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 बेलारूस पर यूरोपीय संघ का दृष्टिकोण रूस के लिए है महत्वपूर्ण

रूस के बेलारूस में जायज हित जुड़े हुए हैं और इसलिए मॉस्को की प्राथमिकता होगी कि वह लुकाशेंको और राजनीतिक विपक्ष के बीच आपसी परामर्श के माध्यम से बेलारूस में एक व्यवस्थित बदलाव के लिए आगे बढ़े।
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बेलारूस के अस्थिर होते राष्ट्रपति अलेक्जेंडर लुकाशेंको कभी भी क्रेमलिन के सहज सहयोगी नहीं रहे है। लेकिन बेलारूस के "नए यूरोपियन" पड़ोसियों के बढ़ते हस्तक्षेप से संभावित रूप से रूसी-विरोधी रुख के साथ "कलर क्रांति" के लिए मंच को तैयार किया जा रहा है। पोलैंड जिसे अमेरिका द्वारा उकसाया जा रहा है, उसे यह कहकर आश्वस्त किया गया है कि वह एक क्षेत्रीय स्तर पर दमदार ताक़त है और उसे  बेलारूस को अपनी एक अचल संपत्ति के मूल्यवान टुकड़े के रूप में देखना चाहिए जो रूस की पश्चिमी सीमा पर सैन्य संतुलन को बदल सकता है।

दरअसल, ऐतिहासिक रूप से, वर्तमान में बेलारूस 18 वीं शताब्दी के बाद से रूस पर किए गए सभी चार प्रमुख आक्रमणों में शामिल रहा था- जिसमें स्वीडन का पोलैंड (1708-1709) के साथ संबद्ध था; उत्तर यूरोपीय मैदानी इलाके (1812) के माध्यम से नेपोलियन का आक्रमण; और जर्मनी द्वारा, दो बार (1914 और 1941) में आक्रमण। सीधे शब्दों में कहें तो बेलारूस रूस की राष्ट्रीय सुरक्षा के मामले में एक बफर जोन बनाता है।

सोवियत के बाद के इतिहास में, बाल्टिक राज्यों और पोलैंड को नाटो में जोड़ने के बाद और 2014 के बाद से यूक्रेन में पश्चिमी समर्थक निज़ाम के आने के बाद से, पश्चिमी गठबंधन पहले से कहीं अधिक रूस के करीब पहुंच गया है। यदि शीत-युद्ध के दौर में, सेंट पीटर्सबर्ग से नाटो की सेनाएँ निकटतम 1,600 किमी की दूरी पर थी, तो यह दूरी आज घटकर केवल 160 किमी रह गई है।

इसके अलावा, अमेरिका और पोलैंड के बीच 15 अगस्त को एक उन्नत रक्षा सहयोग समझौते पर हस्ताक्षर के बाद से पोलैंड "क्षेत्रीय सुरक्षा के मामले में जरूरी लिंक" बन गया है (जैसा कि अमेरिकी विदेश विभाग पोलैंड के बारे में वर्णन करता है)। वारसॉ में हस्ताक्षरित हुआ यह समझौता पोलैंड में अमेरिकी सैन्य ठिकानों की स्थापना को कानूनी आधार प्रदान करता है, जो रूस के खिलाफ ऐतिहासिक दुश्मनी को बढ़ावा देता है।

अगस्त 17 को रूसी विदेश मंत्रालय ने कहा कि पोलैंड में अमेरिकी सेना की हाज़िरी में काफी वृद्धि हुई है जो "रूस की पश्चिमी सीमाओं के आस-पास हालत को तनावपूर्ण बना रहा है, जिससे आपसी टकराव में वृद्धि होगी और बेपरवाह हादसों का खतरा बढ़ रहा है"। यह दर्शाता है कि नया यूएस-पोलैंड रक्षा समझौता "पोलैंड में अमेरिकी बलों की आक्रामक क्षमता को गुणात्मक रूप से मजबूत करने में मदद करेगा।"

यह सच है कि बेलारूस के घटनाक्रम को अलग घटना के रुप में नहीं देखा जा सकता है। क्रेमलिन ने  15 अगस्त को जारी एक बयान में कहा है कि, लुकाशेंको ने राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को पूरे घटनाक्रम की जानकारी देने के लिए बातचीत की। बयान में कहा गया है कि दोनों नेताओं ने 9 अगस्त को हुए राष्ट्रपति चुनाव के बाद बेलारूस में अशांति पर चर्चा की और दोनों पक्षों ने "विश्वास जताया कि सभी मौजूदा समस्याओं को जल्द ही सुलझा लिया जाएगा"।

हालांकि, अगले दिन, पुतिन ने लुकाशेंको को एक बार फिर से बातचीत के लिए कॉल किया। क्रेमलिन रीडआउट में कहा गया है कि बेलारूस में अशांति फैलाने वाले बाहरी हस्तक्षेप पर चर्चा के बाद, "रूसी पक्ष ने यूनियन स्टेट के निर्माण पर हुई संधि के सिद्धांतों के आधार पर बेलारूस के सामने आने वाली सभी चुनौतियों के समाधान करने हेतु आवश्यक सहायता प्रदान करने के लिए अपनी तत्परता की पुष्टि की, साथ ही साथ ऐसा जरूरत पड़ी तो ऐसा सामूहिक सुरक्षा संधि संगठन के माध्यम से भी किया जाएगा।

यह एक नाटकीय घोषणा थी, जिसमें सामूहिक सुरक्षा के अतीत के रूसी सिद्धांतों की अशिष्टता थी। जाहिर है, घोषणा का वांछित प्रभाव पड़ा। लुकाशेंको ने 17 अगस्त को कहा कि आने वाले कुछ महीनों में नए संविधान के अनुसार नए चुनाव कराए जाएंगे।

बेलारूस में विरोध प्रदर्शन आसानी से खत्म नहीं होंगे। कुछ मामलों पर सत्ता का हस्तांतरण अपरिहार्य हो गया है और मॉस्को को समझ में आ रहा है कि उसकी प्राथमिकता बढ़ती स्थिति को व्यवस्थित रूप से हस्तांतरण में होनी चाहिए। लेकिन मास्को में बेलारूस पर नज़र रखने और एक तर्कसंगत राजनीतिक संवाद को प्रोत्साहित करने की क्षमता बहुत सीमित है खासकर जब बाहरी हस्तक्षेप के माध्यम से तनाव जारी रहता है।

दरअसल, बेलारूस में एक हफ्ते पहले विरोध प्रदर्शन शुरू होने के बाद पहली बार वाशिंगटन ने मॉस्को को हालात से बाहर रहने की खुली चेतावनी दी है। एक अनाम "वरिष्ठ ट्रम्प प्रशासन के अधिकारी" ने 17 अगस्त को मीडिया को बताया कि, "भारी संख्या में बेलारूसवासियों ने शांतिपूर्वक विरोध प्रदर्शन करते हुए स्पष्ट किया कि सरकार अब लोकतंत्र के उनके आहवान को अनदेखा नहीं कर सकती है... रूस को बेलारूस की संप्रभुता और उनके लोगों के अधिकार का भी सम्मान करना चाहिए ताकि वे स्वतंत्र और निष्पक्ष रूप से अपने नेताओं और सरकार का चुनाव करें।”

अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पिओ ने भी 15 अगस्त को (पोलैंड की यात्रा के दौरान) कहा था कि अमेरिका यूरोपीय संघ के साथ 'बेहतर मदद करने की कोशिश करने के पर चर्चा कर रहा है क्योंकि हम बेलारूसी लोगों को संप्रभुता और स्वतंत्रता हासिल करने में यही मदद कर सकते हैं।'

यह तय है कि बेलारूस में रूसी हस्तक्षेप को यूरोप द्वारा नकारात्मक घटना के रूप में देखा जाएगा। इसलिए, पुतिन सावधानी से आगे बढ़ रहे हैं। लेकिन तथ्य यह भी है कि यूरोपीय देश महामारी और गंभीर आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं। लेकिन अभी तक यह स्पष्ट नहीं है कि रूस को उकसाने के लिए प्रमुख यूरोपीय शक्तियों को वाशिंगटन और पोलैंड के नेतृत्व को मानना होगा या नहीं।

बात गौरतलब है कि जर्मन चांसलर एंजेला मर्केल ने 19 अगस्त को मिन्स्क में विरोध प्रदर्शन शुरू होने के बाद पुतिन को फोन किया था। क्रेमलिन के एक बयान में कहा गया है कि पुतिन और मर्केल ने 'पूरी तरह से' उभरती स्थिति पर चर्चा की और 'रूस ने उन्हे बताया कि देश के घरेलू मामलों में हस्तक्षेप करने के विदेशी प्रयास उन्हे अस्वीकार्य हैं और वे तनाव को और बढ़ा सकते हैं।'

पुतिन के साथ मर्केल की बातचीत का सारांश पेश करते हुए, जर्मन प्रवक्ता स्टीफन सीबेरट ने कहा, कि "चांसलर ने कहा कि बेलारूसी सरकार को शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों के खिलाफ बल प्रयोग से बचना चाहिए, राजनीतिक कैदियों को तुरंत रिहा करना चाहिए और संकट से निबटने के लिए विपक्ष और समाज के तबके के साथ एक राष्ट्रीय संवाद स्थापित करना चाहिए।"

बेलारूस पर रूसी-जर्मन बातचीत का विकास संभव है। गौरतलब है कि फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रोन ने पुतिन को फोन किया और बाद में फिर से "जोर देकर कहा कि (बेलारूस) गणतंत्र के घरेलू मामलों में दखल देना और बेलारूसी नेतृत्व पर दबाव डालना उन्हे अस्वीकार्य होगा।" क्रेमलिन रीडआउट में कहा गया कि पुतिन और मैक्रॉन ने "समस्याओं के शीघ्र समाधान में रुचि व्यक्त की है"।

इसके बाद, पुतिन यूरोपीय काउंसिल चार्ल्स मिशेल के अध्यक्ष से भी बात की, जहाँ उन्होंने फिर से, "कुछ देशों द्वारा बेलारूसी नेतृत्व पर दबाव डालने और आंतरिक राजनीतिक स्थिति को अस्थिर करने के प्रयासों" पर चिंता व्यक्त की है। यह बात पोलैंड और लिथुआनिया, दो यूरोपीय संघ के सदस्य देशों और अमेरिका के मजबूत सहयोगियों के संदर्भ में कही गई है, जो बेलारूस को अस्थिर करने के मामले में मुख्य दोषी हैं।

लेकिन बड़ा सवाल यह है कि क्या वाशिंगटन में बैठे शीत-योद्धाओं और मध्य यूरोप में "न्यू यूरोपियन्स" बेलारूस में निज़ाम में बदलाव से कम में संतुष्ट होंगे जो उस देश को उनकी अपनी सेमा में लाता है। ऐसे में कोई भी रूसी सैन्य हस्तक्षेप "बदला लेने वाला रूस" के उनके विचार को विश्वसनीयता प्रदान करेगा।

यहां एक प्रसंग यह भी है कि जर्मन-रूसी निकटता वाशिंगटन और वॉरसॉ को बहुत परेशान करती है। वाशिंगटन, डीसी में सेंटर फॉर स्ट्रेटेजिक एंड इंटरनेशनल स्टडीज के एक हालिया पेपर में कहा गया है, कि “अपने कई पड़ोसियों की तुलना में, जर्मनी से रूस के साथ राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक संबंध लंबे समय से हैं- जो संयुक्त राज्य अमेरिका के प्रति संदेह की उस लकीर का जिक्र करना जरूरी नहीं है कि जर्मन राजनीतिक वर्ग के कुछ तबके कम अमेरिकी केंद्रित अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था नहीं चहाए हैं और वे  रूसी विचारों के प्रति सहानुभूति रखने के लिए कहते है।"

साथ ही अमरीका की धमकी कि अगर जर्मन कंपनियां नॉर्ड स्ट्रीम 2 गैस पाइपलाइन परियोजना में किसी भी रूप में भाग लेंगी जो रूस से प्राकृतिक गैस को जर्मनी ले जाएगा उन्हे "कानूनी और आर्थिक प्रतिबंधों के अमध्यम से को कुचल दिया जाएगा" जिससे हाल ही में जर्मन-अमेरिकी संबंधों में कड़वाहट पैदा हुई है। (संयोग से, पोलैंड भी नॉर्ड स्ट्रीम 2 परियोजना का डटकर विरोध कर रहा है, जिसने इसे विश्वास में नहीं लिया था)।

जर्मन राज्य मंत्री नील्स एनेन ने प्रस्तावित अमेरिकी प्रतिबंधों को "दृढ़ता से खारिज कर दिया" है और कहा है कि "एक करीबी दोस्त और सहयोगी को प्रतिबंधों की धमकी देना और इस तरह की भाषा का उपयोग करना, काम नहीं करेगा।" यूरोपीय ऊर्जा नीति ब्रसेल्स में तय की जाएगी, न कि वाशिंगटन डीसी में"।

जर्मन और अमेरिकी राजनेताओं के बीच इस तरह का कड़ुवाहट भरी बातचीत और साथ ही ट्रम्प प्रशासन द्वारा जर्मनी से 12,000 से अधिक सैनिकों को वापस बुलाने (और पोलैंड में उनमें से कुछ को हटाने) से अमेरिका और पोलैंड के साथ जर्मनी से उसके संबंधों में आई जटिलता को उजागर करता है। दक्षिण पंथी पोलिश सरकार यूरोपीय संघ के भीतर अमेरिका के ट्रोजन हॉर्स के रूप में काम करने में खुश है।

हालाँकि, जब तक यूरोपीय संघ पोलैंड के पीछे नहीं खड़ा होता, जिसके प्रसिद्ध दक्षिणपंथी नेतृत्व को पहले से ही संदेह के साथ देखा जाता है क्योंकि पुराने यूरोप की याद में वह कुछ भयानक खवाब की तरह है, इसमें मॉस्को को राजनयिक स्थान हासिल है। पुतिन की गणना इसी आधार पर काम कर रही है।

लब्बोलुआब यह है कि रूस के बेलारूस में बहुत से जायज़ हित जुड़े हैं और मास्को की प्राथमिकता लुकासेंको और राजनीतिक विरोध के बीच आपसी परामर्श के माध्यम से बेलारूस में एक व्यवस्थित परिवर्तन लाना होगा। इसमें यूरोपीय संघ का सहायक रुख, पुतिन के लिए मायने रखता है।

ब्रुसेल्स की नवीनतम रिपोर्टों में खुलासा हुआ है कि पुतिन और चार्ल्स मिशेल के बीच मंगलवार को फोन पर 30 मिनट की बातचीत हुई, जिसमें उन्होंने "मिन्स्क और विपक्ष के बीच बातचीत को सुविधाजनक बनाने के लिए अन्य विकल्पों पर चर्चा की, जिसमें ओएससीई (OSCE) मध्यस्थता भी शामिल थी"।

व्यक्त विचार व्यक्तिगत हैं।

 

https://www.newsclick.in/EU-helpful-stance-significance-russia-belarus

  

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