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अलवर लिंचिंग : पुलिस और विश्व हिन्दू परिषद् के सदस्यों पर खड़े होते सवाल

मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक पुलिस ने पीड़ित अकबर को घटना स्थल से अस्पताल पहुँचाने में तीन घंटे लगा दिए, जबकि यह जगह अस्पताल से सिर्फ 4 किलोमीटर दूर है। आरोप ये भी लगाए जा रहे हैं कि पुलिस ने पीड़ित को कस्टडी में पीटा।
lynching

राजस्थान के अलवर ज़िले के रामगढ गाँव में 20 जुलाई को हुए मॉब लिंचिंग के मामले में कुछ नए तथ्य सामने आयें हैं, जिससे पुलिस और प्रशासन की भूमिका पर काफी गंभीर सवाल उठ रहे हैं। मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक पुलिस ने पीड़ित अकबर को घटना स्थल से अस्पताल पहुँचाने में तीन घंटे लगा दिए, जबकि यह जगह अस्पताल से सिर्फ 4 किलोमीटर दूर है। आरोप ये भी लगाए जा रहे हैं कि पुलिस ने पीड़ित को ले जाते हुए रास्ते में रुककर चाय भी पी और बाद में पीड़ित को कस्टडी में पीटा भी गया। अस्पताल के रिकॉर्ड के पुलिस वहाँ देर रात 4 बजे पहुँची लेकिन तब तक अकबर की मौत हो चुकी थी। 

मीडिया की रिपोर्टों के मुताबिक देर रात अकबर खान और उनके साथी असलम रामगढ गाँव से दो गाय ले जा रहे थे। तभी वहाँ गाँव वाले आये और उनसे पूछताछ करने लगे। इसके बाद दोनों ही लोगों ने भागने का प्रयास किया लेकिन गाँव वालों ने उन्हें पकड़ा और अकबर को पीटने लगे,लेकिन असलम भागने  में कामयाब रहा। बताया जा रहा है कि रात 12.41 को इलाके के तथाकथित  गौ रक्षक नवल किशोर शर्मा ने पुलिस को बताया कि गाँव वालों ने एक गौ तस्कर को पकड़ा है। पुलिस नवल किशोर शर्मा के साथ घटना स्थल पर 15 से 20 मिनट में पहुँची। वहां जमा हुए गाँव वाले भाग गए और पुलिस ने वहाँ दो लोगों को गिरफ्तार किया। गवाहों की माने तो तब तक अकबर की मौत नहीं हुई थी और वहाँ दोनों गाय बंधी ही थीं। इसके बाद पुलिस ने जीप में जख्मी अकबर को बैठाया , रास्ते में किसी जगह रुककर उनके कपड़ों को धोया गया और फिर उन्हें सूखे कपड़े पहनाये गए। रिपोर्टों के मुताबिक इसके बाद उन्हें पुलिस स्टेशन ले जाया  गया और 'गौ रक्षक ' नवल किशोर शर्मा के मुताबिक उन्हें पुलिस ने पूछताछ  के दौरान पीटा गया। 

घटनास्थल से 4 किलोमीटर दूर रामगढ़ के समुदायक स्वास्थ्य केंद्र में सुबह 4 बजे पहुँचाया गया। वहाँ मौजूद डॉक्टर  के मुताबिक  जब पुलिस अकबर को लायी तो उनकी मौत हो चुकी थी। पुलिस ने इस कहानी को सिरे से नाकारा है और कहा है कि हिंसा उनके वहाँ पहुँचने से पहले हुई थी। इस मामले की जाँच को अब एसपी रैंक के अफसर को सौंप दिया गया है। अलवर की एसपी राजेंद्र सिंह का कहना है कि इस मामले की जाँच में अगर कोई अफसर दोषी पाया  जाता है तो उसपर कार्यवाही होगी। 

इस मामले पर  बीजेपी के रामगढ़ से विधायक ज्ञानदेव आहूजा ने सवाल खड़े किये हैं। बता दें कि ज्ञानदेव आहूजा अपनी कट्टरपंथी हिंदुत्व की छवि  के लिए जाने जाते रहे हैं। उन्होंने पिछले साल दिसंबर में यह बयान दिया था कि गौ तस्करों का क़त्ल कर दिया जाना चाहिए। अब अकबर की हत्या के मामले में वह कह रहे हैं कि ये हत्या भीड़ ने नहीं की बल्कि पुलिस द्वारा की गयी है। अकबर को गौ तस्कर बताते हुए उन्होंने कहा है कि पुलिस ने उस 'गौ तस्कर ' को कस्टडी में लाठियों से पीट पीट कर मार डाला और मामले में आरोपियों को गलत तरीके से फंसाया जा रहा है। यहां याद रखने वाली एक बात ये भी है कि मामले के दो मुख्य आरोपी धर्मेंद्र यादव और परमजीत दोनों ही विश्व हिन्दू परिषद् के गौ रक्षा विभाग के सदस्य हैं। हिंदी मीडिया में आयी रिपोर्ट के मुताबिक इस बात का खुलासा धर्मेंद्र  के द्वारा फेसबुक पर डाले हुए एक पोस्टर से होता है जिसमें दर्शाया गया है कि वह दोनों विश्व हिंदी परिषद् के गौ रक्षा विभाग के सदस्य हैं। याद रहे कि विश्व हिन्दू परिषद् उसी संघ परिवार का हिस्सा जिससे बीजेपी भी जुडी हुई है। 

हमें याद रखना होगा कि पिछले साल अलवर ज़िले में ही पशु व्यापारी पहलू खान को भी भीड़ ने निर्माता से मार डाला था। इस मामले में सभी छह आरोपियों को बरी कर दिया गया है , जबकि पहलू खान से मरने से पहले इन सभी के खिलाफ बयान दिया था। वहीं दूसरी तरफ उनके साथियों और बेटे को ही गौ  तस्करी के मामले में आरोपी  बना दिया गया है। यही 10 नवंबर अलवर ज़िले के ही उमर खान के मामले में भी हुआ , जहां उनकी हत्या के बाद उनके एक 2 साथियों को गौ तस्करी के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया था।  पिछले साल सितम्बर में मानवाधिकार संगठनों द्वारा छापी गयी एक रिपोर्ट में बताया गया कि किस तरह पहलू खान के हत्यारों को पुलिस ने बचाया। अकबर के मामले में जिस तरह के तथ्य सामने आये हैं वह पहलू खान के मामले की तरह ही यहाँ भी कई गंभीर सवाल खड़े करते हैं। ये तब और भी गंभीर है जब 2016 से अब तक राजस्थान में मॉब लिंचिंग के 12 मामले सामने आये हैं। 

अलवर ज़िले की माकपा रईसा सचिव का कहना है कि अकबर के मामले में भीड़ और पुलिस दोनों को ही कटघरे में खड़ा किया जाना चाहिए। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि राज्य सरकार और पुलिस लगातार इन मामलों में पीड़ितो को ही दोषी साबित करने पर तुली रहती है जिससे भीड़ के गुस्से को उचित साबित किया जा सके। उन्होंने बताया कि राजस्थान में कई जगह गौ रक्षा पुलिस चौकियां  हैं और सिर्फ अलवर जले में छह चौकियां हैं। इनका काम तथाकथित तौर पर गौ तस्करी को रोकना है, यह संविधान के हिसाब से बिलकुल गलत लगता है।  इस सूरत में पुलिस और प्रशासन खुद इस तरह ही भीड़ के साथ खड़ा  दिखाई पड़ता है। उन्होंने बताया कि माकपा ने इस  मुद्दे पर विरोध प्रदर्शन  किया है और आगे भी इस मामले से जुडी रहेगी। 

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