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गोरखपुर: बच्चों की मौत के चार साल बाद भी नहीं मिला इंसाफ़, शायद डॉक्टर कफ़ील ख़ान को मिल जाए!

साल 2017 के अगस्त महीने में बीआरडी मेडिकल कॉलेज में कई मासूमों की मौत कथित तौर पर ऑक्सीजन की कमी से हो गई थी। तब शासन-प्रशासन ने सारा लापरवाही का ठीकरा डॉक्टर कफ़ील ख़ान पर फोड़ दिया था। अब चार साल बाद यूपी सरकार ने उनके ख़िलाफ़ जांच के आदेश पर यू-टर्न ले लिया है।
Dr. Kafeel Khan

डॉक्टर कफ़ील ख़ान एक ऐसा नाम, जो योगी सरकार से लगातार अपने हक़ के लिए लड़ता-भिड़ता सुर्खियों में रहा। कई बार गिरफ्तारी और फिर रासुका का केस भी उसे डरा नहीं सका। सरकार और पुलिस ने कफ़ील पर जितनी धाराएं लगाईं लगभग सभी के खिलाफ कफ़ील ने कोर्ट में याचिकाएं दाखिल कीं। आखिरकार अब लगभग चार साल बाद उत्तर प्रदेश सरकार ने डॉ. कफ़ील ख़ान के खिलाफ विभागीय जांच के आदेश वापस ले लिए हैं।

मालूम हो कि गोरखपुर के एक सरकारी अस्पताल में ऑक्सीजन की कथित कमी के कारण कई बच्चों की मौत के मामले में 22 अगस्त, 2017 को किए गए निलंबन के ख़िलाफ़ डॉक्टर ख़ान ने एक याचिका दायर की थी। पिछले साल 24 फरवरी को अनुशासनात्मक प्राधिकरण ने ख़ान के खिलाफ एक और जांच का आदेश दिया था, उसे भी ख़ान ने अदालत में चुनौती दी थी।

आपराधिक आरोप साबित नहीं हुएबावजूद इसके निलंबन रद्द नहीं हुआ

यहां गौर करने वाली बात ये भी है कि इस त्रासदी के बाद डॉक्टर कफ़ील के खिलाफ कोई आपराधिक चार्ज साबित नहीं हुआ बावजूद इसके उनका निलंबन वापस नहीं लिया गया। यहां तक की कफ़ील के साथ निलंबित किए गए लोगों में से सात को अनुशासनात्मक कार्यवाही समाप्त होने तक बहाल कर दिया गया लेकिन कफ़ील को कोई राहत नहीं दी गई।

इस मामले में हाईकोर्ट ने 29 जुलाई को यूपी सरकार से पूछा था कि डॉ कफ़ील अहमद खान को चार साल से निलंबित क्यों रखा गया है? कोर्ट ने सरकार से इस बात का भी जवाब मांगा था कि आखिर अब तक कफ़ील के खिलाफ विभागीय कार्यवाही पूरी क्यों नहीं की जा सकी है?

इसके जवाब में सरकार ने शुक्रवार, 6 अगस्त को बताया कि डॉक्टर कफ़ील ख़ान के ख़िलाफ पिछले साल जारी किए गए विभागीय पुन: जांच का आदेश वापस ले लिया गया है। उत्तर प्रदेश की योगी सरकार तीन महीने में उनके निलंबन पर फ़ैसला ले सकती है।

अंग्रेज़ी अख़बार द इंडियन एक्सप्रेस ने लिखा है कि एडिशनल एडवोकेट जनरल मनीष गोयल ने शुक्रवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट को बताया, "इस याचिका में लगाए गए 24 फरवरी 2020 के आदेश को वापस ले लिया गया है, क्योंकि प्रतिवादी (राज्य) मामले में नए सिरे से आगे बढ़ने के लिए स्वतंत्र है।"

निलंबन ख़त्म करने के लिए 36 से ज्यादा बार चिट्ठी लिख चुके हैं कफ़ील

आपको बता दें कि डॉ कफ़ील ख़ान कई बार अपने निलंबन को वापस लेने की मांग कर चुके हैं। कोरोना काल की शुरुआत से ही वो योगी सरकार से अपील कर रहे थे कि वो अपने अनुभव से लोगों की मदद करना चाहते हैं। इसके अलावा उन्होंने ये भी आरोप लगाया कि जानबूझकर उनका निलंबन खत्म नहीं किया जा रहा है। उनका दावा है कि वो इसे लेकर 36 से ज्यादा बार चिट्ठी लिख चुके हैं।

कफ़ील ख़ान मामले में योगी सरकार की फजीहत तब भी हुई थी जब इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अलीगढ़ प्रशासन के एनएसए में बुक करने के फैसले को ही कानूनी तौर पर गलत बता दिया था। इसके बाद डॉक्टर कफ़ील ख़ान के जिस भाषण को प्रशासन ने सांप्रदायिक सद्भाव खराब करने वाला बताया था, वो असल में, सांप्रदायिक सद्भाव बढ़ाने वाला पाया गया। जिसके बाद से लगातार शासन-प्रशान सवालों के घेरे में है।

सरकारी रिपोर्ट में कफ़ील को मेडिकल लापरवाही के लिए दोषी नहीं माना गया

गौरतलब है कि डॉ. खान 2017 में उस समय सुर्खियों में आए थे जब कथित तौर पर ऑक्सीजन की कमी के चलते बीआरडी मेडिकल कॉलेज, गोरखपुर में 10 अगस्त से बच्चों की मौत का शुरू हुआ सिलसिला एक सप्ताह के भीतर ही 60 से ज्यादा मासूमों की मौत का कारण बन गया और योगी सरकार कठघरे में आ गई। उस समय डॉ. कफ़ील ख़ान दिन-रात एक करके बच्चों को बचाने और उनके अभिभावकों को सांत्वना देने के काम में जुटे दिखाई दिए जिसपर मीडिया में उन्हें एक हीरो की तरह दिखाया गया, लेकिन तभी शासन-प्रशासन ने आरोप लगाया कि यह जानते हुए कि स्थिति काफ़ी ख़राब है कफ़ील ने अपने वरिष्ठ अधिकारियों को इसकी जानकारी नहीं दी थी और तत्काल क़दम उठाने में विफल रहे थे। उनके ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज की गई और उन्हें जेल भेजा गया।

जेल जाने के क़रीब आठ महीने बाद अप्रैल 2018 में उन्हें इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ज़मानत दी थी। तब कोर्ट ने कहा था कि मेडिकल कॉलेज में लापरवाही का ख़ान के ख़िलाफ़ कोई सीधा सबूत नहीं है। इसके बाद सितंबर 2019 में सरकार की ही 15 पन्नों की एक रिपोर्ट सामने आई, जिसमें डॉ. ख़ान को मेडिकल लापरवाही के लिए दोषी नहीं माना गया था। इसमें यह भी कहा गया था कि वह न तो ऑक्सीज़न सप्लाई के टेंडर की प्रक्रिया में शामिल थे और न ही इससे जुड़े किसी भ्रष्टाचार में। हालाँकि इसके बावजूद उनका निलंबन रद्द नहीं किया गया और दोबारा जांच के आदेश दे दिए गए।

हाईकोर्ट ने एनएसए के तहत गिरफ़्तारी को ग़ैर-क़ानूनी बताया

बीते साल 29 जनवरी में डॉक्टर ख़ान को मुंबई हवाई अड्डे से गिरफ्तार किया गया था, पुलिस ने आरोप लगाया था कि दिसंबर 2019 में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में विवादास्पद नागरिकता कानून के ख़िलाफ़ छात्रों के विरोध के दौरान उन्होंने भड़काऊ भाषण दिया था।

दो समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देने सहित अलग-अलग आरोपों के तहत एक मामला दर्ज किए जाने के बाद उन्हें मथुरा जेल में रखा गया था। अलीगढ़ ज़िला प्रशासन ने 13 फरवरी, 2020 को उनके ख़िलाफ़ राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (NSA) लगाया था।

महीनों बाद, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 1 सितंबर को एक फैसले में उन्हें हिरासत में रखने को "कानून की नज़र में सही नहीं" बताते हुए एनएसए के तहत उनकी गिरफ़्तारी को ग़ैर-क़ानूनी मानते हुए कफ़ील को रिहा करने का आदेश दिया था।

तब हाईकोर्ट ने कहा था कि कफ़ील का पूरा भाषण पढ़ने पर प्रथम दृष्टया नफ़रत या हिंसा को बढ़ावा देने का प्रयास नहीं लगता है। इसमें अलीगढ़ में शांति भंग करने की धमकी भी नहीं लगती है।

कोर्ट ने कहा था, "ऐसा लगता है कि ज़िला मजिस्ट्रेट ने भाषण से कुछ वाक्यों को चयनात्मक रूप से देखा और चयनात्मक उल्लेख किया था, जो इसकी वास्तविक मंशा की अनदेखी करता है।"

सरकारी नीतियों की खुलकर आलोचना करते रहे कफ़ील

हालांकि डॉक्टर कफ़ील ख़ान सरकार से हमेशा लोहा ही लेते रहे। अपने खिलाफ लगे तमाम आरोपों के बावजूद वो सरकार की नीतियों की खुलकर आलोचना करते और हाशिए पर खड़े लोगों के लिए इंसाफ की बात करते। इस दौरान कई बार कफ़ील ख़ान सीधा-सीधा सरकार पर हमलावर भी हुए, उन्होंने सीएए और एनआरसी का विरोध किया, राज्य की चिकित्सा व्यवस्था पर सवाल खड़े किए और शासन-प्रशासन के खिलाफ अपनी आवाज़ को बेबाकी से सामने रखा।

मथुरा जेल से रिहा होने पर डॉक्टर कफ़ील ख़ान ने एक बड़ा बयान देते हुए इस बात पर खुशी जतायी थी कि रास्ते में उनका एनकाउंटर नहीं किया गया। कफ़ील ख़ान का कहना था, 'मैं जुडिशरी का बहुत शुक्रगुजार हूं। इतना अच्छा ऑर्डर दिया है। उत्तर प्रदेश सरकार ने एक झूठा, बेसलेस केस मेरे ऊपर थोपा। बिना बात के ड्रामा करके केस बनाये गये, आठ महीने तक जेल में रखा। जेल में पांच दिन तक बिना खाना, बिना पानी दिये मुझे प्रताड़ित किया गया। मैं उत्तर प्रदेश के एसटीएफ को भी शुक्रिया कहूंगा कि मुंबई से मथुरा लाते समय मुझे एनकाउंटर में मारा नहीं।"

लापरवाही की भेंट चढ़े तमाम बच्चों को इंसाफ़ कब?

बहरहाल, डॉक्टर कफ़ील ख़ान के केस में आगे जो भी हो, लेकिन कोर्ट से अब तक कई बातें साफ हो चुकी हैं। जैसे अलीगढ़ जिला प्रशासन का एनएसए लगाना कानूनी तौर पर सही नहीं था। अब तक कफ़ील ख़ान के खिलाफ कोई आपराधिक आरोप साबित नहीं हुआ, इसलिए सारे चार्ज वापस ले लिये गये। दोबारा जांच के आदेश दिये गये थे वे भी वापस ले लिये गये और अब उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही भी तीन महीने के भीतर पूरी की जाने की कोशिश है। ऐसे में साफ है कि कफ़ील ख़ान केस में योगी आदित्यनाथ सरकार का रवैया ज्यादा राजनीतिक ही नज़र आता है। वहीं शासन-प्रशासन की अनदेखी और 'अगस्त में तो बच्चे मरते ही हैं' जैसे राजनीतिक बयान सुनकर तो यही लगता है कि लापरवाही की भेंट चढ़े तमाम बच्चों को इंसाफ कहीं नहीं मिलता।

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