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यस बैंक उबर सकता था लेकिन सरकार ने डूबने की स्थिति बना दी!

जानकारों का कहना है कि आरबीआई पूरी सच्चाई पहले से जानती थी और वह इसे बता नहीं रही थी। और यह भी सच है कि सबसे अधिक लोन भाजपा के समय में दिए गए हैं। हमेशा पिछले शासन को दोष नहीं दे सकते हैं।
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यस बैंक की ब्रांचों पर लोगों की भीड़ लगी हुई है। भीड़ की वजह डर है। डर यह कि कहीं यस बैंक डूब न जाए। गुरुवार की शाम बैंकों पर लगाम लगाने वाली संस्था आरबीआई ने यस बैंक को 'मोराटोरीयम' में रख दिया। आसान भाषा में कहे तो यस बैंक की बैंकिग कामकाज पर आंशिक तौर पर रोक लगा देना। तो सवाल उठता है कि अब बैंक कौन से काम कर पायेगा और कौन से काम नहीं कर पाएगा?

बैंक को लोन देने से मना कर दिया गया है। पहले से चले आ रहे लोन की अवधि बढ़ाने से मना कर दिया गया है। बैंक कोई इन्वेस्टमेंट नहीं कर पाएगा। किसी भी तरह की प्रॉपर्टी को न तो दूसरों को ट्रांसफर कर पाएगा, न ही दूसरों को बेच पायेगा। लेकिन बैंक को अपनी कुछ जिम्मेदारियां निभानी जरूरी है। जैसे अपने कर्मचारियों को सैलरी देना, अपने टैक्स का भुगतान करना, किराया देना , जरूरी क़ानूनी खर्चों को पूरा करना।

इसके आलावा आरबीआई कहता है :-

''यस बैंक की फाइनेंसियल कंडीशन में लगातार गिरावट आई है। इसका कारण यह है कि अपने संभावित कर्ज घाटों से उबरने के लिए यस बैंक पूंजी जुटाने में नाकामयाब रही। इसके जिम्मेदार बैंक को चलाने वाले लोग हैं। यानी यस बैंक के गवर्नेंस के साथ गंभीर दिक्क़ते हैं। यस बैंक अपने को रिस्ट्रक्चर कर पाए, इसके लिए RBI ने उसकी पूरी मदद की। यस बैंक को कई मौके दिए कि वो कुछ पैसे बैंक के लिए इकट्ठा कर पाए। लेकिन इन सारे क़दमों से किसी भी तरह का फायदा होता नहीं दिखा।

बैंक के बोर्ड को 30 दिनों के लिए आरबीआई अपने नियंत्रण में लेती है। ग्राहक चिंता न करें, उनके ब्याज दर का ख्याल रखा जाएगा। बैंकिंग रेगुलेशन एक्ट के तहत रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया केंद्र सरकार की अनुमति पर इस बैंक का दूसरे बैंक के साथ समायोजन करने के लिए कुछ योजना बना सकती है। 30 दिनों को अंदर यह काम करने की कोशिश की जाएगी।

भारतीय स्टेट बैंक के पूर्व सीएफओ (मुख्य वित्त अधिकारी) प्रशांत कुमार को यस बैंक का प्रशासक नियुक्त किया गया है। अगले आदेश तक बैंक के ग्राहकों के लिए निकासी की सीमा 50,000 रुपये तय की गई है।''

इस खबर के बाद अब बात करते हैं कि यस बैंक की स्थिति इतनी बदतर हुई कैसे ? इस पर सिक्युरिटीज एंड एक्सचेंज बोर्ड के रजिस्टर्ड रिसर्चर हेमेंद्र हजारी 15 मई 2017 के अपने ब्लॉग में लिखते हैं कि साल 2017 के वित्तीय वर्ष में यस बैंक ने अपने बैलेंस शीट में दिखाया कि उसका एनपीए तकरीबन 7.5 बिलियन है। आसान भाषा में समझे तो यह कि बैंक ने तकरीबन 7.5 बिलयन का कर्ज बाजार में बाँट दिया था और यह कर्ज वापस बैंक में लौटकर नहीं आया। यह बैंक के बैलेंस शीट की कहानी थी। जबकि आरबीआई के रिपोर्ट से यस बैंक की असलियत यह थी कि बैंक का एनपीए तकरीबन 49.3 बिलियन था। यानी बैंक ने अपने बैलेंस शीट में असलियत से तकरीबन पांच गुना कम एनपीए दिखाया था।

अब आप पूछेंगे कि आंकडों में ऐसी हेर-फेर क्यों की जाती है तो जानकारों का कहना है कि आंकड़ों में ऐसी हेर-फेर बैंक के शीर्ष पदों पर बैठे अधिकारियों द्वारा किया जाता है। जैसे कि इस मामलें में बैलेंस शीट में इतनी गड़बड़ी होने के बाद भी यस बैंक के मैनेजिंग एडिटर राणा कपूर और चीफ फाइनेंसियल अफसर रजत मोगरा ने यह लिख कर सर्टिफिकेट दिया कि उनके बैलेंस शीट में कुछ भी झूठ नहीं है। कुछ भी गलत नहीं है। सब सही है और भूल से भी कुछ भी छूटा नहीं है। ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि शेयरधारकों के बीच अच्छी छवि बनी रहे। यस बैंक की स्थिति मजबूत बनी रहे।

लेकिन इस साधारण तर्क के बाद भी और सारे कारण हैं, जिससे बैंक की स्थितियां बेकार होती है। जैसे वहाँ बहुत अधिक पैसा लगा देना, जहां पर जोखिम बहुत अधिक है, रिस्क बहुत अधिक है, जिसकी खस्ताहाली सबके सामने है। लेकिन नेताओं, नौकरशाहों और बहुत सारे गैरजरूरी दबावों के चलते पैसा लगा दिया जाता है। जिसमें शीर्ष स्तर के अधिकारियों की कमीशन के तौर पर बहुत अधिक कमाई होती है। एक शब्द में समझे तो जब बैंक में जमा मेहनतकश लोगों की कमाई से जब पैसे से पैसे कमाने का धंधा निकल पड़ता है तो अंत में बैंक का बर्बाद होना तय हो जाता है।

यस बैंक के मामलें में भी ऐसी ही खबरे आ रही है। आईएल एंड एफएस, दीवान हाउसिंग, जेट एयरवेज, कॉक्स एंड किंग्स, सीजी पावर, कैफे कॉफी डे, अल्टिको, अनिल अंबानी जैसे घरानों को यस बैंक ने इधर के सालों में लोन दिया है। क्रोनी कैपिटलिज्म का यह एक नायाब उदाहरण है।

साल 2014 में बैंकिग सुधार के लिए बनी पीजे नायक कमिटी ने अपने रिपोर्ट में कहा था कि जब बैलेंस शीट और आरबीएआई की रिपोर्ट में बहुत बड़ा अंतर दिखे तो इसका मतलब है कि बैंक के शीर्ष अधिकारियों ने जानबूझकर बैंक को खराब हालात में पहुंचाया है।

हेमेंद्र हजारी अपने ब्लॉग में लिखते हैं कि अगर इतनी बड़ी गड़बड़ी पायी गयी तो उसी समय बैंकों पर निगरानी रखने वाले लोगों को यस बैंक के खिलाफ कठोर कदम उठाने चाहिए थे। ऐसे न होने पर ही हमारे अर्थव्यवस्था की रेटिंग गड़बड़ाती है। हमें लोग फ्रॉड अकाउंट की भरमार वाला देश समझते हैं। अंततः चाहे मर्जी सो कर लीजिये अर्थव्यवस्था में लोग पैसा लगाने से घबराते हैं। साल 2018 में आरबीआई यस बैंक के मैनेजिंग डायरेक्टर राणा कपूर को हिदायत देती है कि छह महीने के अंदर वह अपने चीफ फाइनेंसियल अफसर को बदले। लेकिन यस बैंक ने कोई कदम नहीं उठाया।

आरबीआई गवर्नर का कहना है कि यस बैंक को नोटिस थमाने का यह सही वक्त था। जानकारों का कहना है कि आरबीआई पूरी सच्चाई पहले से जानती थी और वह इसे बता नहीं रही थी। आरबीआई को पता है कि जिन्होंने यस बैंक का बॉन्ड लिया था, उनके पैसे का आज भुगतान करना था। लेकिन यस बैंक के पास इतने पैसे नहीं थे कि वह उन्हें भुगतान कर पाए। सच कहा जाए तो आरबीआई ने यस बैंक को इस तकलीफ से बचाया है।

जैसा कि पोलिटिकल रिएक्शन तय था। ठीक वैसा ही हुआ है। वित्त मंत्री ने कहा कि यह सब कांग्रेस के वक्त से शुरू हुआ था। इस पर यस बैंक की लोन देने की स्थिति की ऊपर नजर दौड़ा लेते हैं। साल 2017 में यस बैंक का टोटल लोन 1.4 लाख करोड़ था। केवल एक साल में इसमें 60 फीसदी का उछाल आया। यह बढ़कर 2.4 लाख करोड़ हो गया। और यह दौर मोदी सरकार का दौर था। यहाँ सवाल यह भी उठता है कि एक ही साल में इतनी बड़ी राशि का उधार लिया कैसे? आर्थिक पत्रकार एम.के वेणु कहते हैं कि मोदी सरकार ने पांच साल के दौरान यस बैंक के उधारी देने की दर में तकरीबन 400 फीसदी का इजाफा हुआ। जबकि पूरी बैंकिंग तंत्र की उधारी देने की सलाना दर इकाई के दर को भी पार नहीं कर पाती है।

यस बैंक की कर्ज के रिकॉर्ड का ब्यौरा ऐसे है - FY2014: 55,000,FY2015: 75,000,FY2016: 98,000,FY2017: 1,32,000,FY2018: 2,03,000,FY2019: 2,41,000 . यहाँ FY का मतलब वित्त वर्ष है। इससे साफ़ है कि सबसे अधिक लोन भाजपा के समय में दिए गए हैं। हमेशा पिछले शासन को दोष नहीं दे सकते हैं।

यस बैंक के एटीएम और बैंक के सामने लंबी कतारों में लोग खड़े हैं। वजह साफ़ है कि लोग बैंक से अपना पैसा निकालना चाहते हैं। यस बैंक के एक सीनियर अफसर के मुताबिक़ जिन कंपनियों के कर्मचारियों का सैलरी अकाउंट यस बैंक में है। वह अपना अकॉउंट हटा रहे हैं। बैंक का डिपॉजिट बहुत जल्दी खाली हो रहा है। लोगों में बेचैनी की स्थिति है।

यस बैंक खराब कॉर्पोरेट गवर्नेंस किया। इसकी रेटिंग गिरी। इनसाइडर ट्रेडिंग से जुड़े नियमों का खुलकर उल्लंघन हुआ। इसकी रिपोर्टिंग के बावजूद यह बैंक बिना किसी रोक टोक के काम करता रहा। तो इसका मतलब है कि यस बैंक पर सरकार का आशीर्वाद था। यानी यस बैंक उबर सकता था लेकिन सरकार की वजह से वह डूबने लायक बन गया है।

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