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बढ़ता क्रोध, टूटते गठबंधन

बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन में टूटन आ रही है, जो लोगों के बढ़ते असंतोष और क्रोध को दर्शाती हैं।
NAIDU

यह कहना अब मुश्किल नहीं है कि भाजपा की अगुआई वाला राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) टूट रहा है, लेकिन ज्वार का पानी बढ़ रहा है और रेत का महल किनारों से ढंसा हुआ है। एक उच्च प्रोफ़ाइल तलाक के मामले की तरह , एनडीए ने हाल ही में तेलुगू देशम पार्टी (टीडीपी) को खो दिया है, जो कि दक्षिण भारत में इसका एकमात्र प्रमुख सहयोगी है। लेकिन कहानी यहाँ ख़त्म नहीं होती है। कुछ महत्वपूर्ण छोटे खिलाडी एनडीए और इसकी प्रमुख पार्टी, भाजपा के साथ खुला मोहभंग व्यक्त कर रहे है। दूसरों ने भी अपने बढ़ते अलगाव की भावनाओं को उकसाया और प्रदर्शित किया है। इन घटनाओं से लोकसभा के चुनावों में होने वाले नुकसान  और गुजरात विधानसभा चुनावों में भाजपा के खराब प्रदर्शन के साथ जोड़ कर देखने की जरूरत है, इससे बढ़ते खतरे की तस्वीर उभरती साफ़ नज़र आ रही है। इसने किसानों के बीच व्यापक अशांति, निरर्थक बेरोज़गारी और कमज़ोर हुई अर्थव्यवस्था को यदि जोड़ें तो आप सत्तारूढ़ गठबंधन की पतली होती हालत की पूरी तस्वीर खींच सकते हैं।

आइये सबसे पहले, गठबंधन सहयोगियों पर नजर डालें। टीडीपी एक जाना बड़ा नुकसान है, भले ही भाजपा के प्रवक्ता इसे आंध्र प्रदेश में बीजेपी के विस्तार के लिए एक अवसर के रूप में पेश करने की कोशिश कर रहे हैं। इस टूटन का मुख्य कारण केंद्रीय सरकार उस के इनकार से प्रतीत होता है जब 2014 में चुनावों के दौरान भाजपा ने एक सौदे के अनुसार एपी को 'विशेष दर्जा' देने के लिए राज्य को दो हिस्से में विभाजित किया गया था। विशेष दर्जे से का यहाँ मूलतः केंद्र से अधिक धन पाने से मतलब है। टीडीपी को अधिक धन की इसलिए जरूरत है क्योंकि वह एक ऐसे राज्य में अपनी स्थिति को बेहतर करना चाहता है जहां बढ़ती बेरोजगारी और किसानों की आय में ठहराव से स्थिति खराब हो रही है। इसके अलावा, टीडीपी यह भी देख रही है भाजपा  वाईएसआर कांग्रेस और पवन कल्याण की जन सेना पार्टी जैसी प्रतिद्वंद्वी पार्टियों को अपमानित कर के एपी में अपना आधार बढ़ाने का प्रयास कर रही है।

अब एनडीए में नीचे से ऊपर तक दरारें देखीं जा सकती है। केरल में, भारत धर्म जन सेना (बीडीजेएस) ने घोषित किया है कि वह अब भाजपा के साथ काम नहीं कर पाएगी, खासकर आगामी चेंगन्नूर उप-चुनाव में, क्योंकि भाजपा ने उन्हें राज्यसभा सीट नहीं दी है। बीजेडीएस के श्री नारायण धर्म परिणालन योगाम (एसएनडीपी) का राजनीतिक दल है, जो एझावा समुदाय का सामाजिक-सांस्कृतिक संगठन है, और जिसकी केरल में बड़ी संख्या में आबादी बसर करती है। केरल में भाजपा का एक और छोटा सा सहयोगी, जनपथपथ्य राष्ट्रीय सभा भी अपने को अलग करने के लिए सोच रही है। केरल में कड़ी निर्वाचन चुनौती के लिए ये दरारें केरल में भाजपा की महत्वाकांक्षाओं के लिए महंगा साबित होगी।

दूर, पूर्वी उत्तर प्रदेश में ओबीसी समुदाय के राजभरों के प्रतिनिधित्व वाले एक छोटे से सहयोगी सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (एसबीएसपी) ने हाल ही में कहा है कि भाजपा "सिर्फ मंदिरों पर केंद्रित है" और गरीबों के कल्याण के लिए नहीं।

राजभर ने एएनआई को बताया, "बातें बहुत ज्यादा की जाती है लेकिन जमीन पर कोई बदलाव है।" "भाजपा, गठबंधन धर्म का पालन नहीं कर रही है। मैं अपनी चिंताओं को व्यक्त कर रहा हूं, लेकिन ये लोग [विधानसभा में] 325 सीटों लेकर पागल हो गए हैं।"

ये छोटी पार्टियां हैं, और उनकी शिकायतों में वरिष्ठ साझेदार के साथ सौदेबाजी का एक स्पष्ट तत्व मौजूद है, लेकिन इन पार्टियों का असंतोष मुश्किल को और बढाता है - और यह एक नजदीकी चुनाव लड़ाई में, वे महत्वपूर्ण साबित हो सकते हैं।

शिवसेना, जो भाजपा की एक प्रमुख और दीर्घकालिक सहयोगी है ने घोषित किया है कि वे आगामी चुनावों में स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़ेंगे जो पिछले चार सालों से भाजपा की आलोचना कर रहे हैं। पंजाब में अकाली दल जैसे अन्य राज्य स्तरीय पार्टियों से असंतोष या शिकायत की इतनी निर्दयतापूर्ण आवाजें पहले ही सुनाई डे रही हैं। अन्य प्रमुख राज्य पार्टियां जो एनडीए में शामिल होने के बिना बीजेपी के साथ चली गईं थी – उनमें ओडिशा में बीजू जनता दल भी एन.डी.ए. के प्रति अपने गुस्से का इज़हार कर रहे हैं। जम्मू-कश्मीर में पीडीपी जोकि भाजपा के साथ गठबंधन सरकार चला रही है राज्य में भाजपा के विरुद्ध असंतोष से अपरिहार्य नुक्सान के डर से अपने ही रास्ते पर चलने के लिए तेजी से बढ़ रही है।

यह ढहता हुआ गठबंधन क्यों?

मुख्यधारा के मीडिया द्वारा प्रचारित प्रचलित कथा यह है कि यह गठबंधन होने के कुछ प्रकार के पेशेवर खतरे होते हैं। आप सभी को खुश नहीं रख सकते, यह समझाया जाता है। लेकिन इसमें बहुत कुछ है जिस पर नज़र डालने की जरूरत है। जो पार्टियां एन.डी.ए. से दूर जा रही हैं वे देख सकती हैं की उसके नीचे की ज़मीन खिसक रही है। आइये इन सभी लक्षणों को देखें।

चार साल के एनडीए के शासन के जरिये देश के किसानों को तबाह कर दिया गया है। एक दर्जन से अधिक राज्यों ने किसानों के कई विरोध देखें जहाँ मध्य प्रदेश में किसानों की पुलिस गोलीबारी में हत्या भी हुयी और राजस्थान और महाराष्ट्र में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शनों सहित किसानों के विरोध प्रदर्शन हुए - तीनों भाजपा शासित राज्यों में सबसे अधिक विरोध प्रदर्शन हो  रहे हैं इस बीच, औद्योगिक श्रमिकों द्वारा दो अखिल भारतीय हड़ताल, और कई क्षेत्रीय हमलों और विरोध प्रदर्शन ने औद्योगिक दुनिया को हिला दिया है। दोनों ही मामलों में, सरकार किसी भी प्रतिबद्धता या लोगों को शांत करने में विफल रही है। पूरे देश में विश्वविद्यालय छात्र और शिक्षक विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। सरकारी कर्मचारियों, बैंकों और बीमा कंपनियों के सार्वजनिक क्षेत्र के कर्मचारी सरकार के खिलाफ आंदोलन कर रहे हैं और साथ ही स्कीम वर्कर का आन्दोलन जिसमें लाखों कार्यकर्ता कम कर रहे हैं (जो कि सरकार कार्यक्रमों में काम करते हैं)।

इस बीच, सरकार भ्रष्टाचार और काला धन को रोकने, कीमतों में वृद्धि, सस्ती शिक्षा और स्वास्थ्य देखभाल प्रदान करने, नौकरियों के अवसर प्रदान करने में पूरी तरह असफल रही है। बावजूद मोदी द्वारा किए गए उत्साहवर्धक वादे जिनसे लोगो को उम्मीद थी की वह इन सभी वादों को पूरा करेगा, वह उम्मीद टूट गयी।  

बढ़ते हमलों और भेदभाव के कारण कुछ समुदाय सत्तारूढ़ दल से अधिक विमुख हो गये है, क्योंकि ये हमले विशेष समुदाय के लोगों को निशाना बनाकर किये गए उन हमलों के हमलावरों को भाजपा और संघ परिवार ने बचाया। इन समुदायों में अल्पसंख्यक और दलित और आदिवासी शामिल है।

अब यह असंतोष, भाजपा को विभिन्न उप-चुनावों में, और हाल ही में उत्तर प्रदेश के गोरखपुर और फूलपुर, और पहले गुजरात में हुए नुकसान में दिखाई दिया। यह असंतोष कभी-कभी विभिन्न जातियों आधारित आंदोलनों में जैसे गुजरात में पाटीदार अन्य अन्य राज्यों में जाट और गुर्जर आरक्षण आंदोलनों में व्यक्त किया जाता रहा है।

संक्षेप में, जनादेश के साथ और लोगों की उम्मीदों के साथ विश्वासघात – वह भी उसमें जो कि भाजपा की अगुवाई वाली एनडीए सरकार का कार्यकाल है, यही कारन है कि राजनैतिक पुनर्नियोजन धीरे-धीरे हो रहा है, यह एनडीए के घटकों के टूटने के माध्यम से व्यक्त हो रहा है। आने वाले महीनों में इसमें बहुत तेज़ी से बढ़ोतरी होगी क्योंकि कई बड़े राज्यों में विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं और देश 2019 के आम चुनावों के लिए भी तैयार हो रहा है।

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