आदिवासी किसानों के बंद और मातम के बीच “स्टैच्यू ऑफ यूनिटी” का लोकार्पण
जनजातीय समुदाय के लगभग 75,000 लोगों की विरोध और बंद के बीच आज, 31 अक्टूबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 182 मीटर ऊँची सरदार पटेल के प्रतिमा ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ का अनावरण करने जा रहे हैं। बताया जा रहा है कि ये दुनिया की अब तक की सबसे अधिक ऊंचाई वाली प्रतिमा है। प्रधानमंत्री मोदी ने 31 अक्टूबर 2013 को सरदार पटेल के जन्मदिन को राष्ट्रीय एकता दिवस घोषित करते हुए प्रतिमा की पहली ईंट डाली थी। नर्मदा बाँध के निकट सरदार पटेल की इस प्रतिमा को बनाने में करीब 2,989 करोड़ रुपये का खर्च आया है। इस पूरी परियोजना को 'स्टैच्यू ऑफ यूनिटी' परियोजना का नाम दिया गया।
'स्टैच्यू ऑफ यूनिटी' परियोजना से प्रभावित लगभग 75,000 आदिवासी प्रतिमा के अनावरण का विरोध कर रहे हैं। इस परियोजना से लगभग 72 गांव प्रभावित हैं। सरदार सरोवर बाँध के निकट के लगभग 22 गाँवों के मुखियों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को खुला खत लिखा है कि वो 31 अक्टूबर को होने वाले प्रतिमा के अनावरण में प्रधानमंत्री का स्वागत नहीं करेंगे। लोकल आदिवासी लीडरों ने इस अनावरण प्रोग्राम का बहिष्कार करने की घोषणा की है। उनका कहना है कि लोगों के द्वारा मेहनत से कमाई जाने वाली पूंजी को सरकार इस प्रतिमा पर लगा रही है जबकि आस पास के गांवों में अभी भी स्कूलों , अस्पतालों और पीने वाले पानी की कमी है।
अभी नर्मदा जिले में 'स्टैच्यू ऑफ यूनिटी' के उद्घाटन का विरोध कर रहे जनजातीय लोगों ने पूरे जिले में मोदी, मुख्यमंत्री विजय रूपाणी और समारोह की तस्वीर वाले 90 फीसदी पोस्टरों को या तो फाड़ दिया था या उन पर कालिख पोत दी थी।
आईएएनएस की रिपोर्ट के मुताबिक एक जनजातीय नेता प्रफुल वसावा ने कहा, "यह इस बात का स्पष्ट प्रमाण है कि जनजातीय समुदाय भाजपा से कितना असंतुष्ट है। उन्होंने जनजातीय समुदाय के सबसे बेशकीमती संसाधन उनकी जमीनों को कथित विकास कार्यों के लिए छीन लिया।"
उन्होंने कहा, "अधिकारियों ने फटे पोस्टरों को नए पोस्टर से बदल दिया है और पुलिस इन पोस्टरों की सुरक्षा कर रही है। यह दुनिया में शायद पहली बार हो रहा है कि किसी प्रधानमंत्री के पोस्टरों की सुरक्षा पुलिस द्वारा की जा रही है।"
उन्होंने कहा, "नर्मदा के जनजातीय समूह 2010 से इस प्रोजेक्ट का विरोध कर रहे हैं और अब पूरे प्रदेश की जनता इसके विरुद्ध है।"
इस परियोजना से प्रभावित जनजातीय समुदाय के लगभग 75,000 लोगों ने स्टैच्यू का विरोध करने के लिए आज 31 अक्टूबर को बंद बुलाया है।
वसावा ने कहा, "बनासकांठा से डांग जिले तक, नौ जनजातीय जिले इस प्रदर्शन में शामिल होंगे और बंद केवल स्कूलों, कार्यालयों या व्यापारिक प्रतिष्ठानों तक ही सीमित नहीं होगा, बल्कि घरों में भी खाना नहीं बनेगा।"
परंपरा के अनुसार, जनजातीय गांवों में जब लोग मौत का शोक मनाते हैं,तो उनके घरों में खाना नहीं पकता है।
वसावा ने कहा, "जनजातीय के रूप में सरकार ने हमारे अधिकारों का हनन किया है। गुजरात के महान सपूत के खिलाफ हमारा कोई विरोध नहीं है। सरदार पटेल और उनकी इज्जत बनी रहनी चाहिए। हम विकास के भी खिलाफ नहीं हैं, लेकिन यह परियोजना हमारे खिलाफ है।
अगर हम सरदार पटेल की बात करे तो उनकी लड़ाई हमेशा किसानों के लिए रही है। 1946 में पोलसन जो कोलोनियल प्राइवेट के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए सरदार पटेल की देखरेख में गुजरात के कैरा जिले में पहली किसानों से संबंधित कोऑपरेटिव डेयरी की स्थापना हुई थी। अब सवाल यह उठता है कि किसानों के हक़ के लिए लड़ने वाले पटेल की प्रतिमा के लिए हज़ारों किसानों को नुकसान हो रहा है यह क्या उचित होगा?
अब थोड़ा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यानी आरएसएस ( जिसके विचारों पर मोदी सरकार काम करती है) के सरदार पटेल से संबंधों पर नज़र डालें तो पटेल ने 4 फरवरी 1948 को आरएसएस पर प्रतिंबध लगा दिया था। उस वक्त वो देश के गृह मंत्री थे। उन्होंने प्रतिबंध लगाते हुए चिट्ठी में कहा था, कि “संघ का एक चेहरा और भी है, जो मुसलमानों से बदला लेने के लिए उन पर हमले करता है। हिन्दुओं की मदद करना एक बात है, लेकिन गरीब, असहाय, महिला और बच्चों पर हमला असहनीय है।'' दरअसल पटेल का मानना था कि गाँधी जी की हत्या में आरएसएस का अप्रत्यक्ष रूप से हाथ था। पटेल, नेहरू को 27 फरवरी, 1948 को एक चिट्ठी लिखते हैं। इस चिट्ठी में पटेल ने लिखा कि संघ का गांधी की हत्या में सीधा हाथ तो नहीं है लेकिन ये जरूर है कि गांधी की हत्या का ये लोग जश्न मना रहे थे।
मोदी सरकार अभी के दिनों में आज़ादी के लिए लड़े लोगों को अपनाने में लगी हुई है कभी गांधी तो कभी पटेल। हालाँकि वह शायद इस बात को नज़रअंदाज़ कर रही है कि आज़ादी के लिए लड़ने वाले गाँधी और पटेल के विचार उन विचारों से काफी मतभेद रखते थे जिनकी नींव पर ये सरकार खड़ी है।
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