बीजेपी पीडीपी का गठबंधन टूटा ,लोगों में ख़ुशी, पर जानकारों ने कहा चिंता का समय
19 जून को जो हुआ वह राजनीतिक समीक्षकों के हिसाब से होना ही था, इस दिन भारतीय जनता पार्टी ने जम्मू कश्मीर में पीडीपी के साथ बही गठबंधन सरकार से अपने पैर पीछे खींच लिए। ये निर्णय लेने के लिए बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने बीजेपी के दिल्ली मुख्यालय में एक आपातकालीन बैठक बुलाई थी। फिलहाल राज्य का शासन करने की ज़िम्मेदारी राज्यपाल एन एन वोहरा की है। ये पिछले 10 सालों में चौथी बार हुआ है कि जब राज्य में राज्यपाल शासन लगा है।
इस निर्णय के तुरंत बाद ही लगातार राजनीतिक विशेषज्ञों ,राजनेताओं और आम लोगों की प्रतिक्रियाएँ आने लगीं और इसी दौरान मंगलवार दोपहर में मुख्य मंत्री महबूबा मुफ़्ती ने अपना इस्तीफ़ा दे दिया। पूर्व मुख्यमंत्री और मुख्य विपक्षी नेता उमर अब्दुल्ला ने ट्विटर पर कहा "वह रिबन काट रहीं थी और बीजेपी उनके पैर। काश वह अपना सर उठाकर इज़्ज़त से जातीं ! वह जम्मू कश्मीर की मुख्यमंत्री थीं बीजेपी-पीडीपी की नहीं। "
इस कदम ने पीडीपी को आश्चर्यचकित कर दिया। पार्टी के लोगों ने कहा है कि उन्हें इस निर्णय के बारे में पहले कोई जानकारी नहीं थी। वहीं दूसरी तरफ आम लोगों में बीजेपी- पीडीपी के 3 साल तक चले गठबंधन के टूटने पर ख़ुशी की लहर दौड़ उठी , लेकिन लोगों को ये भी चिंता है कि अब आगे क्या होगा। श्रीनगर के लाल चौक पर खड़े एक स्थानीय व्यक्ति यूनुस अहमद ने कहा "पिछले तीन सालों में हालात बहुत खराब हुए हैं , कश्मीर में अब भी शांति कायम नहीं हो पायी है | इसके साथ ही हत्याएँ भी ख़तम नहीं हुई हैं। ये खबर कश्मीर के लोगों के लिए सुकून लेकर आयी है। अब ये राज्यपाल पर है कि वह इस परिस्थिति को किस तरह संभालते हैं। "
एक तरफ इस गठबंधन के टूटने की ख़ुशी में स्थानीय रेस्टोरेंटों ने डिस्काउंट दिया, वहीं दूसरी राजनीतिक समीक्षकों ने कहा कि कश्मीर 1990 के दौर में फिर से जा रहा है , जब अव्यवस्था का आलम था। एक स्थानीय व्यक्ति ने कहा "ऐसी अफवाहें हैं कि एक नए राज्यपाल को लाया जा रहा है। अगर ये सच हुआ तो ये बहुत ही खतरनाक बात है। ऐसा लग रहा है कि अब नब्बे के दौर में वापस जाते लग रहे हैं। आगे क्या होगा इसको लेकर हम डरे हुए हैं।" दूसरी तरह काफी सारे पत्रकारों और सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि ये 2019 के लोकसभा को ध्यान में रखकर लिया गया निर्णय है।
एक वरिष्ठ पत्रकार गौहर गिलानी ने न्यूज़क्लिक को कहा "जब मार्च 2015 में ये गठबंधन बनाया गया तो मैंने उस समय कहा था कि ये सिद्धांतहीन गठबंधन है। जब मरहूम मुफ़्ती साहब ने ये गठबंधन बनाया था तो उन्होंने खुद को बहुत ज़्यादा आँका था और मोदी को बहुत कम। यही आज का सच है। जिस तरह की राजनीति बीजेपी ने article 370 और 35A को लेकर की है। वह कश्मीर में हमेशा से ही सेना के ज़रिये ज़ोर आज़माइश करना चाहते रहे हैं। हमने देखा कि दोनों पार्टियों को एक दूसरे से कितनी परेशानियाँ थीं और इसके अलावा ज़्यादा सीटें लाकर भी पीडीपी इस गठबंधन में कमज़ोर साथी की तरह ही रही । "
उन्होंने आगे जोड़ा "बीजेपी ज़ोर ज़बरदस्ती की अपनी नीति को आगे बढ़ाती रही और अब उसे 2019 में दिखाने के लिए कुछ चाहिए। मोदी के पास देश के लोगों को दिखाने के लिए कुछ नहीं है, इसीलिए कश्मीर को एक प्रयोगशाला बनाया जा रहा है। बीजेपी के लिए कश्मीर एक प्रयोगशाला है जिसमें वह प्रयोग करती है। इस बार ये प्रयोग हिंदुत्व का है। मुझे इस बात का ताज्जुब है कि ये प्रयोग 3 साल 3 महीनों तक चला और इसका नतीजा हुआ इस गठबंधन का टूटना। "
वहीं राज्य पुलिस के प्रमुख के एस पी वैद ने कहा कि कश्मीर में कार्यवाहियाँ जारी रहेगी। "कार्यवाहियाँ जारी रहेगीं। बीच में सीजफायर के समय कार्यवाहियों को रोक दिया गया था। ये पहले भी चल रहीं थी लेकिन आने वाले दिनों में इन्हे तेज़ किया जायेगा। मुझे लगता है अब काम ज़्यादा आसान होगा। "
कश्मीर के एक मानवाधिकार कार्यकर्त्ता और वकील परवेज़ इमरोज़ ने कहा "राज्पाल शासन कोई नयी बात नहीं है ये नब्बे के दशक में भी हुआ था। कश्मीर अब एक अंतरराष्ट्रीय मुद्दा है। हाँ हम अब नब्बे के दौर में वापस जा रहे हैं और कश्मीर भारत द्वारा ही शासित रहेगा ,पर ये कोई नहीं बात नहीं है। हाँ इससे बीजेपी को फायदा होगा। सरकार ने हमेशा से सेना को खुले तौर पर कुछ करने की इजाज़त दी है अब भी ऐसा ही होगा। सेना का खिलाफ एक भी FIR दर्ज़ नहीं की गयी है। फर्क सिर्फ इतना है कि अब कार्यवाहियाँ और बढ़ जाएँगी और अगर ऐसा हुआ तो इसके खिलाफ प्रतिरोध भी बढ़ेगा। "
गौहर गिलानी ने आगे कहा "मैं देख सकता हूँ कि कश्मीर में आने वाला दौर और भी दुखद होगा और भी ज़्यादा खून खराबा और हिंसा होगी । लोक सभा चुनावों में प्रचार के लिए इसे मोदी सरकार की कामयाबी की तरह दिखाया जाएगा। "
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