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योगी जी उत्तर प्रदेश के मज़दूरों को बंधक बनाना चाहते हैं!

योगी आदित्यनाथ ने मीडिया के साथ वेबिनार के दौरान कहा कि भविष्य में किसी भी अन्य सरकार को अगर मैनपॉवर की ज़रूरत होगी तो उसे यूपी सरकार की अनुमति लेनी होगी।
योगी आदित्यनाथ
फाइल फोटो

एक अच्छा नियम और कानून क्या होता है? वह जो अमल करने लायक हो और न्याय सम्मत हो। योगी आदित्यनाथ ने भी कुछ ऐसा ही नियम पेश किया है जो न तो अमल करने लायक है और न ही देश के संविधान के मुताबिक है। योगी आदित्यनाथ ने मीडिया के साथ वेबिनार के दौरान कहा, 'लॉकाडाउन के दौरान यूपी के प्रवासी श्रमिकों और कामगारों की जैसे दुर्गति हुई है, उनके साथ जिस प्रकार का दुर्व्यवहार हुआ है, यह चिंता का विषय है। भविष्य में किसी भी अन्य सरकार को अगर मैनपॉवर की जरूरत होगी तो उसे यूपी सरकार की अनुमति लेनी होगी।'

अब यह बात चौंकाने वाली क्यों है? वजह यह है कि इस नीति को मीडिया के सामने बोल तो दिया गया लेकिन इसका कोई खाका नहीं है। इसलिए बहुत सारी ऐसी संभावनाएं पनपती हैं जो हमारे संविधान के ख़िलाफ़ जाती हैं। जरा संभावनाओं पर सोचते हैं कि इस नीति से कैसी संभावनाएं बन सकती हैं? पहली सम्भावना तो साफ तौर पर दिख रही है किसी भी राज्य को उत्तर प्रदेश राज्य की अनुमति के बाद ही मज़दूरों को अपने मजदूरी में लेने की अनुमति मिलेगी। यानी यहाँ पर केवल राज्य सरकारें आपस में बातचीत करेंगी, मज़दूरों की इसमें कोई भूमिका नहीं होगी। किसी को अगर मध्य प्रदेश में काम करने में सहूलियत दिखती है तो वह मध्य प्रदेश तब तक नहीं जा सकता जब तक उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश सरकार में कोई आपसी समझौता न हो।  

दूसरी सम्भावना यह कि चूँकि मालिकों को मज़दूरों की जरूरत होती है तो पहले मालिक राज्य सरकार से बातचीत करेंगे और तब वह राज्य सरकार उत्तर प्रदेश सरकार से बातचीत करेगी। अगर उत्तर प्रदेश सरकार बात मान जाती है तो मज़दूरों के इच्छा के विरुद्ध वह थोक मात्रा में अपने यहाँ रजिस्टर्ड मज़दूरों को वहाँ भेज देगी। यहाँ भी मज़दूरों से कोई पूछताछ नहीं कि क्या वह अमुक राज्य में जाना चाहते हैं या नहीं। क्या वह अमुक काम करना चाहते हैं या नहीं। क्या वह अमुक मालिक के साथ काम करना चाहते हैं या नहीं।  

तीसरी सम्भावना कि मज़दूरों के काम का दायरा ही घट जाए। अगर आप मज़दूरों से बात करेंगे तो आपको दिखेगा कि उनमें से कई साल भर में दो तीन तरह का काम करते हैं। काम ही उनकी जिंदगी की पाठशाला होती है और काम ही उनका रोजगार। एक मज़दूर गर्मी में शरबत बेचता है तो सर्दी में ऑटो भी चला लेता है। सर्दी में रात को अंडे की दुकान लगाता है तो गर्मी में आइसक्रीम बेच लेता है। कुछ महीने गुजरात में करता है तो कुछ महीने महाराष्ट्र चला जाता है। यह सिम्पल सा रूल है और इसे मज़दूर से लेकर मालिक तक सभी फॉलो करते हैं। सभी चाहतें हैं कि काम के लिए कोई रोक टोक न हो, वह जहां मर्जी वहां जाकर करे। उन्हें वह काम करने को मिले जो वह करना चाहते हैं। अगर इस आधार पर देखे तो उत्तर प्रदेश सरकार का फैसला साफ़ तौर पर गलत दिखेगा। और ऐसी कई सारी संभावनाएं पैदा करेगा जिसकी इजाजत हमारा संविधान हमारे देश में नहीं देता।

इस मसले पर संविधान का आर्टिकल 19 (1) a  से 19 (1) e के प्रावधानों एक बार देखना चाहिए। इन प्रावाधान में कुछ जरूरी शर्तों के साथ पूरे देश में बिना किसी रोक टोक आने-जाने की बात कही गयी है, देश के किसी भी इलाके में बसने और रहने की आजादी की बात गयी है, किसी भी तरह के व्यापार और जीविका को अपनाने की बात की गयी है। इस आधार पर योगी आदित्यनाथ सरकार का फैसला कहीं से भी उचित लगता।  

रिसर्च  एंड इन्फॉमेशन सिस्टम फॉर डेवलपिंग कंट्री के प्रोफेसर अमिताभ कुंडू का मानना है कि ऐसे नियम संविधान के खिलाफ है और कोर्ट में इन्हें चुनौती दी जा सकती है। साथ में कुंडू यह भी कहते हैं कि उत्तर प्रदेश का आबादी में होने वाली बढ़ोतरी पूरे देश में होने वाली औसत आबादी की बढ़ोतरी से ज्यादा है। इसलिए उत्तर प्रदेश जैसे इलाके चाहकर भी अपनी पूरी आबादी को अपने यहां बांध कर नहीं रख सकते।

लेकिन यहाँ यह भी समझने वाली बात है कि राज्य सरकार आपस मिलकर भारतीय संविधान के सहकारी संघवाद के सिद्धांत  को नहीं अपना रहे हैं।  यानी राज्य एक-दूसरे का सहयोग नहीं कर रहे हैं। अगर यह होता तो योगी सरकार और दूसरी सरकारें एक-दूसरे से बात करतीं। एक-दूसरे  का सहयोग करतीं लेकिन ऐसा नहीं कर रही हैं। इनकी आपसी खींचतान की वजह से मज़दूर परेशान हैं। उत्तर प्रदेश सरकार की परमिशन के बाद ही दूसरे राज्य उत्तर प्रदेश मज़दूरों को ले जा सकेंगे यह कहने से पहले योगी जी ने आधार वाक्य यह बनाया था कि कोरोना के दौर में दूसरे राज्यों ने श्रमिकों के साथ बहुत बुरा बर्ताव किया है। उनकी यह बात तकरीबन सही है लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि उत्तर प्रदेश राज्य दूसरे राज्यों के लिए दरवाजें ही बंद कर दे। एक ही देश में कई देश बनाने की तरफ अपने कदम बढ़ा ले। बल्कि अगर दूसरे राज्यों ने मज़दूरों से बुरा बर्ताव किया है तो योगी सरकार को चाहिए कि वह दूसरे राज्यों से बात करे। उन्हें सुधार करने के लिए राजी करे। भारत का संविधान इसकी इजाजत देता है। क्या योगी सरकार ने दूसरे राज्यों से बात की?

इसके अलावा योगी जी ने कहा अगर किसी राज्य को कामगारों की जरूरत होगी तो उनकी मांग पर सामाजिक सुरक्षा की गारंटी राज्य सरकार देगी, बीमा कराएगी और श्रमिक एवं कामगार को हर तरह की सुरक्षा देगी। पलटकर योगी सरकार से पूछना चाहिए कि अगर आप मज़दूरों के इतने बड़े हितैषी हैं तो आपने लेबर लॉ को क्यों ख़ारिज कर दिया? देश में इसलिए तो लेबर लॉ है कि वह मज़दूरों के अधिकारों की वकालत करें। अगर योगी सरकार ने अपने ही राज्य में लेबर लॉ को ख़ारिज कर दिया तो उनसे यह कैसी उम्मीद की जा सकती है कि वह मज़दूरों के अधिकारों की चिंता कर रहे हैं और जो मज़दूर उनके राज्य में रहेंगे उनका शोषण नहीं होगा।

वरिष्ठ पत्रकार प्रकाश के रे कहते हैं कि जब योगी आदित्यनाथ ने यह बात कही तो ठीक इसके बाद राज ठाकरे की बात समाने आयी। राज ठाकरे ने कहा कि मज़दूरों को महाराष्ट्र में मज़दूरी करने से पहले महाराष्ट्र सरकार की अनुमति लेनी पड़ेगी। देखा जाए तो यह ठाकरे और योगी आदित्यनाथ एक ही तरह की बात कर रहे हैं। ये सारे तरीके शोषण करने के नए डिजाइन हैं। इन सबके सामने ठेका प्रथा कब से चलती आ रही है। ठेकेदार एक फोन घुमाता है और हुजूम बनकर यूपी बिहार के मज़दूर दूसरे राज्य में काम करने चले आते हैं और इसका सबसे ज्यादा इस्तेमाल सरकारी प्रोजेक्टों में होता हैं। दिल्ली की चमचमाती हुई सड़के ऐसी ही मज़दूरों से बनी हैं। इनके खिलाफ इन सरकारों ने कभी काम नहीं किया। इस कोरोना के समय में भी नहीं किया जब ठेकादारों ने जानबूझकर मज़दूरों का कॉल लेना बंद कर दिया था। एक राज्य मज़दूरों की संख्या का आर्डर तो दूसरा देगा।  यह जरूरत और सप्लाई का खेल है। पूंजीवादी अर्थव्यस्थाएं ऐसे ही मज़दूरों का इस्तेमाल करती रही हैं।

लेकिन योगी की नीति के खिलाफ इतने सारे तर्क सुनने के बाद एक सवाल आपके मन में उठेगा कि सब तो यही चाहते हैं कि वे अपने घर के आसपास काम करें। अपने इलाके में काम करें और अगर उत्तर प्रदेश सरकार यह कह रही है कि वह माइग्रेशन कमिशन का गठन करेगी, जो श्रमिकों के रोजगार, सामाजिक सुरक्षा और पुर्नवास के पहलुओं पर काम करेगा, सभी कामगारों को रोजगार मुहैया करवाने के साथ-साथ सामाजिक सुरक्षा की गारंटी भी दी जाएगी, सभी आने वालों की स्किल मैपिंग की जा रही है, इन्हें और दक्ष बनाने के लिए स्किल के आधार पर ट्रेनिंग दी जाएगी, तो इसमें गलत क्या है? आपकी बात बिलकुल जायज है। इसमें कोई गलत बात नहीं है।

सरकार को यह काम करना चाहिए। गलत बात यह है  कि सरकार इसके साथ यह भी कह रही है कि दूसरे राज्य में काम करने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार से अनुमति लेनी पड़ेगी। यह नियम और नीति गलत है। यह व्यक्ति के स्वतंत्रता के ख़िलाफ़ है। यह बात ठीक है कि प्रवास तभी रुकेगा जब लोग अपने इलाके और राज्य में ही काम कर पायेंगे। लेकिन इसके लिए यह नियम-कानून बनाने की जरूरत नहीं है कि कोई राज्य से बाहर जाकर मजदूरी ही न करे। इसके लिए जरुरी है कि राज्य में उद्योग धंधे और कल-कारखाने हों। व्यापार और मजदूरी का सेहतमंद माहौल हो। मज़दूरों के अधिकारों की सुरक्षा करने वाला माहौल हो। जैसे कि मनरेगा की वजह से प्रवास कम हुआ है। ऐसे स्वस्थ और अमली जामा पहनाने लायक नीति बनाने की जरूरत है न कि ऐसा कानून जो इंसानी आज़ादी और संविधान के ख़िलाफ़ हो।  

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