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बिजली कर्मियों ने की सबके लिए बिजली की माँग ,निजीकरण के खिलाफ करेंगे देशव्यापी हड़ताल

बिजली (संशोधन) विधेयक 2014 बिजली के वितरण में निजीकरण का विस्तार करना चाहता है। इस विधेयक के ख़िलाफ़ दिल्ली में बिजली कर्मचारी और इंजीनियरों की राष्ट्रीय समन्वय समिति द्वारा एक राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित की गई थी।
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बिजली क्षेत्र के सभी कर्मचारी बिजली (संशोधन) विधेयक 2014 के विरोध में पूरे भारतमें 7 दिसंबर 2018 को 24 घंटे की हड़ताल करेंगे। ये विधेयक बिजली के वितरण के निजीकरण का विस्तार करना चाहता है जिसके परिणामस्वरूप ग़रीबों से बिजली का अधिकार छिन लिया जाएगा।और यदि बीजेपी की अगुआई वाली एनडीए सरकार उक्त तारीख़ से पहले संसद में विधेयक पेश करने का प्रयास करती है तो बिजली कर्मचारियों के संघ हड़ताल करेंगे।

ये फैसला नेशनल को-ऑर्डिनेशन कमेटी ऑफ इलेक्ट्रिसिटी एम्प्लाईज एंड इंजीनियर्स (एनसीसीओईईई) के राष्ट्रीय सम्मेलन के दौरान दिल्ली में 8 जून 2018 को सर्वसम्मति से लिया गया। एनसीसीओईईई ऊर्जा क्षेत्र के 2.5 मिलियन से अधिक सदस्यों के सभी संघों और परिसंघों का एक मंच है।

देश भर से बिजली विभागों के 500 से अधिक कर्मचारी और इंजीनियरों ने इस संशोधन विधेयक के ख़िलाफ़ भविष्य के कार्यवाही की योजना बनाने के लिए सभी प्रमुख केंद्रीय ट्रेड यूनियनों के सहयोग से राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित किया। बिजली कर्मचारी इस विधेयक का विरोध करते आ रहे हैं जो ऊर्जा अधिनियम 2003 को प्रतिस्थापित करना चाहता है। इसे पहली बार दिसंबर 2014 में पेश किया गया था।

ये विधेयक बिजली के वितरण को पहुंचाने (उपभोक्ताओं को बिजली वितरण करने वाला नेटवर्क) और आपूर्ति (या उपभोक्ताओं को बिजली की बिक्री) में बांटने का प्रयास करता है।

मूलतः ये सरकार बिजली के तारों को अपने अधीन रखेगी जो उपभोक्ता तक बिजली पहुंचाती हैं, जबकि निजी कंपनियां बिजली की वास्तविक बिक्री करेगी। इस विधेयक में कई आपूर्ति लाइसेंस भी शामिल हैं जो बिजली की आपूर्ति करेंगे, इसलिए वे बिजली बेचने में प्रतिस्पर्धा करेंगे। लेकिन आपूर्ति लाइसेंसधारकों में से एक को सरकारी स्वामित्व वाली लाइसेंसधारी होना चाहिए जो ग्रामीण परिवारों और किसानों जैसे उपभोक्ताओं की आवश्यकताओं को पूरा कर सकता है। यह कदम स्पष्ट रूप से वितरण के अधिक लाभदायक पहलुओं को अलग करने के लिए है जिसे निजी कंपनियों द्वारा लिया जा सकता है। यह बिना किसी निवेश के बिजली वितरण में निजी उद्यमों के लिए व्यवसाय की संभावना तैयार करेगा।

सम्मेलन में बोलते हुए ऑल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन (एआईपीईएफ) के चेयरमैन शैलेंद्र दुबे ने कहा कि ये सरकार दावा करती है कि उपभोक्ता ठीक वैसे ही बिजली सप्लायरों में से चुनाव करने में सक्षम होंगे जैसे कि वे वर्तमान में मोबाइल फोन सेवा प्रदाताओं में से चुनाव करते हैं जो कि झूठ था। ऐसा इसलिए क्योंकि सेल फोन नेटवर्क का इस्तेमाल करने के लिए हर कोई एक ही दर चुकाता है, उपभोक्ताओं की विभिन्न श्रेणियों के लिए विभिन्न दरों पर बिजली मुहैया कराई जाती है। छोटे पैमाने के उपभोक्ताओं जैसे कि घरों और किसानों को आमतौर पर सब्सिडी दरों पर बिजली दी जाती है, जबकि औद्योगिक इकाइयों जैसे बड़े पैमाने के उपभोक्ताओं से ज़्यादा क़ीमत लिया जाता है। बड़े उपभोक्ताओं से ये क्रॉस-सब्सिडी वितरण कंपनियों (डिस्कम) को लोगों को सस्ते बिजली मुहैया करने में मदद करती है।

दुबे ने कहा कि सरकार के स्वामित्व वाली वितरण कंपनियों (डिस्कम) ने 9 लाख करोड़ रुपए से अधिक का कुल घाटा और कर्ज़ संचित कर लिया है। दुबे उत्तर प्रदेश में बिजली कर्मचारियों के सफल आंदोलन का संचालन कर रहे थे जिसने राज्य की बीजेपी सरकार को बिजली वितरण का निजीकरण करने के लिए उठाए गए कदम वापस लेने के लिए मजबूर किया।

सरकारी स्वामित्व वाली डिस्कम में नुकसान काफी ज़्यादा है क्योंकि उत्पादन लागत में उनका कोई नियंत्रण नहीं है जहां निजी कंपनियों ने विद्युत अधिनियम2003 के बाद बिजली क्षेत्र के "अनबंडलिंग" के बाद अधिग्रहण कर लिया है।

यदि विधेयक पारित हो जाता है तो बिजली क्षेत्र में संकट एक अकल्पनीय स्तर तक बदतर हो जाएगा और क्रॉस-सब्सिडी का लाभ भी नहीं होगा जिसके माध्यम से सरकार आम लोगों और ग़रीबों को पूरा कर सकती है। इसके परिणामस्वरूप उन लोगों के लिए अनियमित आपूर्ति, बिजली कटौती इत्यादि की स्थिति उत्पन्न होगी जो निजी कंपनियों को अधिक भुगतान नहीं कर सकते हैं, जबकि बिजली आपूर्ति की क़ीमत सभी उपभोक्ताओं के लिए काफी महंगी होगी।

सेंटर ऑफ इंडियन ट्रेड यूनियन्स के महासचिव तपन सेन ने कहा कि बिजली कर्मचारियों का यह संघर्ष आम लोगों, ग़रीबों की रक्षा के लिए था। उन्होंने कहा कि100% विद्युतीकरण के मोदी के बड़े वादों के बावजूद देश में 30% लोगों के पास बिजली की पहुंच नहीं है।

सेन ने कहा कि इस विधेयक को संसद के अगले सत्र में पेश किए जाने की संभावना है, और यह संभवतः पास भी करा लिया जाएगा, क्योंकि वामपंथियों को छोड़कर सभी के बीच कॉर्पोरेट के पक्ष में आम राजनीतिक सर्वसम्मति थी। यही कारण है कि लोगों में जागरूकता लाना और लड़ाई को तेज़ करना ज़रूरी है।

सेन ने ज़ोर देकर कहा कि जब भी सरकार विधेयक पेश करने का प्रयास करती है तो बिजली कर्मचारियों को राष्ट्रव्यापी हड़ताल पर जाने की आवश्यकता हो सकती है, और सभी संघो को इसके लिए तैयार हो जाना चाहिए।

ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस (एआईटीयूसी) के महासचिव अमरजीत कौर ने कहा कि ऊर्जा का अधिकार को आधुनिक जीवन में मानव अधिकार के रूप में मान्यता दी जानी चाहिए क्योंकि लोगों के लिए बिजली के बिना रहना और काम करना असंभव हो जाएगा।

वास्तव में एनसीसीओईईई की मुख्य मांगों में से एक यह है कि प्रत्येक नागरिक को बिजली का अधिकार सुनिश्चित किया जाए।

समन्वय समिति ने कहा कि "बिजली" को "शोषण" में परिवर्तित किया जा रहा था, न सिर्फ लोगों को अलग करके जिससे कि निजी क्षेत्र द्वारा मुनाफे के लिए बिजली क्षेत्र का शोषण किया जा सके, बल्कि देश भर में बिजली क्षेत्र में आकस्मिक/अनुबंध/आउटसोर्सिंग के आधार पर कार्यरत कर्मचारियों के शोषण के कारण। एनसीसीओईईई ने यह भी मांग की कि सरकार बिजली क्षेत्र में अनुबंध/आकस्मिक/आउटसोर्स कार्यों को समाप्त करे।

ट्रेड यूनियनों और बिजली कर्मचारियों के संघों के कई अन्य नेताओं ने भी राजधानी के ग़ालिब इंस्टीट्यूट ऑडिटोरियम में लोगों को संबोधित किया। ये राष्ट्रीय सम्मेलन देश के विभिन्न हिस्सों में पिछले कुछ महीनों में हुए इस विधेयक के ख़िलाफ़ कई विरोध प्रदर्शन और क्षेत्रीय सम्मेलनों के बाद हुआ है। इनमें 3 अप्रैल को दिल्ली में हुए बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन भी शामिल था। इस दौरान पूरे देश के हजारों बिजली कर्मचारी संसद मार्ग पर इकट्ठा हुए थें।

बिजली (संशोधन) विधेयक 2014 बिजली अधिनियम 2003 की जगह लेगा जिसने बिजली (आपूर्ति) अधिनियम 1948 का स्थान लिया था।

2003 के अधिनियम ने राज्य बिजली बोर्डों को भंग कर दिया था और उन्हें तीन अलग-अलग इकाइयों में बांटा था। ये थे उत्पादन, संचरण और वितरण। यह कदम बिजली क्षेत्र के "अनबंडलिंग" के विश्व बैंक मॉडल को ध्यान में रखते हुए उठाया गया था जो निजी कंपनियों के प्रवेश को सुरक्षित और अधिक लाभदायक पहलुओं की अनुमति देगा।

नतीजतन बड़ी संख्या में निजी कंपनियों ने बिजली उत्पादन में प्रवेश किया, भले ही मुंबई, दिल्ली, कोलकाता, सूरत और अहमदाबाद जैसे कुछ शहरों को छोड़कर संचरण और वितरण राज्य सरकारों के अधीन रहा जहां निजी स्वामित्व वाले वितरण लाइसेंसधारक हैं। ओडिशा में वितरण का निजीकरण विफल रहा और उसे वापस लेना पड़ा। वर्तमान में केवल केरल और हिमाचल प्रदेश में एकीकृत राज्य बिजली बोर्ड हैं।

एनसीसीओईईई राष्ट्रीय सम्मेलन में केंद्र सरकार से निम्नलिखित मांग की गई:

1) विद्युत अधिनियम 2003 के कार्यान्वयन से बिजली उपभोक्ताओं और कर्मचारियों पर हुए प्रतिकूल प्रभावों की समीक्षा स्वतंत्र विशेषज्ञों द्वारा की जानी चाहिए। अनबंडल्ड पावर सेक्टर को केरल में केएसईबी लिमिटेड और हिमाचल प्रदेश में एचपीएसईबी लिमिटेड की तरह सर्वोच्च प्राथमिकता के साथ दोबारा एकीकृत किया जाना चाहिए।

2) बिजली कर्मचारियों और इंजीनियरों के संगठनों के प्रतिनिधियों के साथ पूर्व चर्चा के बिना संसद में प्रस्तावित बिजली (संशोधन) विधेयक के अधिनियमन को रोका जाए जिसका आश्वासन पूर्व एमआईसी पावर, भारत सरकार द्वारा 2015 और 2016 में एनसीसीओईईई के नेताओं के साथ ऊर्जा मंत्री के बीच हुई कई बैठकों के बाद दिया गया था।

3) पिछले दो दशकों के दौरान मल्टी-टाइम टैरिफ वृद्धि के बावजूद संपूर्ण दिवालियापन से सार्वजनिक स्वामित्व वाली बिजली क्षेत्र को बचाने के लिए उच्च नुकसान के संचयन की पृष्ठभूमि में भारत सरकार के साथ-साथ राज्य सरकारों कों व्यवसायी परामर्श मंच विकसित करना चाहिए जिसमें श्रमिकों और इंजीनियरों के राष्ट्रीय/राज्य स्तरीय संगठनों के प्रतिनिधि शामिल हों।

4) राष्ट्रीय ऊर्जा नीति में स्वदेशी संसाधनों और उत्पादन क्षमता के इस्तेमाल पर हमारे लोगों की क्षमता के अनुरूप सतत संतुलन होना चाहिए।

5) सर्वोच्च न्यायालय के 'समान कार्य के लिए समान वेतन' के आदेश का अनुपालन करना और नियमित संचालन में अनुबंध/आकस्मिक/आउटसोर्स श्रमिकों के काम पर पूरा पकड़ रखना और मौजूदा अनुबंध/आकस्मिक/आउटसोर्स कर्मचारियों और इंजीनियरों के लंबित नियमितिकरण का अनुरक्षण करना।

6) भर्ती की तारीख पर ध्यान दिए बिना सभी बिजली कर्मचारियों और इंजीनियरों के लिए पुरानी पेंशन योजना लागू की जाए।

7) बिजली उद्योग में जोखिम-भरे काम में सुरक्षित काम करने की स्थिति सुनिश्चित करना।

8) निजी पूंजीपतियों के हाथों प्राकृतिक ऊर्जा संसाधनों के हस्तांतरण को रोकना।

9) भारत के ऊर्जा क्षेत्र के पीएसयू से विनिवेश बंद करना।

10) 'मानव अधिकार के रूप में ऊर्जा का अधिकार' सुनिश्चित करना।

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