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बजट 2019: मोदी अपने पीछे देश को भयानक कर्ज़ में छोड़ कर जा रहे हैं

केंद्र और राज्य सरकार का संयुक्त ऋण लगभग 74,000 रुपये प्रति व्यक्ति है जबकि बैंकों के लिहाज से व्यक्तिगत ऋण 15,486 रुपये प्रति व्यक्ति है।
 बजट

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार अपना अंतिम बजट पेश करने के लिए तैयार हो रही है। इससे पहले राजकोषीय गणना के एक प्रमुख हिस्से  यानी कर्ज पर एक नज़र डाल रहे है। केंद्र और राज्य सरकारों का संयुक्त ऋण अब 97 लाख करोड़ हो गया है जो मार्च 2014 के मुकाबले 59 प्रतिशत ज्यादा है। यानी  साल 2014  में भाजपा सरकार के सत्ता संभालने के बाद अब तक का हाल यह है।  इस ऋण की भयानकता का अंदाज़ा इसे पूरी आबादी में वितरित करने की कल्पना के जरिये किया जा सकता है (नीचे चार्ट देखें)। यह 2014-15 के 54,229 रुपये प्रति व्यक्ति की तुलना में 2017-18 के लिए 73,966 रुपये प्रति व्यक्ति बैठता है।

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इस संयुक्त ऋण को - आधिकारिक तौर पर "सामान्य सरकारी ऋण" कहा जाता है – जो 2014 में 68.7 लाख करोड़ और 2011 में 47.6 लाख करोड़ रुपये था। ये आंकडे वित्त मंत्रालय द्वारा प्रकाशित एक वार्षिक प्रकाशन 2017-18 में सरकारी ऋण की स्थिति पत्र के अनुसार है।97 लाख करोड़ रुपये के संयुक्त ऋण में से केंद्र सरकार का ऋण 68.8 लाख करोड़ रूपए है या लगभग 71 प्रतिशत। मार्च 2014 के बाद से पिछले साढ़े चार वर्षों में इसमें 49 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।


सामान्य सरकारी ऋण, जैसा कि सरकार द्वारा परिभाषित किया गया है, इसमें उसी ऋण को रखा जाता है जिसे केवल सार्वजनिक ऋण मद के रूप में जाना जाता है, जैसेकि प्रतिभूतियों, ट्रेजरी बिलों और अन्य बॉन्ड्स और बाहरी ऋणों से बाजार ऋण जैसे आंतरिक ऋण शामिल हैं। इन दोनों के अलावा, कुछ अन्य उधारी भी हैं जो राष्ट्रीय लघु बचत कोष, भविष्य निधि इत्यादि से प्राप्त की जाती हैं, जिन्हें "अन्य देयताएं" के रूप में जाना जाता है। ये लगभग 2017-18 में 9.1 लाख करोड़ थी, इसमें मार्च 2014 के बाद से लगभग 30 प्रतिशत का इज़ाफा हुआ तक।

सरकारी ऋण अंततः कराधान के माध्यम से आम लोगों से वसूल किया जाता है। इसलिए, जबकि यह ऋण नुकताचीनी निकालने जैसा लग सकता है, लेकिन वास्तव में यह कुछ ऐसा है जिसके बारे में लोगों को चिंतित होने की आवश्यकता है। और, ऐसा भी नहीं है कि इस कर्ज का इस्तेमाल लोगों की भलाई के लिए कुछ अद्भुत काम करने के लिए किया गया है – जैसे कि अच्छे दिन  का राग। जहां तक लोगों का संबंध है, इस असाधारण खर्च का इस्तेमाल उनके लिए तो नही किया गया है। इस खर्च का इस्तेमाल आयुष्मान भारत और पीएम फसल बीमा योजना जैसी योजनाओं के माध्यम से कॉरपोरेट्स को करों में छूट और अन्य लाभकारी छूट देने के लिए किया गया है, जहां निजी कॉरपोरेटों को अपने खजाने में प्रत्यक्ष लाभ मिलता है और नोटबंदी या गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स जैसी विनाशकारी नीतियों के भुगतान के माध्यम से ऐसा किया गया है।लेकिन कर्ज की गाथा अभी पूरी नहीं हुई है। केवल बैंकों से परिवारों द्वारा लिए गए व्यक्तिगत ऋणों पर एक नज़र डालें (नीचे चार्ट देखें)। निजी धन उधारदाताओं के ऋण के लिए कोई डेटा ही उपलब्ध नहीं है।

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नवंबर 2018 तक व्यक्तिगत ऋणों की कुल राशि आरबीआई के अनुसार लगभग 20.7 लाख करोड़ रूपए है। जो भारत में प्रति व्यक्ति 15,486 रूपए बैठता है। उल्लेखनीय रूप से, नवंबर 2014 के बाद से व्यक्तिगत ऋण में 86 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जो 22 प्रतिशत से अधिक की वार्षिक वृद्धि को दर्शाता है। इसकी तुलना 2010 और 2014 के बीच केवल 17 प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि दर से करें।

व्यक्तिगत ऋण श्रेणियों में, उपभोग व्यय जैसे शादियों या बीमारी आदि के लिए ऋण में 147 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, क्रेडिट कार्ड की बकाया राशि की अदायगी में 189 प्रतिशत आवास ऋण में 81 प्रतिशत और वाहन के लिए ऋण में 66 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई है।इसका मतलब यह है कि मध्यम वर्ग मोटे तौर पर सरकार की तरह कर्ज में डूबा रहा है। यह अर्थव्यवस्था में मांग को बढ़ाने के लिए पर्याप्त नहीं है क्योंकि मध्यम वर्ग लोगों का एक छोटा सा हिस्सा है। अधिकांश लोगों के पास क्रेडिट कार्ड या व्यक्तिगत वाहन या घर नहीं हैं जिनके लिए बैंक अक्सर ऋण देते हैं। लेकिन यह मध्यम वर्ग है जो अत्यधिक ऋणी है।

मोदी द्वारा तैयार किए गए उस भयानक ऋण के अलावा, कृषि में ऋण करीब 10.7 लाख करोड़ रुपये है जो 44 प्रतिशत दर के हिसाब से बढ़ा है यानि 2014 में 7 लाख करोड़ रूपए। यह विभिन्न प्रकार के ऋण माफी के बावजूद है।और फिर आपके पास खराब ऋण या गैर-निष्पादित परिसंपत्तियां (एनपीए) हैं, जैसा कि उन्हें कहा जाता है, जो एक चौंका देने वाले स्तर पर है यानि मार्च 2018 तक 10.4 लाख करोड़ रुपये, जिनमें से 80 प्रतिशत कॉर्पोरेट्स का कर्ज़ है।इस सब को एक साथ रखें तो आपको मोदी की समझदारी वाली भारत की अर्थव्यवस्था की एक महत्वपूर्ण तस्वीर मिलेगी। मोदी सरकार का यह अंतिम वर्ष का बजट चुनावी समर से भरा हो सकता है, लेकिन सच यह है कि मोदी देश की अर्थव्यवस्था को खंडहर बना कर जा रहे हैं।


 

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