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बहुत आसान है योग्य प्रत्याशी और सही दल का चयन

मतदाता के लिए योग्य प्रत्याशी और दल का चयन अत्यंत सरल है क्योंकि सच्चे व्यक्ति और सच्चाई पर आधारित विचारधारा को पहचानना और उसका साथ देना हमेशा बहुत आसान और सुकून देने वाला होता है।
सांकेतिक तस्वीर
Image Courtesy: Patrika

सात चरणों में होने वाले लोकसभा चुनाव प्रगति पर हैं। भारतीय मतदाता अपने सहज अंतर्बोध से हमेशा अपना जनप्रतिनिधि चुनता है। वह नेताओं, मीडिया तथा राजनीतिक विश्लेषकों को प्रायः चौंका भी देता है। किंतु यह दौर ऐसा है जब मतदाता के सम्मुख गैर ज़रूरी मुद्दे परोसे जा रहे हैं और उसके चयन को इन मुद्दों पर आधारित करने की पुरजोर कोशिश की जा रही है, इसलिए यह आवश्यक है कि मतदाता, प्रत्याशी का चयन करते समय उन बुनियादी बातों को ध्यान में रखे जो वैसे तो उसे अच्छी तरह पता हैं किंतु जिन्हें कई बार राजनीतिक दलों और मीडिया द्वारा पैदा किए गए माहौल का शिकार होकर वह विस्मृत कर जाता है।

प्रत्याशी की पहचान

सबसे पहले बात आती है प्रत्याशी की। मतदाता को इस बात की बारीकी से पड़ताल करनी चाहिए कि जिन प्रत्याशियों में से उसे चयन करना है उनकी शिक्षा दीक्षा कितनी है, आय कितनी है, वे आर्थिक और सामाजिक दृष्टि से समाज के किस वर्ग से आते हैं और उनकी पृष्ठभूमि क्या है? क्या उन्हें राजनीति, प्रशासन और समाज सेवा का पूर्व अनुभव है? क्या वे किसी अन्य क्षेत्र (फ़िल्म, खेल आदि) में सफलता प्राप्त करने वाले सेलिब्रिटी हैं? यदि ऐसा है तो क्या वे राजनीति में लम्बी पारी खेलने के लिए पर्याप्त गंभीर हैं? कहीं वे अपनी लोकप्रियता का लाभ उठाकर चुनावी जीत प्राप्त कर अपना भविष्य संवारने में तो नहीं लगे हैं? मतदाता को यह भी देखना चाहिए कि कोई प्रत्याशी अपने चुनाव क्षेत्र में पूर्व से सक्रिय है या नहीं? यदि वह सक्रिय है तो जन समस्याओं के निपटान में उसकी कैसी भूमिका रही है? यदि वह पैराशूट कैंडिडेट है तो उसे लाने के पीछे की राजनीतिक दलों की मंशा क्या है? क्या उसे वर्तमान जनप्रतिनिधि की अलोकप्रियता और अकर्मण्यता के कारण बदलाव के रूप में लाया गया है?

आपराधिक रिकॉर्ड की पड़ताल

मतदाता को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वह क्रिमिनल रिकॉर्ड वाले प्रत्याशियों को न चुने। किंतु उसे प्रत्याशी के क्रिमिनल रिकॉर्ड की पड़ताल करते समय यह गौर करना होगा कि उस पर आरोपित मुकद्दमे कहीं राजनीति से प्रेरित तो नहीं हैं या जन सरोकार के मुद्दों पर आंदोलन के दौरान तो नहीं लगाए गए हैं? मतदाताओं को सभी प्रत्याशियों से यह अवश्य पूछना चाहिए कि क्षेत्र के विकास के लिए उनके पास क्या कार्य योजना है? अपने लोकसभा क्षेत्र की समस्याओं को चिह्नित कर उनके संभावित समाधान प्रस्तुत करने हेतु भी प्रत्याशियों पर दबाव बनाया जाना चाहिए। 

यदि कोई प्रत्याशी आपके क्षेत्र का सांसद है और दुबारा आपसे जनादेश प्राप्त करने आया है तब तो आपको उसके कार्य का मूल्यांकन करने का अवसर उपलब्ध हो जाता है। सांसद का मूल्यांकन करने से पूर्व उसके द्वारा करणीय कार्यों की जानकारी आवश्यक है। कई बार ऐसा होता है कि हम विधायक या महापौर या सरपंच आदि की अकर्मण्यता की सजा सांसद को दे बैठते हैं जबकि सबके कर्त्तव्य, उत्तरदायित्व और क्षेत्राधिकार बिलकुल अलग अलग हैं। हमारी अपेक्षाएं भी केंद्र सरकार, राज्य सरकार और स्थानीय निकाय के प्रशासन से अलग अलग होनी चाहिए। 

सांसद के कार्य

सांसद के कार्यों का कोई स्पष्ट विवरण संविधान में उपलब्ध नहीं है। संविधान के आर्टिकल 105 के सेक्शन 3 के अनुसार संसद के प्रत्येक सदन तथा इन सदनों के सदस्यों एवं कमेटियों की शक्तियों को  संसद द्वारा समय समय पर निर्मित कानूनों के माध्यम से परिभाषित किया जाएगा। सांसद मुख्य रूप से विधायी कार्य करते हैं किंतु इन्हें अनेक प्रशासनिक उत्तरदायित्व भी सौंपे गए हैं। सांसद देश के संचालन के लिए कानूनों का निर्माण करते हैं। वे किसी विधेयक पर बहस में भाग ले सकते हैं। वे किसी सरकारी विधेयक पर संशोधन भी प्रस्तावित कर सकते हैं। वे प्राइवेट मेंबर्स बिल भी ला सकते हैं। इसके अलावा सांसद प्रश्न काल, शून्य काल, स्थगन प्रस्ताव, ध्यानाकर्षण प्रस्ताव, अविश्वास प्रस्ताव, निंदा प्रस्ताव आदि का उपयोग करते हुए सरकार के काम पर निगरानी रख सकते हैं और जनहित के मुद्दे उठा सकते हैं। सांसद विभिन्न स्टैंडिंग कमेटियों तथा एडहॉक कमेटियों के सदस्य के रूप में सुपरवाइजरी रोल निभाते हैं। सांसद राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनावों में भाग लेते हैं। लोकसभा सांसद स्पीकर तथा डिप्टी स्पीकर के चयन में हिस्सा लेते हैं। सरकार द्वारा कोई भी कर आरोपित करने से पहले या कोई भी व्यय करने से पूर्व संसद से अनुमति लेनी होती है। सांसद बजट पास करने की प्रक्रिया में भाग लेते हैं और बजट के बाद वित्तीय समितियों के सदस्य के रूप में वित्त व्यवस्था को नियंत्रित करते हैं।

प्रत्येक सांसद का यह उत्तरदायित्व होता है कि वह अपने लोकसभा क्षेत्र के लोगों की अपेक्षाओं और समस्याओं को मुखर होकर प्रखरता के साथ रखे। सांसद अपने लोकसभा क्षेत्र में चल रही विभिन्न योजनाओं और कार्यक्रमों के क्रियान्वयन को सही दिशा एवं अपेक्षित गति प्रदान कर सकते हैं। वह जिले के कलेक्टर, राज्य शासन और केंद्र सरकार के निरंतर संपर्क में रह कर समन्वय का कार्य कर सकते हैं और जनकल्याण की योजनाओं के क्रियान्वयन में आ रही बाधाओं को दूर कर सकते हैं। 1993 से लोकसभा सांसदों को अपने क्षेत्र में विभिन्न परियोजनाओं के लिए जिला कलेक्टर को सिफारिश करने का अधिकार भी प्राप्त है। सांसदों को पार्लियामेंट लोकल एरिया डेवलपमेंट स्कीम के तहत 5 करोड़ रुपये प्रति सांसद प्रति वर्ष उपलब्ध कराए जाते हैं। सांसद आदर्श ग्राम योजना के तहत सभी सांसद चयनित ग्रामों को आदर्श ग्राम के रूप में विकसित कर सकते हैं यद्यपि इस हेतु उन्हें अलग से कोई फण्ड उपलब्ध नहीं कराया जाता है बल्कि उन्हें चल रही योजनाओं और इनके लिए उपलब्ध फण्ड की ही सहायता लेनी पड़ती है।

काम की जांच

मतदाता को यह देखना होगा कि उसके सांसद ने अपने लोकसभा क्षेत्र में पेयजल, सिंचाई, बिजली, स्वास्थ्य, शिक्षा, आवास, पोषण, परिवहन, पर्यावरण आदि के विषय में क्या कार्य किया है? क्या वह कृषि, उद्योग और व्यापार से जुड़ी समस्याओं को हल करने में कामयाब हुआ है? क्या उसके प्रयासों से नया रोजगार उत्पन्न हुआ है? क्या उसके प्रयासों से अधोसंरचना के विकास में सहायता मिली है? क्या वह अपने लोकसभा क्षेत्र में रेल सुविधा के विस्तार में कामयाब हुआ है? क्या वह नई सड़कें, पुल, बांध और नहर आदि बनवाने में सफल रहा है? केंद्र और राज्य सरकार की योजनाओं के क्रियान्वयन में उसकी क्या भूमिका रही है? संसद में उसकी उपस्थिति कितने दिन रही है? उसकी लोकसभा में सक्रियता कैसी रही है? उसने क्षेत्र की समस्याओं और विकास को लेकर कितने प्रश्न पूछे हैं? वह विभिन्न बहसों में भाग लेता है अथवा नहीं? क्या वह असंसदीय भाषा के प्रयोग और संसद की कार्रवाई को बाधित करने हेतु दोषी ठहराया गया है? क्या वह श्रेष्ठ सांसद के रूप में पुरस्कृत हुआ है? क्या उस पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं? क्या वह जनता के लिए सहज उपलब्ध रहा है? लोकसभा क्षेत्र बहुत बड़ा होता है। अपने क्षेत्र के हर हिस्से में क्या उसकी उपस्थिति बराबर रही है? स्वयं से जनता आसानी से संपर्क कर सके इसलिए उसने क्या व्यवस्था बनाई है? क्या वह हर वर्ग, हर धर्म, हर जाति और हर लिंग के लोगों के प्रति समान भाव रखता है? क्या वह केवल उन्हीं लोगों का काम करता है जिन्होंने चुनाव में उसे जिताया था? क्या वह अपने विरोधियों को शत्रु समझता है? क्या वह प्रतिशोधी स्वभाव का है? क्या वह पिछले चुनाव के दौरान किए अपने वादों पर खरा उतरा है? पिछले चुनाव के बाद से उसकी संपत्ति में कितना इज़ाफ़ा हुआ है? क्या सांसद जिस राजनैतिक दल का है वह केंद्र और राज्य दोनों में सत्ता में है? यदि हां तो क्या सांसद इसका लाभ उठाकर विकास को गति देने में कामयाब हुआ है? यदि नहीं तो क्या सांसद ने केंद्र या राज्य की प्रतिद्वंद्वी दल की सरकार के साथ समन्वय का रास्ता अपनाया है या संघर्ष कायदि उसने टकराव का रास्ता चुना है तो क्या यह न्यायोचित है?

चुनाव प्रचार पर भी नज़र रखें

मतदाता को यह भी देखना होगा कि क्या चुनाव प्रचार के दौरान धनबल और बाहुबल का प्रयोग प्रत्याशी द्वारा किया गया है? क्या वह अमर्यादित और अश्लील टिप्पणियां करने का आदी है? क्या वह तनाव फैलाने हेतु हेट स्पीच देकर जनता के किसी खास तबके को अपने पक्ष में करना चाहता है? क्या वह जाति, धर्म और संप्रदाय के नाम पर वोट मांग रहा है? वह अपने राजनीतिक हितों को क्षेत्र के विकास पर तरजीह तो नहीं देगा?

पार्टी का भी महत्व

मतदाता के लिए प्रत्याशी का आकलन करना जितना महत्वपूर्ण है उतना ही जरूरी उस दल की पड़ताल करना है जिस दल से वह चुनाव लड़ रहा है। प्रायः राष्ट्रीय दल पूरे देश के हर क्षेत्र में लोकसभा चुनावों में अपनी किस्मत आजमाते हैं किंतु अनेक प्रदेश ऐसे हैं जहां पर उस प्रदेश तक सीमित क्षेत्रीय दल चुनाव लड़ते और जीतते हैं। यदि मतदाता राष्ट्रीय दल का चयन कर रहा है तो उसे उस राष्ट्रीय दल के इतिहास और विचारधारा का ज्ञान होना चाहिए। वैसे तो निर्वाचन आयोग के अनुसार कोई भी दल कम से कम तीन राज्यों से न्यूनतम दो फीसदी लोकसभा सीट जीत कर राष्ट्रीय दल का दर्जा पा सकता है। किसी दल को लोकसभा या विधानसभा के चुनावों में कम से कम 4 राज्यों में यदि 6 प्रतिशत वोट मिले हों और इसके अलावा उसके 4 लोकसभा सदस्य चुन कर आए हों तब भी वह राष्ट्रीय दल के रूप में मान्यता अर्जित कर सकता है। यदि कोई दल 4 राज्यों में स्टेट पार्टी का दर्जा प्राप्त कर लेता है तब भी वह राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा पाने का हकदार बन जाता है। मतदाता को यह समझना होगा कि केवल देश भर में कार्यकर्ताओं, शाखाओं और भव्य कार्यालयों की मौजूदगी ही किसी दल को सच्चे अर्थों में राष्ट्रीय पार्टी नहीं बना देती। मतदाता को यह देखना होगा कि उस राष्ट्रीय दल में क्या देश के हर धर्म, जाति, वर्ग, लिंग और क्षेत्र के लोगों को साथ लेकर चलने की क्षमता है? क्या वह राष्ट्रीय दल हमारे देश की विविधता में एकता को स्वीकारता है और उसका आदर करता है? धर्म और राजनीति के पारस्परिक संबंधों को लेकर उस दल का क्या नजरिया है? अल्पसंख्यकों, वंचित समाजों तथा आदिवासियों के प्रति उसकी नीति क्या है? सामाजिक न्याय और आरक्षण को लेकर उस दल की नीति क्या है? क्या उस दल की दृष्टि में आर्थिक आधार पर आरक्षण देकर सामाजिक समानता का लक्ष्य पाया जा सकता है? महिलाओं का उस दल में क्या स्थान है और कितना प्रतिनिधित्व है? महिलाओं पर हो रहे अत्याचारों को लेकर उस दल की क्या प्रतिक्रिया रही है? उस राष्ट्रीय दल की संवैधानिक मूल्यों के प्रति आस्था को लेकर कभी कोई प्रश्न चिह्न तो नहीं लगा है? उस राष्ट्रीय दल के शासन के दौरान देश की संवैधानिक संस्थाएं कमजोर तो नहीं हुई हैं? न्यायपालिका और सेना के फैसलों एवं कार्यकलापों को सार्वजनिक विमर्श में लाने और इन पर सार्वजनिक टीका टिप्पणी को वह दल उचित मानता है या अनुचित? चुनावी खर्च, चुनावी चंदे और चुनाव सुधारों को लेकर उस दल का दृष्टिकोण क्या है? उस दल के द्वारा कितने प्रतिशत अपराधियों और भ्रष्टाचारियों को टिकट दिया गया है? उस दल के चुनावी घोषणापत्र में किन बिंदुओं को मुख्य स्थान दिया गया है? वह दल अपने घोषणापत्र में किए गए वादों को निभाने के लिए गंभीर है या नहीं? क्या उस दल ने अपने 5 साल के शासन का रिपोर्ट कार्ड जनता के सम्मुख प्रस्तुत किया है? यदि वह राष्ट्रीय दल  विपक्ष में है तो क्या उसकी भूमिका महज आलोचना तक सीमित रही है? क्या विपक्ष के रूप में वह सकारात्मक विकल्प देने में कामयाब रहा है? वह दल विकास के नाम पर वोट मांग रहा है या जाति और धर्म के नाम पर? भ्रष्टाचार को लेकर उसका रवैया कैसा है? क्या वह भ्रष्टाचारियों पर कार्रवाई करने के लिए आवश्यक दृढ़ता दिखा रहा है? उस राष्ट्रीय पार्टी की अर्थ नीति क्या है? कृषि और कृषक उसकी प्राथमिकताओं में किस क्रम पर हैं? श्रमिकों के प्रति उस दल में कितना सम्मान है? पब्लिक सेक्टर अंडरटेकिंग्स के प्रति उसका रवैया कैसा रहा है? पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप को लेकर उस दल के विचार क्या हैं? वित्तीय समावेशन के लिए उसकी रणनीति क्या है? उस दल की दृष्टि में विकास की परिभाषा क्या है? उस दल के शासन काल में मानव विकास सूचकांकों पर हमारा प्रदर्शन कैसा रहा है? उदारीकरण और वैश्वीकृत अर्थव्यवस्था के बारे में उसका विज़न क्या है? वह दल वेलफेयर स्टेट की अवधारणा को प्रासंगिक मानता है या पूर्ण निजीकृत सरकार का पक्षधर है? लोन और सब्सिडी को लेकर उस दल का दृष्टिकोण क्या है? ब्यूरोक्रेसी के चरित्र में बदलाव लाना उस दल को आवश्यक लगता है या नहीं या वह वर्तमान परिदृश्य से संतुष्ट है? पुलिस सुधारों को लेकर उस दल के क्या विचार हैं? शिक्षा, स्वास्थ्य, आवास,बेरोजगारी, कुपोषण, निर्धनता, भुखमरी आदि विषयों पर उस दल की क्या कार्यनीति है? पर्यावरण, प्रदूषण और स्वच्छता पर उस दल की क्या नीति है? शोध, अनुसंधान और जनता में वैज्ञानिक दृष्टिकोण के विकास तथा अंधविश्वासों के उन्मूलन  को वह दल कितनी प्राथमिकता देता है? आतंकवाद, नक्सलवाद और राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर उस दल का नजरिया क्या है? वह राष्ट्रीय दल नक्सलवाद और आतंकवाद को महज कानून व्यवस्था की समस्या मानता है या वह इनका सामाजिक आर्थिक समाधान निकालने का पक्षधर है? उस दल का मानवाधिकारों के प्रति क्या नजरिया है? उस दल के शासन काल में मानवाधिकारों की स्थिति क्या है? प्रेस और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को लेकर उस दल का क्या स्टैंड है? क्या उसके शासनकाल में प्रेस दबाव और भय से मुक्त रहा है? धार्मिक और जातीय हिंसा से निपटने में क्या वह दल कारगर रहा है? सेकुलरिज्म और राष्ट्रवाद को लेकर उसका नजरिया क्या है? क्या वह भारत की गुट निरपेक्ष विदेश नीति का समर्थक है

मतदाता को यह भी देखना होगा कि परिवारवाद और अधिनायकवाद का उस दल पर कितना प्रभाव है? इन चुनावों में उस दल ने परिवारवाद के आधार पर कितने टिकट बांटे हैं? उस दल में आंतरिक लोकतंत्र की क्या स्थिति है? क्या वह दल किसी एक व्यक्ति के इर्दगिर्द सिमट कर रह गया है? उस दल का क्षेत्रीय दलों के साथ संबंध कैसा रहा है? क्या वह क्षेत्रीय दलों की राज्य सरकारों के साथ सहयोग करता है? गठबंधन सरकार क्या उस दल के लिए कमजोरी और अनिर्णय का पर्याय है? क्या वह अपने दल के भीतर ताकतवर क्षेत्रीय नेताओं को सम्मान देता है? सत्ता पक्ष और विपक्ष में रहकर उस दल की क्या भूमिका रही है? कहीं सत्ता पक्ष में रहने पर वह आत्ममुग्धता का शिकार तो नहीं हो जाता और कहीं विपक्ष में रहने पर वह नकारात्मकता से ग्रस्त तो नहीं हो जाता?

कमोबेश इन्हीं आधारों पर क्षेत्रीय दलों का भी आकलन किया जा सकता है। केवल यह अतिरिक्त ध्यान मतदाता को रखना होगा कि जिस क्षेत्रीय दल का वह समर्थन कर रहा है वह क्षेत्रीय हितों की बात करते करते कहीं पृथकतावाद को तो बढ़ावा देने की कोशिश नहीं कर रहा है। 

मतदाता के लिए योग्य प्रत्याशी और दल का चयन अत्यंत सरल है क्योंकि सच्चे व्यक्ति और सच्चाई पर आधारित विचारधारा को पहचानना और उसका साथ देना हमेशा बहुत आसान और सुकून देने वाला होता है। यदि मतदाता, प्रत्याशी और दल के गुण दोषों पर विचार करते करते थक जाएं तो हास्यपूर्ण (फूहड़ हास्य ही सही) मनोरंजन के लिए टीवी पर चल रहे चुनावी कार्यक्रमों का आनंद ले सकते हैं। इन कार्यक्रमों में चल रही निरर्थक, नाटकीय और नकारात्मक बहसों का यही सर्वश्रेष्ठ उपयोग होगा।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)

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