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लेखकों और कलाकारों ने पहलवानों के समर्थन में बुलंद की आवाज़

ज़िम्मेदार ओहदों पर बैठे लोगों को, यौन शोषण जैसे गंभीर आरोपों के बावजूद राजनीतिक  प्रश्रय नैतिक भ्रष्टाचार की संस्कृति को प्रश्रय देना है।
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भारतीय जन नाट्य संघ (इप्टा) और प्रगतिशील लेखक संघ (प्रलेस) के पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और दिल्ली के लेखकों और कलाकारों के बड़े समूह ने जंतर मंतर, दिल्ली में चल रहे धरने पर जाकर संघर्षरत खिलाड़ियों को समर्थन दिया और उन्हें संबोधित किया।

तेज बारिश के बीच भी जंतर मंतर पर महिला पहलवानों के समर्थन में देश के विभिन्न इलाकों से अनेकों जन संगठनों के प्रतिनिधि उमड़ रहे हैं।

प्रलेस के राष्ट्रीय महासचिव सुखदेव सिंह सिरसा ने कहा कि सत्ता पर काबिज और संस्थान प्रमुख के खिलाफ आवाज़ उठाने के लिए बहुत साहस की जरूरत होती है। हम सभी जनवादी और प्रगतिशील कलाकारों और लेखकों को एकजुट होकर इन खिलाड़ियों का पुरजोर समर्थन करना चाहिए और सत्ता को बता देना चाहिए कि शोषण के खिलाफ हम सब एक हैं।

कोई कितना भी कद्दावर क्यों न हो, वह किसी के साथ अन्याय, उत्पीड़न करके बच नहीं सकता। विडंबना की बात यह है कि आज के माहौल में सत्ता पक्ष द्वारा एक तरफ तो अपराधियों और बलात्कारियों को संरक्षण दिया जा रहा है और दूसरी तरफ निर्दोषों को जेल में भरा जा रहा है। निर्दोषों पर त्वरित कार्यवाही की जा रही है। इससे अपराधियों का मनोबल बढ़ता जा रहा है।

आम नागरिक, बच्चे, महिलायें, दलित, आदिवासी, मजदूर, छात्र, कलाकारों के ऊपर शोषण बढ़ता जा रहा है और सरकार का ध्यान शोषित, पीड़ितों को न्याय दिलाने के बजाय शोषकों को संरक्षण प्रदान करने पर ज्यादा है।

इप्टा और प्रलेस जैसे जनसंगठन हमेशा अपने गीतों, नाटकों और कहानियों के माध्यम से शोषण के खिलाफ आवाज उठाते आये हैं। ऐसे वक्त में सभी सांस्कृतिक संगठनों को एकजुट होकर अन्याय के खिलाफ इस बड़े संघर्ष में शामिल हम सभी की जिम्मेदारी है।

इप्टा के राष्ट्रीय सचिव मनीष श्रीवास्तव का कहना है कि किसी भी लोकतांत्रिक देश के लिए यह कितना शर्मनाक है कि देश की राजधानी में देश के लिए मेडल लाने वाले पहलवान खिलाड़ी न्याय की गुहार लगा रहे हैं और सत्ता को न सुनाई पड़ रहा और न ही दिखाई पड़ रहा है। जिम्मेदार ओहदों पर बैठे लोगों को, यौन शोषण जैसे गंभीर आरोपों के बावजूद राजनीतिक  प्रश्रय नैतिक भ्रष्ट्राचार की संस्कृति को प्रश्रय देना है। यह आपराधिक संस्कृति को बढ़ावा देने जैसा है। ऐसे माहौल में लोकतांत्रिक, समतावादी और भयमुक्त समाज, संस्कृति के  स्वप्न को बहुत बड़ा खतरा है। इसके खिलाफ एक सांस्कृतिक प्रतिरोध भी जरूरी है।

प्रदर्शन में सुखदेव सिंह सिरसा (राष्ट्रीय महासचिव, प्रलेस), मनीष श्रीवास्तव (राष्ट्रीय सचिव, इप्टा), गौहर रज़ा (मशहूर कवि और वैज्ञानिक), वर्षा आनंद (राष्ट्रीय संयुक्त सचिव, इप्टा), प्रोफेसर सुरजीत जज (अध्यक्ष, प्रलेस पंजाब), कुलदीप सिंह दीप (इप्टा और पंजाब महासचिव, प्रलेस), ज्ञानचंद बागड़ी (अतिरिक्त महासचिव, प्रलेस दिल्ली राज्य), विनोद (इप्टा दिल्ली), सरबजीत सिंह (प्रलेस, पंजाब), जगदीप कौर सहित अन्य कई साथी शामिल रहे।

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