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अमेरिका में रूस विरोधी उन्माद: किसका हित सध रहा है?

संयुक्त राज्य अमेरिका का अपनी कार्रवाइयों के सिलसिले में सहमति बनाने को लेकर युद्ध उन्माद की आड़ में चालू पूर्वाग्रहों को बढ़ाने का एक लंबा इतिहास रहा है।
Russia
शिकागो में यूक्रेन को लेकर नो-फ़्लाई ज़ोन की मांग करते हुए हज़ारों लोग। (फ़ोटो साभार: जेना बार्न्स के ट्विटर से)

यूक्रेन में युद्ध को शुरू हुए दो सप्ताह बीत चुके हैं। पीपल्स डिस्पैच ने यूक्रेन में मौजूदा युद्ध के रंगमंच तैयार करने में नाटो और संयुक्त राज्य अमेरिका की भूमिका को लेकर विस्तार से लिखा है। लेकिन, इस संघर्ष को पैदा करने में नाटो के केंद्र में होने के बावजूद, नाटो देशों के लोगों पर समाचार मीडिया की ओर से ग़लत-सलत सूचनाओं की बौछार होती रही है, जो इस युद्ध को लेकर सिर्फ़ और सिर्फ़ रूस को ज़िम्मेदार ठहराता आया है।

नाटो देशों के लोगों पर इस लगातार हुई दुष्प्रचार की बौछार के नतीजे सामने आ रहे हैं। कनाडा में एक रूसी सामुदायिक केंद्र, जिसका रूसी सरकार से कोई कोई लेना-देना नहीं था, उसे यूक्रेनी झंडे के रंगों से पोत दिया गया है। वेल्स में कार्डिफ फ़िलहारमोनिक ने भविष्य में किसी भी तरह के प्रदर्शन को लेकर त्चिकोवस्की पर प्रतिबंध लगा दिया है। और युद्ध को लेकर उन्माद और नस्लवाद से ओतप्रोत बदसूरत इतिहास वाले देश संयुक्त राज्य अमेरिका में रूस विरोधी भावना शीत युद्ध के स्तर तक पहुंच गयी है।

वाशिंगटन डीसी में एक रूसी रेस्तरां में तोड़फोड़ की गयी है। न्यूयॉर्क शहर में एक संपन्न रूसी कॉकटेल बार के श्रमिकों और मालिकों, जिनमें से कई यूक्रेनी हैं, उन्हें "घर जाने" के लिए कह दिया गया है। न्यूयॉर्क शहर के मेट्रोपॉलिटन ओपेरा ने इस बात का ऐलान कर दिया है कि एक रूसी ओपेरा गायिका इस कंपनी से इसलिए बाहर हो गयी हैं,क्योंकि "मौजूदा माहौल में व्लादिमीर पुतिन के लिए सार्वजनिक समर्थन आम जनता को स्वीकार नहीं है।" उस रूसी गायिका की जगह एक यूक्रेनी गायिका से गवाया जायेगा। ओहियो, पेंसिल्वेनिया, यूटा, न्यू हैम्पशायर, ओरेगन और टेक्सास जैसे अमेरिकी सूबे इस विरोध की गाड़ी पर सवार होते हुए रूसी वोदका पर प्रतिबंध लगाने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। मेटा प्लेटफ़ॉर्म फ़ेसबुक और इंस्टाग्राम ने "रूसी हमलावरों" और रूसी नेताओं के ख़िलाफ़ हिंसक भाषण और मौत की धमकी को लेकर लगने वाली रोकों में ढील दे दी है। रूसी-अमेरिकी श्रमिकों को इस समय अमेरिका में भेदभाव का सामना करना पड़ रहा है, और पीढ़ियों से संयुक्त राज्य में रह रहे रूसी अप्रवासियों में से कई प्रवासी एक ऐसी सरकार की कार्रवाइयों की निंदा करने को लेकर मजबूर महसूस कर रहे हैं, जिस पर उनका कोई नियंत्रण भी नहीं है।

इस मामले से जुड़ा अतीत

संयुक्त राज्य अमेरिका में रूस से नफ़रत की इस विशाल लहर और उन लोगों के प्रति पैदा की गयी नफ़रत की पिछली लहरों के बीच कुछ समानतायें हैं, जिन्हें मास मीडिया ने "दुश्मन" क़रार दिया हुआ है। पीपुल्स डिस्पैच ने मिस्र-अमेरिकी संगीतकार ओम्निया हेगाज़ी से बात की, जो 11 सितंबर के हमलों के बाद स्टेटन द्वीप में बतौर एक मुस्लिम शख़्स अपनी भोगी हुई कट्टरता को लेकर मुखर रही हैं। वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हमला होने के समय छठी कक्षा में पढ़ने वाली हेगाज़ी ने शारीरिक रूप से की जाने वाली हिंसक बदमाशियों के बारे में ब्योरेवार बताया है या फिर उन्होंने यह भी बताया है कि अपने जानने वाले दूसरे मुसलमानों पर किस तरह  थूका गया और उनके हिजाब को किस तरह नोच डाला गया, और उन्हें किस तरह "आतंकवादी" और "बिन लादेन की बेटी" जैसे सम्बोधनों से सम्बोधित किया गया है।ऐसा जिन लोगों के साथ हो रहा था,उनमें उनकी जुड़वां बहनें भी थीं।

हेगाज़ी ने आतंकवादी हमलों के मद्देनज़र देशभक्ति का प्रदर्शन करने के दबाव का भी वर्णन किया है। हेगाज़ी ने बताया कि कैसे उनके परिवार ने अपनी बालकनी पर अमेरिकी झंडे लगा लिया।उन्होंने कहा,"मैं दूसरे लोगों को बेहतर महसूस कराने के लिए गर्व के साथ एक अमेरिकी बनूं, ताकि मुझे इस ख़तरे का सामना कम से कम करना पड़े।" वह कहती हैं, "मुझे पता है कि ऐसा करने के पीछे अपने पड़ोसियों को ख़ुद के बारे में बेहतर महसूस कराने वाला एक दिखावा था।"  बतौर बालिग़ हेगाज़ी अब ख़ुद को एक साम्राज्यवाद विरोधी शख़्स के तौर पर पाती हैं, लेकिन जैसा कि वह बताती है कि संयुक्त राज्य अमेरिका में बतौर एक मुसलमान उन्हें मुश्किल हो सकती है।वह कहती हैं, "सही मायने में इसलिए मुश्किल है, क्योंकि मुझसे अब भी उस तरह की देशभक्ति दिखाने की उम्मीद की जा रही है, और मैं इस तरह का दिखावा नहीं कर पाती। इसलिए, जब मैं अमेरिकी सरकार और अमेरिकी साम्राज्यवाद की बहुत आलोचना करती हूं, तो लोग मुझसे बहुत नाराज़ हो जाते हैं। जबकि कोई गोरा ग़ैर-मुस्लिम शख़्स इसी तरह की बातें कर सकता है, और ऐसा करते हुए उन्हें हमारी तरह के प्रतिरोध का सामना नहीं करना पड़ता है।”

जैसा कि अन्ना नेत्रेबको और उनके जैसे जाने-माने रूसी प्रवासियों के अनुभव से पता चलता है कि रूसियों और रूसी-अमेरिकियों से अब इसी तरह रूसी सरकार और पुतिन की कार्रवाइयों की निंदा करने की उम्मीद की जा रही है।इसके जवाब में पाठकों को आश्वस्त करते हुए आलेख लिखे गये हैं कि किस तरह रूसी-अमेरिकी वास्तव में पुतिन की कार्रवाइयों का समर्थन नहीं करते हैं। इन आलेखों में से किसी एक का शीर्षक इस तरह का होता है, "कैसे यूक्रेनी और रूसी अमेरिकी इस हमले में पीड़ितों का समर्थन कर रहे हैं", तो दूसरे आलेख का शीर्षक कुछ इस तरह होता है, "'हम डरे हुए हैं': रूसी अमेरिकियों ने यूक्रेन पर हुए हमले की निंदा की।" लेकिन जैसा कि हेगाज़ी बताती हैं कि अमेरिका पर हुए 9/11 के हमले के बाद अरब और मुस्लिम अमेरिकियों के साथ किये जा रहे बर्ताव का पैटर्न भी इसी तरह का था। "मुझे याद है, उसके जवाब में इसी तरह की बयानबाज़ी होती थी कि 'इस्लाम शांति का धर्म है।' बुश ने लोगों को आश्वस्त करने के लिए यही तो कहा था। यह बात न जाने कितनी बार मैंने सुनी होगी कि सभी मुसलमान बुरे नहीं होते हैं, जो कि एक अच्छी बात थी। लेकिन,इस समय भी हालात ऐसे ही हैं, इस तरह की बातें सही मायने में कही जानी चाहिए?"

आतंकवाद या पुतिन जैसे किसी संस्कृति के "बुरे" तत्वों का यह आश्वासन और रक्षात्मक अस्वीकृति अमेरिकी इतिहास में युद्धोन्माद के सबसे चरम पलों में से एक की याद दिलाती है। दूसरे विश्व युद्ध के दौरान जापानी सेना की ओर से एक अमेरिकी नौसैनिक अड्डे-पर्ल हार्बर पर हमला करने के बाद अमेरिकी सरकार ने 120,000 से ज़्यादा जापानी-अमेरिकियों को नज़रबंदी शिविरों में बंद कर दिया था। इन नज़रबंदी शिविरों के भीतर रखे गये कई लोगों का "वफ़ादारी टेस्ट" लिया जाता था।इस वफ़ादारी टेस्ट में जापानी-अमेरिकियों से पूछा जाता था: "क्या आपकी वफ़ादारी संयुक्त राज्य अमेरिका की  प्रति बिना शर्त है और विदेशी और घरेलू ताक़तों की ओर से किसी भी तरह के तमाम हमलों से संयुक्त राज्य की हिफ़ाज़त करेंगे, और जापानी सम्राट या किसी भी विदेशी सरकार, सत्ता, या संगठन के प्रति किसी भी तरह की निष्ठा से इन्कार करगें या उनके फ़रमान को ख़ारिज कर देंगे ?" अलग-थलग किये जाने वाली उन विकट शर्तों के विरोध में कई जापानी-अमेरिकी उस प्रश्नावली को ही नाकाम कर देते थे। जो लोग उन परीक्षणों में नाकाम रहते थे, उन्हें बाक़ी क़ैदियों से अलग कर दिया जाता था, और जापानी-अमेरिकी समुदायों को "वफ़ादार" और "ग़ैर-वफ़ादार" की श्रेणियों में बांट दिया जाता था।

9/11 के बाद इस्लाम विरोधी भावना और अरब-विरोधी नस्लवाद जिस बड़े पैमाने पर बढ़ गये थे, अमेरिका में रूस विरोधी भावना अभी तक उस स्तर तक नहीं पहुंची है। जैसा कि ब्राउन यूनिवर्सिटी का निषर्ष था, "अमेरिका में घृणा से जुड़े अपराध की दर्ज घटनाओं की कुल संख्या में 2000 और 2009 के बीच 18 प्रतिशत से ज़्यादा की कमी आयी थी, लेकिन इसी अवधि के दौरान मुसलमानों को लेकर नफ़रत के अपराध की इन घटनाओं का प्रतिशत 500 प्रतिशत से ज़्यादा बढ़ गया था।" इस्लाम विरोधी इस आंदोलन के नतीजों में से एक नतीजा डोनाल्ड ट्रम्प के राजनीतिक जीवन में प्रवेश भी था। उन्होंने शुरू में बराक ओबामा को छुपा हुआ मुसलमान बताकर राजनीतिक वर्चस्व हासिल कर लिया था। संयुक्त राज्य सरकार ने झूठे आतंकवाद के दावों के सिलसिले में 1,000 से ज़्यादा मुसलमानों को फंसाकर हिरासत में ले लिया था और/या उन्हें निर्वासित करके मुस्लिम समुदायों को आतंकित कर दिया था।

यह अभी तक साफ़ नहीं हो पाया है कि विदेशों में इस युद्ध-भड़काऊ चर्चा का रूसी समुदायों पर का क्या असर पड़ सकता है। लेकिन, यूक्रेन में चल रहे महज़ कुछ हफ़्ते पुराने इस युद्ध के साथ जुड़े कुछ इसी तरह के पैटर्न पहले से ही सामने आ रहे हैं। रूसी-अमेरिकी एलेना ब्रैनसन पर हाल ही में जासूसी का आरोप लगाया गया था। मीडिया ने ब्रैनसन पर रिपोर्ट करते हुए उन पर बतौर जासूस कार्य करने का आरोप इस तरह लगाया गया है, मानो कि उन्हें पहले ही दोषी ठहराया जा चुका हो, रिपोर्ट में कहा गया है, "आरोप में बताया गया है कि ब्रैनसन ने रूसी सरकार और रूसी अधिकारियों की ओर से अमेरिका में रूसी हितों को आगे बढ़ाने के लिए काम किया है।" (ज़ोर देते हुए) यह स्पष्ट नहीं है कि क्या रूसी-अमेरिकियों पर और भी आरोप लगाये जायेंगे, और क्या इन  आरोपों के परिणाम नज़रबंदी या निर्वासन तक जायेंगे।

रूस विरोधी भावना: किसका हित सध रहा है?

मीडिया युद्ध से जुड़ी कट्टरता को बढ़ावा देने में उसी तरह अहम भूमिका निभाता है, जैसा कि पॉप संस्कृति करती है। बच्चों के लिए लिखने वाले जाने माने लेखक डॉ. सीस ने दूसरे विश्युद्ध के दौरान सबसे ज़्यादा नस्लवादी जापान-विरोधी छवि बनायी थी, और पोपेय जैसे लोकप्रिय कार्टूनों में जापान-विरोधी एपिसोड दिखाये जाते थे।

ऐतिहासिक लिहाज़ से इस्लाम विरोधी भावना या जापानी विरोधी नस्लवाद जैसी कट्टरता शून्य में मौजूद नहीं थी। सही मायने में इसका एक व्यापक संदर्भ है और वह यह है कि युद्ध से जुड़े नस्लवाद के उन रूपों ने मानव इतिहास में किये गये कुछ सबसे हिंसक कृत्यों को सही ठहराने में मदद पहुंचायी है।इन कृत्यों में शामिल हैं- कई दशक तक "आतंक को लेकर चलने वाले युद्ध" और हिरोशिमा और नागासाकी पर तबाही बरपाने वाली बमबारी।

एक्टिविस्ट और पत्रकार मॉर्गन अर्टिहुख़िना पीपल्स डिस्पैच से बताती हैं, "मैंने तो जो कुछ भी कहा है,वह इस बात को लेकर कहा है कि मुझे कैसा लग रहा होता है जब बाइडेन रूसी तेल के आयात पर प्रतिबंध लगाने वाले होते हैं, ऐसा सिर्फ़ इसलिए नहीं कहा है कि यह आम रूसियों को सबसे ज़्यादा नुक़सान पहुंचाने वाला है, जैसा कि हम जानते हैं कि तमाम प्रतिबंध का असर ऐसा ही होता है,बल्कि इसलिए भी मैं बोली,क्योंकि इससे अमेरिकी कामकाजी लोगों को भी नुक़सान होगा... मुझे ख़ास तौर पर कहा गया कि 'आप पुतिन के ख़िलाफ़ क्यों नहीं खड़े होना चाहती हैं ? उन्हें हमें परेशान करने के लिए ऐसा करने की ज़रूरत है।' ठीक 25 साल पहले इन्हीं लोगों ने तब भी ऐसा ही कहा था, जब 30 साल पहले उन्होंने सद्दाम हुसैन के ख़िलाफ़ प्रतिबंध लगाये थे, और इराक़ के पांच साल से कम उम्र के 600,000 बच्चों ने तब इसकी क़ीमत चुकायी थी।"

सवाल है कि आज की रूस विरोधी भावना किस बात को सही ठहराने का काम करेगी ? रूस इस समय दुनिया का सबसे प्रतिबंधित देश है, जहां न सिर्फ़ रूसी मज़दूर वर्ग, बल्कि अमेरिका में काम करने वाले लोग भी उन प्रतिबंधों का खामियाज़ा भुगत रहे हैं। ऐसे में स्वाभाविक रूप से इस प्रतिबंध को दुनिया के तमाम कामकाजी लोगों के बीच अलोकप्रिय होना चाहिए। हालांकि, अमेरिका के मास मीडिया ने श्रमिकों से अमेरिकी इतिहास के सबसे ज़्यादा गैस की क़ीमतों के "बलिदान" को चुकाने का आग्रह किया है।

रूसी हमले के बाद भी सीधे-सीधे सैन्य हस्तक्षेप का विचार संयुक्त राज्य के लोगों के बीच अलोकप्रिय बना हुआ है। अमेरिकी सरकार अब यूक्रेन के बीच के संघर्ष और उसके बाद हुई गैस की क़ीमतों में बढ़ोतरी के लिए रूस और पुतिन को एकमात्र ख़लनायक के रूप में चित्रित करने की कोशिश कर रही है, जो कि आक्रामक नाटो विस्तार के एक बड़े संदर्भ को सामने आने नहीं दे रहा है। ऐसे में सवाल पैदा होता है कि क्या मीडिया और संस्कृति की ओर से प्रचारित बढ़ती रूस विरोधी भावना के साथ मिलकर यह युद्ध के पक्ष में लोकप्रिय राय को बना पाने के लिहाज़ से काफ़ी होगा?

ऐसा बहुत हद तक इसलिए मुमकिन है,क्योंकि अलग-अलग कई सर्वेक्षणों से यह पता चलता है कि अमेरिका में बहुसंख्यक या ज़्यादतर लोग यूक्रेन के ऊपर नाटो की ओर से क़ायम नो-फ़्लाई ज़ोन का समर्थन कर रहे हैं। अमेरिका और नाटो को नो-फ़्लाई ज़ोन बनाने की मांग को लेकर देश भर में कई विरोध प्रदर्शन हुए हैं।

हाल ही में हुए YouGovAmerica के एक सर्वेक्षण में यह पाया गया है कि हालांकि अमेरिका के ज़्यादातर लोग नो-फ़्लाई ज़ोन के विचार का समर्थन तो करते हैं,लेकिन ज़्यादतर लोग अमेरिकी सेना की ओर से रूसी विमानों को मार गिराने के विचार का समर्थन नहीं करते हैं, जो कि नो-फ़्लाई ज़ोन को लागू करने के लिए ज़रूरी है। जैसा कि एक अमेरिकी वेबसाइट फ़ाइवथर्टीहाइट लिखती है, "यह संभव है कि एक नो-फ़्लाई ज़ोन कई अमेरिकियों को दो चरम विकल्पों के बीच एक खुशहाल माध्यम की तरह लगता हो।यह बात हमें सर्वेक्षणों से पता है कि दोनों विकल्प अलोकप्रिय हैं और ये दो विकल्प है- रूस के साथ युद्ध में जाना और कुछ भी नहीं करना और यही वजह है कि शुरू में ज़्यादा समर्थन दर्ज किया गया था।"

इसी कारण से अमेरिका में लोग दुषप्रचार और बेख़बर,दोनों ही स्थिति में रहते हैं। फिर सवाल है कि मौजूदा रूस विरोधी भावना के ख़िलाफ़ शांतिप्रिय लोग इस माहौल में विचारों की लड़ाई आख़िर जीते तो कैसे जीतें ? हेगज़ी के मुताबिक़, "सचाई है कि यह बात हमारी सरकार को भी पता है कि लोगों के दिल भले होते हैं और लोग दूसरे लोगों की परवाह करते हैं, इसलिए वे युद्ध को लेकर सार्वजनिक सहमति बनाने के लिए इसका इस्तेमाल उनके ख़िलाफ़ करेंगे।"

वह कहती हैं: "अगर आप रूस को शैतान की तरह पेश कर रहे हैं और आप यह नहीं बता पा रहे हैं कि अमेरिका ने क्या कुछ किया है, तो यहां बहुत सारी सूचनायें ग़ायब है...मुझे लगता है कि हमें असल में साम्राज्यवाद को लेकर अपने वर्ग को शिक्षित करना होगा, क्योंकि मुझे नहीं लगता कि बहुत से लोग यह भी जानते हैं कि यह सब है क्या या उन्हें एहसास भी है कि यह सब अब भी 21वीं सदी में हो रहा है। ऐसे में अगर उन्होंने ऐसा किया, तो इसमे कोई शक नहीं कि इससे जनता की राय बदल जायेगी। क्योंकि एक बार जब आप जान जाते हैं,तो आप दुनिया को कभी उसी नहीं देख पाते हैं। अब कोई अच्छा बनाम बुरा तो रह नहीं  गया है। यह अब उतना आसान भी नहीं रह गया है, और मुझे लगता है कि हमें वास्तव में यही करना है।"

साभार : पीपल्स डिस्पैच

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