ति को नष्ट किया जाता है। अक्सर, निजी संपत्ति भी चपेट में आ जाती है और उसे नष्ट कर दिया जाता है। जो लोग वैसे व्यक्तिगत रूप से जिम्मेदार होते हैं, अचानक गुंडों में बदल जाते हैं। यह आंशिक रूप से इसलिए है क्योंकि भीड़ में किसी का अधिकार नहीं होता। यह सभी के लिए एक अराजक मुक्त क्षण हो जाता है। सार्वजनिक अधिकार के रक्षक के रूप में राज्य अक्सर यहां अपनी सीमाएं उजागर करता है। हर भीड़ को लाठीचार्ज और फायरिंग से तितर-बितर नहीं किया जा सकता।

कॉन्सर्ट में होने वाली भगदड़ अनोखी होती है

भीड़ अलग-अलग तरह की होती है और अलग-अलग माहौल में भगदड़ होती है। भारत में विशाल धार्मिक और तीर्थयात्रा वाले जमघटों में भगदड़ आम बात होती थी। राजनीतिक रैलियों में भी भगदड़ आम हैं। 28 दिसंबर 2022 को नेल्लोर जिले के कंदुकुरु में टीडीपी नेता चंद्रबाबू नायडू की रैली में भगदड़ में 8 लोगों की मौत हो गई थी। फिर, 30 जुलाई 2023 को, टीडीपी के एक अन्य कार्यक्रम में, जहां आयोजकों ने साड़ियों के मुफ्त वितरण की घोषणा की थी, गुंटूर में भगदड़ में तीन लोगों की मौत हो गई। एक राजनीतिक दल प्रचार स्टंट के तहत मुफ्त उपहार की पेशकश कर रहा है जिससे भगदड़ मचनी तय है। वामपंथी दलों और यहां तक कि द्रमुक जैसी पार्टियों के पास भीड़ नियंत्रण में निपुण प्रशिक्षित स्वयंसेवक हुआ करते थे और राजनीतिक सभाओं में कुछ हद तक आत्म-नियंत्रण भी होता था। इसलिये दुर्घटनाओं के बारे में कम सुनने को मिलता है। हालांकि कुछ करिश्माई नेताओं पर केंद्रित कुछ जन दलों(mass parties) के मामले में शायद ही ऐसा कोई अनुशासन होता है।

अक्सर कुछ प्रमुख रैलियों में पुलिस तंत्र द्वारा सार्वजनिक नियंत्रण और व्यवस्था लागू करने की सीमाएं होती हैं। यहां तक कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी 2 फरवरी 2019 को उत्तर 24 परगना में एक रैली में जब भीड़ मंच की ओर बढ़ने लगी और भगदड़ जैसी स्थिति पैदा हो गई तब अपना भाषण संक्षिप्त कर कार्यक्रम स्थल से चले जाना पड़ा। प्रधानमंत्री की सुरक्षा के लिए मंच के चारों ओर पुलिसकर्मियों द्वारा बनाई गई मानव श्रृंखला अप्रभावी साबित हुई और टूट गई। एसपीजी कमांडो ने प्रधान मंत्री को सूचित किया कि वे किसी भी अप्रिय घटना को नहीं रोक सकते और अपना भाषण अचानक रोककर प्रधानमंत्री को मंच के पीछे एक हेलीपैड पर ले गए। रैली में शामिल कई महिलाएं और बच्चे घायल हो गये।

रेलवे स्टेशनों और खेल आयोजनों में भी भगदड़ आम बात है। हाल के दिनों में, 22 सितंबर 2023 को भारत-ऑस्ट्रेलिया मैच के दौरान हैदराबाद जिमखाना में भगदड़ में कई लोग घायल हो गए। लोग टिकट पाने के लिए टिकट काउंटर पर एक-दूसरे से धक्का-मुक्की करने लगे जिससे भगदड़ मच गई और कई लोग घायल हो गए।

कॉन्सर्ट में भगदड़ भी कोई नई बात नहीं है। 20 दिसंबर 2018 को मुंबई के मीठीबाई कॉलेज में रैपर्स के कॉन्सर्ट के दौरान कुचले जाने के बाद कई लोग आईसीयू में पहुंच गए।

केके (प्रसिद्ध बॉलीवुड गायक कृष्णकुमार कुन्नथ) के एक संगीत कार्यक्रम में मई 2022 में कोलकाता में) सभागार में खराब प्रबंध को देखकर भीड़ अनियंत्रित हो गई और कार्यक्रम को रोकना पड़ा। औडिटोरियम में एसी काम नहीं कर रहा था। इससे गायक केके को भारी तनाव हुआ और जब उन्हें होटल के कमरे में ले जाया गया तो दिल का दौरा पड़ने से उनकी मृत्यु हो गई। दिल्ली आईआईटी तक में 13 मार्च 2023 को सोनू निगम के कॉन्सर्ट के दौरान कई छात्राओं का यौन उत्पीड़न किया गया।

फिर भी, दक्षिण में कॉन्सर्ट भगदड़ के बारे में कुछ अनोखा है।

उच्च मध्यम वर्ग के युवाओं का अनियंत्रित व्यवहार

दक्षिण में हाल की दो भगदड़ों में जो असाधारण बात है वह है दर्शकों का वर्ग चरित्र। प्रतिभागी अधिकतर संपन्न मध्यमवर्गीय पृष्ठभूमि से रहे हैं। आमतौर पर, निम्न मध्यम वर्ग और मजदूर वर्ग की पृष्ठभूमि के हजारों युवा रजनीकांत की हर फिल्म की रिलीज के दिन सिनेमाघरों के सामने इकट्ठा होते हैं और नाचते और जश्न मनाते हैं। लेकिन रजनीकांत के प्रशंसकों द्वारा महिला राहगीरों के साथ दुर्व्यवहार का कोई मामला कभी सामने नहीं आया। इसके विपरीत, कोच्चि में प्रतिभागी वो छात्र थे जो हाई-टेक करियर में प्रवेश करने वाले थे और एआर रहमान के संगीत कार्यक्रम के लिए एकत्र हुए अधिकांश लोग भी मध्यम वर्ग की पृष्ठभूमि वाले युवा थे।

यह टिकट की कीमत से स्पष्ट है। कॉन्सर्ट के लिए टिकट की कीमत 2000 रुपये से शुरू हुई थी। वीआईपी टिकट 50,000 रुपये में बेचे गए । निम्न वर्ग के युवा इतनी ऊंची कीमत पर टिकट नहीं खरीद सकते। मध्यम वर्ग का चरित्र इस तथ्य से भी स्पष्ट था कि अधिकांश प्रतिभागी अपने स्वयं के वाहनों में आए थे जिससे बड़े पैमाने पर ट्रैफिक जाम हो गया क्योंकि कॉन्सर्ट स्थल पर पर्याप्त पार्किंग स्पेस नहीं था।

एक और अनूठी विशेषता थी बड़ी संख्या में लड़कियों की उपस्थिति। यह मध्यवर्गीय युवाओं के बीच विभिन्न प्रकार के सांस्कृतिक रुझान को भी उजागर करता है। जहां उनके बुजुर्ग हर सर्दियों में एक महीने तक चलने वाले मार्गाज़ी संगीत (Margazhi Music) सत्र के दौरान लगभग 1000 कर्नाटक और अन्य शास्त्रीय संगीत समारोहों में भाग लेते हैं वहीं युवा रहमान या इलियाराजा जैसे रॉकस्टार संगीत समारोहों को पसंद करते हैं। लेकिन दोनों के बीच विरोधाभास आश्चर्यजनक है।

संस्कृति के व्यावसायीकरण का उच्च स्तर

कम लागत वाले पारंपरिक कर्नाटक संगीत कार्यक्रमों के विपरीत, पॉप संस्कृति वाले संगीत कार्यक्रम करोड़ों रुपये के होते हैं। इवेंट से पहले विज्ञापन और प्रोमो पर भारी पैसा खर्च किया जाता है। डिजिटल मीडिया विज्ञापन टीवी और समाचार पत्रों के विज्ञापनों के प्रतिद्वंद्वी हैं। कॉलेजों के पास बड़े-बड़े कटआउट लगाए जाते हैं।

कर्नाटक संगीत कार्यक्रमों में आम तौर पर 500 रुपये तक का शुल्क लिया जाता है और वह भी केवल चेन्नई की सभाओं में। केवल संभ्रांत दर्शकों का एक छोटा सा वर्ग 2000 रुपये या उससे अधिक का भुगतान करता है। हालांकि कर्नाटक संगीत वार्षिक समारोह के केंद्र तिरुवैयारु में, संगीत कार्यक्रम निःशुल्क होते हैं। यहां तक कि तंजावुर, कुंभकोणम और तिरुचि जैसे शहरों में भी, कई संगीत कार्यक्रम मंदिर के मैदानों में होते थे जहां प्रदर्शन करने वाले कलाकारों और दर्शकों के बीच कोई व्यावसायिक संबंध नहीं होता था।

लेकिन एआर रहमान के कॉन्सर्ट के लिए आगे की पंक्ति की सीटें जिन्हें डायमंड, गोल्ड और सिल्वर कैटेगरी में बांटा गया था उनके लिए टिकटें भारी कीमत पर बेची गईं। डायमंड टिकट की कीमत 20,000 रुपये थी और 'गोल्ड टिकट' 15,000 रुपये में बिका और हजारों लोगों ने उन्हें खरीदा!

दुर्भाग्य से, व्यावसायीकरण के उच्च स्तर के साथ लंपटीकरण(lumpenisation) की संस्कृति भी जुड़ी हुई है। युवा नशीली दवाओं का सेवन करते हैं और इन संगीत समारोहों में जाते हैं। आयोजन स्थल के पास खुलेआम शराब बहती है। शराब का सेवन उन कुछ लड़कियों के बीच भी स्टेटस सिंबल और आधुनिकता का संकेत बन जाता है जिनके परिवार रूढ़िवादी नहीं हैं। जितना अधिक उन्माद होगा आयोजकों की झोली में उतना ही अधिक पैसा आएगा।

लुम्पेनाइजेशन के साथ अभिजात्यवाद, इन उच्च लागत वाले संगीत समारोहों में उपद्रवी व्यवहार के साथ व्यावसायीकरण की उच्च सीमा, व्यवहार के निम्न रूपों के साथ उच्च संस्कृति की आभा स्पष्ट विरोधाभास हैं जो कोई संयोग नहीं है। वे नव धनाढ्य उच्च वर्ग की संस्कृति में रचे-बसे हैं, जो चमचमाती कारें चलाते हैं और जो डिजाइनर कपड़े केवल लंपटो वाले निम्न और अश्लील व्यवहार में शामिल होने के लिए पहनते हैं। जितना अधिक वे आर्थिक रूप से आगे बढ़ते हैं उतना ही अधिक वे सांस्कृतिक रूप से नीचे गिरते जाते हैं। संगीत समारोहों के आसपास दिखाई देने वाले स्पष्ट विरोधाभास इस नवोदित वर्ग के वास्तविक जीवन के विरोधाभासों का प्रतिबिंब मात्र हैं।

सांस्कृतिक रूप से इस चुनौती से और अधिक सशक्त तरीके से निपटने की जरूरत है।

आयोजकों की सतही प्रतिक्रिया

कौन जिम्मेदार है? यही वह सवाल है जो संगीत समारोहों में होने वाली ऐसी अशोभनीय घटनाओं के बाद हावी हो जाता है। आपदा के बाद, एआर रहमान ने कहा: "एक संगीतकार के रूप में, मेरा काम एक शानदार शो देना था और मैंने सोचा कि बाकी सभी चीजों का ध्यान रखा जाएगा।" हालांकि इस भयानक शो के भयावह रूप में बदल जाने के बाद वह केवल माफ़ी मांग सकते थे।

कोच्चि में न तो सरकार और न ही सीयूएसएटी प्रशासन ने उन छात्रों के परिवारों को कोई अनुग्रह राशि दी जिनकी कुचलकर दर्दनाक मौत हो गई थ।

पुलिस प्रशासन और सरकारी अधिकारी भविष्य के ऐसे आयोजनों पर लागू किए जाने वाले जोखिम-मुक्त मानदंडों और शर्तों पर बहस नहीं कर रहे हैं। आधुनिक तकनीक अधिकारियों को ऐसे आयोजनों में लड़कियों से छेड़छाड़ करने वालों की पहचान करने में सक्षम बनाती है। यदि ऐसे छेड़छाड़ करने वालों को 2 साल के लिए जेल में डाल दिया जाए और आयोजकों को पीड़ितों को लाखों रुपये का मुआवजा देने के लिए मजबूर किया जाए तो इसका कुछ वास्तविक निवारक प्रभाव हो सकता है।

लेकिन इसका अधिक प्रभावी उपाय सांस्कृतिक धरातल पर संघर्ष शुरू करके ही पाया जा सकता है। महिलाओं के प्रति इस तरह के उपद्रवी व्यवहार का विरोध करने के लिए उसी मध्यम वर्ग से एक मजबूत सांस्कृतिक प्रतिधारा उभर सकती है। मीडिया के सभी समझदार तत्व भी इस उद्देश्य के लिए स्वयं को समर्पित कर सकते हैं।

एआर रहमान के कॉन्सर्ट को तमिल में ‘मराक्कुमा नेन्जाम’ नाम दिया गया था (क्या मन इसे कभी भूल सकता है?) अफसोस की बात यह है कि इसमें भाग लेने वाली लड़कियों के लिए यह एक अविस्मरणीय खुशी का जश्न होने के बजाय एक दुस्वप्न बन गया जिसके निशान लंबे समय तक नहीं मिटाए जा सकते।

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